वर्ष 2014 में किसी भी नये जगह की यात्रा नही किया था जिस कारण मन में काफी विचार आ रहा था की मै क्या कर रहा हूू कोइ्र भी नयी जगह का भ्रमण नही कर पा रहा हू कार्य की व्यस्तता के कारण नये जगह का भ्रमण नही हो पा रहा था तथा कुछ आर्थिक समस्या भी आ रही थी क्योकि मै अपना धर बनाने में पैसा का उपयोग कर रहा था तो सोचा क्यो न कोई यात्रा किया जाए नए साल में तो राजस्थान आजीविका विकास परिषद से दिनांक 10 जनवरी को 47 एकिटव वूमन समूह क्यों पर प्रशिक्षण लेने आ गयी मुजफफरपुर में इस प्रशिक्षण में ग्राम संगठन में का शैक्षणिक परिभ्रमण का एक दिवसीय कार्यक्रम था इसी कार्यक्रम को पुरा करने के लिए वैशाली के समिप सरैया प्रखण्ड के रूपौली गांव में जयहिन्द ग्राम संगठन में रखा गया । ग्राम संगठन के शैक्षणिक परिभ्रमण के बाद सोचा की यहां से 10 कि मी की दुरी पर विश्व का प्रथम गणराज्य वैशाली है और भगवान महावीर का जन्म स्थल भी है तथा बौध धर्म स्थल कोल्हुआ भी है तो मैने सोचा कयो ना इन स्थले का भ्रमण किया जाए जिससे की इनके बारे में मुझे जानकारी प्राप्त हो जाए तथा राज्स्थान से आयी महिलाओं को भी जानकारी प्राप्त इन जगहो का हो । तो चल दिया इन स्थलो का भ्रमण करने ग्राम संगठन के बैठक के बाद। यहां पर वैशाली में काफी अच्छी होटल भी है तथा एक बौध स्तूप भी है । यहां पर 30 रू देकर तलाब में बोटिग भी आनन्द लिया । तथा कोल्हूआ में जा कर अशोक स्तम्भ को भी देखा। यह स्थल मुजफफरपुर से 35 कि मी की दुरी पर है एवं पटना से 70 कि मी की दुरी पर है। इस स्थल के चारो और आम और लिची का काफी संख्या में पेड है यह स्थल पुरे देश में लिची और आम के लिए नामी है तथा इन स्थलों के चारो तरफ हरा भरा खेती होती है काफी रमणीक स्थल है इस स्थल पर विदेशी लोग भी भ्रमण करने के लिए आते रहते है। नये साल में मैने इस स्थल के यात्रा कर के शुरूआत किया यात्रा का। तो आइए जानते हे इन स्थलो के बारे में । वैशाली बिहार प्रान्त के वैशाली जिला में स्थित एक गाँव है। ऐतिहासिक स्थल के रूप में प्रसिद्ध यह गाँव मुजफ्फरपुर से अलग होकर १२ अक्टुबर १९७२ को वैशाली के जिला बनने पर इसका मुख्यालय हाजीपुर बनाया गया। बज्जिका तथा हिन्दी यहाँ की मुख्य बोली/भाषा है। ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार वैशाली में ही विश्व का सबसे पहला गणतंत्र यानि "रिपब्लिक" कायम किया गया था। भगवान महावीर की जन्म स्थली होने के कारण जैन धर्म के मतावलंबियों के लिये वैशाली एक पवित्र स्थल है। भगवान बुद्ध का इस धरती पर तीन बार आगमन हुआ, यह उनकी कर्म भूमि भी थी। महात्मा बुद्ध के समय सोलह महाजनपदों में वैशाली का स्थान मगध के समान महत्वपूर्ण था। अतिमहत्वपूर्ण बौद्ध एवं जैन स्थल होने के अलावा यह जगह पौराणिक हिंदू तीर्थ एवंपाटलीपुत्र जैसे ऐतिहासिक स्थल के निकट है। मशहूर राजनर्तकी और नगरवधु आम्रपाली भी यही की थी आज वैशाली पर्यटकों के लिए भी बहुत ही लोकप्रिय स्थान है|वैशाली में आज दूसरे देशों के कई मंदिर भी बने हुए हैं|
वैशाली का नामाकरण महाभारत काल एक राजा ईक्ष्वाकु वंशीय राजा विशाल के नाम पर हुआ है। विष्णु पुराण में इस क्षेत्र पर राज करने वाले ३४ राजाओं का उल्लेख है जिसमें प्रथम नमनदेष्टि तथा अंतिम सुमति या प्रमाति था। इस राजवंश में २४ राजा हुए। राजा सुमति अयोध्या नरेश भगवान राम के पिता राजा दशरथके समकलीन थे। ईसा पूर्व सातवीं सदी के उत्तरी और मध्य भारत में विकसित हुए १६ महाजनपदों में वैशाली का स्थान अति महत्वपूर्ण था। नेपाल की तराई से लेकर गंगा के बीच फैली भूमि पर वज्जियों तथा लिच्छवियों के संघ (अष्टकुल) द्वारा गणतांत्रिक शासन व्यवस्था की शुरूआत की गई थी। लगभग छठी शताब्दि ईसा पूर्व में यहाँ का शासक जनता के प्रतिनिधियों द्वारा चुना जाने लगा और गणतंत्र की स्थापना हुई। विश्व को सर्वप्रथम गणतंत्र का ज्ञान करानेवाला स्थान वैशाली ही है। आज वैश्विक स्तर पर जिस लोकशाही को अपनाया जा रहा है वह यहाँ के लिच्छवी शासकों की ही देन है। प्राचीन वैशाली नगर अति समृद्ध एवं सुरक्षित नगर था जो एक दूसरे से कुछ अन्तर पर बनी हुई तीन दीवालों से घिरा था। प्राचीन ग्रन्थों में वर्णन मिलता है कि नगर की किलेबन्दी यथासंभव इन तीनों कोटि की दीवालों से की जाय ताकि शत्रु के लिये नगर के भीतर पहुँचना असंभव हो सके। चीनी यात्री ह्वेनसांग के अनुसार पूरे नगर का घेरा १४ मील के लगभग था।
मौर्य और गुप्त राजवंश में जब पाटलीपुत्र (आधुनिक पटना) राजधानी के रूप में विकसित हुआ, तब वैशाली इस क्षेत्र में होने वाले व्यापार और उद्योग का प्रमुख केंद्र था। भगवान बुद्ध ने वैशाली के समीप कोल्हुआ में अपना अंतिम संबोधन दिया था। इसकी याद में महान मौर्य महान सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दि ईसा पूर्व सिंह स्तंभ का निर्माण करवाया था। महात्मा बुद्ध के महापरिनिर्वाण के लगभग १०० वर्ष बाद वैशाली में दूसरे बौद्ध परिषद का आयोजन किया गया था। इस आयोजन की याद में दो बौद्ध स्तूप बनवाए गए। वैशाली के समीप ही एक विशाल बौद्ध मठ है, जिसमें महात्मा बुद्ध उपदेश दिया करते थे। भगवान बुद्ध के सबसे प्रिय शिष्य आनंद की पवित्र अस्थियां हाजीपुर (पुराना नाम- उच्चकला) के पास एक स्तूप में रखी गयी थी।
यह भी ambpali का जन्म स्थान है, वैशाली को चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर के जन्म स्थल का गौरव भी प्राप्त है। जैन धर्मावलंबियों के लिए वैशाली काफी महत्वपूर्ण है। यहीं पर ५९९ ईसापूर्व में जैन धर्मतीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म कुंडलपुर (कुंडग्राम) में हुआ था। वज्जिकुल में जन्मे भगवान महावीर यहाँ २२ वर्ष की उम्र तक रहे थे। इस तरह वैशाली हिंदू धर्म के साथ-साथ भारत के दो अन्य महत्वपूर्ण धर्मों का केंद्र था। बौद्ध तथा जैन धर्मों के अनुयायियों के अलावा ऐतिहासिक पर्यटन में दिलचस्पी रखने वाले लोगों के लिए भी वैशाली महत्वपूर्ण है। वैशाली की भूमि न केवल ऐतिहासिक रूप से समृद्ध है वरन कला और संस्कृति के दृष्टिकोण से भी काफी धनी है। वैशाली जिला के चेचर (श्वेतपुर) से प्राप्त मूर्तियाँ तथा सिक्के पुरातात्विक महत्व के हैं।
पूर्वी भारत में मुस्लिम शासकों के आगमन के पूर्व वैशाली मिथिला के कर्नाट वंश के शासकों के अधीन रहा लेकिन जल्द ही यहाँ बख्तियार खलजी़ का शासन हो गया। तुर्क-अफगान काल में बंगाल के एक शासक हाजी इलियास शाह ने १३४५ ई से १३५८ ई तक यहां शासन किया। बाबर ने भी अपने बंगाल अभियान के दौरान गंडक तट के पार अपनी सैन्य टुकड़ी को भेजा था। १५७२ ई॰ से १५७४ ई॰ के दौरान बंगाल विद्रोह को कुचलने के क्रम में अकबर की सेना ने दो बार हाजीपुर किले पर घेरा डाला था। १८ वीं सदी के दौरान अफगानों द्वारा तिरहुत कहलानेवाले इस प्रदेश पर कब्जा किया। स्वतंत्रता आन्दोलन के समय वैशाली के शहीदों की अग्रणी भूमिका रही है। वसाबन सिंह्, बेचन शर्मा, अक्षयवट राय, सीताराम सिंह,baikunth shukla, yogendra shukla जैसे स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण हिस्सा लिया। आजादी की लड़ाई के दौरान १९२०, १९२५ तथा १९३४ में महात्मा गाँधी का वैशाली में आगमन हुआ था। वैशाली की नगरवधू आचार्य चतुरसेन के द्वारा लिखी गयी एक रचना है जिसका फिल्मांतरण भी हुआ एवं जिसमे अजातशत्रु की भूमिका श्री सुनीलदत्त के द्वारा निभायी गयी है |
वैशाली की जलवायु मानसूनी प्रकार की है| वास्तव मे तत्कालीन वैशाली का विस्तार आजकल के उत्तर प्रदेश स्थित देवरिया एवं कुशीनगर जनपद से लेकर के बिहार के गाजीपुर तक था| इस प्रदेश मे पतझड़ वाले वृक्ष पाये जाते हैं| जिनमें आम, महुआ, कटहल, लीची, जामुन, शीशम, बरगद, शहतूत आदि की प्रधानता है| भौगोलिक रूप से यह एक मैदानी प्रदेश है जहां अनेक नदियां पायी जाती हैं इसका एक बड़ा हिस्सा तराई प्रदेश में गिना जाता है |
सम्राट अशोक ने वैशाली में हुए महात्मा बुद्ध के अंतिम उपदेश की याद में नगर के समीप सिंह स्तंभ की स्थापना की थी। पर्यटकों के बीच यह स्थान लोकप्रिय है। दर्शनीय मुख्य परिसर से लगभग ३ किलोमीटर दूर कोल्हुआ यानी बखरा गाँव में हुई खुदाई के बाद निकले अवशेषों को पुरातत्व विभाग ने चारदीवारी बनाकर सहेज रखा है। परिसर में प्रवेश करते ही खुदाई में मिला इंटों से निर्मित गोलाकार स्तूप और अशोक स्तम्भ दिखायी दे जाता है। एकाश्म स्तंभ का निर्माण लाल बलुआ पत्थर से हुआ है। इस स्तंभ के ऊपर घंटी के आकार की बनावट है (लगभग १८.३ मीटर ऊंची) जो इसको और आकर्षक बनाता है। अशोक स्तंभ को स्थानीय लोग इसे भीमसेन की लाठी कहकर पुकारते हैं। यहीं पर एक छोटा सा कुंड है, जिसको रामकुंड के नाम से जाना जाता है। पुरातत्व विभाग ने इस कुण्ड की पहचान मर्कक-हद के रूप में की है। कुण्ड के एक ओर बुद्ध का मुख्य स्तूप है और दूसरी ओर कुटागारशाला है। संभवत: कभी यह भिक्षुणियों का प्रवास स्थल रहा है।
दूसरे बौद्ध परिषद की याद में यहाँ पर दो बौद्ध स्तूपों का निर्माण किया गया था। इन स्तूपों का पता १९५८ की खुदाई के बाद चला। भगवान बुद्ध के राख पाए जाने से इस स्थान का महत्व काफी बढ़ गया है। यह स्थान बौद्ध अनुयायियों के लिए काफी महत्वपूर्ण है। बुद्ध के पार्थिव अवशेष पर बने आठ मौलिक स्तूपों में से एक है यह। बौद्ध मान्यता के अनुसार भगवान बुद्ध के महा परिनिर्वाण के पश्चात कुशीनगर के मल्ल शासकों प्रमुखत: राजा श्री सस्तिपाल मल्ल जो कि भगवान बुद्व के रिश्तेदार भी थे के द्वारा उनके शरीर का राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया तथा अस्थि अवशेष को आठ भागों में बांटा गया, जिसमें से एक भाग वैशाली के लिच्छवियों को भी मिला था। शेष सात भाग मगध नरेश अजातशत्रु कपिलवस्तु के शाक्य, अलकप्प के बुली, रामग्राम के कोलिय बेटद्वीप के एक ब्राह्मण तथा पावा एवं कुशीनगर के मल्लों को प्राप्त हुए थे। मूलत: यह पांचवी शती ई. पूर्व में निर्मित ८.०७ मीटर व्यास वाला मिट्टी का एक छोटा स्तूप था। मौर्य, शुंग व कुषाण कालों में पकी इंटो से आच्छादित करके चार चरणों में इसका परिवर्तन किया गया जिससे स्तूप का व्यास बढ़कर लगभग १२ मीटर हो गया।
प्राचीन वैशाली गणराज्य द्वारा ढाई हजार वर्ष पूर्व बनवाया गया पवित्र सरोवर है। ऐसा माना जाता है कि इस गणराज्य में जब कोई नया शासक निर्वाचित होता था तो उनको यहीं पर अभिषेक करवाया जाता था। इसी के पवित्र जल से अभिशिक्त हो लिच्छिवियों का अराजक गणतान्त्रिक संथागार में बैठता था। राहुल सांकृत्यायन ने अपने उपन्यास "सिंह सेनापति" में इसका उल्लेख किया है।
विश्व शांति स्तूप
अभिषेक पुष्करणी के नजदीक ही जापान के निप्पोनजी बौद्ध समुदाय द्वारा बनवाया गया विश्व शांतिस्तूप स्थित है। गोल घुमावदार गुम्बद, अलंकृत सीढियां और उनके दोनों ओर स्वर्ण रंग के बड़े सिंह जैसे पहरेदार शांति स्तूप की रखवाली कर रहे प्रतीत होते हैं। सीढियों के सामने ही ध्यानमग्न बुद्ध की स्वर्ण प्रतिमा दिखायी देती है। शांति स्तूप के चारों ओर बुद्ध की भिन्न-भिन्न मुद्राओं की अत्यन्त सुन्दर मूर्तियां ओजस्विता की चमक से भरी दिखाई देती हैं।
बावन पोखर मंदिर
बावन पोकर के उत्तरी छोर पर बना पालकालीन मंदिर में हिंदू देवी-देवताओं की प्रतिमाएँ स्थापित है।
राजा विशाल का गढ़
यह वास्तव में एक छोटा टीला है, जिसकी परिधि एक किलोमीटर है। इसके चारों तरफ दो मीटर ऊंची दीवाल है जिसके चारों तरफ ४३ मीटर चौड़ी खाई है। समझा जाता है कि यह प्राचीनतम संसद है। इस संसद में ७,७७७ संघीय सदस्य इकट्ठा होकर समस्याओं को सुनते थे और उसपर बहस भी किया करते थे। यह भवन आज भी पर्यटकों को भारत के लोकतांत्रिक प्रथा की याद दिलाता है।
कुण्डलपुर
यह जगह भगवान महावीर का जन्मस्थान होने के कारण काफी लोकप्रिय है। यह स्थान जैन धर्मावलंबियों के लिए काफी पवित्र माना जाता है। वैशाली से इसकी दूरी ४ किलोमीटर है।
इसके अलावा वैशाली महोत्सव, वैशाली संग्रहालय तथा हाजीपुर के पास की दर्शनीय स्थल एवं सोनपुर मेला आदि भी देखने लायक है।
पटना, हाजीपुर अथवा मुजफ्फरपुर से यहां आने के लिए सड़क मार्ग सबसे उपयुक्त है। वाहनों की उपलब्धता सीमित है इसलिए पर्यटक हाजीपुर या मुजफ्फरपुर से निजी वाहन भाड़े पर लेकर ज्यादा पसंद करते हैं। वैशाली से पटना समेत उत्तरी बिहार के सभी प्रमुख शहरों के लिए बसें जाती है।
रेल मार्ग
रेल मार्ग
वैशााली स्तुप के पास बोटिग करते हुए मै और प्रिस कुमार |
वैशाली में बना विश्व शांति स्तुप |
कोल्हूआ का बोध स्तूप एवं अशोक स्तम्भ |
कोल्हूआ बौध स्तूप जाने का मुख्य द्वार |
कोल्हूआ बौध स्तूप के अन्दर का फोटु |
कोल्हूआ का स्तुप |
स्तुप गेट के बाहर का चित्र |
भगवान महावीर का जन्म स्थल कुण्उलग्राम |
भगवान महावीर का मन्दिर कहा जाता है की यहां पर ही महावीर का जनम हुआ था |
यहां पर खाने पिने का व्यवस्था है कुण्डलग्राम में |
कोल्हूआ में बौध स्तूप के साथ अशोक कालिन स्तम्भ |
पोखर जो बौध स्तुप के पास है |
कुण्डलग्राम में बना मुख्य मन्दिर के पास का होटल यहां पर रात्री विश्राम किया जा सकता है |
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