जून 2012 की उमस भरी सुबह थी, जब मैंने और मेरे उड़ीसा के मित्र प्रियवत दास ने एक लंबे समय से पाले गए सपने को साकार करने का फैसला किया—उड़ीसा भ्रमण। हम दोनों ने तय किया कि इस बार सिर्फ घुमक्कड़ी नहीं, बल्कि इतिहास, संस्कृति और कला के मेल का अनुभव करेंगे।
हमने भुवनेश्वर के पास स्थित उदयगिरि की गुफाओं को अपनी यात्रा का मुख्य पड़ाव चुना, जो भारतीय इतिहास और कला का एक जीवंत प्रमाण हैं। लेकिन यात्रा की शुरुआत इससे पहले एक आत्मीय ग्रामीण आतिथ्य से हुई।
यात्रा की शुरुआत: कटक में ग्रामीण मेहमाननवाज़ी
भुवनेश्वर पहुंचने के बाद हम प्रियवत के गाँव, कटक जिले में उनके घर गए। यह गाँव अपने शांत वातावरण और मिट्टी की महक के लिए जाना जाता है। रात्रि विश्राम के लिए हम एक रिश्तेदार के घर ठहरे।
शाम को हमें गाँव के पारंपरिक भोजन का स्वाद मिला—दालमा, गरमागरम चावल और घर की बनी रोटी। दालमा में दाल और सब्जियों का ऐसा मिश्रण था, जिसकी खुशबू और स्वाद आज भी याद है। भोजन के बाद अगले दिन की योजना बनी—प्रियवत अपनी मोटरसाइकिल से हमें उदयगिरि ले जाएंगे।
उदयगिरि का परिचय
भुवनेश्वर से मात्र 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित उदयगिरि की गुफाएँ न केवल पर्यटन का, बल्कि पुरातत्व और इतिहास का भी खजाना हैं। प्राचीन काल में यह स्थान धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का एक प्रमुख केंद्र रहा है।
इन गुफाओं की खूबसूरती और कलात्मक महत्व हमें न सिर्फ उस युग में ले जाते हैं, बल्कि यह भी बताते हैं कि हमारे पूर्वज कला, धर्म और वास्तुकला में कितने निपुण थे।
इतिहास की पगडंडियों पर
उदयगिरि को पहले नीचैगिरि कहा जाता था। प्रसिद्ध संस्कृत कवि कालिदास ने भी अपने ग्रंथों में इसका उल्लेख इसी नाम से किया है। 10वीं शताब्दी में, जब यह स्थान परमार वंश के अधीन आया, तो राजा भोज के पौत्र उदयादित्य ने अपने नाम पर इसका नाम "उदयगिरि" रखा।
यहाँ कुल 20 गुफाएँ हैं, जिनमें से कुछ का निर्माण 4वीं-5वीं सदी में हुआ था। गुफा संख्या 1 और 20 को जैन गुफाएँ माना जाता है, जो यहाँ के धार्मिक विविधता के प्रमाण हैं।
वास्तुकला की अद्भुत कारीगरी
उदयगिरि की गुफाएँ पत्थर को काटकर बनाई गई हैं, और इन्हें छोटे-छोटे कमरों का आकार दिया गया है। दीवारों और छतों पर उकेरी गई मूर्तियाँ इतनी बारीकी से बनाई गई हैं कि लगता है जैसे पत्थर में जान डाल दी गई हो।
इन मूर्तियों में विष्णु, शिव, दुर्गा, गणेश के साथ-साथ यक्ष, किन्नर और अप्सराओं के चित्रण भी देखने को मिलते हैं। यह उस समय की धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक समृद्धि का प्रमाण है।
गुफाओं की यात्रा – एक-एक कर अनोखे अनुभव
गुफा संख्या 1 – सूरज गुफा
यह गुफा सूर्य देव को समर्पित है। यहाँ की नक्काशी में सूर्य देव का रथ और उनके सात घोड़े स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं। सुबह की पहली किरणें जब इस गुफा की दीवारों पर पड़ती हैं, तो दृश्य मनमोहक हो जाता है।
गुफा संख्या 4 – वीणा गुफा
यहाँ एक शिवलिंग और वीणा बजाते हुए एक किन्नर की मूर्ति है। संगीत और आध्यात्म का यह संगम अद्वितीय है।
गुफा संख्या 5 – वाराह गुफा
इस गुफा में विष्णु के वाराह अवतार की भव्य मूर्ति है, जिसमें वे धरती (भूदेवी) को समुद्र से उठाते हुए दिखाए गए हैं। मूर्ति के आकार और बारीकी से बनी आकृतियाँ देखते ही बनती हैं।
गुफा संख्या 6
यह गुफा विभिन्न देवताओं—विष्णु, दुर्गा, गणेश—की मूर्तियों से सजी है। द्वारपालों की मूर्तियाँ इसकी शोभा को और बढ़ा देती हैं।
गुफा संख्या 13
यहाँ शेषशायी विष्णु की मूर्ति है, जिसमें वे अनंत नाग की शैय्या पर विराजमान हैं।
गुफा संख्या 19
यह सबसे बड़ी गुफा है। इसमें शिवलिंग और समुद्र मंथन का दृश्य उकेरा गया है, जो पौराणिक कथाओं की याद दिलाता है।
सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व
उदयगिरि की गुफाएँ सिर्फ पत्थर की कारीगरी नहीं हैं; ये गुप्त काल की कला, धर्म और समाज का दर्पण हैं। यहाँ मिले शिलालेख उस समय की भाषा, प्रशासन और धार्मिक गतिविधियों की जानकारी देते हैं।
इन गुफाओं का जैन, हिंदू और बौद्ध धर्म से जुड़ाव इसे एक सांस्कृतिक संगम स्थल बनाता है।
हमारा अनुभव – इतिहास के बीच एक दिन
प्रियवत की मोटरसाइकिल से भुवनेश्वर से उदयगिरि तक का रास्ता हरे-भरे पेड़ों, खुले खेतों और छोटे-छोटे गाँवों से होकर गुज़रा। सुबह की ठंडी हवा और रास्ते के दृश्य ने यात्रा को और सुखद बना दिया।
गुफाओं के प्रवेश द्वार पर खड़े होकर ऐसा लगा जैसे हम समय के दरवाज़े से इतिहास की ओर जा रहे हों। हर गुफा में एक नई कहानी, एक नया अनुभव छिपा था।
गुफाओं के बीच चलते हुए ऐसा लगा जैसे यहाँ की हर दीवार, हर मूर्ति हमें कुछ कहना चाहती हो—कभी धार्मिक आस्था की कथा, तो कभी प्राचीन कलाकारों की मेहनत की दास्तान।
यात्रा की योजना और उपयोगी सुझाव
सर्वश्रेष्ठ समय: अक्टूबर से मार्च
कैसे पहुँचे:
सड़क मार्ग – भुवनेश्वर से बस, ऑटो या टैक्सी से आसानी से पहुँचा जा सकता है।
रेल मार्ग – भुवनेश्वर रेलवे स्टेशन से मात्र कुछ किलोमीटर।
वायु मार्ग – निकटतम हवाई अड्डा भुवनेश्वर एयरपोर्ट।
क्या साथ रखें: कैमरा, पानी की बोतल, टोपी, सनस्क्रीन।
कहाँ ठहरें: भुवनेश्वर में सभी बजट के होटल और गेस्ट हाउस उपलब्ध।
निष्कर्ष
उदयगिरि की यह यात्रा सिर्फ एक पर्यटन अनुभव नहीं, बल्कि भारतीय इतिहास की गहराइयों में उतरने जैसा था। यहाँ की गुफाएँ हमें गर्व दिलाती हैं कि हमारे देश की कला, संस्कृति और आस्था कितनी समृद्ध रही है।
मेरे और प्रियवत के लिए यह यात्रा दोस्ताना रोमांच और सांस्कृतिक खोज का अद्भुत मेल थी। ग्रामीण भोजन की सादगी, मोटरसाइकिल यात्रा का आनंद, और प्राचीन गुफाओं की अद्भुत कहानियाँ—सबने मिलकर इस सफ़र को अविस्मरणीय बना दिया।
यदि आप इतिहास, कला और संस्कृति में थोड़ी भी रुचि रखते हैं, तो उदयगिरि की गुफाओं को अपनी यात्रा सूची में ज़रूर शामिल करें।
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| उदयगिरी के गुफाओं के पास धुमन्तु बाबा |
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| उदयगिरी के गुफाओं के पास बैठ के सोचते धुमन्तु बाबा की इन पत्थरो को काट कर कैसे बनाया होगा इन गुफाओं को |
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| रत्नागिरी के पहाडो से खिचा गया एक फोटु |
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| इस इतिहासिक जगह को देख कर मन प्रसन्न हो गया |
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| बोड पर लिखा गया उदयगिरी के बारे में पढ कर जानकारी लेते धुमनतु बाबा |
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| उदयगिरी में 5 से 7 रू प्रति पिस नारियल का पानी मिलता है आप जब भी उदयगिरी आए तो नारियल पानी का मजा जरूर ले |









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