सोमवार, 4 जून 2012

पुरी -: समुद्र, धर्म और आध्यात्म का संगम...

भारत के पूर्वी तट पर बसा पुरी, उड़ीसा (अब ओडिशा) का वह मोती है जो अपने भीतर धार्मिक आस्था, सांस्कृतिक विरासत और प्राकृतिक सौंदर्य का अनोखा संगम समेटे हुए है। यह शहर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि अनुभवों का खजाना है—जहां एक ओर जगन्नाथ मंदिर की घंटियों की गूंज है, तो दूसरी ओर समुद्र की लहरों का अनवरत संगीत।

मैं मई 2013 में पुरी गया था, और आज भी उस यात्रा की हर याद मेरे दिल में ताज़ा है। उस समय का मौसम गर्म जरूर था, लेकिन समुद्र की ठंडी हवाओं और पुरी के लोगों की आत्मीयता ने इसे बेहद सुखद बना दिया।


समुद्र का पहला दीदार: पुरी बीच की जादुई सुबह

पुरी पहुंचने के बाद मेरी सबसे पहली इच्छा थी—समुद्र देखने की। स्टेशन से होटल तक का रास्ता जैसे-जैसे समुद्र के करीब आता गया, हवा में नमक की हल्की महक और लहरों की गूंज सुनाई देने लगी।

सुबह-सुबह जब मैं पुरी बीच पर पहुंचा, तो सूरज लाल-गुलाबी रंग में समुद्र की गोद से उग रहा था। लहरें जैसे सूरज का स्वागत कर रही हों। पैरों के नीचे मुलायम रेत, सामने असीम जलराशि, और किनारे बैठी नावें—यह दृश्य किसी चित्रकार की पेंटिंग से कम नहीं था।

लेकिन यहां एक बात का ध्यान रखना जरूरी है—पुरी का समुद्र खूबसूरत जरूर है, लेकिन इसकी लहरें तेज होती हैं। मैंने भी बस पैरों तक पानी आने दिया और दूर से ही इस प्राकृतिक संगीत का आनंद लिया।


जगन्नाथ मंदिर: आस्था का केंद्र

पुरी की पहचान उसके जगन्नाथ मंदिर से है। यह मंदिर न केवल ओडिशा बल्कि पूरे भारत के हिंदुओं के लिए आस्था का केंद्र है। चार धामों में से एक यह मंदिर अपनी विशालता और पवित्रता के लिए प्रसिद्ध है।

मंदिर का वास्तुशिल्प अद्भुत है—ऊंची-ऊंची दीवारें, विशाल शिखर और अंदर की भव्यता मन मोह लेती है। यहां भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां विराजमान हैं।

मैंने जब पहली बार मंदिर में प्रवेश किया, तो एक अलग ही ऊर्जा महसूस हुई। घंटियों की गूंज, मंत्रोच्चारण और प्रसाद की सुगंध—सब मिलकर मन को शांति और सुकून देने वाला वातावरण बना रहे थे।


रथयात्रा का अद्भुत नजारा

मेरे मई 2013 के दौरे के समय रथयात्रा तो नहीं थी, लेकिन वहां के लोगों ने मुझे इसके किस्से सुनाए। बाद में जब मैंने पुरी में रथयात्रा देखी, तो वह अनुभव जीवन भर के लिए यादगार बन गया।

रथयात्रा के दिन लाखों श्रद्धालु सड़कों पर उमड़ पड़ते हैं। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की विशाल मूर्तियों को सजाए हुए रथों पर बिठाकर शहर में घुमाया जाता है। इन रथों को खींचने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं, और इसे एक पुण्य का कार्य माना जाता है।


गुंडिचा मंदिर: रथयात्रा का विश्राम स्थल

जगन्नाथ मंदिर से लगभग 3 किलोमीटर दूर स्थित गुंडिचा मंदिर का महत्व रथयात्रा से जुड़ा है। यहीं भगवान के रथ कुछ दिनों के लिए ठहरते हैं। मैंने मई 2013 में इसे बाहर से देखा था, लेकिन रथयात्रा के समय यह मंदिर जीवन से भर उठता है।


आनंद बाजार और पुरी के स्वाद

पुरी का आनंद बाजार नाम के अनुरूप वाकई आनंद देने वाला स्थान है। यहां आपको स्थानीय हस्तशिल्प, रंग-बिरंगे कपड़े, और खासकर पुरी का प्रसिद्ध ‘खाजा’ मिठाई मिलेगी। यह कुरकुरी, मीठी और मुंह में जाते ही घुल जाने वाली मिठाई मैंने कई बार खरीदी और सफर में साथ ले आया।

यहां की गलियों में ताजा समुद्री मछली, उड़ीसा की पारंपरिक दालमा, और नारियल पानी का स्वाद गर्मी में जैसे अमृत लगता था।


पुरी बीच: शाम का रोमांस

पुरी बीच की शाम अपने आप में एक उत्सव होती है। डूबते सूरज की लालिमा समुद्र के पानी में सोने-सी चमक बिखेर देती है। बच्चे रेत के घर बनाते हैं, नवविवाहित जोड़े समुद्र किनारे टहलते हैं, और व्यापारी रंग-बिरंगे गुब्बारे और चाट-पकौड़ी बेचते हैं।

मैं भी एक शाम रेत पर बैठा, लहरों को देखता रहा। ऐसा लगा जैसे समय थम गया हो।


यात्रा की योजना और सुझाव

पुरी पहुंचने के लिए रेल, बस और हवाई—तीनों सुविधाएं उपलब्ध हैं। भुवनेश्वर हवाई अड्डा पुरी से लगभग 60 किलोमीटर दूर है। वहां से टैक्सी या बस आसानी से मिल जाती है।

मेरा सुझाव है कि पुरी घूमने का सबसे अच्छा समय सर्दियों का मौसम (नवंबर से फरवरी) है। मई-जून में गर्मी थोड़ी ज्यादा होती है, लेकिन समुद्र का आनंद तब भी लिया जा सकता है।

ठहरने के लिए यहां सस्ते गेस्ट हाउस से लेकर लग्जरी होटल तक सब उपलब्ध हैं। अगर आप समुद्र के नजदीक रहना चाहते हैं, तो बीच रोड के पास होटल चुनें।


मई 2013 की मेरी यादें

मेरे लिए मई 2013 की पुरी यात्रा सिर्फ एक धार्मिक सफर नहीं, बल्कि मन और आत्मा को छू लेने वाला अनुभव था। गर्म धूप के बावजूद समुद्र की ठंडी हवा, मंदिर की भव्यता, लोगों की मेहमाननवाजी, और उड़ीसा के व्यंजनों का स्वाद—सब कुछ जैसे एक रंगीन कोलाज में सजा हुआ था।

पुरी ने मुझे सिखाया कि यात्रा सिर्फ जगह बदलना नहीं है, बल्कि अनुभवों, भावनाओं और कहानियों का संग्रह है। जब भी मैं उस सफर को याद करता हूं, तो लहरों की आवाज़ और मंदिर की घंटियां जैसे कानों में गूंज उठती हैं।


निष्कर्ष: पुरी—जहां हर कदम एक कहानी कहता है

पुरी ऐसा शहर है जहां आप एक ही जगह धर्म, संस्कृति, इतिहास और प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद ले सकते हैं। यह सिर्फ एक यात्रा नहीं, बल्कि आत्मिक शांति और जीवन की नई दृष्टि देने वाला अनुभव है।

अगर आप भी ऐसी जगह की तलाश में हैं, जहां समुद्र की लहरें आपके मन का सारा बोझ धो दें और मंदिर की घंटियां आपको भीतर तक सुकून दें, तो पुरी आपके लिए एक आदर्श गंतव्य है।





पूरी का समुन्‍द्र तट पे नहाने का मजा ही कुछ और है 


पुरी में नारियल 5 रू में मिलता है इसका मजा जरूर ले 

प्रवीण जी भागों वरना समुन्‍द्र आप को अपने पास बुला लेगा 

प्रवीण जी समुनद्र को निहारते हुए 

मजा आ गया इसे देख कर 



कोणार्क का सूर्य मंदिर: विश्व धरोहर और कला का उत्कृष्ट नमूना...


मई 2013 की वह सुबह आज भी मेरी स्मृतियों में ताज़ा है। उड़ीसा की यात्रा का मेरा यह तीसरा दिन था, और दिल में एक ही मंज़िल गूंज रही थी – कोणार्क सूर्य मंदिर। बचपन से किताबों, डाक टिकटों और पोस्टरों में इस मंदिर का भव्य रथ देखा था, पर उसे अपनी आंखों से देखने की कल्पना ही रोमांच से भर दे रही थी।

ट्रेन और फिर सड़क यात्रा के दौरान, आसमान में चमकते सूरज को देखते हुए मन में बार-बार यह ख्याल आता – मैं उस स्थान की ओर बढ़ रहा हूँ, जहाँ सदियों पहले कारीगरों ने पत्थरों में खुद सूर्य का रथ उतार दिया था।


पहली झलक – सांसें थाम देने वाला नज़ारा

जैसे ही मंदिर के करीब पहुँचा, सामने जो दृश्य था, उसने सचमुच मुझे कुछ क्षणों के लिए स्थिर कर दिया। दूर से ही दिखाई देता विशाल पत्थर का रथ, सात पत्थर के घोड़े, और बारह विशाल पहिए – ऐसा लग रहा था मानो सूर्य देव अभी किसी भी पल इस रथ पर सवार होकर निकल पड़ेंगे।

मंदिर के आस-पास समुद्री हवा में हल्की नमी थी, और सूरज की किरणें जब उन नक्काशियों पर पड़ रही थीं, तो पत्थर जैसे सुनहरी आभा में नहा उठे थे।


इतिहास – गंग वंश का गौरव

कोणार्क सूर्य मंदिर का निर्माण 13वीं शताब्दी में गंग वंश के राजा नृसिंहदेव प्रथम ने कराया था। यह सिर्फ एक मंदिर नहीं, बल्कि स्थापत्य, विज्ञान और कला का ऐसा संगम है, जिसे देखकर आज भी विशेषज्ञ हैरान रह जाते हैं।

  • इसे समुद्र तट के पास इस तरह बनाया गया कि सुबह का सूरज सीधे गर्भगृह में प्रवेश करे।

  • यह मंदिर कलिंग वास्तुकला शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसमें बारीक नक्काशी और भव्य संरचना प्रमुख हैं।


मंदिर की अद्भुत खूबियां

सूर्य देव का रथ

मंदिर को सूर्य देव के रथ के रूप में डिजाइन किया गया है।

  • सात घोड़े – सप्ताह के सात दिनों का प्रतीक।

  • बारह पहिए – वर्ष के बारह महीने।

  • हर पहिए में आठ अर (spokes) – दिन के आठ पहरों का संकेत।

जब मैंने इन पहियों के पास खड़े होकर उन्हें छुआ, तो ऐसा लगा जैसे ये पत्थर समय की धड़कन को अपने अंदर समेटे हुए हैं।


पत्थरों में जीवन – अद्भुत नक्काशी

मंदिर की दीवारों और स्तंभों पर इतनी बारीक नक्काशी है कि हर आकृति में जान सी महसूस होती है।

  • देवी-देवताओं के चित्र

  • राजसी जुलूस और युद्ध दृश्य

  • नर्तकियों की सुंदर मुद्राएँ

  • जानवर, पक्षी और फूल-पत्तियाँ

इन नक्काशियों को देखते हुए समय कब बीत गया, पता ही नहीं चला।


कामसूत्र की मूर्तियाँ – संस्कृति की खुली सोच

मंदिर के कई हिस्सों में कामसूत्र से प्रेरित मूर्तियाँ हैं। ये सिर्फ शारीरिक भावनाओं का चित्रण नहीं, बल्कि उस युग की स्वतंत्र और खुली सोच का प्रतीक हैं।


सूर्य देव की तीन अवस्थाएँ

मंदिर में सूर्य देव की तीन भव्य मूर्तियाँ हैं:

  1. बाल्यावस्था – उगते सूरज की ऊर्जा।

  2. युवावस्था – दोपहर के तेजस्वी सूर्य की चमक।

  3. प्रौढ़ावस्था – ढलते सूरज की गरिमा।


नट मंदिर – कला का केंद्र

मुख्य मंदिर के पास नट मंदिर है, जहाँ नृत्य और संगीत की प्रस्तुतियाँ होती थीं। मैं वहाँ खड़ा था और कल्पना कर रहा था कि कैसे सैकड़ों साल पहले यहाँ वीणा, मृदंग और घुंघरुओं की धुनें गूंजती होंगी।


विश्व धरोहर का गौरव

1984 में यूनेस्को ने कोणार्क सूर्य मंदिर को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया। यह भारत की सांस्कृतिक और स्थापत्य विरासत का अमूल्य हिस्सा है।


मई 2013 – मेरी यात्रा के खास पल

जब मैंने मंदिर के प्रांगण में कदम रखा, तो लगा जैसे मैं समय के किसी सुरंग से होकर 700 साल पीछे चला गया हूँ।

  • सुबह की ठंडी हवा – हल्के बादलों के बीच से आती धूप और समुद्र की नमी भरी खुशबू।

  • भीड़ में अलग-अलग भाषाएँ – बंगाली, उड़िया, हिंदी, अंग्रेज़ी – हर कोई अपनी तरह से इस अद्भुत कृति की प्रशंसा कर रहा था।

  • शांति का अनुभव – जब भीड़ से दूर मंदिर की एक दीवार के पास खड़ा हुआ, तो पत्थरों से आती एक अनकही कहानी महसूस हुई।

मैंने हर पहिए, हर नक्काशी को ध्यान से देखा, और सोचा – इतने विशाल और जटिल निर्माण के लिए न तो उस समय आधुनिक मशीनें थीं, न तकनीक। यह तो सिर्फ मानव की कल्पना, मेहनत और समर्पण का चमत्कार है।


यात्रियों के लिए सुझाव

  • सबसे अच्छा समय – सुबह 6 से 9 बजे या शाम 4 से 6 बजे।

  • फोटोग्राफी नियम – गर्भगृह के अंदर फोटोग्राफी मना है।

  • स्थानीय बाज़ार – मंदिर के पास पत्थर की नक्काशी, लकड़ी की कलाकृतियाँ और पारंपरिक कपड़े मिलते हैं।

  • रहना और खाना – कोणार्क और पुरी में अच्छे होटल व रेस्टोरेंट हैं। ‘चेनापोड़ा’ मिठाई जरूर चखें।


निष्कर्ष – पत्थरों में बंद समय की कहानियाँ

कोणार्क सूर्य मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि समय और कला का जीवित संग्रहालय है। हर पत्थर, हर पहिया और हर नक्काशी किसी बीते युग की कहानी कहती है।

मई 2013 की मेरी वह यात्रा आज भी मेरे दिल में ताज़ा है। जब भी याद आती है, मन फिर उसी धूप, उसी हवा और उसी अद्भुत पत्थर के रथ के पास लौट जाता है। अगर आप कभी उड़ीसा जाएँ, तो कोणार्क सूर्य मंदिर को अपनी सूची में सबसे ऊपर रखें – क्योंकि यहाँ जाने के बाद आप पहले जैसे नहीं रहेंगे।