शनिवार, 17 अगस्त 2024

🌄 स्वतंत्रता दिवस पर कैमूर की गोद में: एक रोमांचक यात्रा वृतांत 🌄

  15 अगस्त 2024—भारत का 78वां स्वतंत्रता दिवस, देशभर में देशभक्ति का जश्न और तिरंगे की शान हर दिल में बस रही थी। लेकिन मेरे और मेरे साथियों के लिए यह दिन और भी खास बन गया, क्योंकि हमने इस दिन को केवल ध्वजारोहण तक सीमित न रखते हुए, प्रकृति की गोद में बिताने का निर्णय लिया। इस रोमांचकारी यात्रा में मेरे साथ थे जीविका के कर्मठ साथी पंचम दंगी, श्रवण कुमार, मधुरंद कुमार, दिलीप कुमार, शशि कुमार, और मेरा छोटा साला सौरव कुमार, जिसे हम सब प्यार से "अंकु" कहते हैं।

हमारी मंज़िल थी सासाराम और आसपास के प्राकृतिक और धार्मिक स्थल—इंद्रपुरी बांध, तुतला भवानी मंदिर और जलप्रपात, मंझर कुंड, धुआ कुंड, सीता कुंड, और अंत में ताराचंडी मंदिर। इस यात्रा का उद्देश्य सिर्फ घूमना नहीं था, बल्कि अपने व्यस्त जीवन से कुछ क्षण चुराकर प्राकृतिक शांति में खुद को फिर से तलाशना था।

🏞️ पहला पड़ाव: इंद्रपुरी बांध की भव्यता

सुबह के 11 बजे हम सभी औरंगाबाद से रवाना हुए और बरुण ब्लॉक होते हुए सबसे पहले पहुंचे इंद्रपुरी बांध। सोन नदी पर बना यह विशाल बांध हमें दूर से ही अपनी भव्यता से आकर्षित कर रहा था। जब हम उसके करीब पहुंचे, तो उसकी विशाल दीवारें, बहता पानी और ठंडी हवा ने मन को सुकून से भर दिया।

यह सिर्फ एक बांध नहीं था, बल्कि एक जीवनदायिनी धरोहर। हमें जानकारी मिली कि यह बांध अरवल, औरंगाबाद, सासाराम, आरा, बक्सर, पटना और भभुआ जिलों के हजारों किसानों के खेतों को सिंचाई के लिए जल प्रदान करता है। बांध की तकनीकी संरचना और इसके सामाजिक महत्व को समझना हमारे लिए एक शैक्षिक अनुभव था। यह एक ऐसा स्थान था जहां आधुनिकता और प्रकृति का सुंदर संगम देखने को मिला।

🌿 तुतला भवानी मंदिर और जलप्रपात: आस्था और प्राकृतिक सौंदर्य

इंद्रपुरी बांध से निकलकर हमारा अगला पड़ाव था तुतला भवानी मंदिर और जलप्रपात। यह स्थान लगभग 20 किलोमीटर दूर था, लेकिन रास्ते में कैमूर की हरी-भरी पहाड़ियों ने यात्रा को मनोहारी बना दिया। जैसे ही हमने मंदिर के प्रांगण में प्रवेश किया, एक आध्यात्मिक शांति का अनुभव हुआ।


तुतला भवानी मंदिर के दर्शन के बाद हम पहुंचे जलप्रपात के पास। 155 फीट ऊंचाई से गिरता हुआ जल, उसकी गर्जना, और आसपास फैली हरियाली किसी स्वर्गिक दृश्य से कम नहीं था। जल की ठंडी बौछार और उसकी धुंध ने मन और तन दोनों को ठंडक दी।


हमने वहीं बैठकर लिट्टी-चोखा का स्वाद लिया—बिहार की इस पारंपरिक डिश ने इस पावन स्थल पर भोजन को भी एक पवित्र अनुभव बना दिया। यह एक ऐसा क्षण था जहां भोजन, दृश्य और भावनाएं एक साथ मिलकर आत्मा को तृप्त कर रही थीं।

💧 मंझर कुंड: प्रकृति का अजूबा

तुतला भवानी से हमारी यात्रा आगे बढ़ी मंझर कुंड की ओर, जो लगभग 26 किलोमीटर दूर था। रास्ते में हमने NH 2 पर स्थित प्रसिद्ध ताराचंडी मंदिर के दर्शन भी किए और मां से सुखद यात्रा के लिए आशीर्वाद लिया।

मंझर कुंड पहुंचते ही एक अलग ही दुनिया में प्रवेश का अनुभव हुआ। वहां की हरियाली, ठंडा और साफ पानी, और चारों ओर फैली शांति ने हमें पूरी तरह मोहित कर लिया। हमने वहां स्नान किया, खूब फोटोग्राफी की, और प्रकृति से जुड़ाव को महसूस किया।

वहां का पानी इतना साफ और ताजा था कि हमने कुछ पानी पी भी लिया—यह एक साहसिक और ताजगी से भरा अनुभव था। यहां हमने बच्चों जैसी मस्ती की, पत्थरों पर बैठकर बातें कीं, और पहाड़ियों की गोद में कुछ पल के लिए खो गए।

🙏 ताराचंडी मंदिर और सरल सुख

शाम करीब 4 बजे हम पहाड़ी से नीचे उतरे और ताराचंडी मंदिर में पहुंचे। मां ताराचंडी के इस मंदिर में एक विशेष आध्यात्मिक ऊर्जा थी। मां के दर्शन के बाद हम NH 2 पर कुछ समय रुके और वहां से भूटा (भुना हुआ मक्का) खरीदा। उसे वहीं पकाया और गर्मागर्म खाया—यह एक छोटा सा लेकिन बेहद आनंददायक अनुभव था। उस भूटे में जैसे प्रकृति की मिठास और ग्रामीण जीवन की सरलता छुपी थी।

🏠 वापसी और आत्मा को मिली शांति

शाम 6 बजे हम औरंगाबाद वापस लौटे। हमारी यात्रा पूरी हो चुकी थी, लेकिन मन अब भी उन झरनों की आवाज, पहाड़ियों की हरियाली और मंदिरों की शांति में रमा हुआ था। यह यात्रा हमारे लिए सिर्फ एक घूमने का कार्यक्रम नहीं थी, बल्कि जीवन को समझने और प्रकृति के करीब जाने का एक अवसर थी।

✨ निष्कर्ष: प्रकृति और जीवन से जुड़ाव

15 अगस्त 2024 की यह यात्रा हमारे जीवन की अमूल्य स्मृतियों में शामिल हो गई। हमने इस दिन देश की स्वतंत्रता का जश्न केवल झंडा फहराकर नहीं, बल्कि प्रकृति के अद्भुत सौंदर्य और हमारी सांस्कृतिक विरासत को महसूस कर मनाया।

इस यात्रा ने हमें सिखाया कि—

प्रकृति का सम्मान करना कितना जरूरी है।

सादगी में ही असली खुशी छुपी होती है।

साथी अच्छे हों तो हर यात्रा विशेष बन जाती है।

बिना बड़ी तैयारियों के भी छोटी यात्राएं जीवन को नया रंग दे सकती हैं।

कुल मिलाकर, यह एक ऐसी यात्रा थी जिसने हमारे मन को शांति, जीवन को अर्थ और रिश्तों को गहराई दी। हम सभी ने तय किया कि ऐसी यात्राएं हमें समय-समय पर करनी चाहिए, ताकि हम भागदौड़ भरे जीवन में खुद को खोने न दें।


🌿 "कभी-कभी ज़रूरी होता है पहाड़ों की चुप्पी में अपनी आवाज़ ढूंढना और झरनों की धारा में बह कर खुद को दोबारा पाना।" 🌿

 




इन्द्रपुरी बराज 













                                                                 तुतला भवानी जलप्रपात 




















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