दशहारा की छुटटी 11 अक्टुबर से होनी वाली थी मन में हिमालय में स्थित ब्रदीनाथ
एंव केदारनाथ एंव हेमकुण्ड के सफर करने का विचार आ रहा था तो मैने 15 सित्मबर को
कुम्भ एक्सप्रेस में 5 अक्टुबर के दिनांक में रिर्जेवेश्न करवा लिया । 7 से 10
अक्टुबर तक अपने परियोजना से छुटटी लेकर निकल पडा हिमालय के वादीयों में सैर
सपाटा करने के लिए। मेरा रेल में रिर्जवेश्न 5 अक्टुबर का था टिकट कर्न्फम नही
था वेटिग 30 था मन में विचार आ रहा था की यदी टिक्ट कन्फर्म नही हुआ तो सफर कैसे
होगा दिन तो बैठे बैठे गुजार लुंगा मगर रात में यदी मै नही सोउगा तो सफर करने में
दिक्कतो का सामना करना पड सकता है । शनिवार के दिन अपने कार्यालय में मासिक बैठक
होने वाली थी उस बैठक में भी मुझे शामिल होने बहुत ही जरूरी था क्योंकि इसे बैठक
में किए गए कार्यौ की समिक्षा होती है खैर बैठक शाम 4 बजें समाप्त हुयी मैने भागा
भागा अपने कमरे में गया और झटपट बैग में जरूरी समान रखा और चल पडा पटना जक्शान की
और शाम 7 बजे पटना जक्शन पर 5 अक्टुबर को पहुचा रेलगाडी का समय रात 9 बजे पटना
जक्शन पर आने का था मैन अपना टिकट के बारे में पता लगाना शुरू किया की मेरा टिकट
कन्फर्म हुआ है या नही तो पता चला की मेरा टिक्ट कन्फर्म हो गया है रात 9 बज कर
30 मिनट में कुम्भ एक्सप्रेस पटना जक्शन पर आ गयी और में अपने बोगी एस 6 में
सवार होकर सिट नम्बर 70 पर जा बैठा और चादर तान कर सो गया। सुबह के 6 बजे निन्द
टुटी तो पाया की मै लखनऊ जक्शन पर गाडी आ चुकी है मैने फटा फट मूह हाथ धोया और
लखनऊ जक्शन पर बिक रहे 50 रूपये दर्जन केले में से 25 रू के 6 केले को खरिदा और
इसे हरिद्वार तक खाया। वैसे तो मै अधिकाश सफर अकेले ही करता हॅू क्यों कि मुझे
अकेले सफर करने में ज्यादा अच्छा महसुस होता है इसमें फायदा यह होता है की अपने
मन मजी से खाव सोओ और जहां मन करे वहां पर ठहर भी जाओं। अब लखनऊ से रेलगाडी आगे के
लिए चल दी सुबह हो चुका था मै जिस बोगी में बैठा था उस बोगी में कई सिटे लखनऊ में
खाली हो चुकी थी मै अकेला बोर हो रहा था तो मैन अपना बैग् लेकर कर चल दिया सामान्य
बोगी में अक्सर दिन का सफर सामान्य बोगी में करना पसन्द करता हॅू इसका मुल कारण
यह है की सामान्य बोगी में वैसे लोग ज्यादा सफर करते है जो अपने जिन्दगी को
जिने के लिए शारिरीक रूप से कठिन परिश्रम करते है इनका इतनी आमदनी नही होती की वे
अपना सिट बुकीग करा सके । इस तरह सामान्य बोगी में गया और मुझे एक सिट मिल बैठने
को मिल गया। इस बोगी में ज्यादातर बंगाली और बिहारी लोग ज्यादा थे इनसे बात चित
करते करते मै 6 अक्टुबर 2013 को हरिद्वार जक्शन शाम 4 बजे पहुच गया । मैने झटपट
अपने लिए स्टेशन के नजदीक 200 रू में एक कमरा बुक करवा लिया फटा फटा तैयार हो कर
हरकीपौडी के लिए निकल पडा । क्योंकि हरकीपौडी में शाम 6 बजें से भव्य गंगा आरती
होती है इसे देखने के लिए देश विदेश से सैकडो लोग हरिद्वार के हरकीपौडी धाट पर आते
है तो मैने भी आरती देखने के लिए चल पड । आरती देखी भिड ज्यादा नही थी वह इस लिए
की 16 जुन को को उतराखण्ड के केदारनाथ में भिषण् बाढ आने के कारण हजारो की जान
गयी थी । हरकीपौडी हरिद्वार में गंगा किनारे एक धाट का नाम है । हरिद्वार तो इसलिए
कहा जाता हे कि श्री बद्रीनाथ की या्त्रा का आरभ इसी स्थान से होता है और उनके
हरि इस नाम के कारण इसको हरिद्वार कहा गया है। शिवजी के परमधाम केदारनाथ की यात्रा
भी यही से आरम्भ होती है और शिवजी का नाम हर होने से इसे हरद्वार नाम से पुकारते
है। गौमुख से निकलने के बाद गंगा का मैदान में सर्वप्रथम दर्शन यही होता है इसलिए
इसे गंगाद्वार भी कहा जाता है। गंगाआरती
देखने के उपरान्त गंगा किनारे कई होटले खाने पिने के लिए बने हुए है उन्ही होटलो
में मैने खाना खाया और निकल पड अपने कमरे में सोने के लिए । कमरे में जा कर 1 धंटे
तक न्युज को देखा इसके बाद चादर तान कर गहरी निन्द्रा में सो गया । अगले दिन 7
तारिख को सुबह 5 बजे उठा और फटा फट स्नान ध्यान कर के बद्रीनाथ के लिए हरिद्वार
स्टेशन के नजदीक गाडी पकडने के लिए होटल से निकल चला। स्टेशन के नजदीक टाटासुमो
बद्रीनाथ के लिए चिल्ला रहा था मैन उस गाडी के पास गया तो पाया की यह गाडी तो
बद्रीनाथ से 50 कि मी पहले जोशीमठ तक ही जाएगी । उसके बाद जोशीमठ से दुसरी गाडी
पकडना पडेगा और कोई उपाय ना देखकर उसी गाडी में बैठ गया हरिद्वार से जोशीमठ करीबन
270 कि मी की दुरी पर है । गाडीवाला ने 400 रू किराये के रूप में पहले ही ले लिया
। इस गाडी में कुल 10 यात्री थे जिस में मै अकेला ऐसा यात्री थी जो धुमने के ख्याल
यात्रा पर निकला था बाकी 9 यात्री जोशीमंठ प्रखण्ड के गांव के निवासी थे जो दिल्ली
से आ रहे थे। सुबह 6 बजे गाडी हरिद्वार से खुली जैसे ही गाडी हरिद्वार से 20 कि मी
निकला तो तेज बारिश शुरू होगया मैने गाडी वाले से रूकने को कहा और अपनी बैग गाडी
से छत पर से उतार कर अपने पास रख लिया । बारिश जा कर देवप्रयाग में छुटी गाडी वाल
ने देवप्रयाग के एक छोटा से ढाबा पर आधे धंटे के लिए रोका और सारे यात्रीयो से
कहां की आप लोग यहां पर कुछ खा पी ले तो आगे फिर चलेंगे सभी यात्रीयों ने चाय पानी
पिया मैने तो जम कर चार आलु के पराठे दबा डाला । देवप्रयोग में अलकनन्दा एंव
भागीरथी का संगम स्थल है यही से नदी का नाम गंगा हो जाता है। हरिद्वार से
देवप्रयोग तक गंगा नदी के किनारे किनारे रोड बनी हुयी हैं जो काफी मनमोहक है। एक
तरु ऊचे ऊचे पहाड तो दुसरी तरुफ गहरी गंगा की धाटी । नाश्ता पानी कर के गाडी वाले
आगे का सफर शुरू किया। 2 धंटे गाडी को चलने के बाद रूद्रप्रयाग में गाडी वाले ने
चाय पानी के लिए गाडी को रोका । यहां पर मै पहले भी आ चुका था पिछले साल के
केदारनाथ यात्रा के दौरान यही से केदारनाथ जोने का एक राश्ता बना हुआ है यहां से
केदारनाथ की दुरू 75 कि मी पडता है । यहां पर मैने सिर्फ चाय का आन्नद लिया देवप्रयाग
से रूद्रप्रयाग अलकनन्दा नदी के किनारे किनारे रोड बने हुए यात्रा करते समय बहुत
ही मनोरम दूश्य मिलता है रूद्रप्रयाग में मन्दाकनी एंव अलकनन्दा का संगम स्थल
है यहां से दो राश्ते निकले है एक राश्ता केदारनाथ के तरफ जाती है तो दुसरा राश्ता
चमोली जोशीमठ होते हुए बद्रीनाथ । आधे धंटे के बाद गाडी रूद्रप्रयाग से खुली तो
शाम 5 बजे हेलग पहुची वहां पर लैण्डस्लाइल्ड होने के कारण कई गाडियों की लम्बी
कतार लगी हुयी थी यहां पर सिमा सडक संगठन वाले रोड को दुरूश्त करने में लगे हुए
थे खैर एक धंटे के बाद रोड का राश्ता साफ हुआ और शाम 6 बजें पहुचा जोशी मठ यहां
पर रात्री विश्राम के लिए 200 रू में फिर एक कमरा किराये पर लिया । जोशी मठ चमोली
से 48 कि मी की दुरी पर है जोशी मठ या ज्योतिमठ भगवान शंकराचार्य के चार मठो में
से एक है। यहां श्री बद्रीनाथ जी की गदी है। शीतकाल में बद्रीनाथ जी की चल मूर्ति
लाकर इसी स्थान पर 6 महीने तक पूजा की जाती है। पास में कुण्ड है जिसमें दो
हस्ति कुण्उों द्वारा जल धाराये गिरती है। यहां एक अच्छा बाजार है यहां से ही
औली निती दर्रा हेमकुण्ड के लिए जाया जाता है यहां से काफी ऊचे ऊचे पर्वत के शिखर
दिखते है। यहां से 16 कि मी दुरी पर औली है जहां पर शितकालिन खेल का आयोजन किया
जाता है यही से निती दर्रा तक जाने का राश्ता बना हुआ है । जोशीमठ में शाम 7
बजे ढाबा पर गया और वहां पर जा कर 4 आलु
के पराठे और सब्जी दाल और चावल खा कर अपने कमरे में सोने चला गया। यहां पर खाना
50 रू थाली मिलता है थाली में रोटी चावल एक सब्जी दाल और चटनी भर पेट खाने को
मिलता है। मैन पेट भर खाना खाया। अगले दिन यानी 7 अक्टुबर को सुबह 6 बजे उठकर
जोशीमठ में बद्रीनाथ के शितकालिन मन्दिर
में जा कर दर्शन किया इसके बाद चल दिया जोशीमठ का बस स्टैण्ड की और यहां पर एक
सुमो बद्रीनाथ के लिए लगी हुयी थी उसे सुमो में पहले ही 7 व्यकित् बैठे हुए थे 3
व्यक्ति का इनतजार में गाडी खडी थी मेरे आने के तुरन्त बाद 2 व्यकित और आ गए ।
जोशीमठ से 12 खुली ही थी गोविन्दधाट से पहले लैण्ड स्लाइड हो गया जिस कारण गाडी
का आवागवन बंद हो गया। थोडी देर बाद सिमा सडक संगठन के लोग आए और मलबा को हटाए
इसके बाद गाडी आ बढी । गोविन्द धाट से ही हेमकुण्ड साहिब के लिए पैदल यात्रा 20
कि मी की करनी पडती हे। जो सिखों के गुरू गोविन्द सिंह जी का तपोभूमि है । यहां
से 5 कि मी आगे बढने के बाद लामबाडा मिला जहां पर 16 जुन के पहले बडा बाजार हुआ
करता था यहां पर 25 से 30 लॉज हुआ करता था एक भव्य मन्दिर हुआ करता था यहां पर जे
पी सिमेन्ट का 500 मेंगावाट का पावर प्रोजेक्ट 2000 करोड का बन रहा था जो की 16
जून की त्रासदी में सब बर्बाद हो गया। यहां पर गाडी वाले ने सारे यात्रियों को
उतार कर 1 कि मी तक पैदल यात्रा करने के लिए निर्देश दिया सडक नदी में बह चुकी थी
पत्थरो से रोड का निर्माण जारी था एक कि मी चलने के बाद गाडी में फिर से सारे
यात्री सवार हो गए राश्ते में गोविन्दधाट
हनुमानचटी पाण्डुकेश्वर होते हुए दिन 9 बजे बद्रीनाथ पहुचां । यहां पर
पहुचने के बाद देखने में आया की यात्रीयों की भिड ही नही है मैने सबसे पहले अपने
रहने के लिए मन्दिर के सामने एक कमरा बुक करवाया मात्र 200 रू में। यही कमरा सिजन
में 2000 रू में मिलता है। कमरे में मैन अपना बैंग रखा और निकल पडा बद्रीनाथ जी का
दर्शन करने के लिए । बद्रीनाथ के समिप ही तप्त कुण्ड है जहां का पानी बेहद गर्म
है कहां जाता है की इस कुण्ड में स्नान करने के बाद सारे पापा धो जाते है और
चर्म रोग ठिक हो जाते है तो मै भी चल पडा अपने पापा को धोने के लिए क्योंकि मैन
अपने जिवन में भुल चुक से पापा तो जरूर किया होगा। चर्म रोग मुझे नही है । फटा फट
स्नान कर के नये कपडे पहना और 50 रू में प्रसाद एंव पुजा की थाली लिया और चल पडा
मन्दिर के अन्दर पुजा आरती करने के लिए मन्दिर में पुजा आरती करने के बाद मन्दिर
का पचकर्मा किया ।
श्री बद्रीनाथ मन्दिर अलकनन्दा के दक्षिण तट पर
स्थित है। इसके अन्दर बद्रीनारायण जी की सन्निधि में पहुचकर मन की सारी मलिनता
दूर हो जाती है। मन अत्यन्त आनंद को प्रापत कर भक्ति में लीन हो जाता है।
बद्रीनाथ जी की मूर्ति विभिन्न आभूषणो से विभूषित है। मन्दिर के अन्दर श्री
बद्रीनाथ जी की दिव्य मंजुल मूर्ति श्यामल स्वरूप में बहूमूल्य वस्त्राभूषण एवं
विचित्र मुकुट धारण किये शेभायमान हो रही हैा मूर्ति काले पाषाण की है भगवान
पदमासन ध्यान में है। इनके ललाट में हीरा लगा हुआ है । दाई और बाई और नर नारायण
उद्व कुबेर एंव नारद जी की मूतियॉ है। परिक्रमा में हनुमान गणेश लक्ष्मी धारा
कर्ण आदि की मूर्तियॉ है। लक्ष्मी मदिर के बगल में भेगमण्डी है जहां भगवान का
भोग पकता है। भोग लगने के पश्चात प्रसाद बॉटा जाता है मंदिर में सूखा प्रसाद तथा
महाभोग भी निशुल्क मिलता है। किनतु विशेष लेना चाहें तो मदिर की ओर से पैकेट में
बन्द किया गया प्रसाद भगवान का चरणामूत अंगवस्त्र चन्दन आदि किंचित भेंट देने
पर तत्काल दिया जाता है।
श्री बद्रीनाथ के
मन्दिर के पीछे की तरफ धर्मशाला नामक एक शिला है बाई ओर एक कुण्ड है। उतर की और
एक कोठरी में पुरी के रक्षक धण्टाकरण भी है । पूर्व के मैदान में गरूड जी की
पाषाण मूर्ति विराजमान है। दक्षिण में गुम्बददार लक्ष्मी जी का मन्दिर है।
मन्दिर भक्तों के
दर्शनार्थ प्रात: 2 बजें खुलता है। प्रात:
7 बजे से 9 बजे तक महाभिेषेक सम्पन्न श्री रावल जी के द्वारा होता है। मन्दिर
में पूजा केवल केरलीय नम्बूदरी ब्राहमण ही कर सकते है। उस मुख्य पुजारी को रावल
जी कहा जाता है। सवा नौ बजे बालभोग लगता है। साढे 9 बजे श्रीमदभागवत पाठ गीतापाठ
तथा दोपहर 12 बजे के लगभग महाभोग लगाया जाता है । महाभोग लगाकर मध्यान्न के लिए
मंदिर बंद हो जाता है शाम को साढे 3 बजे मंदिर एकांत सेवा के लिए खुलता है 6 बजे
के बाद सायंकाल की विशेष पुजा आरती होती है । रात्रि 8 बजे भोग लगाकर शयन आरती
होती है एवं मन्दिर बन्द हो जाता है।
मन्दिर के पचकर्मा
करने के पश्चात बद्रीनाथ के मन्दिर के समिप दुकानो के भ्रमण किया और मारवाडी वासा
होटल में जाकर के 5 आलु के पराठे चावल दाल सब्जी और आचार दबा डाला। यह खाना 70 रू
का पडा।
कुछ देर तक अपने
कमरे में आराम करने चला गया 1धंटे आराम करने के बाद निकल पडा भारत का अन्तिम ग्राम
माणा की और यह गांव बद्रीनाथ से 4 कि मी की दुरी पर भारत एंव चीन के बॉर्डर पर है।
यहा पर कुल 55 परिवार निवास करते है यहां के लोगो का मुख्य पेशा ऊनी वस्त्र
निमार्ण करना भेड पालना और सब्जी उगाना है। यहा के मुल निवासी भोटिया जनजाति के
है। यह गांव अलकनन्दा के बाये तट पर बसा हुआ है। इसके पास ही अलकनन्दा व सरस्वती
का संगम है जिसे केशव प्रयाग कहते है। इसी गांव में गणेश गुफा व व्यास गुफा है
आगे जाकर भीमशिला है। यहीं सरस्वती नदी के तट पर व्यास जी ने श्रीमदभागवत की
रचना की थी । कुछ लोग अष्टादश पुराणों की रचना यही पर की बतलाते है। मानागांव से
थेडी दूर पर राजा मुचकुन्द नाम की गुफा है। यही पर भिम पुल भी जो सरस्वती नदी पर
बना हुआ है इसे पार कर के ही यहां से 4 कि मी की दुरी पर वसुधरा है और वहा से 12
कि मी की दुरी पर स्वगारोहनी है । माणा गांव के लोग काफी परिश्रमिक होते है यहां के निवासी आपस में काफी मिल जुल कर रहते है। एक
चिज मुझे यहां पर सिखने को मिला की यहां के लोग थेाडी सी जमिन में सब्जी के खेती
करते है । जिससे की सब्जी की आपूति इनकी खुद हो जाती है। शाम 5 बज गए माणा गांव
में यहां के लोगो से बात चित करने में । शाम 6 बजे यहां से बद्रीनाथ अपने कमरे में
आ कर आराम किया और शाम 7 बजें संध्या आरती में शामिल बद्रीनाथ के मन्दिर में हुआ
और रात्री 9 बजें खाना खा कर अपने कमरे सो गया।
चलो कुछ गर्मा गर्म हो जाए |
चमोली का बस अडडा |
ब्रदीनाथ जाने के लिए पहाडो में बना नया राश्ता |
पचास रू का जोशी मठ का खाना |
जोशीमठ |
जोशीमठ का बस अडडा यही से ब्रदीनाथ एंव नीती दर्रा तथा औली के लिए गाडीयां जाती है |
लामबाडा जोशीमठ से 22 कि मी की दुरी पर बसा एक अच्छा बाजार था यहां पर 50 से 55 दुकाने एंव होटले थी 16 जुन के त्रासदी में सब कुछ समाप्त हो गया बचा तो यह मन्दिर वह भी बुरी अवस्था में |
जे पी का 500 मेगावाट का पावर प्रोजेक्अ जो बुरी तरह समाप्त हो गया है |
तप्तकुण्ड इसी कुण्ड में स्नान कर के बद्रीविशाल का दर्शन किया जाता है इस कुण्ड में पानी बेहद ही गर्म है जो चर्म रोगो से छुटकारा के लिए बेहद ही अच्छा है |
बद्रीनाथ का मन्दिर |
भारत का अन्तिम ग्राम माणा ग्राम |
भिम पुल इसी के राश्ते स्वगोरोहनी एवं सतोपंथ जाया जाता है |
माणा गांव में सब्जी की खेती करता एक किसान |
बद्रीनाथ के समिप बैठे एक बाबा |
ब्रदीनाथ का बस अडडा जो पुरी तरह से खोली पडा है नही आवे मई जुन में पैर रखने के लिए भी जगह नही मिलेगी |
हनुमानचटी यहां पर हनुमान जी ने तपस्या किया था |
बद्रीनाथ में बहता अलकनन्दा नदी |
बद्रीनाथ में एक दुकान |
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