मंगलवार, 20 अगस्त 2019

ऋषिकेश यात्रा , उतराखंड ...

        3 नवंबर 2017 को मैं और पिता जी सुबह जोशीमठ गुरद्वारा  में जागा और स्नान ध्यान करने के पश्चात गुरुद्वारे में लंगर खाया और यहां से 11 am में बस पकड़ के ऋषिकेश के लिए चल पड़ा ऋषिकेश में तकरीबन 7 :00 बजे शाम को पहुंचा और यहां पर भी  गुरुद्वारा में रात्रि विश्राम लिया . यहां पर भी गुरुद्वारा में रहने खाने-पीने सोने का उत्तम व्यवस्था है और काफी भव्य और सुंदर द्वारा बना हुआ है जो कि गंगा नदी के किनारे पर गुरुद्वारा है . रात्रि विश्राम लेने के बाद अगले दिन 4 नवंबर को ऋषिकेश में भ्रमण किया और यहां पर बने राम झूला , लक्ष्मण झूला को देखा लक्ष्मण झूला के नीचे गंगा नदी में स्नान किया पूजा पाठ किया यह स्थल बेहद hi  सुंदर है और गंगा नदी का ठंडा ठंडा पानी मैं स्नान करने से  मन प्रफुल्लित और आनंदित हो जाता है कई ऋषि-मुनियों का आश्रम है और बहुत ही बाजार ऋषिकेश में बहुत सारे योग सिखाने का छोटे-छोटे संस्थान भी खुल चुके हैं संगीत का बहुत सारे दुकान भी हैं जहां पर संगीत बजाने का स्टूमेंट का बिक्री होता है यहां पर देश विदेश के लोग घूमने के लिए आते हैं बहुत ही सुंदर स्थल मनोरम दृश्य खुशनुमा माहौल यहां देखने का बनता है जोशीमठ से ऋषिकेश की दूरी लगभग 200 किलोमीटर है और हरिद्वार से जोशीमठ की दूरी 30  किलोमीटर है ऋषिकेश में सड़क एवं रेल मार्ग से आया जा सकता है यही पे गंगा पहाड़ों से उतरती हैं और आगे हरिद्वार में जाति ऋषिकेश बहुत ही सुंदर और स्वच्छता धार्मिक दृष्टिकोण से यह स्थल बहुत ही महत्वपूर्ण है हिंदुओं का एक पवित्र स्थल है ऋषिकेश में कई साधु-संतों ऋषि-मुनियों का कुटिया बना हुआ है जिसे देख कर मन प्रसन्न हो जाता है तथा इच्छा होती है कि यहीं पर रुक जाऊ  बहुत ही बेहतर वातावरण धार्मिक एवं सांस्कृतिक विरासत यहां पर उपलब्ध है गंगा नदी के किनारे बैठने के पश्चात ऐसा लगता है कि इस नदी की किनारे यूं ही बैठा रहूं और ध्यान  करता रहूं यहां का भ्रमण करने के पश्चात शाम 5:00 बजे हरिद्वार के लिए निकल गया क्योंकि रात्रि 9:00 बजे से मेरा ट्रेन हरिद्वार से बनारस के लिए था तकरीबन 7:00 बजे हरिद्वार पहुंचा और वहां खाना खाने के पश्चात रेलवे स्टेशन रात्रि 9:00 बजे में  ट्रेन आया और ट्रेन में अपना सीट लेने के बाद रात्रि 10:00 बजे मैं सो गया और अगले दिन बनारस पहुंचने का इंतजार करते रहा.
         
                            नोट - ( ऋषिकेश (संस्कृत : हृषीकेश) उत्तराखण्ड के देहरादून जिले का एक नगर, हिन्दू तीर्थस्थल, नगरनिगम तथा तहसील है। यह गढ़वाल हिमालय का प्रवेश्द्वार एवं योग की वैश्विक राजधानी है। ऋषिकेश, हरिद्वार से २५ किमी उत्तर में तथा देहरादून से ४३ किमी दक्षिण-पूर्व में स्थित है। हिमालय का प्रवेश द्वार, ऋषिकेश जहाँ पहुँचकर गंगा पर्वतमालाओं को पीछे छोड़ समतल धरातल की तरफ आगे बढ़ जाती है। ऋषिकेश का शांत वातावरण कई विख्यात आश्रमों का घर है। उत्तराखण्ड में समुद्र तल से 1360 फीट की ऊंचाई पर स्थित ऋषिकेश भारत के सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में एक है। हिमालय की निचली पहाड़ियों और प्राकृतिक सुन्दरता से घिरे इस धार्मिक स्थान से बहती गंगा नदी इसे अतुल्य बनाती है। ऋषिकेश को केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री का प्रवेशद्वार माना जाता है। कहा जाता है कि इस स्थान पर ध्यान लगाने से मोक्ष प्राप्त होता है। हर साल यहाँ के आश्रमों के बड़ी संख्या में तीर्थयात्री ध्यान लगाने और मन की शान्ति के लिए आते हैं। विदेशी पर्यटक भी यहाँ आध्यात्मिक सुख की चाह में नियमित रूप से आते रहते हैं  ऋषिकेश से सम्बंधित अनेक धार्मिक कथाएँ प्रचलित हैं। कहा जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान निकला विष शिव ने इसी स्थान पर पिया था। विष पीने के बाद उनका गला नीला पड़ गया और उन्हें नीलकंठ के नाम से जाना गया। एक अन्य अनुश्रुति के अनुसार भगवान राम ने वनवास के दौरान यहाँ के जंगलों में अपना समय व्यतीत किया था। रस्सी से बना लक्ष्मण झूला इसका प्रमाण माना जाता है। 1939 ई० में लक्ष्मण झूले का पुनर्निर्माण किया गया। यह भी कहा जाता है कि ऋषि रैभ्य ने यहाँ ईश्वर के दर्शन के लिए कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान हृषीकेश के रूप में प्रकट हुए। तब से इस स्थान को ऋषिकेश नाम से जाना जाता है। 
ऋषिकेश में देखे जाने वाला  स्थल  -  

लक्ष्मण झूला - गंगा नदी के एक किनार को दूसर किनार से जोड़ता यह झूला नगर की विशिष्ट की पहचान है। इसे 1939 में बनवाया गया था। कहा जाता है कि गंगा नदी को पार करने के लिए लक्ष्मण ने इस स्थान पर जूट का झूला बनवाया था। झूले के बीच में पहुंचने पर वह हिलता हुआ प्रतीत होता है। 450 फीट लंबे इस झूले के समीप ही लक्ष्मण और रघुनाथ मंदिर हैं। झूले पर खड़े होकर आसपास के खूबसूरत नजारों का आनंद लिया जा सकता है। लक्ष्मण झूला के समान राम झूला भी नजदीक ही स्थित है। यह झूला शिवानंद और स्वर्ग आश्रम के बीच बना है। इसलिए इसे शिवानंद झूला के नाम से भी जाना जाता है। ऋषिकेश मैं गंगाजी के किनारे की रेेत बड़ी ही नर्म और मुलायम है, इस पर बैठने से यह माँ की गोद जैसी स्नेहमयी और ममतापूर्ण लगती है, यहाँ बैठकर दर्शन करने मात्र से ह्रदय मैं असीम शांति और रामत्व का उदय होने लगता है।.

त्रिवेणी घाट
ऋषिकेश में स्नान करने का यह प्रमुख घाट है जहां प्रात: काल में अनेक श्रद्धालु पवित्र गंगा नदी में डुबकी लगाते हैं। कहा जाता है कि इस स्थान पर हिन्दू धर्म की तीन प्रमुख नदियों गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम होता है। इसी स्थान से गंगा नदी दायीं ओर मुड़ जाती है। शाम को होने वाली यहां की आरती का नजारा बेहद आकर्षक होता है।

परमार्थ निकेतन घाट
स्वामी विशुद्धानन्द द्वारा स्थापित यह आश्रम ऋषिकेश का सबसे प्राचीन आश्रम है। स्वामी जी को 'काली कमली वाले' नाम से भी जाना जाता था। इस स्थान पर बहुत से सुन्दर मंदिर बने हुए हैं। यहां खाने पीने के अनेक रस्तरां हैं जहां केवल शाकाहारी भोजन ही परोसा जाता है। आश्रम की आसपास हस्तशिल्प के सामान की बहुत सी दुकानें हैं।

नीलकंठ महादेव मंदिर -

लगभग 5500 फीट की ऊंचाई पर स्वर्ग आश्रम की पहाड़ी की चोटी पर नीलकंठ महादेव मंदिर स्थित है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने इसी स्थान पर समुद्र मंथन से निकला विष ग्रहण किया गया था। विषपान के बाद विष के प्रभाव के से उनका गला नीला पड़ गया था और उन्हें नीलकंठ नाम से जाना गया था। मंदिर परिसर में पानी का एक झरना है जहां भक्तगण मंदिर के दर्शन करने से पहले स्नान करते हैं।

भरत मंदिर -

यह ऋषिकेश का सबसे प्राचीन मंदिर है जिसे 12 शताब्दी में आदि गुरू शंकराचार्य ने बनवाया था। भगवान राम के छोटे भाई भरत को समर्पित यह मंदिर त्रिवेणी घाट के निकट ओल्ड टाउन में स्थित है। मंदिर का मूल रूप 1398 में तैमूर आक्रमण के दौरान क्षतिग्रस्त कर दिया गया था। हालांकि मंदिर की बहुत सी महत्वपूर्ण चीजों को उस हमले के बाद आज तक संरक्षित रखा गया है। मंदिर के अंदरूनी गर्भगृह में भगवान विष्णु की प्रतिमा एकल शालीग्राम पत्थर पर उकेरी गई है। आदि गुरू शंकराचार्य द्वारा रखा गया श्रीयंत्र भी यहां देखा जा सकता है।

कैलाश निकेतन मंदिर- 

लक्ष्मण झूले को पार करते ही कैलाश निकेतन मंदिर है। 12 खंड़ों में बना यह विशाल मंदिर ऋषिकेश के अन्य मंदिरों से भिन्न है। इस मंदिर में सभी देवी देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं।

वशिष्ठ गुफा- 

ऋषिकेश से 22 किलोमीटर की दूरी पर 3000 साल पुरानी वशिष्ठ गुफा बद्रीनाथ-केदारनाथ मार्ग पर स्थित है। इस स्थान पर बहुत से साधुओं विश्राम और ध्यान लगाए देखे जा सकते हैं। कहा जाता है यह स्थान भगवान राम और बहुत से राजाओं के पुरोहित वशिष्ठ का निवास स्थल था। वशिष्ठ गुफा में साधुओं को ध्यानमग्न मुद्रा में देखा जा सकता है। गुफा के भीतर एक शिवलिंग भी स्थापित है। यह जगह पर्यटन के लिये बहुत मसहूर है।

गीता भवन -

राम झूला पार करते ही गीता भवन है जिसे 1950 ई. में श्री जयदयाल गोयन्दकाजी ने बनवाया गया था। यह अपनी दर्शनीय दीवारों के लिए प्रसिद्ध है। यहां रामायणऔर महाभारत के चित्रों से सजी दीवारें इस स्थान को आकर्षण बनाती हैं। यहां एक आयुर्वेदिक डिस्पेन्सरी और गीताप्रेस गोरखपुर की एक शाखा भी है। प्रवचन और कीर्तन मंदिर की नियमित क्रियाएं हैं। शाम को यहां भक्ति संगीत की आनंद लिया जा सकता है। तीर्थयात्रियों के ठहरने के लिए यहां सैकड़ों कमरे हैं।  )