शनिवार, 18 मई 2013

यात्रा में निकलने से पहले


छुट्टियाँ बिताने के लिये पूरे परिवार के साथयात्रा में जाने का शौक  किसे नहीं होता। घूमने जाने के नाम से बच्चे सबसे अधिक रोमांचित होते हैं पर साथ ही साथ बड़े भी उत्साहित रहते हैं। पर अक्सर होता यह है कि लोग बिना किसी पूर्व योजना तथा तैयारी के यात्रा में निकल पड़ते हैं जिससे उन्हें अनेकों कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। घूमने का सारा मजा किरकिरा हो जाता है। इसलिये अच्छा यही है कि पूरी तरह से सोच-समझ कर यात्रा की पूर्व योजना बनायें और समस्त तैयारियों के साथ ही यात्रा में निकलें।
पूर्व योजनाः
  • यात्रा में जाने की योजना पर्याप्त समय पहले ही बनायें और अपना कार्यक्रम निश्‍चित कर लें जैसे कि कहाँ जाना है, कब जाना है, वहाँ रहने के दौरान वहाँ का अनुमानित मौसम कैसा रहेगा इत्यादि।
  • यह भी विचार कर लें कि किस स्थान पर किस माध्यम से जायेंगे फ्लाइट, रेल या टैक्सी/बस से। यह भी तय कर लें कि किस स्थान में कितने दिनों तक ठहरना है।
  • अपने जेब को ध्यान में रखते हुये अपना बजट भी पहले ही निश्‍चित कर लें।
  • हवाई जहाज से घूमने की इच्छा भला किसे नहीं होती। आजकल कई कंपनियाँ पर्यटकों को सस्ते दर पर टिकिट देती हैं इसलिये पहले ही पता कर लें कि कौन सी कंपनी आपके बजट के अनुरूप दर पर टिकिट दे रही है।
  • सब कुछ तय हो जाने के बाद अपने जाने तथा आने के लिये फ्लाइट, रेल आदि के आरक्षण की उचित व्यवस्था कर लें। जहाँ तक हो सके होटल आदि की व्यवस्था भी पहले ही कर लें जिससे कि गंतव्य स्थान में पहुँचने के बाद जगह ढूँढने में आपका समय बर्बाद न हो। आजकल इंटरनेट की सुविधा होने से आरक्षण, होटल बुकिंग आदि कार्य घर बैठे ही आसानी के साथ किया जा सकता है।
  • यात्रा के दौरान अपने साथ ले जाने वाली वस्तुओं की सूची भी बना लें ताकि ऐन वक्‍त पर कोई चीज छूट न जाये।
तैयारियाँ
  • घर से निकलने के पहले निश्‍चित कर लीजिये कि टूथब्रश, टूथपेस्ट, साबुन, शैम्पू, तौलिया, शेविंग किट, बाल सँवारने के सामान आदि रख लिया गया है। प्रायः लोग इन्हीं चीजों को रखना भूल जाते हैं।
  • बुखार तथा दर्दनिवारक गोलियाँ, बैंडएड आदि जैसी कुछ आवश्यक दवाएँ और फर्स्ट-एड बाक्स रखना कदापि न भूलें। सम्पूर्ण यात्रा के दौरान कभी भी इनकी जरूरत पड़ सकती है।
  • एक छोटा टार्च, एक छोटा चाकू और एक छोटा ताला अपने साथ अवश्य रखें, ये यात्रा में बहुत काम आती हैं।
  • यद्यपि आजकल सभी पर्यटन स्थलों मे खान-पान की पर्याप्त व्यवस्था होती है, फिर भी अपने साथ कुछ हल्के नाश्ते का सामान भी रख लें।
  • अपने साथ अनावश्यक और भारी सामान कभी भी न रखें। छोटी-छोटी पैकिंग करें जिन्हें परिवार के लोग स्वयं ही उठा सकने में समर्थ हों क्योंकि यात्रा के दौरान अपने सामानों को स्वयं उठा कर ले जाने के अवसर अनेकों बार आते हैं।
कुछ सुझाव
  • महत्वपूर्ण कागजातों जैसे कि टिकिट, पासपोर्ट, क्रेडिट तथा एटीएम कार्ड्स, ड्राइव्हिंग लायसेंस आदि की छायाप्रति बनवा लें ताकि यदि कोई कागजात खो जाता है तो छायाप्रति से काम चलाया जा सके।
  • आवश्यकता से अधिक नगद रकम साथ न रखें और प्लास्टिक मनी अर्थात् क्रेडिट तथा एटीएम कार्ड्स का पूरा-पूरा उपयोग करें।
  • अपने सभी पैकिंगों पर अपना नाम व पता लिख दें, उनके भीतर भी अपने नाम व पते की स्लिप डाल दें।
  • परिचित लोगों के फोन नंबरों की सूची साथ रखें।
  • कहीं पर भी कूड़ा-करकट न फैलायें बल्कि उपयोग करने के बाद पालीथिन झिल्ली, डिस्पोजेबल गिलास आदि को कूड़ेदान में ही डालें।
  • नियम और कानून की अवहेलना ना करें।
  • हमेशा अपना व्यवहार सम्भ्रान्त रखें और अनजान लोगों पर एकाएक विश्‍वास न करें।
यदि आप उपरोक्‍त बातों का ध्यान रखेंगे तो आपको निश्‍चिंत होकर अपनी छुट्टियों तथा यात्रा का पूरा-पूरा मजा लेने का मौका अवश्य ही मिलेगा।
यात्रा सुविधा प्रदान करने वाली साइट्सः

हिस्टोरिकल प्लेस के भ्रमण के पहले क्या करे ?


 लोग सामान्यतः वर्ष में कम से कम एक-दो बार भ्रमण के लिए किसी न किसी दर्शनीय स्थल में जाते ही हैं। उन भ्रमणस्थलों में प्रायः प्राचीन मन्दिरें, गुफाएँ, किले आदि देखने में आते हैं। लोग प्राचीन मन्दिरों, किलों आदि के विशाल भवनों को देखकर खुश तो हो जाते हैं किन्तु उनके विषय में कुछ विशेष जान नहीं पाते, या सही कहा जाए तो जानने का प्रयास ही नहीं करते। हाँ, कुछ लोग इसके लिए गाइड की सेवाएँ अवश्य ले लेते हैं किन्तु उसका परिणाम यह निकलता है कि वे लोग उन भवनों को, अनजाने में ही सही, गाइड के नजरिये से ही देखने लगते हैं, उनका अपना कोई नजरिया नहीं रह जाता। अस्तु, यदि लोग उन स्थानों के बारे में अधिक जानने के उद्देश्य से उन्हें विशेष नजरिये से देखें तो उनके भ्रमण का आनन्द कई गुना बढ़ सकता है। आइये चर्चा करें कि प्राचीन स्मारकों को विशेष नजरिये से कैसे देखा जाए।
गन्तव्य में पहुँचने पर सबसे पहले तो यह देखें कि वहाँ पर किसी प्रकार का बोर्ड लगा है या नहीं। यदि वह स्थान पुरातत्व विभाग के द्वारा सुरक्षित स्थल के अन्तर्गत आता होगा तो अवश्य ही आपको वहाँ पर पुरातत्व विभाग के द्वारा लगया गया उस स्थान की जानकारी देने वाला कोई न कोई बोर्ड अवश्य मिलेगा जिसे पढ़ने से आपको उस स्थान या भवन तथा वहाँ के इतिहास के विषय में कुछ न कुछ विशेष जानकारी अवश्य मिलेगी। उस स्थान के पास की आबादी या बस्ती वाला कोई बन्दा यदि वहाँ पर आपको दिखाई दे तो आप निःसंकोच उससे उस स्थान के विषय में पूछें। आपके पूछने पर वह व्यक्ति उस स्थान से जुड़ी हुई मान्यताएँ, किंवदन्तियाँ आदि के बारे में आपको अवश्य बताएगा जो कि आपको रोचक तो लगेंगी ही, आपका ज्ञानवर्धन भी करेंगी। स्थल को देखते हुए आप यह भी समझने का प्रयास करें कि उसके लिए उसी स्थान का चयन क्यों किया गया होगा, पानी की उपलब्धता सबसे पहली अनिवार्यता होती है इसलिए स्थल से लगा हुआ या आसपास कोई न कोई नदी या नाला अवश्य होगा। प्राचीनकाल में भवन प्रायः पत्थरों से बनते थे इसलिए आसपास पत्थरों की उपलब्धता भी होनी चाहिए। उस स्थान को महत्व कब, क्यों और कैसे मिला, यह जानना भी रोचक होता है। किसी स्थान को यदि आप सिर्फ खण्डहर मान कर देखेंगे तो आपको जरा भी मजा नहीं आएगा पर यदि उसे प्राचीनकाल का अवशेष मान कर देखेंगे तो, विश्वास कीजिए, आपको बहुत ही आनन्द आएगा।
मन्दिरो, चाहे वे प्राचीन हों या वर्तमान काल के, को देखने के पहले उनके बारे में कुछ बातें जान लें तो आपको और भी अधिक आनन्द आएगा। मन्दिर में जहाँ पर भगवान की स्थापना होती है उसे ‘गर्भगृह’ कहा जाता है। गर्भगृह के बाहर भक्तों के लिए जो स्थान होता है उसे ‘मण्डप’ के नाम से जाना जाता है। सामान्यतः मन्दिरों की दीवारों तथा गर्भगृह के प्रवेशद्वार पर प्रतिमाएँ होती हैं, साथ ही कहीं-कहीं पर शिलालेख या ताम्रपत्र भी जड़े रहते हैं। मन्दिर आस्था के केन्द्र एवं अध्यात्म दर्शन की कलात्मक अभिव्यक्ति होने के साथ ही साथ वास्तुकला के अद्वितीय उदाहरण भी होते हैं। इसलिए मन्दिर में जाते समय श्रद्धा-भक्ति तो बनाए रखिये ही पर कला को जानने समझने की उत्सुक्ता को भूल ना जाइये।

प्राचीन मन्दिरों में कई बार ऐसा भी होता है कि हम समझ ही नहीं पाते कि वहाँ किस देवता की मूर्ति है। इसलिए देवताओं की मूर्तियों को पहचानने के लिए कुछ बातें जानना आवश्यक हैं। विष्णु की मूर्ति में चार हाथ बने होते हैं जिनमें वे शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किए होते हैं, साथ ही उनका वाहन गरुड़ होता है। विष्णु के लोकप्रिय अवतारों जैसे कि वाराह, वामन, नृसिंह आदि की मूर्तियाँ अपने रूप के कारण आसानी से पहचान ली जाती हैं। इसी प्रकार गणेश जी और हनुमान जी की मूर्तियों को भी पहचानने में कभी कठिनाई नहीं होती। शिव जी की मूर्ति में सामान्यतः जटा, मुकुट, नन्दी, त्रिशूल, डमरू, नाग, खप्पर आदि सम्बद्ध होते हैं। ब्रह्मा जी की मूर्ति चतुर्मुखी तथा दाढ़ी-मूछ युक्त होती है और वे कमण्डलु, पोथी, अक्षमाल, श्रुवा आदि धारण किए होते हैं, उनका वाहन हंस होता है। कार्तिकेय की मूर्ति षटमुखी होती है तथा वे हाथ में शूल और गले में बघनखा धारण किए होते हैं। दुर्गा-पार्वती, महिषमर्दिनी सिंहवाहिनी होती हैं तो गौरी के साथ पंचाग्नि, शिवलिंग और वाहन गोधा प्रदर्शित होता है। सरस्वती, वीणापाणि, पुस्तक लिए, हंसवाहिनी हैं। लक्ष्मी को पद्‌मासना, गजाभिषिक्त प्रदर्शित किया जाता है।

सामान्यतः मन्दिर का मुख पूर्व दिशा की ओर होता है और गर्भगृह से जल निकालने वाली नाली, जिसे कि प्रणाल कहा जाता है, उत्तर दिशा में होती है। प्राचीन मन्दिरों के गर्भगृह के प्रवेशद्वार के दोनों और के स्तम्भों पर प्रायः रूपशाखा की मिथुन मूर्तियाँ, द्वारपाल प्रतिमाएँ एवं मकरवाहिनी गंगा और कच्छपवाहिनी यमुना होती हैं। प्राचीन प्रतिमाओं में नारी-पुरुष का भेद स्तन से ही संभव होता है, क्योंकि दोनों के वस्त्राभूषण में कोई फर्क नहीं होता। अलग अलग दिशाओं में दिक्पालों की प्रतिमाएँ होती हैं जिनका विवरण निम्न प्रकार से है -
पूर्व दिशा में – गजवाहन इन्द्र
ईशान (उत्तर-पूर्व) दिशा में – नंदीवाहन ईश
उत्तर दिशा में – नरवाहन कुबेर
वायव्य (उत्तर-पश्चिम) दिशा में – हरिणवाहन वायु
पश्चिम दिशा में – मीन/मकरवाहन वरुण
नैऋत्य दिशा (दक्षिण-पश्चिम) में – शववाहन निऋति
दक्षिण दिशा में – महिषवाहन यम
आग्नेय (दक्षिण-पूर्व) दिशा में – मेषवाहन अग्नि

तो अब जब कभी भी भ्रमण के लिए जाएँ तो उपरोक्त बातों को अवश्य ही ध्यान में रखें ताकि आपके भ्रमण के आनन्द में वृद्धि हो।                      

या्त्रा कोलकाता की



दिनांक 2 दिसम्‍बर 2012 को  रेलवे  के  परिक्षा के कारण  कोलकता जाना पडा इसी कारण कोलकाता का सैर किया वैसे तो पहले भी मै कोलकता गया था परन्‍तु सिर्फ अपने निजी काम से इस बार कोलकता गया तो थोडा सैर सपाटा भी कर लिया तो आइए जानते है पश्‍चिम बंगाल की राजधानी कोलकता के बारे में।
बंगाल की खाड़ी के शीर्ष तट से १८० किलोमीटर दूर हुगली नदी के बायें किनारे पर स्थित कोलकाता (पुराना नाम कलकत्ता ) पश्चिम बंगालकी राजधानी है। यह भारत का दूसरा सबसे बड़ा महानगर तथा पाँचवा सबसे बड़ा बन्दरगाह है। यहाँ की जनसंख्या २ करोड २९ लाख है।[1] इस शहर का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। इसके आधुनिक स्वरूप का विकास अंग्रेजो एवं फ्रांस के उपनिवेशवाद के इतिहास से जुड़ा है। आज का कोलकाता आधुनिक भारत के इतिहास की कई गाथाएँ अपने आप में समेटे हुए है। शहर को जहाँ भारत के शैक्षिक एवं सांस्कृतिक परिवर्तनों के प्रारम्भिक केन्द्र बिन्दु के रूप में पहचान मिली है वहीं दूसरी ओर इसे भारत में साम्यवाद आंदोलन के गढ़ के रूप में भी मान्यता प्राप्त है। महलों के इस शहर को 'सिटी ऑफ़ जॉय' के नाम से भी जाना जाता है।
अपनी उत्तम अवस्थिति के कारण कोलकाता को 'पूर्वी भारत का प्रवेश द्वार' भी कहा जाता है। यह रेलमार्गों, वायुमार्गों तथा सड़क मार्गों द्वारा देश के विभिन्न भागों से जुड़ा हुआ है। यह प्रमुख यातायात का केन्द्र, विस्तृत बाजार वितरण केन्द्र, शिक्षा केन्द्र, औद्योगिक केन्द्र तथा व्यापार का केन्द्र है। अजायबघर, चिड़ियाखाना, बिरला तारमंडल, हावड़ा पुल, कालीघाट, फोर्ट विलियम, विक्टोरिया मेमोरियल, विज्ञान नगरी आदि मुख्य दर्शनीय स्थान हैं। कोलकाता के निकट हुगली नदी के दोनों किनारों पर भारतवर्ष के प्रायः अधिकांश जूट के कारखाने अवस्थित हैं। इसके अलावा मोटरगाड़ी तैयार करने का कारखाना, सूती-वस्त्र उद्योग, कागज-उद्योग, विभिन्न प्रकार के इंजीनियरिंग उद्योग, जूता तैयार करने का कारखाना, होजरी उद्योग एवं चाय विक्रय केन्द्र आदि अवस्थित हैं। पूर्वांचल एवं सम्पूर्ण भारतवर्ष का प्रमुख वाणिज्यिक केन्द्र के रूप में कोलकाता का महत्त्व अधिक है।
आधिकारिक रूप से इस शहर का नाम कोलकाता १ जनवरी२००१ को रखा गया। इसका पूर्व नाम अंग्रेजी में "कैलकटा' था लेकिन बांग्ला भाषी इसे सदा कोलकाता या कोलिकाता के नाम से ही जानते है एवं हिन्दी भाषी समुदाय में यह कलकत्ता के नाम से जाना जाता रहा है। सम्राट अकबर के चुंगी दस्तावेजों और पंद्रहवी सदी के विप्रदास की कविताओं में इस नाम का बार-बार उल्लेख मिलता है। इसके नाम की उत्पत्ति के बारे में कई तरह की कहानियाँ मशहूर हैं। सबसे लोकप्रिय कहानी के अनुसार हिंदुओं की देवी काली के नाम से इस शहर के नाम की उत्पत्ति हुई है। इस शहर के अस्तित्व का उल्लेख व्यापारिक बंदरगाह के रूप में चीन के प्राचीन यात्रियों के यात्रा वृत्तांत और फारसी व्यापारियों के दस्तावेजों में मिलता है। महाभारत में भी बंगाल के कुछ राजाओं का नाम है जो कौरव सेना की तरफ से युद्ध में शामिल हुए थे। नाम की कहानी और विवाद चाहे जो भी हों इतना तो तय है कि यह आधुनिक भारत के शहरों में सबसे पहले बसने वाले शहरों में से एक है। १६९० में इस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी "जाब चारनाक" ने अपने कंपनी के व्यापारियों के लिये एक बस्ती बसाई थी। १६९८ में इस्ट इंडिया कंपनी ने एक स्थानीय जमींदार परिवार सावर्ण रायचौधुरी से तीन गाँव (सूतानीति, कोलिकाता और गोबिंदपुर) के इजारा लिये। अगले साल कंपनी ने इन तीन गाँवों का विकास प्रेसिडेंसी सिटी के रूप में करना शुरू किया। १७२७ में इंग्लैंडके राजा जार्ज द्वतीय के आदेशानुसार यहाँ एक नागरिक न्यायालय की स्थापना की गयी। कोलकाता नगर निगम की स्थापना की गयी और पहले मेयर का चुनाव हुआ। १७५६ में बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला ने कोलिकाता पर आक्रमण कर उसे जीत लिया। उसने इसका नाम "अलीनगर" रखा। लेकिन साल भर के अंदर ही सिराजुद्दौला की पकड़ यहाँ ढीली पड़ गयी और अंग्रेजों का इस पर पुन: अधिकार हो गया। १७७२ में वारेन हेस्टिंग्स ने इसे ब्रिटिश शासकों की भारतीयराजधानी बना दी। कुछ इतिहासकार इस शहर की एक बड़े शहर के रूप में स्थापना की शुरुआत १६९८ में फोर्ट विलियम की स्थापना से जोड़ कर देखते हैं। १९१२ तक कोलकाता भारत में अंग्रेजो की राजधानी बनी रही।
१७५७ के बाद से इस शहर पर पूरी तरह अंग्रेजों का प्रभुत्व स्थापित हो गया और १८५० के बाद से इस शहर का तेजी से औद्योगिक विकास होना शुरु हुआ खासकर कपड़ों के उद्योग का विकास नाटकीय रूप से यहाँ बढा हलाकि इस विकास का असर शहर को छोड़कर आसपास के इलाकों में कहीं परिलक्षित नहीं हुआ। ५ अक्टूबर १८६५ को समुद्री तूफान (जिसमे साठ हजार से ज्यादा लोग मारे गये) की वजह से कोलकाता में बुरी तरह तबाही होने के बावजूद कोलकात अधिकांशत: अनियोजित रूप से अगले डेढ सौ सालों में बढता रहा और आज इसकी आबादी लगभ १ करोड़ ४० लाख है। कोलकाता १९८० से पहले भारत की सबसे ज्यादा आबादी वाला शहर था, लेकिन इसके बाद मुंबई ने इसकी जगह ली। भारत की आज़ादी के समय १९४७ में और १९७१ के भारत पाकिस्तान युद्ध के बाद "पूर्वी बंगाल" (अब बांग्लादेश ) से यहाँ शरणार्थियों की बाढ आ गयी जिसने इस शहर की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह झकझोरा।
कोलकाता में जन यातायात कोलकाता उपनगरीय रेलवेकोलकाता मेट्रो, ट्राम और बसों द्वारा उपलब्ध है। व्यापक उपनगरीय जाल सुदूर उपनगरीय क्षेत्रों तक फैला हुआ है। भारतीय रेल द्वारा संचालित कोलकाता मेट्रो भारत में सबसे पुरानी भूमिगत यातायात प्रणाली है। ये शहर में उत्तर से दक्षिण दिशा में हुगली नदी के समानांतर शहर की लंबाई को १६.४५ कि.मी. में नापती है। यहां के अधिकांश लोगों द्वारा बसों को प्राथमिक तौर पर यातायात के लिए प्रयोग किया जाता है। यहां सरकारी एवं निजी ऑपरेटरों द्वारा बसें संचालित हैं। भारत में कोलकाता एकमात्र शहर है, जहाँ ट्राम सेवा उपलब्ध है। ट्राम सेवा कैल्कटा ट्रामवेज़ कंपनी द्वारा संचालित है। [ ट्राम मंद-गति चालित यातायात है, व शहर के कुछ ही क्षेत्रों में सीमित है। मानसून के समय भारी वर्षा के चलते कई बार लोक-यातायात में व्यवधान पड़ता है। 
भाड़े पर उपलब्ध यांत्रिक यातायात में पीली मीटर-टैक्सी और ऑटो-रिक्शॉ हैं। कोलकाता में लगभग सभी पीली टैक्सियाँ एम्बेसैडर ही हैं। कोलकाता के अलावा अन्य शहरों में अधिकतर टाटा इंडिका या फिएट ही टैसी के रूप में चलती हैं। शहर के कुछ क्षेत्रों में साइकिल-रिक्शा और हाथ-चालित रिक्शा अभी भी स्थानीय छोटी दूरियों के लिए प्रचालन में हैं। अन्य शहरों की अपेक्षा यहां निजी वाहन काफ़ी कम हैं। ऐसा अनेक प्रकारों के लोक यातायात की अधिकता के कारण है।  हालांकि शहर ने निजी वाहनों के पंजीकरण में अच्छी बड़ोत्तरी देखी है। वर्ष २००२ के आंकड़ों के अनुसार पिछले सात वर्षों में वाहनों की संख्या में ४४% की बढ़त दिखी है।  शहर के जनसंख्या घनत्व की अपेक्षा सड़क भूमि मात्र ६% है, जहाँ दिल्ली में यह २३% और मुंबई में १७% है। यही यातायात जाम का मुख्य कारण है।  इस दिशा मेंकोलकाता मेट्रो रेलवे तथा बहुत से नये फ्लाई-ओवरों तथा नयी सड़कों के निर्मान ने शहर को काफ़ी राहत दी है।


कोलकाता में दो मुख्य लंबी दूरियों की गाड़ियों वाले रेलवे स्टेशन हैं- हावड़ा जंक्शन और सियालदह जंक्शन। कोलकाता नाम से एक नया स्टेशन २००६ में ही बनाया गया है। कोलकाता शहर भारतीय रेलवे के दो मंडलों का मुख्यालय है – पूर्वी रेलवे और दक्षिण-पूर्व रेलवे

शहर के विमान संपर्क हेतु नेताजी सुभाष चंद्र बोस अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा दम दम में स्थित है। यह विमानक्षेत्र शहर के उत्तरी छोर पर है व यहां से दोनों, अन्तर्देशीय और अन्तर्राष्ट्रीय उड़ानें चलती हैं। यह नगर पूर्वी भारत का एक प्रधान बंदरगाह है। कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट ही कोलकाता पत्तन और हल्दिया पत्तन का प्रबंधन करता है।  यहां से अंडमान निकोबार द्वीपसमूह में पोर्ट ब्लेयर के लिये यात्री जहाज और भारत के अन्य बंदरगाहों तथा विदेशों के लिए भारतीय शिपिंग निगम के माल-जहाज चलते हैं। यहीं से कोलकाता के द्वि-शहर हावड़ा के लिए फेरी-सेवा भी चलती है। कोलकाता में दो बड़े रेलवे स्टेशन हैं जिनमे एक हावड़ा और दूसरा सियालदह में है, हावड़ा तुलनात्मक रूप से ज्यादा बड़ा स्टेशन है जबकि सियालदह से स्थानीय सेवाएँ ज्यादा हैं। शहर में उत्तर में दमदम में नेताजी सुभाषचंद्र बोस अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा जो शहर को देश विदेश से जोड़ता है। शहर से सीधे ढाका यांगूनबैंकाक लंदन पारो सहित मध्य पूर्व एशिया के कुछ शहर जुड़े हुये हैं। कोलकाता भारतीय उपमहाद्वीप का एकमात्र ऐसा शहर है जहाँ ट्राम यातायात का प्रचलन है। इसके अलावा यहाँ कोलकाता मेट्रो की भूमिगत रेल सेवा भी उपलब्ध है। गंगा की शाखा हुगली में कहीं कहीं स्टीमर यातायात की सुविधा भी उपलब्ध है। सड़कों पर नीजी बसों के साथ साथ पश्चिम बंगाल यातायात परिवहन निगम की भी काफी बसें चलती हैं। शहर की सड़कों पे काली-पीली टैक्सियाँ चलती हैं। धुंएँ, धूल और प्रदूषण से राहत शहर के किसी किसी इलाके में ही मिलती है।
मैदान और फोर्ट विलियम, हुगली नदी के समीप भारत के सबसे बड़े पार्कों में से एक है। यह 3 वर्ग कि.मी. के क्षेत्र में फैला है। मैदान के पश्चिम में फोर्ट विलियम है। चूंकि फोर्ट विलियम को अब भारतीय सेना के लिए उपयोग में लाया जाता है यहां प्रवेश करने के लिए विशेष अनुमति लेनी पड़ती है। ईडन गार्डन्स मेंएक छोटे से तालाब में बर्मा का पेगोडा स्थापित किया गया है, जो इस गार्डन का विशेष आकर्षण है। यह स्थान स्थानीय जनता में भी लोकप्रिय है। विक्टोरिया मेमोरियल, १906-2१ के बीच निर्मित यह स्मारक रानी विक्टोरिया को समर्पित है। इस स्मारक में शिल्पकला का सुंदर मिश्रण है। इसके मुगल शैली के गुंबदों में सारसेनिक और पुनर्जागरण काल की शैलियां दिखाई पड़ती हैं। मेमोरियल में एक शानदार संग्रहालय है, जहां रानी के पियानो और स्टडी-डेस्क सहित 3000 से अधिक वस्तुएं प्रदर्शित की गई हैं। यह रोजाना प्रात: १0.00 बजे से सायं 4.30 बजे तक खुलता है, सोमवार को यह बंद रहता है। सेंट पॉल कैथेड्रल चर्च शिल्पकला का अनूठा उदाहरण है, इसकी रंगीन कांच की खिड़कियां, भित्तिचित्र, ग्रांड-ऑल्टर, एक गॉथिक टावर दर्शनीय हैं। यह रोजाना प्रात: 9.00 बजे से दोपहर तक और सायं 3.00 बजे से 6.00 बजे तक खुलता है। नाखोदा मस्जिद लाल पत्थर से बनी इस विशाल मस्जिद का निर्माण १926 में हुआ था, यहां १0,000 लोग आ सकते हैं। मार्बल पैलेस, एम जी रोड पर स्थित आप इस पैलेस की समृद्धता देख सकते हैं। १800 ई. में यह पैलेस एक अमीर बंगाली जमींदार का आवास था। यहां कुछ महत्वपूर्ण प्रतिमाएं और पेंटिंग हैं। सुंदर झूमर, यूरोपियन एंटीक, वेनेटियन ग्लास, पुराने पियानो और चीन के बने नीले गुलदान आपको उस समय के अमीरों की जीवनशैली की झलक देंगे। पारसनाथ जैन मंदिर, १867 में बना यह मंदिर वेनेटियन ग्लास मोजेक, पेरिस के झूमरों और ब्रूसेल्स, सोने का मुलम्मा चढ़ा गुंबद, रंगीन शीशों वाली खिड़कियां और दर्पण लगे खंबों से सजा है। यह रोजाना प्रात: 6.00 बजे से दोपहर तक और सायं 3.00 बजे से 7.00 बजे तक खुलता है। बेलूर मठ, बेलूर मठ रामकृष्ण मिशन का मुख्यालय है, इसकी स्थापना १899 में स्वामी विवेकानंद ने की थी, जो रामकृष्ण के शिष्य थे। यहां १938 में बना मंदिर हिंदु, मुस्लिम और इसाईशैलियों का मिश्रण है। यह अक्तूबर से मार्च केदौरान प्रात: 6.30 बजे से ११.30 बजे तक और सायं 3.30 बजे से 6.00 बजे तक तथा अप्रैल से सितंबर तक प्रात: 6.30 बजे से ११.30 बजे तक और सायं 4.00 बजे से 7.00 बजे तक खुलता है। दक्षिणेश्वर काली मंदिर
दक्षिणेश्वर काली मंदिर.
हुगली नदी के पूर्वी तट पर स्थित यह मां काली का मंदिर है, जहां श्री रामकृष्ण परमहंस एक पुजारी थे और जहां उन्हें सभी धर्मों में एकता लाने की अनुभूति हुई। काली मंदिर सडर स्ट्रीट से 6 कि.मी. दक्षिण में यह शानदार मंदिर कोलकाता की संरक्षक देवी काली को समर्पित है। काली का अर्थ है "काला"। काली की मूर्ति की जिह्वा खून से सनी है और यह नरमुंडों की माला पहने हुए है। काली, भगवान शिव की अर्धांगिनी, पार्वती का ही विनाशक रूप है। पुराने मंदिर के स्थान पर ही वर्तमान मंदिर १809 में बना था। यह प्रात: 3.00 बजे से रात्रि 8.00 बजे तक खुलता है।मदर टेरेसा होम्स इस स्थान की यात्रा आपकी कोलकाता यात्रा को एक नया आयाम देगी। काली मंदिर के निकट स्थित यह स्थान सैंकड़ों बेघरों और "गरीबों में से भी गरीब लोगों" का घर है - जो मदर टेरेसा को उद्धृत करता है। आप अपने अंशदान से जरुरतमंदों की मदद कर सकते हैं। बॉटनिकल गार्डन्स कई एकड़ में फैली हरियाली, पौधों की दुर्लभ प्रजातियां, सुंदर खिले फूल, शांत वातावरण...यहां प्रकृ ति के साथ शाम गुजारने का एक सही मौका है। नदी के पश्चिमी ओर स्थित इस गार्डन में विश्व का दूसरा सबसे बड़ा बरगद का पेड़ है, जो १0,000 वर्ग मीटर में फैला है, इसकी लगभग 420 शाखाएं हैं।