दिनांक 9 अक्टुबर
2013 को सुबह 6 बजे उठ कर ब्रदीनाथ के नजदीक बने तप्त कुण्ड में स्नान कर के
श्रीबद्रीनाथ जी के मन्दिर में दर्शन किया एंव 7 बजें बद्रीनाथ के बस स्टैण्ड
में जा कर जोशीमठ तक के लिए सुमो गाडी पर जा कर बैठ गया। गाडी खुलने में कुछ समय
लग रहा था तो मै बस स्टैण्ड के पास ही बने एक ढाबा में गर्मा गर्म 2 आलु के
पराठे को खाया इतने में गाडी को खुलने का समय हो गया। जब गाडी गोविन्दधाट पहुची
तो यहां पर लैण्ड स्लाइड हो गया था जिसे सीमा संडक संगठन के लोग राश्ते को साफ
करने में लगे हुए थे आप को बतला दु की उतराखण्ड के पहाडी क्षेत्रों में कभी भी
लैण्ड स्लाइड हो जाती है। 1 धंटे तक रूकने के बाद सडक मार्ग साफ हुआ । 10 बजें
जोशीमठ पहुचा जैसे ही जोशीमठ में पहुचा तो यहां से चमोली के लिए गाडी लगी हूयी थी
मैने फटा फट चमोली जाने वाली गाडी पर बैठा और यह गाडी तुरन्त चमोली के लिए खुल
गयी। जोशीमठ से चमोली पहुचने में 4 धंटे लग गए । चमोली 2 बजें पहुचा यहॉ पहुच कर
चाय पानी लिया । चमोली उतराखण्ड का जिला जिसका मुख्यालय गोपेश्वर में है।
गोपेश्वर चमोली से 13 कि मी की दुरी पर है । चमोली अलकनन्दा नदी के किनारे पर बसा
हुआ एक सुन्दर स्थान है। चमोली से एक राश्ता चोपता ऊखीमठ होते हुए केदारनाथ जाती है वही दुसरा
राश्ता रूद्रप्रयाग अगस्तममुनी गुप्तकाशी
होते हुए केदारनाथ जाती है। अब मुझे यहां से जाना था केदारनाथ । वैसे तो मै अपनी
योजना बना कर चला था की इस यात्रा में मै बद्रीनाथ हेमकुण्ड और औली जाउगा परन्तु
8 तारीख को मेरे मन में विचार आया की क्यो ना केदारनाथ जाउ मन हेमकुण्ड जाने को
नही कर रहा था तो मैन सोने के पहले निर्णय लिया की 9 तारिख को केदारनाथ ही जाउगा।
चमोली से रूद्रप्रयाग 70 कि मी है । रूद्रपयाग से गुप्तकाशी तक शाम 5 बजे तक
गाडियां मिल जाती है पता चला की रूद्रपयाग से गुप्तकाशी के राश्ते में लैण्डस्लाइड
हो जाने के कारण गाडी गुप्तकाशी नही जा पा रही है तो मैने चमोली से गोपेश्पर
के राश्ते गुपतकाशी को जाने का निर्णय लिया और चल दिया चमोली से गोपेश्वर की और
गोपेश्वर में मै 4 बजें पहुचां यहा पहुचने के बाद पता चला की गुपतकाशी के लिए
पुरे दिन में एक ही गाडी जाती है वह 12 बजे दिन में जिसका नाम भुखहडताल है अब
तो अगली गाडी अगले दिन 12 बजें मिलेंगी तो
मैन एक गाडी वाले से बात किया गाडीवाले ने गोपेश्वर से गुप्तकाशी तक जाने के लिए
3500 माग रहा था अब तो मुश्किल में मै पड गया मगर करता भी तो क्या करता 3000 रू
में बात पक्की हुयी और चल पडा चमोली से गुप्तकाशी की और । चमोली से गुप्तकाशी
78 कि मी की दुरी पर है । यह राश्ता बेहद ही खतरनाक एव सुनसान है इस राश्ते से
कुछ ही गाडीयां गुजरती है । राश्ते में चोपता मिला जहां पर मै 2012 में भी जा
चुका था चोपता से ही पैदल तुगनाथ के लिए जाया जाता है यहां पर भगवान शिव का भव्य
मन्दिर बना हुआ है यहां दिन में हिमालय की उच्च चोटियां में से गंगोत्री
यमुनोत्री केदारनाथ की चोटी चौखम्भा निलंकंठ स्वगोरोहणी नन्दा देवी साफ साफ
दिखाई देती है। चोपता में चाय पानी के बाद गुपतकाशी के लिए निकल पडा । यह राश्ता
बेहद ही आनन्ददाय है राश्ते में केदारनाथ अभ्यारण पडता है कई प्रकार के ऊचे ऊचे
पेड मिलते है। जिनमें देवदार चिर इत्यादी है। इस तरह शाम 7 बजें गुप्तकाशी पहुच
कर 200 रू में एक कमरा बुक करवा । कमरा बुक कराने के बाद जानकारी लेने चल दिया की
केदारनाथ जाने के लिए कैसा राश्ता है इसकी जानकारी लेने के लिए अपने कमरे के
नजदीक में ही एक ढाबा में गया वहां पर खाना खाया और पता लगा की केदारनाथ जाने के
लिए सबसे पहले गुप्तकाशी में गढवाल मण्डल विकास गिगम के कार्यालय से मेंडिकल
फिटनेस प्रमाण पत्र एंव केदारनाथ यात्रा के लिए अनुमति प्रमाण पत्र बनाना पडेगा तब
जा कर यात्रा प्रारम्भ किया जा सकेंगा। यात्रा के लिए सोनप्रयाग से पैदल यात्रा
27 कि मी तक का करना होगा राश्ता बेहद ही खतरनाक और चढाई वाला है। 9 अक्टुबर को गुप्तकाशी में भिड बिलकुल भी
नही थी मै जिस होटल में ठहरा था उस होटल में 20 कमरे थे जिस में मै मात्र मेरे
द्वारा ही 1 कमरा किराये पर लगा हुआ था । मैन 10 अक्टुबर को सुबह 7 बजें उठा और
झटपट स्नान कर के तैयार हो गया । कमरे से बाहर जा कर सबसे पहले चाय और बिस्कुट
का नाश्ता किया इसके बाद गढवाल मण्डल विकास निगम के कार्यालय में गया वहां पर
जाने के बाद पता लगा की गढवाल मण्डल विकास निगम के कर्मचारी 10 बजें आएगे तब ही
जा कर मेरा मेडिकल प्रमाण पत्र एंव केदारनाथ यात्रा करने के लिए प्रमाण पत्र बनेगा
। तो मैने गुप्तकाशी में ही लोगों से बात
चित करते हुए 10 बजा दिया इसके बाद गढवाल मण्डल विकास निगम के कार्यालय में गया
वहां पर मात्र मै और दो और केदारनाथ यात्रा के लिए लोग पहुचे हुए था जिनमें एक
आनध्र प्रदेश के जय सिता राम बाबा एंव एक राजस्थानी बाबा पहुचे हुए थे 11 बजें हम
तिनों का मेडिकल जांच हुआ इस जांच के आधार पर केदारनाथ यात्रा के लिए प्रमाण पत्र
बन गया । अब हमतिनों गुप्तकाशी से सोनप्रयाग के लिए गाडी पकड लिया और पहुच गए
सोनप्रयोग । 16 जुन के त्रासदी के बाद अब गाडी सोनप्रयाग तक ही पहुच पाती है पहले
गौरीकुण्ड तक गाडीयां जाया करती थी त्रासदी में गौरीकुण्ड से सोनप्रयाग तक के
पुरा सडक पानी में बह गया है। सोनप्रयाग में 1 बजे पहुचा यहां पर भयानक त्रासदी को देखकर मन विचलित हो गया मै
जब 2012 में केदारनाथ आया था तो इस स्थान पर सैकडो लॉजे और दुकाने थी अब यहां पर
4 से 5 दुकाने और लॉजे बची हुयी थी यहां पर हमारा प्रमाण पत्र का जांच किया गया और
आगे की यात्रा का अनुमति प्रदान हुआ। यहां से सिधे खडी चढाई है यहां से हम तिनों
यानी जय सिताराम बाबा राजस्थानी बाबा और मै धुमनतु बाबा चल दिए पैदल गौरी कुण्ड
के तरुफ शाम 6 बजें गौरीकुण्ड पहुचा । सोनप्रयाग से गौरीकुण्ड का राश्त पैदल 6
कि मी है बेहद ही खतरनाक एंव पथरीली न जाने कब पहाड से पत्थर निचे गिर जाए। गौरी
कुण्ड 16 जुन के त्रासदी में पुरी तरह से तबाह हो चुका एक स्थान है यहां पर भी
सैकडो लॉज एंव दुकाने थी अब सिर्फ यहां पर भी 10 से 15 के करीब लॉजे बची हुयी हे
जो पुरी तरह से बन्द था यहां पर गढवाल मण्डल विकास निगम का एक होटल है जहां पर
हम तिनों बाबाओ ने रात्री विश्राम किया और खाना भी खाया । अगले दिन 11 अक्टुबर को
सुबह 6 बजें उठ कर स्नान ध्यान किया और चाय बिस्कुट खाया और हम तिनों निकल पडे
केदारनाथ के लिए यहां सं केदारनाथ की दुरी 18 कि मी की है पहले यहां से दुरी
14 की थी । गौरीकुण्ड से केदारनाथ तक के
जाने के राश्ता बेहद ही खतरनाक हो गया है। मेरा सोच था की आज ही के दिन केदारनाथ
मन्दिर में जा कर शाम तक गौरी कुण्ड लौट आउगा क्योंकि 12 तारीख को हरिद्वार से
रात्री 12 बजे मेंरा पटना को लौटने का रिर्जवेशन था इस लिए मेरा पाव तेज गती से चल रहा था। परन्तु
ईश्वर को कुछ ओर ही मंजुर था पैदल मार्ग अच्छा नही होने के कारण और ऊची चढाइ के
कारण मै केदारनाथ में शाम 5 बजें पहुचां मै काफी थक चुका था वहां का नजरा बेहद ही
दर्दनाक एंव विचित्र था क्योंकि मै केदारनाथ में 2012 के अक्टुबर माह में यात्रा
कर चुका था इस लिए मै पहले का केदारनाथ धाटी एंव 2013 का केदारनाथ धाटी का तुलना
मन ही मन कर रहा था । सरकारी प्रयास से तो केदारनाथ मन्दिर में 5 अक्टुबर से ही
पुजा पाठ शुरू कर दिया गया लेकिन अभी भी मलबा और नरकंकाल बिखरे पडे हुए थे जिसकी
स्थिति भयावह थी । सरकारी आंकडे तो कहते है की यहां पर हजारो की संख्या में लोग
मरे है परन्तु यहां के स्थानीय निवासीयों के अनुशार यहां पर केदारधाटी में लाखों
लोग मरे ओर हजारो लोगों का जीविका का साधन बर्बाद हो गया । यहां पर बने 125 लांज
एंव होटल सैकडों दुकाने तबाही हो चुके थे सारा लांज एंव होटल एवं दुकाने मलबे में
बदले चुके थे ओर इन मलबों में अभी भी सैकडो लाशें दबी हुयी थी जिसको दुर्गध आ रहा
था । यदी कुद बचा हुआ था तो वह सिर्फ केदारनाथ जी का भव्य मन्दिर । इस मन्दिर के
बचने में एक बडी शिला का योगदान है । यहां के स्थानीय निवासीयों का कहना है की
यहां पाप बहुत बढ गया था यह स्थल तपभूमि के नाम से जाना जाता है यहां पर लोग तपस्या
करने के लिए आते थे परन्तु आवागवन के साधन एंव रहने खाने पिने के साधन उपलब्ध
होने के कारण लोग यहां पर ज्यादा आने तो लगे और रोजगार का भी साधन उपलब्ध होने
लगे लकिन अब यहां पर लोग भक्ति भाव से कम तपस्या के ख्याल से कम और मस्ती करने
हनीमुन मनाने एंव पिकनिक मनाने के लिए जयादा
आने लगे । यहां के होटलो में मांस और शराब बिकने भी लगे थे जिस कारण भोले
नाथ ने अपनी तिसरी आंख कर कर गलत तरिक से किए गए
आचारण को एक बार में तबाह कर दिया ऐसा इस लिए हुआ की यहां पाप बढ गया था।
वही वैज्ञानिक सोच वाले लोगों का कहना है की अक्सर यहां बारिश इतनी हुआ करती थी
मगर कभी इतना तबाही नही हुआ । इस तबाही के कारण में उन्होने बतलाया की 16 जुन को
बारिश तो बहुत जयादा हुयी ही साथ ही साथ यह बारिश केदारनाथ से 3 कि मी आगे बने
केदारताल एंव गांधीसरोवर में इतनी बारीश हयी की यह तबला पुरी तरह से भर गया और
सुमेरू पर्वत पर बना ग्लेशिर टुटने लगा जिससे पानी की मात्रा बढ गयी । गांधी
सरोवर एंव केदारताल का मुहाना टुट गया जिससे कारण अचानक पानी का मात्र बढ गया और
पानी के राश्ते में जो भी आया उसे बहा कर पानी चल दिया। मन्दाकनी नदी का उदगमन
स्थल भी केदारनाथ के पास से ही है। मन्दिर में शाम 6 बजें आरती शुरू किया गया वहां पर मात्र
पुजारी जी के अलावा मात्र 3 ही व्यक्ति उपस्थित हुए । आज यह नदी भयावह दिख रही है। यह सब जानकारी
होने के बाद केदारनाथ से 2 कि मी दुरी पर बना एन डी आर एफ के द्वारा कैम्प में
रात्री विश्राम के लिए रूका यहां पर मुफत में चाय और खाना एंव ठहरने के लिए टेन्ट
में लगा एक बेड मिल गया। रात्री में जब मै सो रहा था तब जोरदार बारिश शुरू हो गयी
जिसके कारण मै थोडा डर गया मुझे लगने लगा की कही 16 जुन के हादसे वाला धटना फिर ना
शुरू हो जाए मै फिर सोचने लगा की यदी मरना ही होगा तो मरूगा ही मौत को कौन रोक
सकता हे ।हमारे यहां एक कहावत है यदी किश्यमत खराब होगी तो आप यदी हाथी पर बैठ कर
भी सवारी करेंगें तो कुत्ता और को उछल कर काट ही लेगा। तो मैने भी ऐसा ही सोचा की
जो होगा देखा जाएगा। रात बित गयी जब मै सुबह 6 बजें उठ कर टेन्ट से बाहर निकला तो
नजरा ही कुछ और था सारे ऊची चोटीयों पर बर्फ जमें हुए दिखाई दे रहे थे बेहद ही
खुबसुरत नजरा था पहाडो एंव केदारनाथ धाटी का देख कर मन मुग्ध हो गया। मैने फटा
फट अपना बैग पैक किया और जुते पहने एन डी आर एफ के लोगों के पास गया और चाय बिसकूट
लिया और निकल पडा गौर कुण्ड की ओर । उस रात सिर्फ यात्री में मै ही टेन्ट में
ठहरा था बाकी 5 से 7 लोग एन डी आर एफ वाले थे । 12 तारीख को मै सुबह 6 बजें
केदारनाथ से 2 कि मी पहले बना लेमचुंग स्थल से निकल पडा क्यों की मै सोच रहा था
की आज किसी भी हालत में मुझे 12 बजें तक हरिद्वार पहुचना है इस कारण मै थोडा राश्ते
में रिस्क भी लेते हुए चल रहा था बनाये हुए राश्ते को छोड कर टुटी फुटी राश्ते
को अपना रहा था जिससे दुरी कम हो और मै अपने नियत समय पर हरिद्वार पहुच पाऊ मगर
किश्यम को कुछ और ही मंजुर था 27 कि मी चलने के बाद मै सोनप्रयाग में शाम 4 बजें
पहुचा यहां पर किसी भी प्रकार का आवागमन की सुविधा मुझे गुप्तकाशी या रूद्रप्रयाग
तक नही मिला । अनतम में यहां से 5 व्यक्ति ने मिल कर 1500 रू में एक एम्बेसडर
कार किराये पर लिया वह भी गुप्तकाशी तक । सोनप्रयाग से गुप्तकाशी की दुरी मात्र
30 कि मी है । इस तरह शाम 6 बजे गुपतकाशी पहुचा यहां पहुच कर पता लगाया की क्या
यहां से अभी रूद्रप्रयाग या हरिद्वार तक की गाडी अभी मिलेगी लेकिन पता चल गया यहां
से अब अगल दिन ही गाडी मिलेगी यदी आप को हरिद्वार जाना हे तो यहां से रिर्जव गाडी
करना होगा जिसका किमत 7000 रू के करीब होगा मै सोचने लगा की क्या गाउी रिर्जव करू
या ना कर तब ही मेरे मन में ख्याल आया की गुपतकाशी से हरिद्वार का किराया सामान्यत;
300 रू है यदी सात हजार रूपये देकर ही जाना हे तो भारतीय रेल को दुगा और ए सी में
सवारी करूगा । मैने अपना प्लान बदला और अफसोस करते हुए एक कमरा 200 रू में बुक
कराया । आज के दिन मेंरा कुंभ एकसप्रेस में रिर्जेवेश्न था जो 450 रू का वह
रिर्जवेशन तो गया ही गया साथ में मेरा 450 रू भी गया। जब रात में खाना खा रहा था
तो टेलिविजन से पता चला की बंगाल की खाडी में एक बडा तुफान उठा जिसे पाइलिन नाम
दिया गया है इससे ओडिसा एंव आन्ध्र प्रदेश में बहुत बडी
जान माल की क्षति
होने की सम्भावना है इस पाइलिन तुफान से बिहार बंगाल झारखण्ड उतरप्रदेश मध्यप्रदेश
छतिसगढ में में काफी नुकसान होने की समभावना है। इस समाचार को जान कर मन में काफी
दुख हुआ की हमारे देश पर क्या हो गया है। एक तरफ हम भारतीय आतंकवाद नक्सलवाद और
चीन एंव पाकिस्तान से परेशान है वही मौसम से भी हमारा देश परेशान अभी हाल ही में
केदारनाथ में तबाही हुआ और अब पाईलिन से हमारे देश के लोगो का परेशानी बढेने वाली
है।
यह सोचते सोचते मै
सो गया अगले दिन 13 तारीख को 7 बजें उठा और फटा फट तैयार हो गया गुप्तकाशी में
चाय की दुकान में जा कर चाय पिया और निकलपडा रूद्रपयाग की ओर। गुप्तकाशी से
रूद्रपयाग का राश्त बिल्कुल खराब हो गयी है यह राश्त भी बाढ के कारण तबाह हो
गया है इस राश्त से चलते हुए 10 बजें गुप्तकाशी को पहुचा । मेरा जुता पैदल चलने
के कारण फट चुका था तो मैने सबसे पहल अपने जुते को सही करवाया और सोचने लगा की अब
तो मेरा रिर्जवेशन भी नही है और पटना या गया तक जाना भी करीब रेलगाडी का 20 धंटे
का सफर है । तब ही मेरे मन में विचार आया की क्यो ना रूद्रप्रयाग से पौडी होते
हुए कोटद्वार तक जाउ कोटद्वार से निजामाबाद तक जाऊ । कोटद्वार में छोटा सा रेलवे
स्टेशन है यहां से प्रत्येक आधे धंटे में निजामाबाद के लिए रेलगाडी मिलती है
यहां से निजामाबाद की दुरी 25 कि मी है। तो मैने अब ठान लिया की अब मै देवप्रयाग
के राश्ते से ना होकर पौडी के राश्ते से ही जाउगा । लोगो से सुना भी था की पौडी
काफी ऊचाई पर बसा एक उतराखण्ड का जिला है यह करीबन 1900 मिटर की ऊचाइ्र पर बसा
हुआ है यहां से उतराखण्ड की सबसे ऊची चोटीयों में गंगोत्री यमुनोत्री सुमेरू
निलकंठ चौखम्भ नन्दादेवी साफ साफ दिखाइ् देती है इस तरह का दूश्य उतराखण्ड के
दो स्थानो से ही देखा जा सकता है वह एक तो चोपता के पास तुगनाथ है यहां से काफी
बेहतर से देखा जा सकता है और दुसरी पौडी हे। तो मैने रूद्रप्रयाग से पौडी जिले के
श्रीनगर तक के लिए गाडी पकड लिया और तकरीबन 12 बजें पहुच गया श्रीनगर स्थल पर
यहां पर एक बेहद ही सुन्दर बाजार है यही पर 1000 मेंगावाट का पन बिजली परियोजना
पर कार्य भी चल रहा है और एक बेहद ही खुबसुरत महाविधालय भी है। यहां पर का स्थानीय
मिठाई खाया और खाना भी खाया । खाना खा पीकर गाडी पकड लिया पौडी के लिए श्रीनगर से
पौडी के लिए सिधी चढाई है करीबन 1 बजें पौडी पहुचा यहां से बेहद ही खुबसुरत नजरा
दिखता ऊची ऊची चोटीयों का । यहां से गाडी
पकडी और थके होने के कारण मै गाडी में ही सो गया और तकरीबन 5 बजें कोटद्वार पहुच
गया । कोटद्वार में नजिमाबाद के लिए पैसेजर गाडी लगी हुयी तो मैने जल्दी जल्दी
टिक्ट कटवाया और गाडी में बैठ गया थोडी देर में गाउी नजिमाबाद पहुची वहां पता चला
की बनारस के लिए गाउी रात्री 10 बजें है उसके पहले कोई भी गाडी नही हे तो मैने स्टेशन
के नजदीक ही एक होटल मे रोटी चावल खाया और गाडी का इनतजार करने लगा तब ही स्टेशन
के पास भिड जमा होने लगी तो मैने सोचा की ऐसा कयो है जो इतनी सारी भिड इक्ठठा हो
गयी है तो पता चला की 16 तारीख को ईद है इसके लिए नजिमाबाद से एक व्यक्ति 70 किलो
ग्राम बकरा लिए हुए है जिसकी किमत 80000 रू है। तो मैने भी
देखने चला गया वाकई क्या मस्त बकरा था । मगर बेचारे को 16तारिख को कटने वाला था
मैने उसे देखकर सोचने लगा की क्यो बकरे इसी लिए पालते है। रात्री 10 बजें अपने
नियत समय पर गाडी प्लेटफांर्म 1 पर आयी मैने साधारण डिब्बे के लिए टिक्ट कटवाई
थी जब साधारण डिब्बे में गया तो देखा की इसमें आदमी से जयादा बकरे सफर कर रहे है
क्योंकी 16 तारीख को ईद जो था तो इस दिन कई जगहो से बकरे खरीद कर लोग अपने अपने
बकरे ला रहे थें तो मैने रिर्जैवेशन बोगी में जा कर बैठ गया । गाडी चलने के बाद टी
टी से सम्पर्क कर 250 रू दण्ड शुल्क देकर एक सिट आरक्षित करवायी और जा कर सो
गया अगले दिन शाम 4 बजें बनारस में पहुचा यहां पर काफी मुसलाधार बारिश हो रही थी
पाईलिन के चलते । बनारस में देहरादुन से चल कर गया के राश्ते हावडा तक जाने वली
देहरादुन हावडा एक्सप्रेस बनारस के प्लेटफार्म न 6 पर लगी हुयी थी मैन टिकट जल्दी
बाजी में नही लिया और जा कर बैठ गया इस रेलगाडी के सामान्य बोगी में तकरीब 9 बजें
रात्री में गया स्टेशन पहुचा यहां पर गया पटना पैसेजर गाडी लगी हुयी थी यह गाडी
10 बजें रात्री में खुलने वाली थी तो मै इस गाउी में बैठ गया और जहांनाबाद तकरीबन
11 बजें रात्री में मै अपने धर पहुचा कर चादर तान कर थकान मिटाने के लिए सो गया क्यों
की मुझे जोरदार निंद भी आ रही थी । इस तरह से मेंरा केदारनाथ एंव बद्रीनाथ की
यात्रा सम्पन्न हुयी ।
*केदारनाथ मंदिर एक अनसुलझी संहिता है।*
केदारनाथ मंदिर का निर्माण किसने करवाया था इसके बारे में बहुत कुछ कहा जाता है। पांडवों से लेकर आदि शंकराचार्य तक। लेकिन हम इसमें नहीं जाना चाहते।
आज का विज्ञान बताता है कि केदारनाथ मंदिर शायद 8वीं शताब्दी में बना था। यदि आप ना भी कहते हैं, तो भी यह मंदिर कम से कम 1200 वर्षों से अस्तित्व में है।
21वीं सदी में भी केदारनाथ की भूमि बहुत प्रतिकूल है। एक तरफ 22,000 फीट ऊंची केदारनाथ पहाड़ी, दूसरी तरफ 21,600 फीट ऊंची कराचकुंड और तीसरी तरफ 22,700 फीट ऊंचा भरतकुंड है। इन तीन पर्वतों से होकर बहने वाली पांच नदियां हैं मंदाकिनी, मधुगंगा, चिरगंगा, सरस्वती और स्वरंदारी। इनमें से कुछ इस पुराण में लिखे गए हैं।
यह क्षेत्र "मंदाकिनी नदी" का एकमात्र राज्य है। कलाकृति कितनी गहरी रही होगी ऐसी जगह पर कलाकृति बनाना जहां ठंड के दिन भारी मात्रा में बर्फ हो और बरसात के मौसम में बहुत तेज गति से पानी बहता हो।
आज भी आप गाड़ी से उस स्थान तक नहीं जा सकते जहां आज "केदारनाथ मंदिर" है। इसे ऐसी जगह क्यों बनाया गया? इसके बिना 100-200 नहीं तो 1000 साल से अधिक समय तक ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में मंदिर कैसे बनाया जा सकता है? हम सभी को कम से कम एक बार यह सोचना चाहिए। वैज्ञानिक अनुमान लगाते हैं कि यदि मंदिर 10वीं शताब्दी में पृथ्वी पर होता, तो यह "हिम युग" की एक छोटी अवधि में होता।
वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ जियोलॉजी, देहरादून ने केदारनाथ मंदिर की चट्टानों पर लिग्नोमैटिक डेटिंग का परीक्षण किया। यह "पत्थरों के जीवन" की पहचान करने के लिए किया जाता है। परीक्षण से पता चला कि मंदिर 14वीं सदी से लेकर 17वीं सदी के मध्य तक पूरी तरह से बर्फ में दब गया था। हालांकि, मंदिर के निर्माण में कोई नुकसान नहीं हुआ।
2013 में केदारनाथ में आई विनाशकारी बाढ़ को सभी ने देखा होगा। इस अवधि के दौरान औसत से 375% अधिक वर्षा हुई थी। आगामी बाढ़ में "5748 लोग" (सरकारी आंकड़े) मारे गए और 4200 गांवों को नुकसान पहुंचा। भारतीय वायुसेना ने 1 लाख 10 हजार से ज्यादा लोगों को एयरलिफ्ट किया। सब कुछ ले जाया गया। लेकिन इतनी भीषण बाढ़ में भी केदारनाथ मंदिर का पूरा ढांचा जरा भी प्रभावित नहीं हुआ।
भारतीय पुरातत्व सोसायटी के मुताबिक, बाढ़ के बाद भी मंदिर के पूरे ढांचे के ऑडिट में 99 फीसदी मंदिर पूरी तरह सुरक्षित हैं. 2013 की बाढ़ और इसकी वर्तमान स्थिति के दौरान निर्माण को कितना नुकसान हुआ था, इसका अध्ययन करने के लिए "आईआईटी मद्रास" ने मंदिर पर "एनडीटी परीक्षण" किया। उन्होंने यह भी कहा कि मंदिर पूरी तरह से सुरक्षित और मजबूत है।
यदि मंदिर दो अलग-अलग संस्थानों द्वारा आयोजित एक बहुत ही "वैज्ञानिक और वैज्ञानिक परीक्षण" में उत्तीर्ण नहीं होता है, तो निर्वाला आपको सबसे अच्छा क्या कहता है? 1200 साल बाद, जहां उस क्षेत्र में सब कुछ ले जाया जाता है, वहां एक भी ढांचा खड़ा नहीं होता है। यह मंदिर मन ही मन वहीं खड़ा है और खड़ा ही नहीं, बहुत मजबूत है। इसके पीछे जिस तरीके से इस मंदिर का निर्माण किया गया है, उसे माना जा रहा है। जिस स्थान का चयन किया गया है। आज विज्ञान कहता है कि मंदिर के निर्माण में जिस पत्थर और संरचना का इस्तेमाल किया गया है, उसी वजह से यह मंदिर इस बाढ़ में बच पाया।
यह मंदिर "उत्तर-दक्षिण" के रूप में बनाया गया है। केदारनाथ को "दक्षिण-उत्तर" बनाया गया है जबकि भारत में लगभग सभी मंदिर "पूर्व-पश्चिम" हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, यदि मंदिर "पूर्व-पश्चिम" होता तो पहले ही नष्ट हो चुका होता। या कम से कम 2013 की बाढ़ में तबाह हो जाता।
लेकिन इस दिशा की वजह से केदारनाथ मंदिर बच गया है। दूसरी बात यह है कि इसमें इस्तेमाल किया गया पत्थर बहुत सख्त और टिकाऊ होता है। खास बात यह है कि इस मंदिर के निर्माण के लिए इस्तेमाल किया गया पत्थर वहां उपलब्ध नहीं है, तो जरा सोचिए कि उस पत्थर को वहां कैसे ले जाया जा सकता था। उस समय इतने बड़े पत्थर को ढोने के लिए इतने उपकरण भी उपलब्ध नहीं थे। इस पत्थर की विशेषता यह है कि 400 वर्ष तक बर्फ के नीचे रहने के बाद भी इसके "गुणों" में कोई अंतर नहीं है।
इसलिए, मंदिर ने प्रकृति के चक्र में ही अपनी ताकत बनाए रखी है। मंदिर के इन मजबूत पत्थरों को बिना किसी सीमेंट के "एशलर" तरीके से एक साथ चिपका दिया गया है। इसलिए पत्थर के जोड़ पर तापमान परिवर्तन के किसी भी प्रभाव के बिना मंदिर की ताकत अभेद्य है। 2013 में, वीटा घलाई के माध्यम से मंदिर के पिछले हिस्से में एक बड़ी चट्टान फंस गई और पानी की धार विभाजित हो गई और मंदिर के दोनों किनारों का पानी अपने साथ सब कुछ ले गया लेकिन मंदिर और मंदिर में शरण लेने वाले लोग सुरक्षित रहे . जिन्हें अगले दिन भारतीय वायुसेना ने एयरलिफ्ट किया था।
सवाल यह है कि आस्था पर विश्वास किया जाए या नहीं। लेकिन इसमें कोई शक नहीं है कि मंदिर के निर्माण के लिए स्थल, उसकी दिशा, वही निर्माण सामग्री और यहां तक कि प्रकृति को भी ध्यान से चुना गया था जो 1200 वर्षों तक अपनी संस्कृति और ताकत को बनाए रखेगा। टाइटैनिक के डूबने के बाद, पश्चिमी लोगों ने महसूस किया कि कैसे "एनडीटी परीक्षण" और "तापमान" ज्वार को मोड़ सकते हैं। लेकिन हमारे पास उनके विचार हैं यह 1200 साल पहले किया गया था।
क्या केदारनाथ वही ज्वलंत उदाहरण नहीं है? कुछ महीने बारिश में, कुछ महीने बर्फ में, और कुछ साल बर्फ में भी, ऊन, हवा और बारिश अभी भी समुद्र तल से 3969 फीट ऊपर ऊन को कवर करती है। हम विज्ञान की भारी मात्रा के बारे में सोचकर दंग रह गए हैं जिसका उपयोग 6 फुट ऊंचे मंच के निर्माण के लिए किया गया है।
आज तमाम बाढ़ों के बाद हम एक बार फिर केदारनाथ के उन वैज्ञानिकों के निर्माण के आगे नतमस्तक हैं, जिन्हें उसी भव्यता के साथ 12 ज्योतिर्लिंगों में सबसे ऊंचा होने का सम्मान मिलेगा।
यह एक उदाहरण है कि वैदिक हिंदू धर्म और संस्कृति कितनी उन्नत थी। उस समय हमारे ऋषि-मुनियों यानि वैज्ञानिकों ने वास्तुकला, मौसम विज्ञान, अंतरिक्ष विज्ञान, आयुर्वेद में काफी तरक्की की थी। इसलिए मुझे "हिन्दू" होने पर गर्व है।
🔱 🔱ॐ नमः शिवाय🔱🔱
🔱🔱जय बाबा केदार की🔱🔱
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मै धुमन्तु बाबा जय सिता राम बाबा एंव राजस्थानी बाबा |
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केदारनाथ जाने का पैदल राश्त |
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केदारनाथ धाटी में बहता हुआ एक मनमोहक झरना |
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कैप्शन जोड़ें |
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इस स्थल पर गौरी कुण्ड हुआ करता था जो अब समाप्त हो गया यही से बाबा के भक्त लोग स्नान कर के मन्दिर को जाते थे |
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यहां पर सैकडो लाशो को जलाया गया था |
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मन्दिर का नजारा 16 जुन2013 के बाद का |
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रात इसी कैम्प में गुजारना पडा था |
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54 किलो मिटर पैदल चलने के बाद मेरा जुता का नजारा |
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केदारधाटी का नजारा |
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बिच्छु धास इसे छुने के बिच्छु के डक मारने जैसा जलन होता है यह केदारधाटी में अधिक पाया जाता है |
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महाप्रलय के पहले का चित्र |
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सोनप्रयाग में संगम |
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चोपता में धास का मैदान उतराखण्ड में धास के मैदान को बुग्याल बोला जाता है |
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चोपता से गुप्तकाशी का सुनसान राश्ता |
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चोपता यही से 4 कि लो मिटर पैदल चल कर चन्द्रशिला चोटी एंव तुंगनाथ को जाया जाता था इसी स्थल से उतराखण्ड में स्थित सारी चोटी साफ नजर आती है |
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सोनप्रयाग में तबाही का मंजर |
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यह वायुयान 16 जुन के त्रासदी में तबाह हो गया इसे 4 व्यक्ति का मौत हो गया था |
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केदारनाथ से 2 कि मी दुरी पर बना यात्रीयों के लिए कैम्प |
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केदारनाथ मन्दिर के समिप त्रासदी का चित्र |
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मन्दिर के पिछे जो शिला है वह पहले यहां नही था 16 जुन के त्रासदी में यह शिला आकर मन्दिर के समिप रूक गया जिससे मन्दिर सुरक्षित हो गया इस शिला का नाम दिव्य शिला रखा गया है |
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बुराश का पौधा इस में फुल खिलते है मई माह में यह उतराखण्ड का राजकीय फुल है |
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मन्दाकनी नदी पर बना आपातकालिन पुल इसे पार कर के जाना पडता है केदारनाथ मन्दिर के समिप |
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यहां पर रामबाडा नामक स्थल था इस स्थल पर 77 दुकानं एंव लांज थे जो त्रासदी में बह गए अब यहां पर कुछ नही बचा है |
4 टिप्पणियां:
केदारनाथ मे प्रलय के बाद के फोटो देखकर सोचा जा सकता है की उस समय क्या मंजर रहा होगा.
आपने भी बडा साहसिक काम किया जो प्रलय के तुंरत बाद वहा पहुंच गए.
आपका यात्रा वृतान्त पढ कर अच्छा लगा.
केदारनाथ की तबाही के बाद का मंजर भयावह है। प्रलयोपरांत जाने की मैं भी सोच रहा था पर जा नहीं पाया। आपके वृतांत से हाल चाल मिला। इस प्रलय में मेरे परिजन भी 16 जून को केदारनाथ और गौरीकुंड के बीच में फ़ंसे थे, जो बड़ी कठिनाईयों से बच कर आ पाए। मेरा एक मित्र परिवार समेत अभी तक लापता है।
वाह घुमन्तु बाबा वैसी तबाही के बाद वहाँ जाना सचमुच बहुत साहस का कार्य है l
आप का साहस तारीफ के योग्य है.
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