मंगलवार, 20 अगस्त 2019

बनारस (काशी) यात्रा ,उतरप्रदेश ...

         4 नवंबर 2017 को शाम 5:00 बजे मै और पिता जी हरिद्वार से बनारस पहुंचा यहां पहुंचने के बाद बाबा विश्वनाथ मंदिर के नजदीक में एक होटल में रात्रि विश्राम किया और अगले दिन सुबह 5 अगस्त 2017 को गंगा नदी में स्नान किया एवं बाबा विश्वनाथ मंदिर के प्रांगण में गया और वहां विश्वनाथ भगवान का दर्शन किया यह मंदिर प्राचीन और ऐतिहासिक है धार्मिक रूप से बनारस का यह मंदिर काफी महत्वपूर्ण है ऐसे तो बनारस में सैंकड़ों मंदिर हैं परंतु विश्वनाथ मंदिर की पहचान बनारस में  ही नहीं पूरे भारत में एक अलग पहचान रखता है विश्वनाथ मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है कहा जाता है कि बाबा विश्वनाथ के दर्शन करने के पश्चात सारे पाप धुल जाते हैं.  विश्वनाथ मंदिर के जाने के लिए बहुत ही संकीर्ण गलियां बनी हुई है इस गलियों से होते हुए विश्वनाथ मंदिर में जाया जाता  है . मंदिर में  दर्शन करने के एवं भ्रमण करने के बाद मैंने गंगा घाट का भ्रमण  का कार्य शुरू किया यहां पर गंगा नदी में प्रत्येक व्यक्ति से ₹100 लेकर नाव चालक बनारस  में गंगा के किनारे बने हुए  घाटों का दर्शन कराते हैं तो मैंने भी ₹100 देकर नाव की सवारी किया और बनारस में बने जितनी भी गंगा के किनारे सभी घाटों को देखा घाटों की स्थिति काफी अच्छी है और बहुत ही सुंदर है भारत के  प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी बनारस के  लोकसभा की सीट से जीते है  इनके द्वारा बनारस के घाटों का काफी साफ सफाई का व्यवस्था और सुरक्षा की व्यवस्था किया गया है ऐसे तो बनारस को घाटों का शहर कहा जाता है और यहां पर देश-विदेश से श्रद्धालु लोग आते हैं गंगा में स्नान करते हैं और बाबा विश्वनाथ का दर्शन करते हैं यहां  सुबह में पूड़ी कचौड़ी जिलेबी सब्जी का नाश्ता प्रसिद्ध है ऐसे तो इस जगह पर हर तरीके का खाने का व्यंजन मिल जाता है और इसी बनारस शहर में  हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) मालवीय जी द्वारा स्थापित किया हुआ है और इसी विद्यालय के प्रांगण में एक और विश्वनाथ मंदिर का निर्माण किया गया है जो काफी सुंदर और बेहतर है तो दोस्तों जब भी बनारस आप आए तो गंगा स्नान एवं बाबा विश्वनाथ का दर्शन जरूर करें और यहां के जो भी देखने लायक स्थान  है उसको भी जरूर देखें बनारस में घाटों के भ्रमण एवं बाबा विश्वनाथ का दर्शन एवं बाजारों के भ्रमण करने के पश्चात शाम 7:00 बजे गया (बिहार) के लिए मैंने बनारस से  ट्रेन पकड़ा और सुबह 4 am में गया आ गया गया से 5am में ट्रेन खुली और  जहानाबाद 7 am में आया इसके बाद बस द्वारा  घर के लिए निकल पड़ा  सुबह 9 :00 बजे मैं अपने जन्म भूमि जो कि बिहार राज्य के अरवल  जिले के करपी प्रखंड के करपी ग्राम में पहुंचा एवं पूरे दिन थके होने के कारण खूब सोया एवं शरीर को आराम दिया.
  
           नोट -  (वाराणसी  भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का प्रसिद्ध नगर है। इसे 'बनारस' और 'काशी' भी कहते हैं। इसे हिन्दू धर्म में सर्वाधिक पवित्र नगरों में से एक माना जाता है और इसे अविमुक्त क्षेत्र कहा जाता है। इसके अलावा बौद्ध एवं जैन धर्म में भी इसे पवित्र माना जाता है। यह संसार के प्राचीनतम बसे शहरों में से एक और भारत का प्राचीनतम बसा शहर है।काशी नरेश (काशी के महाराजा) वाराणसी शहर के मुख्य सांस्कृतिक संरक्षक एवं सभी धार्मिक क्रिया-कलापों के अभिन्न अंग हैं। वाराणसी की संस्कृति का गंगा नदी एवं इसके धार्मिक महत्त्व से अटूट रिश्ता है। ये शहर सहस्रों वर्षों से भारत का, विशेषकर उत्तर भारत का सांस्कृतिक एवं धार्मिक केन्द्र रहा है। हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का बनारस घराना वाराणसी में ही जन्मा एवं विकसित हुआ है। भारत के कई दार्शनिक, कवि, लेखक, संगीतज्ञ वाराणसी में रहे हैं, जिनमें कबीर, वल्लभाचार्य, रविदास, स्वामी रामानंद, त्रैलंग स्वामी, शिवानन्द गोस्वामी, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, पंडित रवि शंकर, गिरिजा देवी, पंडित हरि प्रसाद चौरसिया एवं उस्ताद बिस्मिल्लाह खां आदि कुछ हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने हिन्दू धर्म का परम-पूज्य ग्रंथ रामचरितमानस यहीं लिखा था और गौतम बुद्ध ने अपना प्रथम प्रवचन यहीं निकट ही सारनाथ में दिया था। वाराणसी में चार बड़े विश्वविद्यालय स्थित हैं: बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइयर टिबेटियन स्टडीज़ और संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय। यहां के निवासी मुख्यतः काशिका भोजपुरी बोलते हैं, जो हिन्दी की ही एक बोली है। वाराणसी को प्रायः 'मंदिरों का शहर', 'भारत की धार्मिक राजधानी', 'भगवान शिव की नगरी', 'दीपों का शहर', 'ज्ञान नगरी' आदि विशेषणों से संबोधित किया जाता है।)

            
प्रवेस द्वार विस्नाथ मंदिर 


बनारस में गंगा नदी के किनरा पर बना घाट 


हरिचन्द्र घाट 




हरिचन्द्र घाट को देखते पिता जी सत्येन्द्र कु पाठक 









                                         


                   

ऋषिकेश यात्रा , उतराखंड ...

        3 नवंबर 2017 को मैं और पिता जी सुबह जोशीमठ गुरद्वारा  में जागा और स्नान ध्यान करने के पश्चात गुरुद्वारे में लंगर खाया और यहां से 11 am में बस पकड़ के ऋषिकेश के लिए चल पड़ा ऋषिकेश में तकरीबन 7 :00 बजे शाम को पहुंचा और यहां पर भी  गुरुद्वारा में रात्रि विश्राम लिया . यहां पर भी गुरुद्वारा में रहने खाने-पीने सोने का उत्तम व्यवस्था है और काफी भव्य और सुंदर द्वारा बना हुआ है जो कि गंगा नदी के किनारे पर गुरुद्वारा है . रात्रि विश्राम लेने के बाद अगले दिन 4 नवंबर को ऋषिकेश में भ्रमण किया और यहां पर बने राम झूला , लक्ष्मण झूला को देखा लक्ष्मण झूला के नीचे गंगा नदी में स्नान किया पूजा पाठ किया यह स्थल बेहद hi  सुंदर है और गंगा नदी का ठंडा ठंडा पानी मैं स्नान करने से  मन प्रफुल्लित और आनंदित हो जाता है कई ऋषि-मुनियों का आश्रम है और बहुत ही बाजार ऋषिकेश में बहुत सारे योग सिखाने का छोटे-छोटे संस्थान भी खुल चुके हैं संगीत का बहुत सारे दुकान भी हैं जहां पर संगीत बजाने का स्टूमेंट का बिक्री होता है यहां पर देश विदेश के लोग घूमने के लिए आते हैं बहुत ही सुंदर स्थल मनोरम दृश्य खुशनुमा माहौल यहां देखने का बनता है जोशीमठ से ऋषिकेश की दूरी लगभग 200 किलोमीटर है और हरिद्वार से जोशीमठ की दूरी 30  किलोमीटर है ऋषिकेश में सड़क एवं रेल मार्ग से आया जा सकता है यही पे गंगा पहाड़ों से उतरती हैं और आगे हरिद्वार में जाति ऋषिकेश बहुत ही सुंदर और स्वच्छता धार्मिक दृष्टिकोण से यह स्थल बहुत ही महत्वपूर्ण है हिंदुओं का एक पवित्र स्थल है ऋषिकेश में कई साधु-संतों ऋषि-मुनियों का कुटिया बना हुआ है जिसे देख कर मन प्रसन्न हो जाता है तथा इच्छा होती है कि यहीं पर रुक जाऊ  बहुत ही बेहतर वातावरण धार्मिक एवं सांस्कृतिक विरासत यहां पर उपलब्ध है गंगा नदी के किनारे बैठने के पश्चात ऐसा लगता है कि इस नदी की किनारे यूं ही बैठा रहूं और ध्यान  करता रहूं यहां का भ्रमण करने के पश्चात शाम 5:00 बजे हरिद्वार के लिए निकल गया क्योंकि रात्रि 9:00 बजे से मेरा ट्रेन हरिद्वार से बनारस के लिए था तकरीबन 7:00 बजे हरिद्वार पहुंचा और वहां खाना खाने के पश्चात रेलवे स्टेशन रात्रि 9:00 बजे में  ट्रेन आया और ट्रेन में अपना सीट लेने के बाद रात्रि 10:00 बजे मैं सो गया और अगले दिन बनारस पहुंचने का इंतजार करते रहा.
         
                            नोट - ( ऋषिकेश (संस्कृत : हृषीकेश) उत्तराखण्ड के देहरादून जिले का एक नगर, हिन्दू तीर्थस्थल, नगरनिगम तथा तहसील है। यह गढ़वाल हिमालय का प्रवेश्द्वार एवं योग की वैश्विक राजधानी है। ऋषिकेश, हरिद्वार से २५ किमी उत्तर में तथा देहरादून से ४३ किमी दक्षिण-पूर्व में स्थित है। हिमालय का प्रवेश द्वार, ऋषिकेश जहाँ पहुँचकर गंगा पर्वतमालाओं को पीछे छोड़ समतल धरातल की तरफ आगे बढ़ जाती है। ऋषिकेश का शांत वातावरण कई विख्यात आश्रमों का घर है। उत्तराखण्ड में समुद्र तल से 1360 फीट की ऊंचाई पर स्थित ऋषिकेश भारत के सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में एक है। हिमालय की निचली पहाड़ियों और प्राकृतिक सुन्दरता से घिरे इस धार्मिक स्थान से बहती गंगा नदी इसे अतुल्य बनाती है। ऋषिकेश को केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री का प्रवेशद्वार माना जाता है। कहा जाता है कि इस स्थान पर ध्यान लगाने से मोक्ष प्राप्त होता है। हर साल यहाँ के आश्रमों के बड़ी संख्या में तीर्थयात्री ध्यान लगाने और मन की शान्ति के लिए आते हैं। विदेशी पर्यटक भी यहाँ आध्यात्मिक सुख की चाह में नियमित रूप से आते रहते हैं  ऋषिकेश से सम्बंधित अनेक धार्मिक कथाएँ प्रचलित हैं। कहा जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान निकला विष शिव ने इसी स्थान पर पिया था। विष पीने के बाद उनका गला नीला पड़ गया और उन्हें नीलकंठ के नाम से जाना गया। एक अन्य अनुश्रुति के अनुसार भगवान राम ने वनवास के दौरान यहाँ के जंगलों में अपना समय व्यतीत किया था। रस्सी से बना लक्ष्मण झूला इसका प्रमाण माना जाता है। 1939 ई० में लक्ष्मण झूले का पुनर्निर्माण किया गया। यह भी कहा जाता है कि ऋषि रैभ्य ने यहाँ ईश्वर के दर्शन के लिए कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान हृषीकेश के रूप में प्रकट हुए। तब से इस स्थान को ऋषिकेश नाम से जाना जाता है। 
ऋषिकेश में देखे जाने वाला  स्थल  -  

लक्ष्मण झूला - गंगा नदी के एक किनार को दूसर किनार से जोड़ता यह झूला नगर की विशिष्ट की पहचान है। इसे 1939 में बनवाया गया था। कहा जाता है कि गंगा नदी को पार करने के लिए लक्ष्मण ने इस स्थान पर जूट का झूला बनवाया था। झूले के बीच में पहुंचने पर वह हिलता हुआ प्रतीत होता है। 450 फीट लंबे इस झूले के समीप ही लक्ष्मण और रघुनाथ मंदिर हैं। झूले पर खड़े होकर आसपास के खूबसूरत नजारों का आनंद लिया जा सकता है। लक्ष्मण झूला के समान राम झूला भी नजदीक ही स्थित है। यह झूला शिवानंद और स्वर्ग आश्रम के बीच बना है। इसलिए इसे शिवानंद झूला के नाम से भी जाना जाता है। ऋषिकेश मैं गंगाजी के किनारे की रेेत बड़ी ही नर्म और मुलायम है, इस पर बैठने से यह माँ की गोद जैसी स्नेहमयी और ममतापूर्ण लगती है, यहाँ बैठकर दर्शन करने मात्र से ह्रदय मैं असीम शांति और रामत्व का उदय होने लगता है।.

त्रिवेणी घाट
ऋषिकेश में स्नान करने का यह प्रमुख घाट है जहां प्रात: काल में अनेक श्रद्धालु पवित्र गंगा नदी में डुबकी लगाते हैं। कहा जाता है कि इस स्थान पर हिन्दू धर्म की तीन प्रमुख नदियों गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम होता है। इसी स्थान से गंगा नदी दायीं ओर मुड़ जाती है। शाम को होने वाली यहां की आरती का नजारा बेहद आकर्षक होता है।

परमार्थ निकेतन घाट
स्वामी विशुद्धानन्द द्वारा स्थापित यह आश्रम ऋषिकेश का सबसे प्राचीन आश्रम है। स्वामी जी को 'काली कमली वाले' नाम से भी जाना जाता था। इस स्थान पर बहुत से सुन्दर मंदिर बने हुए हैं। यहां खाने पीने के अनेक रस्तरां हैं जहां केवल शाकाहारी भोजन ही परोसा जाता है। आश्रम की आसपास हस्तशिल्प के सामान की बहुत सी दुकानें हैं।

नीलकंठ महादेव मंदिर -

लगभग 5500 फीट की ऊंचाई पर स्वर्ग आश्रम की पहाड़ी की चोटी पर नीलकंठ महादेव मंदिर स्थित है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने इसी स्थान पर समुद्र मंथन से निकला विष ग्रहण किया गया था। विषपान के बाद विष के प्रभाव के से उनका गला नीला पड़ गया था और उन्हें नीलकंठ नाम से जाना गया था। मंदिर परिसर में पानी का एक झरना है जहां भक्तगण मंदिर के दर्शन करने से पहले स्नान करते हैं।

भरत मंदिर -

यह ऋषिकेश का सबसे प्राचीन मंदिर है जिसे 12 शताब्दी में आदि गुरू शंकराचार्य ने बनवाया था। भगवान राम के छोटे भाई भरत को समर्पित यह मंदिर त्रिवेणी घाट के निकट ओल्ड टाउन में स्थित है। मंदिर का मूल रूप 1398 में तैमूर आक्रमण के दौरान क्षतिग्रस्त कर दिया गया था। हालांकि मंदिर की बहुत सी महत्वपूर्ण चीजों को उस हमले के बाद आज तक संरक्षित रखा गया है। मंदिर के अंदरूनी गर्भगृह में भगवान विष्णु की प्रतिमा एकल शालीग्राम पत्थर पर उकेरी गई है। आदि गुरू शंकराचार्य द्वारा रखा गया श्रीयंत्र भी यहां देखा जा सकता है।

कैलाश निकेतन मंदिर- 

लक्ष्मण झूले को पार करते ही कैलाश निकेतन मंदिर है। 12 खंड़ों में बना यह विशाल मंदिर ऋषिकेश के अन्य मंदिरों से भिन्न है। इस मंदिर में सभी देवी देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं।

वशिष्ठ गुफा- 

ऋषिकेश से 22 किलोमीटर की दूरी पर 3000 साल पुरानी वशिष्ठ गुफा बद्रीनाथ-केदारनाथ मार्ग पर स्थित है। इस स्थान पर बहुत से साधुओं विश्राम और ध्यान लगाए देखे जा सकते हैं। कहा जाता है यह स्थान भगवान राम और बहुत से राजाओं के पुरोहित वशिष्ठ का निवास स्थल था। वशिष्ठ गुफा में साधुओं को ध्यानमग्न मुद्रा में देखा जा सकता है। गुफा के भीतर एक शिवलिंग भी स्थापित है। यह जगह पर्यटन के लिये बहुत मसहूर है।

गीता भवन -

राम झूला पार करते ही गीता भवन है जिसे 1950 ई. में श्री जयदयाल गोयन्दकाजी ने बनवाया गया था। यह अपनी दर्शनीय दीवारों के लिए प्रसिद्ध है। यहां रामायणऔर महाभारत के चित्रों से सजी दीवारें इस स्थान को आकर्षण बनाती हैं। यहां एक आयुर्वेदिक डिस्पेन्सरी और गीताप्रेस गोरखपुर की एक शाखा भी है। प्रवचन और कीर्तन मंदिर की नियमित क्रियाएं हैं। शाम को यहां भक्ति संगीत की आनंद लिया जा सकता है। तीर्थयात्रियों के ठहरने के लिए यहां सैकड़ों कमरे हैं।  )

                                    

                            










    
   





औली एवं जोशीमठ - प्राकृतिकप्रेमिओ की जन्नत ☺️😊☺️👌👌👌

         2 नवंबर 2017 को मैं और पिता जी गोविन्द्घाट  से जोशीमठ में आया यह स्थल  काफी सुंदर और हिमालय के गोद में है यहां पर काफी ऊंची ऊंची हिमालय पहाड़ की चोटियां हैं जिसे देखने से मन प्रसन्न हो जाता है यहां पर भव्य भगवान विष्णु का मंदिर  बना हुआ है बद्रीनाथ ,गोविंदघाट जोशीमठ के रास्ते से ही जाया जाता है जोशीमठ में देखने के लिए काफी जगह और  मंदिरे हैं यहीं से औली भी जाया जाता है तो मैंने जोशीमठ से रोपवे  के माध्यम से औली के लिए गया औली पहुंचने के बाद वहां पर बना एक छोटा सा चाय दुकान में चाय पिया और वहां के नजारे देखें और फोटोग्राफिया  भी किया यह  एक बहुत ही सुंदर और स्वस्थ जगह है यहां काफी साफ-सफाई है और यहां पर ठंडे मौसम में काफी बर्फबारी होती है और यहां पर बर्फबारी में देश-विदेश के लोग घूमने और स्केटिंग करने के लिए आते हैं यहां से हिमालय की चोटियां देखने को बनती है नंदा देवी पर्वत त्रिशूल पर्वत यहां से स्पष्ट दिखाई देता है यहां का तापमान ठंड के मौसम में माइनस 0 डिग्री में चला जाता है वैसे तो यहां सालों भर 5 से 6 डिग्री का तापमान रहता है यहाँ पर जाने के  लिए रोड भी बनी हुई है जो कि जोशीमठ से 16 किलोमीटर की दूरी पर है और यहां रोपवे से आने के लिए 4 किलोमीटर का सफर करना पड़ता है 4 किलोमीटर लंबा रोपवे उत्तराखंड सरकार द्वारा बनाया गया है और संचालित है जिस का किराया ₹700 निर्धारित है ₹700 में आना और जाना दोनों है इसके  बाद औली भ्रमण  करने के पश्चात मैं शाम में 6:00 बजे रोपवे   से जोशीमठ आ गया और रात्रि विश्राम रात्रि का खाना जोशीमठ के गुरुद्वारे में ही किया और रात्रि में जोशीमठ बाजार का भ्रमण किया और समझने का का प्रयास किया कि जोशीमठ के निवासियों का आर्थिक एवं सामाजिक स्तर कैसा है इस खूबसूरत जगह को कैसे प्रबंध किए हुए हैं और इस ऊंची जगह पर इनका जीवन किन किन चुनौतियों से भरा पड़ा है और कैसे यहां के निवासी अपने जीवन को जीते हैं उनके संस्कृति और धार्मिक जीवन  कैसा है . इसके बाद खाना खा कर 10 pm में  गुरुद्वारे में सो गया.
               
                 नोट - 1 . जोशीमठ - ( हिमालय वनस्पतियों से घिरा जोशीमठ उत्तराखंड का एक खूबसूरत हिल स्टेशन है। यह चार धाम तीर्थ स्थानों और औली के बहुत ही करीब है। यही कारण है कि उत्तराखंड के इन धार्मिक नगरों की सैर करने वाले ज्यादातर ट्रैवलर्स यहां रुककर आराम फरमाना ज्यादा पसंद करते हैं। यह खूबसूरत स्थल अपने आकर्षणों के साथ हर तरह के सैलानियों का स्वागत करता है। यह एक खास स्थान इसलिए भी है क्योंकि यहां आप धार्मिक यात्रा के साथ-साथ विभिन्न एडवेंचर गतिविधियों का आनंद भी ले सकते हैं। जोशीमठ एक कम भीड़ वाला शहर है जहां आप अपने परिवार और दोस्तों के साथ एक आरामदायक अवकाश बीता सकते है.  जोशीमठ भ्रमण की शुरूआत आप यहां के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल ज्योतिर्मठ से कर सकते हैं, यह वो स्थान है जहां से इस शहर को अपना नाम प्राप्त हुआ है। यह स्थल मूल रूप से शंकरचार्य मठ के लिए जाना जाता है। इस मठ की स्थापना आदि जगतगुरू शंकराचार्य ने की थी। इस मठ के अलावा भारत में तीन और मठ मौजूद हैं जो सामूहिक रूप से चार मठ कहलाते हैं। इस प्रसिद्ध मठ के पीछे की एक कथा भी जुड़ी है, माना जाता है कि इन मठ का निर्माण 8वीं शताब्दी के दौरान आदि शंकराचार्य के एक अनुयायी ने जगतगुरू के दिशा निर्देश पर किया था। इस मठ के अंदर लक्ष्मी नारायण मंदिर और एक 200 साल पुरान एक वृक्ष(कल्पप्रकाश) भी मौजूद है। जोशीमठ के निचले बाजार में स्थित, नरसिंह मंदिर हिंदू भगवान विष्णु के नरसिम्हा (भगवान विष्णु का चौथा अवतार)अवतार को समर्पित पवित्र मंदिर है। इस पवित्र मंदिर के बारे में एक दिलचस्प तथ्य यह है कि यह भगवान का शीतकालीन निवास है। यहां सर्दियों के दौरान बद्रीनाथ मंदिर की मूर्ति नरसिंह अवतार में भगवान विष्णु की मूर्ति के साथ रखी जाती है। इस प्रकार नरसिंह मंदिर जोशीमठ में एक महत्वपूर्ण स्थान है। अगर आप भगवान विष्णु के चौथे अवतार के बारे में और अधिक जानना चाहते हैं तो यहां की यात्रा का प्लान जरूर बनाएं। यदि आप स्वाभाविक रूप से हिमालय की खूबसूरती को देखना चाहते हैं तो औली रोपवे से सबसे अच्छा गंतव्य और कोई नहीं हो सकता है। यह एशिया और भारत का सबसे ऊंचा और सबसे लंबा रोपवे केबल है जिसकी कुल दूरी 4 किमी से अधिक है। कुदरत की अनमोल सौंदर्यता को करीब से निहारने के लिए आप यहां की यात्रा का प्लान कर सकते हैं। आप यहां अपने परिवार यहां दोस्तों के साथ आ सकते हैं।)


2 - औली - ( औली उत्तराखण्ड का एक भाग है। यह 5-7 किलोमीटर में फैला छोटा सा स्की-रिसोर्ट है। इस रिसोर्ट को 9,500-10,500 फीट की ऊँचाई पर बनाया गया है। यहाँ बर्फ से ढकी चोटियाँ बहुत ही सुन्दर दिखाई देती हैं। इनकी ऊँचाई लगभग 23,000 फीट है। यहाँ पर देवदार के वृक्ष बहुतायत में पाए जाते हैं। इनकी महक यहाँ की ठंडी और ताजी हवाओं में महसूस की जा सकती है। औली में प्रकृति ने अपने सौन्दर्य को खुल कर बिखेरा है। बर्फ से ढकी चोटियों और ढलानों को देखकर मन प्रसन्न हो जाता है। यहाँ पर कपास जैसी मुलायम बर्फ पड़ती है और पर्यटक खासकर बच्चे इस बर्फ में खूब खेलते हैं। स्थानीय लोग जोशीमठ और औली के बीच केबल कार स्थापित करना चाहते हैं। जिससे आने-जाने में सुविधा हो और समय की भी बचत हो। इस केबल कार को बलतु और देवदार के जंगलो के ऊपर से बनाया जाएगा। यात्रा करते समय आपको गहरी ढ़लानों से होकर जाना पड़ता है और ऊँची चढ़ाईयाँ चढ़नी पड़तीं हैं। यहाँ पर सबसे गहरी ढलान 1,640 फुट और सबसे ऊँची चढ़ाई 2,620 फुट की है। पैदल यात्रा के अलावा यहाँ पर चेयर लिफ्ट का विकल्प भी है। जिंदादिल लोगों के लिए औली बहुत ही आदर्श स्थान है। यहाँ पर बर्फ गाड़ी और स्लेज आदि की व्यवस्था नहीं है। यहाँ पर केवल स्कीइंग और केवल स्कीइंग की जा सकती है। इसके अलावा यहाँ पर अनेक सुन्दर दृश्यों का आनंद भी लिया जा सकता है। नंदा देवी के पीछे सूर्योदय देखना एक बहुत ही सुखद अनुभव है। नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान यहाँ से 41 किलोमीटर दूर है। इसके अलावा बर्फ गिरना और रात में खुले आकाश को देखना मन को प्रसन्न कर देता है। शहर की भागती-दौड़ती जिंदगी से दूर औली एक बहुत ही बेहतरीन पर्यटक स्थल है। यहाँ पर स्की करना सिखाया जाता है। गढ़वाल मण्डल विकास निगम ने यहाँ स्की सिखाने की व्यवस्था की है। मण्डल द्वारा 7 दिन की नॉन-सर्टिफिकेट और 14 दिन की सर्टिफिकेट ट्रेनिंग दी जाती है। यह ट्रेनिंग हर वर्ष जनवरी-मार्च में दी जाती है। मण्डल के अलावा निजी संस्थान भी ट्रेनिंग देते हैं। यह पर्यटक के ऊपर निर्भर करता है कि वह कौन सा विकल्प चुनता है। स्की सीखते समय सामान और ट्रेनिंग के लिए रू.500 देने पड़ते हैं। इस फीस में पर्यटकों के लिए रहने, खाने और स्की सीखने के लिए आवश्यक सामान आदि की आवश्यक सुविधाएं दी जाती हैं। इसके अलावा यहाँ पर कई डीलक्स रिसोर्ट भी हैं। यहाँ पर भी ठहरने का अच्छा इंतजाम है। पर्यटक अपनी इच्छानुसार कहीं पर भी रूक सकते हैं। बच्चों के लिए भी औली बहुत ही आदर्श जगह है। यहाँ पर पड़ी बर्फ किसी खिलौने से कम नहीं होती है। इस बर्फ से बच्चे बर्फ के पुतले और महल बनाते हैं और बहुत खुश होते हैं। स्की करने के लिए व्यस्कों से रू. 475 और बच्चों से रू. 250 शुल्क लिया जाता है। स्की सीखाने के लिए रू. 125-175, दस्तानों के लिए रू. 175 और चश्मे के लिए रू. 100 शुल्क लिया जाता है। 7 दिन तक स्की सीखने के लिए भारतीय पर्यटकों से रू. 4,710 और विदेशी पर्यटकों से रू. 5,890 शुल्क लिया जाता है। 14 दिन तक स्की सीखने के लिए भारतीय पर्यटकों से रू. 9,440 और विदेशी पर्यटकों से रू. 11,800 शुल्क लिया जाता है। )

                                  

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                                                           ( जोशीमठ और औली का फोटो )




जोशीमठ 



जोशीमठ 

                                        

औली से दीखता नंदा देवी शिखर 



औली में घुमन्तु बाबा चाय का आनंद लेते हुए