15 अगस्त, 2024 का दिन मेरे और मेरे साथियों के लिए विशेष रूप से यादगार बना। स्वतंत्रता दिवस के इस शुभ अवसर पर, हमने सासाराम की एक रोमांचक यात्रा का आयोजन किया, जिसमें शामिल थे जीविका के कर्मचारी पंचम दंगी, श्रवण कुमार, मधुरंद कुमार, दिलीप कुमार, शशि कुमार, और मेरा छोटा साला सौरव कुमार, जिसे हम प्यार से अंकु कहते हैं। हमारी इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य न केवल स्वतंत्रता दिवस का जश्न मनाना था, बल्कि कैमूर की पहाड़ियों में स्थित विभिन्न प्राकृतिक और धार्मिक स्थलों का आनंद लेना भी था। यात्रा की शुरुआत औरंगाबाद से हुई और हमने इंद्रपुरी बांध, तुतला भवानी मंदिर और जलप्रपात, मंझर कुंड, धुआ कुंड और सीता कुंड जैसे महत्वपूर्ण स्थलों का दौरा किया।हम सभी सुबह 11 बजे औरंगाबाद से सासाराम की ओर रवाना हुए। बरुण ब्लॉक होते हुए हमारा पहला पड़ाव था इंद्रपुरी बांध। इस बांध की भव्यता देखते ही बनती थी। सोन नदी पर बने इस बांध का निर्माण भारत के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था। यह बांध केवल पानी को रोकने का कार्य नहीं करता, बल्कि अरवल, औरंगाबाद, सासाराम, आरा, बक्सर, पटना और भभुआ जिलों के कृषि क्षेत्र को सिंचित करता है। यहां पहुंचकर हमें बांध के निर्माण, उसकी क्षमता और क्षेत्रीय कृषि पर इसके प्रभाव के बारे में विस्तृत जानकारी मिली। इसने हमारे मन में बांध के प्रति और अधिक सम्मान पैदा किया, क्योंकि यह लाखों किसानों की आजीविका का स्रोत है। बांध की ठंडी हवा और शांत पानी का दृश्य मन को शांति प्रदान कर रहा था।
तुतला भवानी मंदिर और जलप्रपात की ओर-
इंद्रपुरी बांध का आनंद लेने के बाद, हमने तुतला भवानी मंदिर और जलप्रपात की ओर प्रस्थान किया। यह स्थान इंद्रपुरी बांध से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। तुतला भवानी मंदिर के दर्शन करते ही हमारे मन में एक अलग ही शांति का अनुभव हुआ। मंदिर की पवित्रता और आस-पास का प्राकृतिक सौंदर्य इस स्थान को और भी खास बनाता है। कैमूर की हरी-भरी पहाड़ियों के बीच स्थित यह मंदिर, न केवल धार्मिक बल्कि पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।
मंदिर के दर्शन के बाद हम तुतला भवानी जलप्रपात की ओर बढ़े। 155 फीट की ऊंचाई से गिरता हुआ यह जलप्रपात प्रकृति की अद्भुत रचना है। इसकी धारा से उठती धुंध और आसपास की हरियाली ने हमारी आत्मा को तृप्त कर दिया। यहां हमने बैठकर लिट्टी चोखा का स्वाद लिया, जो बिहार की विशेष डिश है। इस खाने ने हमारी भूख मिटाई और हमें आगे की यात्रा के लिए ऊर्जा दी। यहां का वातावरण इतना शांतिपूर्ण और सुकून देने वाला था कि हमने इस क्षण को जी भर कर जीने का प्रयास किया।
मंझर कुंड: एक प्राकृतिक सौंदर्य-
तुतला भवानी जलप्रपात का आनंद लेने के बाद, हम मंझर कुंड की ओर रवाना हुए, जो कैमूर की पहाड़ियों में बसा एक और खूबसूरत झरना है। तुतला भवानी से मंझर कुंड की दूरी लगभग 26 किलोमीटर है, और वहां पहुंचने के लिए हमें NH 2 पर स्थित ताराचंडी मंदिर के पास से गुजरना पड़ा। मां ताराचंडी के दर्शन के बाद हमने मंझर कुंड की ओर रुख किया।
मंझर कुंड वास्तव में एक प्राकृतिक आश्चर्य है। इस स्थान की सुंदरता शब्दों में बयां करना मुश्किल है। पानी की ठंडी धाराएं, आसपास की हरियाली और पहाड़ियों की शांति ने हमें पूरी तरह से मोहित कर लिया। हमने यहां स्नान किया और फोटोग्राफी भी की। यहां का पानी इतना साफ था कि हमने कुछ पानी पी भी लिया। इस जलप्रपात की खासियत यह है कि यह न केवल पर्यटकों को आकर्षित करता है, बल्कि स्थानीय लोगों के लिए भी एक प्रमुख स्थल है। हम सभी ने यहां खूब मस्ती की और इस हरी-भरी वादी का आनंद लिया। यहां आकर हमें लगा कि जैसे हम प्रकृति की गोद में कुछ समय के लिए आ बसे हैं।
ताराचंडी मंदिर और वापसी की यात्रा-
मंझर कुंड के आनंद के बाद, हमने शाम 4 बजे पहाड़ी से नीचे उतरने का निर्णय लिया और ताराचंडी मंदिर पहुंचे। यह मंदिर एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है और यहां मां ताराचंडी की पूजा की जाती है। मंदिर की शांति और यहां की दिव्यता ने हमारी आत्मा को शांति प्रदान की। यहां मां के दर्शन कर हमने वापसी का मार्ग पकड़ा। वापसी के दौरान हम NH 2 पर कुछ समय के लिए रुके और भूटा खरीदा। हमने इसे पकाया और इसका आनंद लिया। यह एक सरल और सुखद अनुभव था, जिसने हमारी यात्रा को और भी विशेष बना दिया।
शाम 6 बजे के करीब हम सभी औरंगाबाद लौट आए। हालांकि यह यात्रा केवल कुछ घंटों की थी, लेकिन हमने इस दौरान प्रकृति की गोद में बिताए क्षणों को ताउम्र के लिए सहेज लिया।
निष्कर्ष: प्रकृति के करीब-
यह यात्रा हमारे लिए सिर्फ एक साधारण यात्रा नहीं थी, बल्कि एक ऐसा अनुभव था जिसने हमें प्रकृति के और करीब ला दिया। हमने इस दौरान न केवल प्राकृतिक सुंदरता का आनंद लिया, बल्कि जीवन के कई महत्वपूर्ण सबक भी सीखे। इस यात्रा ने हमें यह सिखाया कि प्रकृति के प्रति प्रेम और सम्मान करना कितना महत्वपूर्ण है। हमने जाना कि कैसे प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करना चाहिए और उन्हें आने वाली पीढ़ियों के लिए सहेज कर रखना चाहिए। इस यात्रा ने हमें यह भी सिखाया कि कैसे सरलता से जीवन को जिया जा सकता है और हर छोटे से छोटे क्षण का आनंद उठाया जा सकता है।
कुल मिलाकर, 15 अगस्त, 2024 की यह यात्रा हमारे जीवन की यादों में हमेशा के लिए बसी रहेगी।
इन्द्रपुरी बराज |
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