पुरी के समुद्री तटों पर सूर्योदय और सूर्यास्त के दृश्य बहुत आनंददायक होते हैं, देखने वाला आनंद के हिलोरे लेने लगता है। यहां के समुद्री तट सन-बाथिंग के लिए आदर्श स्थान हैं किंतु यदि आप एक अच्छे तैराक नबीं है तो यहां तैरने की सलाह नहीं दी जा सकती क्योंकि यहां लहरों का प्रवाह बहुत तेज होता है।
पुरी भारत के ओड़िशा प्रान्त का एक जिला है। भारत के चार पवित्रतम स्थानों में से एक है पुरी, जहां समुद्र इस शहर के पांव धोता है। कहा जाता है कि यदि कोई व्यक्ति यहां तीन दिन और तीन रात ठहर जाए तो वह जीवन-मरण के चक्कर से मुक्ति पा लेता है। पुरी, भगवान जगन्नाथ (संपूर्ण विश्व के भगवान), सुभद्रा और बलभद्र का पवित्र नगरी है, हिंदुओं के पवित्र चार धामों में से एक पुरी संभवत: एक ऐसा स्थान है जहां समुद्र के आनंद के साथ-साथ यहां के धार्मिक तटों और 'दर्शन' की धार्मिक भावना के साथ कुछ धार्मिक स्थलों का आनंद भी लिया जा सकता है।
पुरी एक ऐसा स्थान है जिसे हजारों वर्षों से कई नामों - नीलगिरी, नीलाद्रि, नीलाचल, पुरुषोत्तम, शंखश्रेष्ठ, श्रीश्रेष्ठ, जगन्नाथ धाम, जगन्नाथ पुरी - से जाना जाता है। पुरी में दो महाशक्तियों का प्रभुत्व है, एक भगवान द्वारा सृजित है और दूसरी मनुष्य द्वारा सृजित है।
स्मारक एवं दर्शनीय स्थल
जगन्नाथ मंदिर
यह 65 मी. ऊंचा मंदिर पुरी के सबसे शानदार स्मारकों में से एक है। इस मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में चोडागंगा ने अपना राजधानी को दक्षिणी उड़ीसा से मध्य उड़ीसा में स्थानांतररित करने की खुशी में करवाया था। यह मंदिर नीलगिरी पहाड़ी के आंगन में बना है। चारों ओर से 20 मी. ऊंची दीवार से घिरे इस मंदिर में कई छोट-छोटे मंदिर बने हैं। मंदिर के शेष भाग में पारंपरिक तरीके से बना सहन, गुफा, पूजा-कक्ष और नृत्य के लिए बना खंबों वाला एक हॉल है। इस मंदिर के विषय में वास्तव में यह एक आश्चर्यजनक सत्य है कि यहां जाति को लेकर कभी भी मतभेद नहीं रहे हैं। सड़क के एक छोर पर गुंडिचा मंदिर के साथ ही भगवान जगन्नाथ का ग्रीष्मकालीन मंदिर है। यह मंदिर ग्रांड रोड के अंत में चाहरदीवारी के भीतर एक बाग में बना है। यहां एक सप्ताह के लिए मूर्ति को एक साधारण सिंहासन पर विराजमान कराया जाता है। भुवनेश्वर में लिंगराज मंदिर की भांति इस मंदिर में भी गैर-हिंदुओं का प्रवेश वर्जित है। उन्हें मंदिर परिसर के बाहर से ही दर्शन करने पड़ते हैं।
रथ यात्रा पर्व
रथ यात्रा और नव कालेबाड़ा पुरी के प्रसिद्ध पर्व हैं। ये दोनों पर्व भगवान जगन्नाथ की मुख्य मूर्ति से संबद्ध हैं। नव कालेबाड़ा पर्व बहुत ही महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है, तीनों मूर्तियों- भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा का बाहरी रूप बदला जाता है। इन नए रूपों को विशेष रूप से सुगंधित चंदन-नीम के पेड़ों से निर्धारित कड़ी धार्मिक रीतियों के अनुसार सुगंधित किया जाता है। इस दौरान पूरे विधि-विधान और भव्य तरीके से 'दारु' (लकड़ी) को मंदिर में लाया जाता है।
इस दौरान विश्वकर्मा (लकड़ी के शिल्पी) 21 दिन और रात के लिए मंदिर में प्रवेश करते हैं और नितांत गोपनीय ढंग से मूर्तियों को अंतिम रूप देते हैं। इन नए आदर्श रूपों में से प्रत्येक मूर्ति के नए रूप में 'ब्रह्मा' को प्रवेश कराने के बाद उसे मंदिर में रखा जाता है। यह कार्य भी पूर्ण धार्मिक विधि-विधान से किया जाता है।
पुरी बीच पर्व वार्षिक तौर पर नवंबर माह के आरंभ में आयोजित किया जाता है, उड़ीसा की शिल्पकला, विविध व्यंजन और सांस्कृतिक संध्याएं इस पर्व का विशेष आकर्षण हैं।
पुरी में रथयात्रा का त्योहार साल में एक बार मनाया जाता है। इस रथयात्रा को देखने के लिए तीर्थयात्री देश के विभिन्न कोने से आते हैं। रथयात्रा में श्रद्धालु भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र तथा बहन सुभद्रा की पूजा-अर्चना करते हैं। यह भव्य त्योहार नौ दिनों तक मनाया जाता है।
रथयात्रा जगन्नाथ मन्दिर से प्रारम्भ होती है तथा गुंडिचा मन्दिर तक समाप्त होती है। भारत में चार धामों में से एक धाम पुरी को माना जाता है। यहाँ विश्व का सबसे बड़ा समुद्री तट है।
आप रेल, बस तथा हवाई जहाज से पूरी पहुँच सकते हैं। सबसे नजदीक का हवाईअड्डा यहाँ से 60 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। अगर पर्यटक समुद्री तट का आनंद उठाना चाहते हैं तब वे गर्मियों में छुटि्टयाँ मनाने के लिए पुरी आ सकते हैं। भ्रमण करने के लिए यहाँ पर बस, टैक्सी तथा ऑटो की सेवाएँ उपलब्ध हैं।
आनंद बाजार में हर प्रकार का खाना मिलता है। यह विश्व का सबसे बड़ा बाज़ार है। पुरी में कई मन्दिर हैं। गुंडिचा मन्दिर में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र तथा सुभद्रा देवी की प्रतिमा स्थित है।
पूरी का समुन्द्र तट पे नहाने का मजा ही कुछ और है |
पुरी में नारियल 5 रू में मिलता है इसका मजा जरूर ले |
प्रवीण जी भागों वरना समुन्द्र आप को अपने पास बुला लेगा |
प्रवीण जी समुनद्र को निहारते हुए |
मजा आ गया इसे देख कर |