साल 2014, मेरे जीवन का वह साल था जब जिम्मेदारियों और आर्थिक चुनौतियों ने मेरे सपनों को कुछ समय के लिए रोक दिया था। घर बनाने की जिम्मेदारी ने मेरे पैरों को बांध रखा था, लेकिन कहते हैं ना, उम्मीद की किरण कभी-कभी अप्रत्याशित रूप से मिलती है। मेरे जीवन में यह मौका मिला जब मैं राजस्थान आजीविका विकास परिषद से जुड़ी 47 महिलाओं के साथ मुजफ्फरपुर में एक प्रशिक्षण कार्यक्रम का हिस्सा बना। यह कार्यक्रम सिर्फ एक प्रशिक्षण नहीं था, बल्कि मेरे लिए एक नई यात्रा का द्वार था, जिसने मुझे भारतीय इतिहास के एक अनूठे अध्याय से रूबरू कराया।
इस कार्यक्रम के तहत, हम सभी ने एक शैक्षिक भ्रमण पर जाने का फैसला किया। हमारी मंजिल थी, वैशाली के पास स्थित सरैया प्रखंड के रूपौली गाँव में जयहिंद ग्राम संगठन का दौरा। इस दौरे का उद्देश्य न केवल संगठनात्मक ज्ञान प्राप्त करना था, बल्कि विभिन्न राज्यों की महिलाओं के बीच आपसी जुड़ाव को भी बढ़ाना था। लेकिन यह यात्रा सिर्फ इतनी ही नहीं थी; यह हमें एक ऐसे ऐतिहासिक स्थल तक ले जाने वाली थी जहाँ से भारत और विश्व के लोकतंत्र की कहानी शुरू हुई थी।
वैशाली: विश्व का पहला गणतंत्र
रूपौली गाँव से मात्र 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित वैशाली! यह नाम सुनते ही मन में गौरव और सम्मान का भाव जागृत हो उठता है। यह वह भूमि है जहाँ विश्व का पहला गणतंत्र कायम हुआ था। यह सुनकर मेरी और राजस्थान से आई महिलाओं की जिज्ञासा चरम पर थी। हमने सुना था कि यह सिर्फ एक ऐतिहासिक स्थल नहीं, बल्कि भगवान महावीर की जन्मस्थली होने के कारण जैन धर्म का एक पवित्र केंद्र भी है। इसके अलावा, भगवान बुद्ध ने भी इस धरती पर तीन बार आकर इसे अपनी कर्मभूमि बनाया था। यहाँ स्थित बौद्ध स्तूप और सम्राट अशोक द्वारा निर्मित अशोक स्तंभ इसकी गौरवशाली अतीत के मूक गवाह हैं।
यात्रा का आरंभ और यादगार पल
ग्राम संगठन की बैठक के बाद, हम सभी बहुत उत्साहित थे और वैशाली की ओर रवाना हो गए। सड़क किनारे आम और लीची के घने पेड़ों ने हमारा स्वागत किया। वैशाली पहुँचते ही हमें एक तालाब दिखा, जिसे अभिषेक पुष्करणी के नाम से जाना जाता है। हमने कुछ देर के लिए यहाँ रुकने का फैसला किया और नाव में बैठकर इस पवित्र तालाब की खूबसूरती का आनंद लिया। यह पल बेहद सुकून भरा था। चारों ओर फैली हरियाली और शांत वातावरण ने हमें शहर की भागदौड़ से दूर एक नई दुनिया में ला दिया था।
इसके बाद, हम कोल्हुआ नामक स्थान पर गए, जहाँ भव्य अशोक स्तंभ स्थित है। यह स्तंभ मुजफ्फरपुर से 35 किलोमीटर और पटना से 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। अशोक स्तंभ को देखकर हमें सम्राट अशोक के उस महान साम्राज्य और उनकी धर्म के प्रति गहरी आस्था का एहसास हुआ। वहाँ खड़े होकर हमने इतिहास की उन परतों को महसूस किया, जो किताबों में पढ़कर कभी नहीं हो सकता था।
वैशाली का गौरवशाली इतिहास
यह जानकर आश्चर्य होता है कि वैशाली का नाम महाभारत काल के एक महान राजा विशाल के नाम पर पड़ा था। यहाँ का इतिहास हमें बताता है कि वैशाली में ही विश्व का सबसे पहला गणतंत्र स्थापित हुआ था। यह स्थान न केवल जैन धर्म के लिए बल्कि बौद्ध धर्म के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। महात्मा बुद्ध के समय, 16 महाजनपदों में वैशाली का स्थान मगध के समान ही महत्वपूर्ण था।
वैशाली में कई महत्वपूर्ण स्थल हैं, जिनमें विश्व शांति स्तूप भी शामिल है। यह स्तूप जापान के निप्पोनजी बौद्ध समुदाय द्वारा बनाया गया है और यह विश्व शांति का प्रतीक है। इसके अलावा, बावन पोखर मंदिर भी एक महत्वपूर्ण स्थल है, जो पालकालीन कला का नमूना है और हिंदू देवी-देवताओं को समर्पित है। राजा विशाल का गढ़, जिसे प्राचीनतम संसद माना जाता है, हमें उस समय की लोकतांत्रिक व्यवस्था की झलक देता है। कुंडलग्राम, जो भगवान महावीर का जन्मस्थान है, जैन श्रद्धालुओं के लिए एक अत्यंत पवित्र स्थान है।
निष्कर्ष: एक नई प्रेरणा का स्रोत
यह यात्रा मेरे लिए सिर्फ एक शैक्षिक भ्रमण नहीं थी, बल्कि एक आत्म-अन्वेषण का सफर था। वैशाली की इस यात्रा ने मुझे हमारे देश के समृद्ध इतिहास और संस्कृति से रूबरू कराया। राजस्थान से आई महिलाओं के लिए भी यह एक अविस्मरणीय अनुभव रहा। हमने न केवल इतिहास और भूगोल के बारे में सीखा, बल्कि एक-दूसरे की संस्कृति को भी समझा और एक गहरा संबंध स्थापित किया।
इस यात्रा ने मुझे यह समझाया कि हमारे देश में अनमोल धरोहरें हैं, जिन्हें हमें समझना और संरक्षित करना चाहिए। वैशाली की यात्रा ने मुझे एक नई ऊर्जा दी और मुझे और भी यात्राएँ करने के लिए प्रेरित किया। यह अनुभव मेरे लिए एक नया अध्याय था, जिसने मुझे जीवन को एक नए नजरिए से देखने का मौका दिया।
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वैशाली में बना विश्व शांति स्तुप |
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कोल्हूआ का बोध स्तूप एवं अशोक स्तम्भ |
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कोल्हूआ बौध स्तूप जाने का मुख्य द्वार |
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कोल्हूआ बौध स्तूप के अन्दर का फोटु |
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कोल्हूआ का स्तुप |
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स्तुप गेट के बाहर का चित्र |
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भगवान महावीर का जन्म स्थल कुण्उलग्राम |
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भगवान महावीर का मन्दिर कहा जाता है की यहां पर ही महावीर का जनम हुआ था |
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यहां पर खाने पिने का व्यवस्था है कुण्डलग्राम में |
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कोल्हूआ में बौध स्तूप के साथ अशोक कालिन स्तम्भ |
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पोखर जो बौध स्तुप के पास है |
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कुण्डलग्राम में बना मुख्य मन्दिर के पास का होटल यहां पर रात्री विश्राम किया जा सकता है |
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