मई 2013 की वह सुबह आज भी मेरी स्मृतियों में ताज़ा है। उड़ीसा की यात्रा का मेरा यह तीसरा दिन था, और दिल में एक ही मंज़िल गूंज रही थी – कोणार्क सूर्य मंदिर। बचपन से किताबों, डाक टिकटों और पोस्टरों में इस मंदिर का भव्य रथ देखा था, पर उसे अपनी आंखों से देखने की कल्पना ही रोमांच से भर दे रही थी।
ट्रेन और फिर सड़क यात्रा के दौरान, आसमान में चमकते सूरज को देखते हुए मन में बार-बार यह ख्याल आता – मैं उस स्थान की ओर बढ़ रहा हूँ, जहाँ सदियों पहले कारीगरों ने पत्थरों में खुद सूर्य का रथ उतार दिया था।
पहली झलक – सांसें थाम देने वाला नज़ारा
जैसे ही मंदिर के करीब पहुँचा, सामने जो दृश्य था, उसने सचमुच मुझे कुछ क्षणों के लिए स्थिर कर दिया। दूर से ही दिखाई देता विशाल पत्थर का रथ, सात पत्थर के घोड़े, और बारह विशाल पहिए – ऐसा लग रहा था मानो सूर्य देव अभी किसी भी पल इस रथ पर सवार होकर निकल पड़ेंगे।
मंदिर के आस-पास समुद्री हवा में हल्की नमी थी, और सूरज की किरणें जब उन नक्काशियों पर पड़ रही थीं, तो पत्थर जैसे सुनहरी आभा में नहा उठे थे।
इतिहास – गंग वंश का गौरव
कोणार्क सूर्य मंदिर का निर्माण 13वीं शताब्दी में गंग वंश के राजा नृसिंहदेव प्रथम ने कराया था। यह सिर्फ एक मंदिर नहीं, बल्कि स्थापत्य, विज्ञान और कला का ऐसा संगम है, जिसे देखकर आज भी विशेषज्ञ हैरान रह जाते हैं।
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इसे समुद्र तट के पास इस तरह बनाया गया कि सुबह का सूरज सीधे गर्भगृह में प्रवेश करे।
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यह मंदिर कलिंग वास्तुकला शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसमें बारीक नक्काशी और भव्य संरचना प्रमुख हैं।
मंदिर की अद्भुत खूबियां
सूर्य देव का रथ
मंदिर को सूर्य देव के रथ के रूप में डिजाइन किया गया है।
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सात घोड़े – सप्ताह के सात दिनों का प्रतीक।
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बारह पहिए – वर्ष के बारह महीने।
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हर पहिए में आठ अर (spokes) – दिन के आठ पहरों का संकेत।
जब मैंने इन पहियों के पास खड़े होकर उन्हें छुआ, तो ऐसा लगा जैसे ये पत्थर समय की धड़कन को अपने अंदर समेटे हुए हैं।
पत्थरों में जीवन – अद्भुत नक्काशी
मंदिर की दीवारों और स्तंभों पर इतनी बारीक नक्काशी है कि हर आकृति में जान सी महसूस होती है।
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देवी-देवताओं के चित्र
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राजसी जुलूस और युद्ध दृश्य
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नर्तकियों की सुंदर मुद्राएँ
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जानवर, पक्षी और फूल-पत्तियाँ
इन नक्काशियों को देखते हुए समय कब बीत गया, पता ही नहीं चला।
कामसूत्र की मूर्तियाँ – संस्कृति की खुली सोच
मंदिर के कई हिस्सों में कामसूत्र से प्रेरित मूर्तियाँ हैं। ये सिर्फ शारीरिक भावनाओं का चित्रण नहीं, बल्कि उस युग की स्वतंत्र और खुली सोच का प्रतीक हैं।
सूर्य देव की तीन अवस्थाएँ
मंदिर में सूर्य देव की तीन भव्य मूर्तियाँ हैं:
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बाल्यावस्था – उगते सूरज की ऊर्जा।
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युवावस्था – दोपहर के तेजस्वी सूर्य की चमक।
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प्रौढ़ावस्था – ढलते सूरज की गरिमा।
नट मंदिर – कला का केंद्र
मुख्य मंदिर के पास नट मंदिर है, जहाँ नृत्य और संगीत की प्रस्तुतियाँ होती थीं। मैं वहाँ खड़ा था और कल्पना कर रहा था कि कैसे सैकड़ों साल पहले यहाँ वीणा, मृदंग और घुंघरुओं की धुनें गूंजती होंगी।
विश्व धरोहर का गौरव
1984 में यूनेस्को ने कोणार्क सूर्य मंदिर को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया। यह भारत की सांस्कृतिक और स्थापत्य विरासत का अमूल्य हिस्सा है।
मई 2013 – मेरी यात्रा के खास पल
जब मैंने मंदिर के प्रांगण में कदम रखा, तो लगा जैसे मैं समय के किसी सुरंग से होकर 700 साल पीछे चला गया हूँ।
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सुबह की ठंडी हवा – हल्के बादलों के बीच से आती धूप और समुद्र की नमी भरी खुशबू।
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भीड़ में अलग-अलग भाषाएँ – बंगाली, उड़िया, हिंदी, अंग्रेज़ी – हर कोई अपनी तरह से इस अद्भुत कृति की प्रशंसा कर रहा था।
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शांति का अनुभव – जब भीड़ से दूर मंदिर की एक दीवार के पास खड़ा हुआ, तो पत्थरों से आती एक अनकही कहानी महसूस हुई।
मैंने हर पहिए, हर नक्काशी को ध्यान से देखा, और सोचा – इतने विशाल और जटिल निर्माण के लिए न तो उस समय आधुनिक मशीनें थीं, न तकनीक। यह तो सिर्फ मानव की कल्पना, मेहनत और समर्पण का चमत्कार है।
यात्रियों के लिए सुझाव
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सबसे अच्छा समय – सुबह 6 से 9 बजे या शाम 4 से 6 बजे।
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फोटोग्राफी नियम – गर्भगृह के अंदर फोटोग्राफी मना है।
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स्थानीय बाज़ार – मंदिर के पास पत्थर की नक्काशी, लकड़ी की कलाकृतियाँ और पारंपरिक कपड़े मिलते हैं।
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रहना और खाना – कोणार्क और पुरी में अच्छे होटल व रेस्टोरेंट हैं। ‘चेनापोड़ा’ मिठाई जरूर चखें।
निष्कर्ष – पत्थरों में बंद समय की कहानियाँ
कोणार्क सूर्य मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि समय और कला का जीवित संग्रहालय है। हर पत्थर, हर पहिया और हर नक्काशी किसी बीते युग की कहानी कहती है।
मई 2013 की मेरी वह यात्रा आज भी मेरे दिल में ताज़ा है। जब भी याद आती है, मन फिर उसी धूप, उसी हवा और उसी अद्भुत पत्थर के रथ के पास लौट जाता है। अगर आप कभी उड़ीसा जाएँ, तो कोणार्क सूर्य मंदिर को अपनी सूची में सबसे ऊपर रखें – क्योंकि यहाँ जाने के बाद आप पहले जैसे नहीं रहेंगे।
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