सोमवार, 4 जून 2012

पुरी बीच ओडिशा की शान .......


         पुरी के समुद्री तटों पर सूर्योदय और सूर्यास्त के दृश्य बहुत आनंददायक होते हैं, देखने वाला आनंद के हिलोरे लेने लगता है। यहां के समुद्री तट सन-बाथिंग के लिए आदर्श स्थान हैं किंतु यदि आप एक अच्छे तैराक नबीं है तो यहां तैरने की सलाह नहीं दी जा सकती क्योंकि यहां लहरों का प्रवाह बहुत तेज होता है।
पुरी भारत के ओड़िशा प्रान्त का एक जिला है। भारत के चार पवित्रतम स्थानों में से एक है पुरी, जहां समुद्र इस शहर के पांव धोता है। कहा जाता है कि यदि कोई व्यक्ति यहां तीन दिन और तीन रात ठहर जाए तो वह जीवन-मरण के चक्कर से मुक्ति पा लेता है। पुरी, भगवान जगन्नाथ (संपूर्ण विश्व के भगवान), सुभद्रा और बलभद्र का पवित्र नगरी है, हिंदुओं के पवित्र चार धामों में से एक पुरी संभवत: एक ऐसा स्थान है जहां समुद्र के आनंद के साथ-साथ यहां के धार्मिक तटों और 'दर्शन' की धार्मिक भावना के साथ कुछ धार्मिक स्थलों का आनंद भी लिया जा सकता है।
पुरी एक ऐसा स्थान है जिसे हजारों वर्षों से कई नामों - नीलगिरी, नीलाद्रि, नीलाचल, पुरुषोत्तम, शंखश्रेष्ठ, श्रीश्रेष्ठ, जगन्नाथ धाम, जगन्नाथ पुरी - से जाना जाता है। पुरी में दो महाशक्तियों का प्रभुत्व है, एक भगवान द्वारा सृजित है और दूसरी मनुष्य द्वारा सृजित है।

स्मारक एवं दर्शनीय स्थल

जगन्नाथ मंदिर
पुरी का श्री जगन्नाथ मंदिर
यह 65 मी. ऊंचा मंदिर पुरी के सबसे शानदार स्मारकों में से एक है। इस मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में चोडागंगा ने अपना राजधानी को दक्षिणी उड़ीसा से मध्य उड़ीसा में स्थानांतररित करने की खुशी में करवाया था। यह मंदिर नीलगिरी पहाड़ी के आंगन में बना है। चारों ओर से 20 मी. ऊंची दीवार से घिरे इस मंदिर में कई छोट-छोटे मंदिर बने हैं। मंदिर के शेष भाग में पारंपरिक तरीके से बना सहन, गुफा, पूजा-कक्ष और नृत्य के लिए बना खंबों वाला एक हॉल है। इस मंदिर के विषय में वास्तव में यह एक आश्चर्यजनक सत्य है कि यहां जाति को लेकर कभी भी मतभेद नहीं रहे हैं। सड़क के एक छोर पर गुंडिचा मंदिर के साथ ही भगवान जगन्नाथ का ग्रीष्मकालीन मंदिर है। यह मंदिर ग्रांड रोड के अंत में चाहरदीवारी के भीतर एक बाग में बना है। यहां एक सप्ताह के लिए मूर्ति को एक साधारण सिंहासन पर विराजमान कराया जाता है। भुवनेश्वर में लिंगराज मंदिर की भांति इस मंदिर में भी गैर-हिंदुओं का प्रवेश वर्जित है। उन्हें मंदिर परिसर के बाहर से ही दर्शन करने पड़ते हैं।

रथ यात्रा पर्व

रथ यात्रा और नव कालेबाड़ा पुरी के प्रसिद्ध पर्व हैं। ये दोनों पर्व भगवान जगन्नाथ की मुख्य मूर्ति से संबद्ध हैं। नव कालेबाड़ा पर्व बहुत ही महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है, तीनों मूर्तियों- भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा का बाहरी रूप बदला जाता है। इन नए रूपों को विशेष रूप से सुगंधित चंदन-नीम के पेड़ों से निर्धारित कड़ी धार्मिक रीतियों के अनुसार सुगंधित किया जाता है। इस दौरान पूरे विधि-विधान और भव्य तरीके से 'दारु' (लकड़ी) को मंदिर में लाया जाता है।
इस दौरान विश्वकर्मा (लकड़ी के शिल्पी) 21 दिन और रात के लिए मंदिर में प्रवेश करते हैं और नितांत गोपनीय ढंग से मूर्तियों को अंतिम रूप देते हैं। इन नए आदर्श रूपों में से प्रत्येक मूर्ति के नए रूप में 'ब्रह्मा' को प्रवेश कराने के बाद उसे मंदिर में रखा जाता है। यह कार्य भी पूर्ण धार्मिक विधि-विधान से किया जाता है।
पुरी बीच पर्व वार्षिक तौर पर नवंबर माह के आरंभ में आयोजित किया जाता है, उड़ीसा की शिल्पकला, विविध व्यंजन और सांस्कृतिक संध्याएं इस पर्व का विशेष आकर्षण हैं।
पुरी में रथयात्रा का त्योहार साल में एक बार मनाया जाता है। इस रथयात्रा को देखने के लिए तीर्थयात्री देश के विभिन्न कोने से आते हैं। रथयात्रा में श्रद्धालु भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र तथा बहन सुभद्रा की पूजा-अर्चना करते हैं। यह भव्य त्योहार नौ दिनों तक मनाया जाता है।
रथयात्रा जगन्नाथ मन्दिर से प्रारम्भ होती है तथा गुंडिचा मन्दिर तक समाप्त होती है। भारत में चार धामों में से एक धाम पुरी को माना जाता है। यहाँ विश्व का सबसे बड़ा समुद्री तट है।
आप रेल, बस तथा हवाई जहाज से पूरी पहुँच सकते हैं। सबसे नजदीक का हवाईअड्डा यहाँ से 60 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। अगर पर्यटक समुद्री तट का आनंद उठाना चाहते हैं तब वे गर्मियों में छुटि्टयाँ मनाने के लिए पुरी आ सकते हैं। भ्रमण करने के लिए यहाँ पर बस, टैक्सी तथा ऑटो की सेवाएँ उपलब्ध हैं।
आनंद बाजार में हर प्रकार का खाना मिलता है। यह विश्व का सबसे बड़ा बाज़ार है। पुरी में कई मन्दिर हैं। गुंडिचा मन्दिर में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र तथा सुभद्रा देवी की प्रतिमा स्थित है।



पूरी का समुन्‍द्र तट पे नहाने का मजा ही कुछ और है 


पुरी में नारियल 5 रू में मिलता है इसका मजा जरूर ले 

प्रवीण जी भागों वरना समुन्‍द्र आप को अपने पास बुला लेगा 

प्रवीण जी समुनद्र को निहारते हुए 

मजा आ गया इसे देख कर 



कोणार्क सूर्य मंदिर


       कोणार्क का सूर्य मंदिर (जिसे अंग्रेज़ी में ब्लैक पगोडा भी कहा गया है), भारत के उड़ीसा राज्य के पुरी जिले के पुरी नामक शहर में स्थित है। इसे लाल बलुआ पत्थर एवं काले ग्रेनाइट पत्थर से १२३६– १२६४ ई.पू. में गंग वंश के राजा नृसिंहदेव द्वारा बनवाया गया था। यह मंदिर, भारत की सबसे प्रसिद्ध स्थलों में से एक है। इसे युनेस्को द्वारा सन १९८४ में विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है।कलिंग शैली में निर्मित यह मंदिर सूर्य देव(अर्क) के रथ के रूप में निर्मित है। इस को पत्थर पर उत्कृष्ट नक्काशी करके बहुत ही सुंदर बनाया गया है। संपूर्ण मंदिर स्थल को एक बारह जोड़ी चक्रों वाले, सात घोड़ों से खींचे जाते सूर्य देव के रथ के रूप में बनाया है। मंदिर अपनी कामुक मुद्राओं वाली शिल्पाकृतियों के लिये भी प्रसिद्ध है। आज इसका काफी भाग ध्वस्त हो चुका है। इसका कारण वास्तु दोष एवं मुस्लिम आक्रमण रहे हैं। यहां सूर्य को बिरंचि-नारायण कहते थे।

सूर्य मंदिर का स्थापत्य

यह मंदिर सूर्य देव(अर्क) के रथ के रूप में निर्मित है। इस को पत्थर पर उत्कृष्ट नक्काशी करके बहुत ही सुंदर बनाया गया है। संपूर्ण मंदिर स्थल को एक बारह जोड़ी चक्रों वाले, सात घोड़ों से खींचे जाते सूर्य देव के रथ के रूप में बनाया गया है। मंदिर की संरचना, जो सूर्य के सात घोड़ों द्वारा दिव्य रथ को खींचने पर आधारित है, परिलक्षित होती है। अब इनमें से एक ही घोड़ा बचा है। इस रथ के पहिए, जो कोणार्क की पहचान बन गए हैं, बहुत से चित्रों में दिखाई देते हैं। मंदिर के आधार को सुंदरता प्रदान करते ये बारह चक्र साल के बारह महिनों को प्रतिबिंबित करते हैं जबकि प्रत्येक चक्र आठ अरों से मिल कर बना है जो कि दिन के आठ पहरों को दर्शाते हैं। 

मुख्य मंदिर तीन मंडपों में बना है। इनमें से दो मण्डप ढह चुके हैं। तीसरे मंडप में जहां मूर्ती थी अंग्रेज़ों ने भारतीय स्वतंत्रता से पूर्व ही रेत व पत्थर भरवा कर सभी द्वारों को स्थायी रूप से बंद करवा दिया था, ताकि वह मंदिर और क्षतिग्रस्त ना हो पाए।इस मंदिर में सूर्य भगवान की तीन प्रतिमाएं हैं:
  • बाल्यावस्था-उदित सूर्य- ८ फीट
  • युवावस्था-मध्याह्न सूर्य- ९.५ फीट
  • प्रौढावस्था-अस्त सूर्य-३.५ फीट
इसके प्रवेश पर दो सिंह हाथियों पर आक्रामक होते हुए रक्षा में तत्पर दिखाये गए हैं। यह सम्भवतः तत्कालीन ब्राह्मण रूपी सिंहों का बौद्ध रूपी हाथियों पर वर्चस्व का प्रतीक है। दोनों हाथी, एक-एक मानव के ऊपर स्थापित हैं। ये प्रतिमाएं एक ही पत्थर की बनीं हैं। ये २८ टन की ८.४फीट लंबी ४.९ फीट चौड़ी तथा ९.२ फीट ऊंची हैं। मंदिर के दक्षिणी भाग में दो सुसज्जित घोड़े बने हैं, जिन्हें उड़ीसा सरकार ने अपने राजचिह्न के रूप में अंगीकार कर लिया है।
कोणार्क जहां पत्थरों की भाषा मनुष्य की भाषा से श्रेष्ठतर है।ये १० फीट लंबे व ७ फीट चौड़े हैं। मंदिर सूर्य देव की भव्य यात्रा को दिखाता है। इसके के प्रवेश द्वार पर ही नट मंदिर है। ये वह स्थान है, जहां मंदिर की नर्तकियां, सूर्यदेव को अर्पण करने के लिये नृत्य किया करतीं थीं। पूरे मंदिर में जहां तहां फूल-बेल और ज्यामितीय नमूनों की नक्काशी की गई है। इनके साथ ही मानव, देव, गंधर्व, किन्नर आदि की अकृतियां भी एन्द्रिक मुद्राओं में दर्शित हैं। इनकी मुद्राएं कामुक हैं, और कामसूत्र से लीं गईं हैं। मंदिर अब अंशिक रूप से खंडहर में परिवर्तित हो चुका है। यहां की शिल्प कलाकृतियों का एक संग्रह, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के सूर्य मंदिर संग्रहालय में सुरक्षित है। महान कवि श्री रविंद्र नाथ टैगोर इस मंदिर के बारे में लिखते हैं:
तेरहवीं सदी का मुख्य सूर्य मंदिर, एक महान रथ रूप में बना है, जिसके बारह जोड़ी सुसज्जित पहिये हैं, एवं सात घोड़ों द्वारा खींचा जाता है।[3] यह मंदिर भारत के उत्कृष्ट स्मारक स्थलों में से एक है। यहां के स्थापत्य अनुपात दोषों से रहित एवं आयाम आश्चर्यचकित करने वाले हैं। यहां की स्थापत्यकला वैभव एवं मानवीय निष्ठा का सौहार्दपूर्ण संगम है। मंदिर की प्रत्येक इंच, अद्वितीय सुंदरता और शोभा की शिल्पाकृतियों से परिपूर्ण है। इसके विषय भी मोहक हैं, जो सहस्रों शिल्प आकृतियां भगवानों, देवताओं, गंधर्वों, मानवों, वाद्यकों, प्रेमी युगलों, दरबार की छवियों, शिकार एवं युद्ध के चित्रों से भरी हैं। इनके बीच बीच में पशु-पक्षियों (लगभग दो हज़ार हाथी, केवल मुख्य मंदिर के आधार की पट्टी पर भ्रमण करते हुए) और पौराणिक जीवों, के अलावा महीन और पेचीदा बेल बूटे तथा ज्यामितीय नमूने अलंकृत हैं। उड़िया शिल्पकला की हीरे जैसी उत्कृष्त गुणवत्ता पूरे परिसर में अलग दिखाई देती है।
यह मंदिर अपनी कामुक मुद्राओं वाली शिल्पाकृतियों के लिये भी प्रसिद्ध है। इस प्रकार की आकृतियां मुख्यतः द्वारमण्डप के द्वितीय स्तर पर मिलती हैं। इस आकृतियों का विषय स्पष्ट किंतु अत्यंत कोमलता एवं लय में संजो कर दिखाया गया है। जीवन का यही दृष्टिकोण, कोणार्क के अन्य सभी शिल्प निर्माणों में भी दिखाई देता है। हजारों मानव, पशु एवं दिव्य लोग इस जीवन रूपी मेले में कार्यरत हुए दिखाई देते हैं, जिसमें आकर्षक रूप से एक यथार्थवाद का संगम किया हुआ है। यह उड़ीसा की सर्वोत्तम कृति है। इसकी उत्कृष्ट शिल्प-कला, नक्काशी, एवं पशुओं तथा मानव आकृतियों का सटीक प्रदर्शन, इसे अन्य मंदिरों से कहीं बेहतर सिद्ध करता है।
सूर्य मंदिर भारतीय मंदिरों की कलिंग शैली का है, जिसमें कोणीय अट्टालिका (मीनार रूपी) के ऊपर मण्डप की तरह छतरी ढकी होती है। आकृति में, यह मंदिर उड़ीसा के अन्य शिखर मंदिरों से खास भिन्न नहीं लगता है। २२९ फीट ऊंचा मुख्य गर्भगृह १२८ फीट ऊंची नाट्यशाला के साथ ही बना है। इसमें बाहर को निकली हुई अनेक आकृतियां हैं। मुख्य गर्भ में प्रधान देवता का वास था, किंतु वह अब ध्वस्त हो चुका है। नाट्यशाला अभी पूरी बची है। नट मंदिर एवं भोग मण्डप के कुछ ही भाग ध्वस्त हुए हैं। मंदिर का मुख्य प्रांगण ८५७ फीट X ५४० फीट का है। यह मंदिर पूर्व –पश्चिम दिशा में बना है। मंदिर प्राकृतिक हरियाली से घिरा हुआ है। इसमें कैज़ुएरिना एवं अन्य वृक्ष लगे हैं, जो कि रेतीली भूमि पर उग जाते हैं। यहां भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा बनवाया उद्यान है।




बराबर की पहाड़ियां- रोमांच ,धार्मिक एवं ट्रैकिंग मैं रूचि रखने वाले लोगों की जन्नत...,☺️😊☺️

             बराबर गुफाएं जहानाबाद जिला के मखदुमपुर प्रखंड में में चट्टानों को काटकर बनायी गयी सबसे पुरानी गुफाएं हैं जिनमें से ज्यादातर का संबंध मौर्य काल (322-185 ईसा पूर्व) से है और कुछ में अशोक केशिलालेखोंको देखा जा सकता है; ये गुफाएं भारत के बिहार राज्य के जहानाबाद जिले में गया से 24 किलोमीटर और जहानाबाद से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं | ये गुफाएं बराबर (चार गुफाएं) और नागार्जुनी (तीन गुफाएं) की जुड़वां पहाड़ियों में स्थित हैं - 1.6 किमी दूर स्थित नागार्जुनी पहाड़ी की गुफाओं को कभी-कभी नागार्जुनी गुफाएं मान लिया जाता है. चट्टानों को काटकर बनाए गए ये कक्ष अशोक (आर. 273 ईसा पूर्व से 232 ईसा पूर्व) और उनके पुत्र दशरथ के मौर्य काल, तीसरी सदी ईसा पूर्व से संबंधित हैं. यद्यपि वे स्वयं बौद्ध थे लेकिन एक धार्मिक सहिष्णुता की नीति के तहत उन्होंनेविभिन्न जैन संप्रदायों की पनपने का अवसर दिया. इन गुफाओं का उपयोग आजीविका संप्रदाय के संन्यासियों द्वारा किया गया था जिनकी स्थापना मक्खाली गोसाला द्वारा की गयी थी, वे बौद्ध धर्म के संस्थापक सिद्धार्थ गौतम और जैन धर्म के अंतिम एवं 24वें तीर्थंकर महावीर के समकालीन थे. इसके अलावा इस स्थान पर चट्टानों से निर्मित कई बौद्ध और हिंदू मूर्तियां भी पायी गयी हैं.
ई.एम. फोर्स्टर की पुस्तक, ए पैसेज ऑफ इंडिया भी इसी क्षेत्र को आधारित कर लिखी गयी है, जबकि गुफाएं स्वयं पुस्तक के सांकेतिक मूल में एक महत्वपूर्ण, यद्यपि अस्पष्ट दृश्य के घटनास्थल के रूप में हैं. लेखक ने इस स्थल का दौरा किया था और बाद में अपनी पुस्तक में मारबार गुफाओं के रूप में इनका इस्तेमाल किया था.
बराबर में ज्यादातर गुफाएं दो कक्षों की बनी हैं जिन्हें पूरी तरह से ग्रेनाईट को तराशकर बनाया गया है जिनमें एक उच्च-स्तरीय पॉलिश युक्त आतंरिक सतह और गूंज का रोमांचक प्रभाव मौजूद है. पहला कक्ष उपासकों के लिए एक बड़े आयताकार हॉल में एकत्र होने के इरादे से बनाया गया था और दूसरा एक छोटा, गोलाकार, गुम्बदयुक्त कक्ष पूजा के लिए था, इस अंदरूनी कक्ष की संरचना कुछ स्थानों पर संभवतः एक छोटे स्तूप की तरह थी, हालांकि ये अब खाली हैं. इस पहाड़ी के शीर्ष पर  भगवान शिव का  मंदिर है  जहां पर सालों भर लोग आते हैं और पूजा पाठ करते हैं खास करके सावन माह में यहां पूरेेे महीने जबरदस्त मेला लगता है एवं अनंत पूजा में तो लाखों की संख्या में लोग आकर के पूजा पाठ करते हैं यह बराबर पहाड़ी हिमालय से भी पुराना पहाड़िया है यहांं का प्राकृतिक मनोरम दृश्य देखने को बनता है  यह स्थल पर्यटकों के लिए जन्नत के समान है यहां पर आकर काफी सकून एवंं शांति मिलता हैं।  जिला प्रशासन एवं राज्य सरकार के द्वारा काफी अच्छा कार्य है किया गया है परंतु इसका प्रचार एवं प्रसार नहीं रहने के कारण यहां पर लोग  नहीं आ पाते सरकार को  प्रयास करना चाहिए कि जो भी पर्यटक  बिहार में  एवं  बोधगया पटना में नालंदा में  आए तो  एक बराबर का भी  अवलोकन जरूर करें।  इसके लिए पटना एवं बोधगया से  सप्ताह में 1 दिन  बस सुविधा देने की जरूरत है इससे  यहां के इर्द गिर्द में रह रहे लोगों को रोजगार भी मिल पाएगा । इसके साथ  यहां की गुफाओं में एक अच्छा मेडिटेशन सेंटर का  शुरुआत किया जा सकता है।अरवल, औरंगाबाद,जहानाबाद , गया, नालंदा, नवादा, सेे  पिकनिक मनाने आते है बराबर पहाड़ी की चोटी पर  भगवान शिव का भव्य मंदिर बना हुआ है  जिसे  सिद्धेश्वर नाथ  के नाम से  प्रसिद्धि प्राप्त है  यहां पर सावन केेे महीने में जबरदस्त मेले का आयोजन किया जाता है। मंदिर तक पहुंचने के लिए  इस पहाड़ी पर तीन रास्ते  बने हुए हैं  जिसे  काफी अच्छी अवस्था में  रखा गया है जो व्यक्ति  ट्रैकिंग  एवं  रोमांच के शौकीन हैं उन्हें  इस स्थल पर  एक बार जरूर जाना चाहिए । तथा जो परिवार मन्नत मानतेे हैं वह अपना मन्नत पूरा होने पर यहां पर आते हैं यहां पहुंचने के लिए पटना गया रेल मार्ग एवं बस मार्ग से बेला  और मखदुमपुर रेलवे स्टेशन से आया जा सकता है बेला एवं मखदुमपुर से 15 किलोमीटर की दूरी पर बराबर की पहाड़ियां है। रोड काफी अच्छा है और यहांं ठहरने के लिए सरकारी होटल एवं रेस्टोरेंट भी बना हुआ हैै जो बहुत कम किराया पर मिल जाता है। यहांं जो मौर्यकालीन गुफाएं हैं उनमें प्रवेश करने केेेे लि अनुमति लेना पड़ता है  । क्योंकि  गुफाओं के  प्रवेश द्वार पर लोहे का गेट लगा हुआ है  जिसे  यहां के केयरटेकर को  कुछ शुल्क देकर के  गुफा के अंदर  जाया जा सकता है । इन गुफाओं में बैठकर मेडिटेशन भी किया जा सकता है बहुत ही अच्छा् जगह है मेडिटेशन करने के लिए मैंने कई बार मेडिटेशन का काम किया है जब मैं गया जिलेेेेेे खिजरसराय प्रखंड में कार्यरत था तो मैं अक्सर बराबर के गुफाओं में जाता था और रात्रि विश्राम भी करता था मेडिटेशन के लिए बहुत ही कारगर स्थल के रूप में बराबर की गुफा को विकसित किया जा सकता है । जहानाबाद जिला के साहित्यकार एवं इतिहासकार सत्येंद्र कुमार  द्वारा लिखित बराबर की पहाड़ियां पुस्तक  में  यहां के बारे में बहुत ही सुंदर तरीके से वर्णन किया गया है ।  यहां से जाने के लिए एवं जानकारी प्राप्त करने के लिए  मेरा मोबाइल 9939728063 व्हाट्ससएप्प नंबर पर मुझसे संपर्क किया जा सकता है ।


















बराबर के लोमस ऋषि गुफा में ध्यान वर्ष 2005 

ककोलत जलप्रपात ...नवादा जिला के आन बाण और सान ☺️😊☺️

       बिहार राज्य के नवादा जिला के गोविन्दपुर प्रखंड के थाली पंचयात में ऐतिहासिक और पौराणिक संदर्भों से युक्‍त ककोलत एक बहुत ही खूबसूरत पहाड़ी में   एक झरना है। यह झरना बिहार राज्‍य के नवादा बस स्टैंड  से 33 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गोविन्‍दपुर पुलिस स्‍टेशन के निकट स्थित है। नवादा से राष्‍ट्रीय राजमार्ग संख्‍या 31 पर 15 किलोमीटर जाने पर एक सड़क अलग होती है। इस सड़क को गोविन्‍दपुर-अकबरपुर रोड के नाम से जाना जाता है। यह सड़क सीधे ककोलत,कोडरमा ,रांची  को जाती है। यह झरना जिस  पहाड़ी पर  है, उस पहाड़ी का नाम भी ककोलत है। ककोलत क्षेत्र खूबसूरत मनमोहक प्राकृत दृश्‍यों से भरा हुआ है। लेकिन इन खूबसूरत दृश्‍यों में भी सबसे चमकता सितारा यहां स्थित ठण्‍ढे पानी का झरना है। इस झरने के नीचे पानी का एक विशाल जलाशय है। जहाँ पर लोग स्नान करते है  और यहाँ पर आ कर पिकनिक मनाते है | इस जल प्रपात की ऊँचाई 160 फुट है। ठण्‍ढे पानी के लिए  यह झरना बिहार का एक प्रसिद्ध झरना है। गर्मी के मौसम में बिहार ,झारखण्ड  के विभिन्‍न भागों से लोग स्नान और  पिकनिक मनाने यहां आते हैं। इस झरने के चारो तरफ जंगल है। यहां का दृश्‍य अदभुत आकर्षण उत्‍पन्‍न करता है। यह दृश्‍य आंखो को ठंडक प्रदान करता है और नेचर  फोटोग्राफी के शोकिन के लिए यह स्थल बिहार में जन्नत के सामान है | झरने के संबंध में एक पौराणिक आख्‍याण काफी प्रचलित है। इस आख्‍याण के अनुसार त्रेता युग में एक राजा को किसी ऋषि ने शाप दे दिया। शाप के कारण राजा अजगर बन गया और वह यहां रहने लगा। कहा जाता है कि द्वापर युग में पाण्‍डव अपना वनवास व्‍यतीत करते हुए यहां आए थे। उनके आशीर्वाद से इस शापयुक्‍त राजा को यातना भरी जिन्‍दगी से मुक्‍ित मिली। शाप से मुक्ति  मिलने के बाद राजा ने भविष्‍यवाणी की कि जो कोई भी इस झरने में स्‍नान करेगा, वह कभी भी सर्प योनि में जन्‍म नहीं लेगा। इसी कारण बड़ी संख्‍या में दूर-दूर से लोग इस झरने में स्‍नान करने के लिए आते हैं। वैशाखी और चैत्र सक्रांति के अवसर पर यहां एक बड़े मेले का आयोजन किया जाता है।
आप जब भी ककोलत आए तो यहाँ पर मिटटी के बर्तन में खाना बना कर यहाँ के पत्थर पर रख कर खाना जरुर खाय इसका अद्भुभुत आनद की प्राप्ति होगा |

आवागमन

वायु मार्ग

यहां का निकटतम हवाई अड्डा गया में है। लेकिन यहां वायुयानों का नियमित आना जाना नहीं होता है। इसलिए वायु मार्ग से यहां आने के लिए पटना के जयप्रकाश नारायण हवाई अड्डा आना होता है। यहां से सड़क मार्ग द्वारा ककोलत जाया जा सकता है।
रेल मार्ग
नवादा में रेलवे स्‍टेशन है जो गया जंक्‍शन से जुड़ा हुआ है। गया और किउल जंक्‍शन रेल मार्ग द्वारा देश से सभी शहरो से जुड़ा हुआ है।
सड़क मार्ग
राष्‍ट्रीय राजमार्ग 31 पर स्थित होने के कारण ककोलत देश के सभी भागों से सड़क मार्ग द्वारा अच्‍छी तरह से जुड़ा हुआ है।