काशी, जिसे वाराणसी या बनारस के नाम से भी जाना जाता है, मात्र एक शहर नहीं बल्कि भारत की आत्मा का प्रतिबिंब है। गंगा के तट पर बसा यह प्राचीन नगर युगों से आध्यात्मिकता, संस्कृति और परंपराओं का केंद्र रहा है। लेकिन जब बात छठ पूजा की हो, तो काशी एक नई ही रंगत में नजर आती है – आस्था, भक्ति और पारिवारिक एकता का एक जीवंत संगम।
🌄 छठ की तैयारी: एक पारिवारिक उत्साह
नवंबर 2024 की एक शांत सुबह, जब ठंडी हवाओं की सरसराहट दिल को छू रही थी, मेरी पत्नी ने एक प्रस्ताव रखा – “इस बार छठ काशी में मनाएँ।” यह सुनते ही बच्चों की आँखों में चमक आ गई और मेरे मन में वर्षों से देखे एक सपने का द्वार खुल गया। हमने तुरंत तैयारी शुरू की – कपड़े, पूजा सामग्री, बच्चों के पसंदीदा स्नैक्स, और सबसे जरूरी – हमारी आस्था।
🚆 यात्रा की शुरुआत: रोमांच और श्रद्धा
हमने अपनी यात्रा अनुग्रह नारायण रोड स्टेशन से शुरू की। ट्रेन के हर पड़ाव पर बच्चों की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी – “पापा, काशी कितनी दूर है?”, “गंगा कब दिखेगी?” पत्नी अपने मोबाइल में पूजा की विधियाँ देख रही थीं और मैं खिड़की से गुजरते खेतों और गाँवों को निहार रहा था। शाम 5 बजे हम बनारस स्टेशन पहुँचे – जीवन और आध्यात्म से भरे इस नगर ने जैसे बाहें फैलाकर हमारा स्वागत किया।
🏨 होटल से मंदिर तक: बनारस की आत्मा से पहला परिचय
हमने गोदौलिया के एक होटल में चेक-इन किया, जो काशी विश्वनाथ मंदिर से कुछ ही कदमों की दूरी पर था। हल्का विश्राम करने के बाद हम मंदिर की ओर बढ़े। जैसे-जैसे हम संकरी गलियों से गुजर रहे थे, बनारस की आत्मा हमारे साथ संवाद कर रही थी – मंदिर की घंटियाँ, फूलों की दुकानों की महक, और हर चेहरे पर श्रद्धा की झलक।
🙏 विश्वनाथ दर्शन: आस्था का चरम
काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन करना किसी जीवन की पूर्ति जैसा लगता है। कतार लंबी थी, लेकिन वातावरण में जो शांति और ऊर्जा थी, उसने हर प्रतीक्षा को पावन बना दिया। गर्भगृह में शिवलिंग के सामने खड़े होकर एक अद्भुत कंपन महसूस हुआ – मानो समस्त कष्ट धुल गए।
🍲 बनारसी स्वाद: चाट, पकौड़ी और पान का स्वर्ग
दर्शन के बाद हम गोदौलिया बाजार में निकले। यहाँ की चाट, टमाटर चाट, आलू टिकिया और गर्मा-गर्म पकौड़ियों का स्वाद लाजवाब था। और बनारसी पान! जैसे मुंह में संस्कृति घुल गई हो। बच्चों ने गर्म दूध और मलाई की मिठास का आनंद लिया।
🌊 गंगा स्नान और नौका विहार: आध्यात्मिक रोमांच
अगली सुबह सूरज निकलने से पहले हम दशाश्वमेध घाट पहुँच गए। गंगा की ठंडी लहरों में डुबकी लगाने का अनुभव जैसे आत्मा की शुद्धि कर गया। इसके बाद, नाव की सवारी शुरू हुई। नाविक ने जब घाटों के इतिहास और किवदंतियाँ सुनाईं – मणिकर्णिका घाट की मुक्ति की गाथा, अस्सी घाट का सांस्कृतिक पक्ष – तो ऐसा लगा जैसे इतिहास खुद हमारे सामने तैर रहा हो।
🏯 रामनगर किला और हनुमान मंदिर: इतिहास और आस्था का संगम
नदी पार करते ही रामनगर का किला दिखाई दिया – एक भव्य स्थापत्य जो अतीत की कहानियाँ कहता है। किले के संग्रहालय में तलवारें, वस्त्र, और रथ देखकर बच्चों की आँखें चमक उठीं। पास ही संकट मोचन हनुमान मंदिर में दर्शन किए और भजन-कीर्तन में सम्मिलित होकर मन को अपार शांति मिली।
🛍️ बनारसी बाज़ार: कला, संस्कृति और खुशबू
शाम को हमने स्थानीय बाजारों का रुख किया। रंग-बिरंगी बनारसी साड़ियाँ, लकड़ी के खिलौने, मिट्टी के दीपक – हर चीज़ में एक आत्मा बसती है। हमने कुछ मिठाइयाँ खरीदीं – खुरमा, लड्डू, और वो खास बनारसी ठंडई भी।
🌅 छठ पूजा: आस्था की चरम सीमा
छठ पूजा की संध्या अविस्मरणीय थी। गंगा घाट पर हजारों श्रद्धालु, ढोल-नगाड़ों की ध्वनि, लोकगीतों की गूंज और सूर्य देव की अराधना – यह दृश्य किसी स्वप्न से कम न था। हमने भी परिवार संग गंगा किनारे अर्घ्य दिया और छठ मैया से सुख-समृद्धि की प्रार्थना की।
👨👩👦 पारिवारिक बंधन और जीवन के पल
इस यात्रा में हमारा परिवार न केवल काशी की आध्यात्मिक ऊर्जा से जुड़ा, बल्कि एक-दूसरे के और भी करीब आ गया। बच्चों ने परंपराओं को महसूस किया, पत्नी ने अपनी पूजा में एक नई पूर्णता पाई, और मैंने अपने देश की संस्कृति की जड़ों को और गहराई से महसूस किया।
🏛️ काशी का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक वैभव
काशी विश्वनाथ मंदिर: भगवान शिव का प्रमुख ज्योतिर्लिंग।
गंगा घाट: दशाश्वमेध, मणिकर्णिका और अस्सी जैसे 80+ घाट।
रामनगर किला: राजाओं की ऐतिहासिक धरोहर।
भारत कला भवन: कला और इतिहास का खजाना।
संगीत और साहित्य: कबीर, तुलसीदास, रविशंकर जैसे विभूतियों की भूमि।
🍽️ बनारसी स्वाद और सुझाव
खास व्यंजन: चाट, बनारसी पान, कचौड़ी-जलेबी, ठंडई।
घूमने का सही समय: अक्टूबर से मार्च, विशेषतः छठ पूजा के दौरान।
टिप्स: भीड़ से बचने के लिए सुबह-सुबह यात्रा करें, घाटों पर सावधानी रखें, स्थानीय लोगों से संवाद करें।
✨ समापन: काशी की छवि मन में बसी रह गई
काशी की यह छठ यात्रा एक अलौकिक अनुभव थी – जहाँ आस्था, इतिहास, स्वाद और परिवार सब कुछ एक साथ बंध गए। यह केवल एक धार्मिक यात्रा नहीं थी, बल्कि आत्मा को छू लेने वाला एक अनुभव था जिसे हम जीवन भर संजोकर रखेंगे। अगली बार फिर जब गंगा की लहरें बुलाएँगी, हम निस्संदेह फिर काशी की ओर बढ़ेंगे।
"काशी बुलाती है... और हम खिंचे चले जाते हैं।"