सोमवार, 19 अगस्त 2019

हेमकुंड - गुरु गोविंद सिंह जी की तपोभूमि 👌👌👌

           29 अक्टूबर 2017 को बद्रीनाथ के दर्शन और फोटोग्राफी करने के पश्चात मैं 12 :00 बजे  मै और मेरे पिता जी (सत्येन्द्र कुमार पाठक ) गोविंदघाट पहुचे.  हेमकुंड साहिब जाने के लिए गोविंदघाट होकर की ही जाया जाता है बद्रीनाथ से गोविंद घाट की दूरी 30 किलोमीटर है जोकि जोशीमठ बद्रीनाथ के बीच में है गोविंदघाट बहुत ही सुंदर जगह है और बहुत अच्छे तरीके से बनाया गया है यह  स्थान  अलकनंदा नदी के किनारे हैं जो की बद्रीनाथ जी भी अलकनंदा नदी के किनारे बसा है यहां पर सिख लोगों का बहुत ही सुंदर भव्य गुरुद्वारा बना हुआ है जहां पर हमेशा लंगर की व्यवस्था है और रहने की व्यवस्था है यहां का दृश्य बहुत ही सुंदर मनोरम है और यह स्थल भी हिमालय के गोद में बसा हुआ है तो मैंने यहां पर चाय पीने के पश्चात हेमकुंड के लिए निकल पड़ा हेमकुंड समुद्र तल से लगभग 4632 मीटर की ऊंचाई पर बसा हुआ एक छोटा सा पवित्र स्थल  है यहां जाने के लिए पैदल मार्ग बना हुआ है छोटी गाड़ियां भी नहीं जाती है सिर्फ पैदल और हेलीकॉप्टर और घोड़े के द्वारा जाया जा सकता है यहां से 22 किलोमीटर का ट्रैकिंग का रास्ता हेमकुंड तक का है तो मैंने हेमकुंड जाने के लिए घोड़े का सहारा लिया 2000 में घोड़ा बुक किया जो कि घाघरिया तक मुझे पहुंचाया घाघरिया हेमकुंड से 4 किलोमीटर पहले है यहां पर मै शाम 6:00 बजे पहुंचा घाघरिया आने के क्रम में बहुत ही खूबसूरत झरने पहाड़ वादियां और कल कल करती हुई नदियां का देखने का मौका मिला रात्रि विश्राम लेने के बाद घाघरिया में अगले दिन सुबह 6:00 बजे 1000 में हेमकुंड के लिए घोड़ा बुक कर लिया घाघरिया में भी बहुत सुंदर  गुरुद्वारा बना हुआ है यहां पर भी खाने-पीने रहने और चिकित्सीय सुविधा का उत्तम व्यवस्था है यह भी जगह बहुत ही खूबसूरत और हिमालय की गोद में बसा हुआ एक छोटा सा गांव है और यहां का भी तापमान 6 से 8 डिग्री के बीच में हमेशा रखता है हेमकुंड जाने का घाघरिया से रास्ता है और लोग यही रात्रि विश्राम रहते हैं क्योंकि हेमकुंड में ऑक्सीजन की कमी और अत्यधिक ठंड होने के कारण रात्रि विश्राम नहीं किया जाता है . शाम में हेमकुंड से नीचे घाघरिया पहुंचकर के रात्रि विश्राम करते हैं अगले दिन घोड़े के सहारे हेमकुंड के लिए निकल चला 2 घंटे घोड़े की सवारी करने के बाद हेमकुंड साहिब पहुंचा और यहां पर एक भव्य सरोवर है इस सरोवर में मैंने स्नान किया उसके बाद गुरुद्वारे में जाकर के  30 मिनट तक प्राथना किया  और गुरुद्वारा कमेटी के द्वारा यहां पर खिचड़ी और चाय परोसा जा रहा था तो मैंने भी खिचड़ी खाया और चाय पी कर के हेमकुंड साहिब का भ्रमण  किया यहां पर फोटोग्राफी किया देखा समझा कि कैसे इस स्थल को विकसित किया जा रहा है और किस तरीके से हेमकुंड साहिब गुरुद्वारा का निर्माण किया गया इसी गुरुद्वारे के बगल में लक्ष्मण मंदिर भी बना है जो काफी प्राचीन है इस लक्ष्मण मंदिर का भी मैंने भ्रमण किया और मंदिर के अंदर जाकर  के दर्शन किया तकरीबन 2:00 बजे तक यहां घूमने के बाद घाघरिया के लिए उसी घोड़े से लौटा जिस घोड़े से घाघरिया से हेमकुंड आया था .यह स्थल भी हिमालय के गोद में बसा हुआ है और यहां पर ऑक्सीजन की कमी है जिन्हें दमा और सांस फूलने का बीमारी है उनके लिए यह स्थल कठिनाई भरा है हेमकुंड से  घाघरिया आने के दौरान एक रास्ता मिलती है जो विश्व प्रसिद्ध स्थल फूलों की घाटी की ओर चला जाता है समय के कम रहने के कारण मैंने फूलों की घाटी नहीं जा पाया और घोड़े के सहारे हेमकुंड से घाघरिया तक आ गया 3:00 बजे घाघरिया आ जाने के बाद यहां के लंगर जो गुरुद्वारे में लगता है उस स्थल पर  खाने के पश्चात चाय पिया और थोड़ा विश्राम करने के बाद पैदल गोविंद घाट तक के लिए आने का मन बनाया और घाघरिया से गोविंदघाट की ओर पैदल चल पड़ा काफी मनोरम सुंदर और नदी  कि कल -कल और ,झरने की मधुर आवाज सुनते हुआ 7 :00 बजे शाम में गोविंद घाट पहुंचा गोविंदघाट पहुंचने के पश्चात मैंने गोविंदघाट में बना गुरुद्वारे में रात्रि विश्राम किया रात्रि का लंगर खाया और रात्रि में गोविंदघाट का थोड़ा भ्रमण किया और इसके बाद रात्रि 10:00 गुरद्वारा में सो गया गुरुद्वारा में काफी अच्छा प्रबंध था यहां पर चिकित्सा का भी प्रबंध था तो मैंने डॉक्टर से मिला और पैर में दर्द होने का दवा लिया और दवा भी खाया ताकि अगले दिन मैं सही यात्रा कर सकू मेरा स्वास्थ्य सही रहे गुरुद्वारे में खाने-पीने रहने एवं चिकित्सीय सेवा लेने के लिए किसी भी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जाता है यहां पर इन सारे सुविधाएं मुफ्त में प्रदान किया जाता है अगर व्यक्ति चाहे तो कुछ दान कर सकता है कुछ श्रम कर  सकता है जिससे कि यहां की व्यवस्था सही तरीके और से सुचारू तरीके से चलता रहे.

           नोट -  ( हेमकुंट साहिब चमोली जिला, उत्तराखंड, भारत में स्थित सिखों का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। यह हिमालय में 4632 मीटर (15,200 फुट) की ऊँचाई पर एक बर्फ़ीली झील के किनारे सात पहाड़ों के बीच स्थित है। इन सात पहाड़ों पर निशान साहिब झूलते हैं।  इस तक ऋषिकेश-बद्रीनाथ साँस-रास्ता पर पड़ते गोबिन्दघाट से केवल पैदल चढ़ाई के द्वारा ही पहुँचा जा सकता है। यहाँ गुरुद्वारा श्री हेमकुंट साहिब सुशोभित है। इस स्थान का उल्लेख गुरु गोबिंद सिंह द्वारा रचित दसम ग्रंथ में आता है। इस कारण यह उन लोगों के लिए विशेष महत्व रखता है जो दसम ग्रंथ में विश्वास रखते हैं। हेमकुंट एक संस्कृत नाम है जो हेम ("बर्फ़") और कुंड ("कटोरा") से आया है। दसम ग्रंथ के मुताबिक़ यह वह जगह है जहाँ पाँडु राजो ने योग्य सुधारा था। यहाँ पहले एक मंदिर था जिसका निर्माण भगवान राम के अनुज लक्ष्मण ने करवाया था। सिखों के दसवें गुरु गोबिन्द सिंह ने यहाँ पूजा अर्चना की थी। बाद में इसे गुरूद्वारा धोषित कर दिया गया। इस दर्शनीय तीर्थ में चारों ओर से बर्फ़ की ऊँची चोटियों का प्रतिबिम्ब विशालकाय झील में अत्यन्त मनोरम एवं रोमांच से परिपूर्ण लगता है। इसी झील में हाथी पर्वत और सप्त ऋषि पर्वत श्रृंखलाओं से पानी आता है। एक छोटी जलधारा इस झील से निकलती है जिसे हिमगंगा कहते हैं। झील के किनारे स्थित लक्ष्मण मंदिर भी अत्यन्त दर्शनीय है। अत्याधिक ऊँचाई पर होने के कारण वर्ष में लगभग ७ महीने यहाँ झील बर्फ में जम जाती है। फूलों की घाटी यहाँ का निकटतम पर्यटन स्थल है।

                            
 
        हेमकुंड साहिब गुरुद्वारा उत्तराखंड



पिता जी 










 गुरुद्वारा 


पिता जी ने हेमकुंड में स्नान किया  









पिता जी लछुमन मंदिर में पूजा किया 




हेमकुंड सरोवर 






पिता जी और मै gखिचड़ी