मंगलवार, 20 अगस्त 2019

बनारस (काशी) यात्रा ,उतरप्रदेश ...

         4 नवंबर 2017 को शाम 5:00 बजे मै और पिता जी हरिद्वार से बनारस पहुंचा यहां पहुंचने के बाद बाबा विश्वनाथ मंदिर के नजदीक में एक होटल में रात्रि विश्राम किया और अगले दिन सुबह 5 अगस्त 2017 को गंगा नदी में स्नान किया एवं बाबा विश्वनाथ मंदिर के प्रांगण में गया और वहां विश्वनाथ भगवान का दर्शन किया यह मंदिर प्राचीन और ऐतिहासिक है धार्मिक रूप से बनारस का यह मंदिर काफी महत्वपूर्ण है ऐसे तो बनारस में सैंकड़ों मंदिर हैं परंतु विश्वनाथ मंदिर की पहचान बनारस में  ही नहीं पूरे भारत में एक अलग पहचान रखता है विश्वनाथ मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है कहा जाता है कि बाबा विश्वनाथ के दर्शन करने के पश्चात सारे पाप धुल जाते हैं.  विश्वनाथ मंदिर के जाने के लिए बहुत ही संकीर्ण गलियां बनी हुई है इस गलियों से होते हुए विश्वनाथ मंदिर में जाया जाता  है . मंदिर में  दर्शन करने के एवं भ्रमण करने के बाद मैंने गंगा घाट का भ्रमण  का कार्य शुरू किया यहां पर गंगा नदी में प्रत्येक व्यक्ति से ₹100 लेकर नाव चालक बनारस  में गंगा के किनारे बने हुए  घाटों का दर्शन कराते हैं तो मैंने भी ₹100 देकर नाव की सवारी किया और बनारस में बने जितनी भी गंगा के किनारे सभी घाटों को देखा घाटों की स्थिति काफी अच्छी है और बहुत ही सुंदर है भारत के  प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी बनारस के  लोकसभा की सीट से जीते है  इनके द्वारा बनारस के घाटों का काफी साफ सफाई का व्यवस्था और सुरक्षा की व्यवस्था किया गया है ऐसे तो बनारस को घाटों का शहर कहा जाता है और यहां पर देश-विदेश से श्रद्धालु लोग आते हैं गंगा में स्नान करते हैं और बाबा विश्वनाथ का दर्शन करते हैं यहां  सुबह में पूड़ी कचौड़ी जिलेबी सब्जी का नाश्ता प्रसिद्ध है ऐसे तो इस जगह पर हर तरीके का खाने का व्यंजन मिल जाता है और इसी बनारस शहर में  हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) मालवीय जी द्वारा स्थापित किया हुआ है और इसी विद्यालय के प्रांगण में एक और विश्वनाथ मंदिर का निर्माण किया गया है जो काफी सुंदर और बेहतर है तो दोस्तों जब भी बनारस आप आए तो गंगा स्नान एवं बाबा विश्वनाथ का दर्शन जरूर करें और यहां के जो भी देखने लायक स्थान  है उसको भी जरूर देखें बनारस में घाटों के भ्रमण एवं बाबा विश्वनाथ का दर्शन एवं बाजारों के भ्रमण करने के पश्चात शाम 7:00 बजे गया (बिहार) के लिए मैंने बनारस से  ट्रेन पकड़ा और सुबह 4 am में गया आ गया गया से 5am में ट्रेन खुली और  जहानाबाद 7 am में आया इसके बाद बस द्वारा  घर के लिए निकल पड़ा  सुबह 9 :00 बजे मैं अपने जन्म भूमि जो कि बिहार राज्य के अरवल  जिले के करपी प्रखंड के करपी ग्राम में पहुंचा एवं पूरे दिन थके होने के कारण खूब सोया एवं शरीर को आराम दिया.
  
           नोट -  (वाराणसी  भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का प्रसिद्ध नगर है। इसे 'बनारस' और 'काशी' भी कहते हैं। इसे हिन्दू धर्म में सर्वाधिक पवित्र नगरों में से एक माना जाता है और इसे अविमुक्त क्षेत्र कहा जाता है। इसके अलावा बौद्ध एवं जैन धर्म में भी इसे पवित्र माना जाता है। यह संसार के प्राचीनतम बसे शहरों में से एक और भारत का प्राचीनतम बसा शहर है।काशी नरेश (काशी के महाराजा) वाराणसी शहर के मुख्य सांस्कृतिक संरक्षक एवं सभी धार्मिक क्रिया-कलापों के अभिन्न अंग हैं। वाराणसी की संस्कृति का गंगा नदी एवं इसके धार्मिक महत्त्व से अटूट रिश्ता है। ये शहर सहस्रों वर्षों से भारत का, विशेषकर उत्तर भारत का सांस्कृतिक एवं धार्मिक केन्द्र रहा है। हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का बनारस घराना वाराणसी में ही जन्मा एवं विकसित हुआ है। भारत के कई दार्शनिक, कवि, लेखक, संगीतज्ञ वाराणसी में रहे हैं, जिनमें कबीर, वल्लभाचार्य, रविदास, स्वामी रामानंद, त्रैलंग स्वामी, शिवानन्द गोस्वामी, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, पंडित रवि शंकर, गिरिजा देवी, पंडित हरि प्रसाद चौरसिया एवं उस्ताद बिस्मिल्लाह खां आदि कुछ हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने हिन्दू धर्म का परम-पूज्य ग्रंथ रामचरितमानस यहीं लिखा था और गौतम बुद्ध ने अपना प्रथम प्रवचन यहीं निकट ही सारनाथ में दिया था। वाराणसी में चार बड़े विश्वविद्यालय स्थित हैं: बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइयर टिबेटियन स्टडीज़ और संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय। यहां के निवासी मुख्यतः काशिका भोजपुरी बोलते हैं, जो हिन्दी की ही एक बोली है। वाराणसी को प्रायः 'मंदिरों का शहर', 'भारत की धार्मिक राजधानी', 'भगवान शिव की नगरी', 'दीपों का शहर', 'ज्ञान नगरी' आदि विशेषणों से संबोधित किया जाता है।)

            
प्रवेस द्वार विस्नाथ मंदिर 


बनारस में गंगा नदी के किनरा पर बना घाट 


हरिचन्द्र घाट 




हरिचन्द्र घाट को देखते पिता जी सत्येन्द्र कु पाठक