गुरुवार, 24 अक्टूबर 2013

केदारनाथ यात्रा: प्रकृति की गोद में आध्यात्मिक यात्रा...

     साल 2013, एक ऐसा साल जिसने उत्तराखंड के केदारनाथ धाम को तबाह कर दिया था। प्राकृतिक आपदा ने इस पवित्र स्थल को तबाह कर दिया था, लेकिन फिर भी आस्था का यह केंद्र लोगों के दिलों में हमेशा जीवंत रहा। इस यात्रा वृतांत के माध्यम से मैं अपने केदारनाथ यात्रा के अनुभव को आपके साथ साझा करना चाहता हूं। यह यात्रा मेरे लिए न केवल धार्मिक यात्रा थी बल्कि एक आत्मिक अनुभव भी था।

9 अक्टूबर 2013 को मैंने बद्रीनाथ से अपनी यात्रा शुरू की। बद्रीनाथ के नजदीक स्थित तप्त कुंड में स्नान करने के बाद मैंने बद्रीनाथ मंदिर में दर्शन किए। बद्रीनाथ से जोशीमठ के लिए रवाना होने के दौरान मुझे जोशीमठ जाने वाली बस में जगह मिल गई। रास्ते में गोविंदघाट में लैंडस्लाइड के कारण हमें एक घंटे तक रुकना पड़ा।

जोशीमठ से चमोली की ओर

जोशीमठ पहुंचने के बाद मैंने तुरंत चमोली जाने वाली बस पकड़ी। चमोली उत्तराखंड का एक सुंदर जिला है जो अलकनंदा नदी के किनारे बसा हुआ है। चमोली से केदारनाथ जाने के लिए दो रास्ते हैं, एक चोपता-ऊखीमठ होते हुए और दूसरा रूद्रप्रयाग-अगस्त्यमुनि-गुप्तकाशी होते हुए। मैंने रूद्रप्रयाग के रास्ते जाने का फैसला किया।

गुप्तकाशी की ओर प्रस्थान

चमोली से रूद्रप्रयाग का रास्ता लैंडस्लाइड के कारण बंद था। मुझे गोपेश्वर से गुप्तकाशी जाने के लिए एक निजी गाड़ी किराए पर लेनी पड़ी। गोपेश्वर से गुप्तकाशी का रास्ता बेहद खतरनाक और सुनसान था। रास्ते में चोपता आया, जहां से तुंगनाथ के लिए पैदल यात्रा की जाती है। चोपता से मैंने गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ, चौखम्बा, नंदादेवी आदि हिमालय की चोटियों को देखा।

गुप्तकाशी में औपचारिकताएं पूरी करना

गुप्तकाशी पहुंचकर मैंने सबसे पहले मेडिकल फिटनेस प्रमाण पत्र और केदारनाथ यात्रा के लिए अनुमति प्रमाण पत्र बनवाया। अगले दिन सुबह मैंने गुप्तकाशी से सोनप्रयाग के लिए रवाना हुआ।

सोनप्रयाग से गौरीकुंड तक की पैदल यात्रा

सोनप्रयाग से गौरीकुंड तक का रास्ता पैदल तय करना पड़ता है। यह रास्ता बेहद खतरनाक और पथरीला है। गौरीकुंड 2013 की त्रासदी में पूरी तरह से तबाह हो चुका था। यहां पर बहुत कम ही लॉज और दुकानें बची हुई थीं।

गौरीकुंड से केदारनाथ तक की यात्रा

गौरीकुंड से केदारनाथ तक का रास्ता भी बेहद खतरनाक था। रास्ते में मुझे कई बार मुश्किलों का सामना करना पड़ा। केदारनाथ पहुंचकर मैं भावुक हो गया। मंदिर पूरी तरह से सुरक्षित था, लेकिन आसपास का क्षेत्र पूरी तरह से तबाह हो चुका था।

केदारनाथ की विभीषिका

केदारनाथ की विभीषिका देखकर मेरा दिल दहल गया। मंदिर के आसपास मलबे के ढेर लगे हुए थे। लोगों के मकान पूरी तरह से तबाह हो चुके थे। यह नजारा बहुत ही दर्दनाक था।

केदारनाथ से वापसी

केदारनाथ से वापसी का सफर भी उतना ही कठिन था जितना कि आने का सफर था। मुझे कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। अंततः मैं गुप्तकाशी पहुंच गया। गुप्तकाशी से मैंने कोटद्वार के लिए रवाना हुआ। कोटद्वार से निजामाबाद और फिर बनारस होते हुए मैं अपने घर पहुंच गया।

निष्कर्ष

यह यात्रा मेरे लिए एक अविस्मरणीय अनुभव था। इस यात्रा ने मुझे जीवन के कई सत्यों से रूबरू कराया। मैंने सीखा कि प्रकृति की शक्ति कितनी भयानक हो सकती है। मैंने यह भी सीखा कि आस्था की शक्ति कितनी मजबूत होती है। केदारनाथ की यात्रा ने मुझे जीवन के मूल्यों को समझने में मदद की।

  

मै धुमन्‍तु बाबा जय सिता राम बाबा एंव राजस्‍थानी बाबा 

केदारनाथ जाने का पैदल राश्‍त 


केदारनाथ धाटी में बहता हुआ एक मनमोहक झरना 

कैप्शन जोड़ें

इस स्‍थल पर गौरी कुण्‍ड हुआ करता था जो अब समाप्‍त हो गया यही से बाबा के भक्‍त लोग स्‍नान कर के मन्दिर को जाते थे 



यहां पर सैकडो लाशो को जलाया गया था 

मन्दिर का नजारा 16 जुन2013  के बाद का 




रात इसी कैम्‍प में गुजारना पडा था 

54 किलो मिटर पैदल चलने के बाद मेरा जुता का नजारा 

केदारधाटी का नजारा 

बिच्‍छु धास इसे छुने के बिच्‍छु के डक मारने जैसा जलन होता है यह केदारधाटी में अधिक पाया जाता है 

महाप्रलय के पहले का चित्र

सोनप्रयाग में संगम 

चोपता में धास का मैदान उतराखण्‍ड में धास के मैदान को बुग्‍याल बोला जाता है 

चोपता से गुप्‍तकाशी का सुनसान राश्‍ता 

चोपता यही से 4 कि लो मिटर पैदल चल कर चन्‍द्रशिला चोटी एंव तुंगनाथ को जाया जाता था इसी स्‍थल से उतराखण्‍ड में स्थित सारी चोटी साफ नजर आती है 



सोनप्रयाग में तबाही का मंजर 





यह वायुयान 16 जुन के त्रासदी में तबाह हो गया इसे 4 व्‍यक्ति का मौत हो गया था 






केदारनाथ से 2 कि मी दुरी पर बना यात्रीयों के लिए कैम्‍प 


केदारनाथ मन्दिर के समिप त्रासदी का चित्र





मन्दिर के पिछे जो शिला है वह पहले यहां नही था 16 जुन के त्रासदी में यह शिला आकर मन्दिर के समिप रूक गया जिससे मन्दिर सुरक्षित हो गया इस शिला का नाम दिव्‍य शिला रखा गया है 







बुराश का पौधा इस में फुल खिलते है मई माह में यह उतराखण्‍ड का राजकीय फुल है 

म‍न्‍दाकनी नदी पर बना आपातकालिन पुल इसे पार कर के जाना पडता है केदारनाथ मन्दिर के समिप 

यहां पर रामबाडा नामक स्‍थल था इस स्‍थल पर 77 दुकानं एंव लांज थे जो त्रासदी में बह गए अब यहां पर कुछ नही बचा है