विश्वनाथ मंदिर तक पहुँचने के लिए बहुत ही संकीर्ण गलियां बनी हुई हैं, जिनसे होकर मंदिर में प्रवेश किया जाता है। मंदिर में दर्शन करने के बाद हमने गंगा घाट का भ्रमण शुरू किया। यहाँ पर गंगा नदी में नाव चालक प्रत्येक व्यक्ति से ₹100 लेकर बनारस के किनारे बने हुए घाटों का दर्शन कराते हैं। मैंने भी ₹100 देकर नाव की सवारी की और बनारस के सभी घाटों को देखा। घाटों की स्थिति काफी अच्छी और सुंदर है। भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी बनारस के लोकसभा की सीट से जीते हैं और उनके द्वारा बनारस के घाटों की साफ-सफाई और सुरक्षा की व्यवस्था की गई है।
बनारस को घाटों का शहर कहा जाता है और यहाँ पर देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं, गंगा में स्नान करते हैं और बाबा विश्वनाथ के दर्शन करते हैं। यहाँ सुबह में पूड़ी-कचौड़ी, जलेबी और सब्जी का नाश्ता प्रसिद्ध है। इस जगह पर हर प्रकार का भोजन उपलब्ध है। बनारस शहर में ही बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) है, जिसे मालवीय जी द्वारा स्थापित किया गया है। इसी विश्वविद्यालय के प्रांगण में एक और विश्वनाथ मंदिर का निर्माण किया गया है जो काफी सुंदर और बेहतर है।
तो दोस्तों, जब भी आप बनारस आएं, गंगा स्नान और बाबा विश्वनाथ के दर्शन जरूर करें। यहाँ के सभी दर्शनीय स्थानों को भी अवश्य देखें। घाटों का भ्रमण और बाबा विश्वनाथ का दर्शन करने के बाद शाम 7:00 बजे मैंने गया (बिहार) के लिए बनारस से ट्रेन पकड़ी और सुबह 4:00 बजे गया पहुँच गया। गया से 5:00 बजे ट्रेन खुली और 7:00 बजे जहानाबाद पहुँची। इसके बाद बस द्वारा मैं सुबह 9:00 बजे अपने जन्म स्थान, जो कि बिहार राज्य के अरवल जिले के करपी प्रखंड के करपी गाँव में है, पहुँच गया और पूरे दिन थकान की वजह से खूब सोया और आराम किया।
वाराणसी के बारे में जानकारी
वाराणसी, भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का प्रसिद्ध नगर है, जिसे 'बनारस' और 'काशी' भी कहते हैं। इसे हिन्दू धर्म में सर्वाधिक पवित्र नगरों में से एक माना जाता है और इसे अविमुक्त क्षेत्र कहा जाता है। इसके अलावा बौद्ध एवं जैन धर्म में भी इसे पवित्र माना जाता है। यह संसार के प्राचीनतम बसे शहरों में से एक और भारत का प्राचीनतम बसा शहर है।
काशी नरेश (काशी के महाराजा) वाराणसी शहर के मुख्य सांस्कृतिक संरक्षक एवं सभी धार्मिक क्रिया-कलापों के अभिन्न अंग हैं। वाराणसी की संस्कृति का गंगा नदी एवं इसके धार्मिक महत्त्व से अटूट रिश्ता है। यह शहर सहस्रों वर्षों से भारत का, विशेषकर उत्तर भारत का सांस्कृतिक एवं धार्मिक केंद्र रहा है। हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का बनारस घराना वाराणसी में ही जन्मा और विकसित हुआ है। भारत के कई दार्शनिक, कवि, लेखक, संगीतज्ञ वाराणसी में रहे हैं, जिनमें कबीर, वल्लभाचार्य, रविदास, स्वामी रामानंद, त्रैलंग स्वामी, शिवानंद गोस्वामी, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, पंडित रवि शंकर, गिरिजा देवी, पंडित हरि प्रसाद चौरसिया और उस्ताद बिस्मिल्लाह खां आदि शामिल हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने हिन्दू धर्म का परम-पूज्य ग्रंथ रामचरितमानस यहीं लिखा था और गौतम बुद्ध ने अपना प्रथम प्रवचन यहीं निकट ही सारनाथ में दिया था।
वाराणसी में चार बड़े विश्वविद्यालय स्थित हैं: बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइयर टिबेटियन स्टडीज़ और संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय। यहाँ के निवासी मुख्यतः काशिका भोजपुरी बोलते हैं, जो हिन्दी की ही एक बोली है। वाराणसी को प्रायः 'मंदिरों का शहर', 'भारत की धार्मिक राजधानी', 'भगवान शिव की नगरी', 'दीपों का शहर', और 'ज्ञान नगरी' आदि विशेषणों से संबोधित किया जाता है।
हरिचन्द्र घाट |
हरिचन्द्र घाट को देखते पिता जी सत्येन्द्र कु पाठक |