9 अक्टूबर 2013 को मैंने बद्रीनाथ से अपनी यात्रा शुरू की। बद्रीनाथ के नजदीक स्थित तप्त कुंड में स्नान करने के बाद मैंने बद्रीनाथ मंदिर में दर्शन किए। बद्रीनाथ से जोशीमठ के लिए रवाना होने के दौरान मुझे जोशीमठ जाने वाली बस में जगह मिल गई। रास्ते में गोविंदघाट में लैंडस्लाइड के कारण हमें एक घंटे तक रुकना पड़ा।
जोशीमठ से चमोली की ओर
जोशीमठ पहुंचने के बाद मैंने तुरंत चमोली जाने वाली बस पकड़ी। चमोली उत्तराखंड का एक सुंदर जिला है जो अलकनंदा नदी के किनारे बसा हुआ है। चमोली से केदारनाथ जाने के लिए दो रास्ते हैं, एक चोपता-ऊखीमठ होते हुए और दूसरा रूद्रप्रयाग-अगस्त्यमुनि-गुप्तकाशी होते हुए। मैंने रूद्रप्रयाग के रास्ते जाने का फैसला किया।
गुप्तकाशी की ओर प्रस्थान
चमोली से रूद्रप्रयाग का रास्ता लैंडस्लाइड के कारण बंद था। मुझे गोपेश्वर से गुप्तकाशी जाने के लिए एक निजी गाड़ी किराए पर लेनी पड़ी। गोपेश्वर से गुप्तकाशी का रास्ता बेहद खतरनाक और सुनसान था। रास्ते में चोपता आया, जहां से तुंगनाथ के लिए पैदल यात्रा की जाती है। चोपता से मैंने गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ, चौखम्बा, नंदादेवी आदि हिमालय की चोटियों को देखा।
गुप्तकाशी में औपचारिकताएं पूरी करना
गुप्तकाशी पहुंचकर मैंने सबसे पहले मेडिकल फिटनेस प्रमाण पत्र और केदारनाथ यात्रा के लिए अनुमति प्रमाण पत्र बनवाया। अगले दिन सुबह मैंने गुप्तकाशी से सोनप्रयाग के लिए रवाना हुआ।
सोनप्रयाग से गौरीकुंड तक की पैदल यात्रा
सोनप्रयाग से गौरीकुंड तक का रास्ता पैदल तय करना पड़ता है। यह रास्ता बेहद खतरनाक और पथरीला है। गौरीकुंड 2013 की त्रासदी में पूरी तरह से तबाह हो चुका था। यहां पर बहुत कम ही लॉज और दुकानें बची हुई थीं।
गौरीकुंड से केदारनाथ तक की यात्रा
गौरीकुंड से केदारनाथ तक का रास्ता भी बेहद खतरनाक था। रास्ते में मुझे कई बार मुश्किलों का सामना करना पड़ा। केदारनाथ पहुंचकर मैं भावुक हो गया। मंदिर पूरी तरह से सुरक्षित था, लेकिन आसपास का क्षेत्र पूरी तरह से तबाह हो चुका था।
केदारनाथ की विभीषिका
केदारनाथ की विभीषिका देखकर मेरा दिल दहल गया। मंदिर के आसपास मलबे के ढेर लगे हुए थे। लोगों के मकान पूरी तरह से तबाह हो चुके थे। यह नजारा बहुत ही दर्दनाक था।
केदारनाथ से वापसी
केदारनाथ से वापसी का सफर भी उतना ही कठिन था जितना कि आने का सफर था। मुझे कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। अंततः मैं गुप्तकाशी पहुंच गया। गुप्तकाशी से मैंने कोटद्वार के लिए रवाना हुआ। कोटद्वार से निजामाबाद और फिर बनारस होते हुए मैं अपने घर पहुंच गया।
निष्कर्ष
यह यात्रा मेरे लिए एक अविस्मरणीय अनुभव था। इस यात्रा ने मुझे जीवन के कई सत्यों से रूबरू कराया। मैंने सीखा कि प्रकृति की शक्ति कितनी भयानक हो सकती है। मैंने यह भी सीखा कि आस्था की शक्ति कितनी मजबूत होती है। केदारनाथ की यात्रा ने मुझे जीवन के मूल्यों को समझने में मदद की।