शनिवार, 27 अक्टूबर 2012

रुद्रप्रयाग - देवताओं का संगम...

      मैंने जब रुद्रप्रयाग की यात्रा का फैसला किया, तो मन में केवल एक ही भाव था - आध्यात्मिक शांति और प्रकृति की गोद में खो जाना। रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड का एक छोटा सा शहर है, लेकिन इसका धार्मिक महत्व बहुत बड़ा है। यह अलकनंदा और मंदाकिनी नदियों का संगमस्थल है, जो इसे हिंदुओं के लिए एक पवित्र स्थल बनाता है।

श्रीनगर से 34 किलोमीटर की यात्रा के बाद, मैं रुद्रप्रयाग पहुंचा। जैसे ही मैंने दूर से संगम को देखा, मेरी आंखें खुशी से चमक उठीं। दोनों नदियां इतनी शांति से मिल रही थीं, मानो दो बहनें आपस में गले मिल रही हों। इस दृश्य ने मेरा मन मोह लिया।

रुद्रप्रयाग का धार्मिक महत्व:

रुद्रप्रयाग का नाम भगवान शिव के नाम पर रखा गया है। ऐसा माना जाता है कि यहां संगीत उस्ताद नारद मुनि ने भगवान शिव की उपासना की थी और नारद जी को आर्शीवाद देने के लिए ही भगवान शिव ने रौद्र रूप में अवतार लिया था। यही कारण है कि यहां स्थित शिव और जगदम्बा मंदिर बहुत प्रसिद्ध हैं। मैंने इन मंदिरों में जाकर भगवान शिव और माता जगदंबा का आशीर्वाद लिया।  

रुद्रप्रयाग से केदारनाथ धाम केवल 86 किलोमीटर दूर है। मैंने केदारनाथ धाम की यात्रा का भी प्लान बनाया था। केदारनाथ धाम की यात्रा बहुत ही रोमांचक थी। यहां का प्राकृतिक सौंदर्य देखकर मैं दंग रह गया।

निष्कर्ष:

रुद्रप्रयाग की यात्रा मेरे लिए एक अविस्मरणीय अनुभव रहा। यहां की शांति और प्राकृतिक सौंदर्य ने मुझे बहुत प्रभावित किया। अगर आप भी आध्यात्मिक शांति चाहते हैं, तो रुद्रप्रयाग की यात्रा जरूर करें।

कुछ सुझाव:

  • रुद्रप्रयाग की यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय अप्रैल से जून और सितंबर से नवंबर के बीच का होता है।
  • यात्रा के दौरान गर्म कपड़े और जूते जरूर ले जाएं।
  • केदारनाथ धाम की यात्रा के लिए आपको परमिट लेना होगा।
  • यात्रा के दौरान स्थानीय लोगों से बातचीत करें और उनकी संस्कृति के बारे में जानें।
अलकनंदा तथा मंदाकिनी नदियों का संगमस्थल





हिमालय की गोद में स्थित पवित्र धाम-केदारनाथ ...

  •     भारत के उत्तराखंड राज्य में स्थित केदारनाथ, हिंदू धर्म के लिए एक अत्यंत पवित्र तीर्थस्थल है। बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक, केदारनाथ मंदिर, अपनी प्राचीनता और भव्यता के लिए जाना जाता है। मैंने हाल ही में इस पवित्र स्थल की यात्रा की और वह अनुभव अविस्मरणीय रहा।

    मैंने अपनी यात्रा हरिद्वार से शुरू की। हरिद्वार से गौरीकुंड तक मोटर मार्ग से यात्रा की। गौरीकुंड से केदारनाथ तक का 14 किलोमीटर का रास्ता पैदल तय किया गया। रास्ता थोड़ा कठिन था, लेकिन प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेते हुए यह यात्रा बहुत ही सुखद रही।

    केदारनाथ मंदिर

    केदारनाथ मंदिर समुद्र तल से लगभग 3580 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। मंदिर की वास्तुकला अत्यंत खूबसूरत है। मंदिर के गर्भगृह में स्वयंभू शिवलिंग विराजमान है। मंदिर के चारों ओर कई छोटे-छोटे मंदिर और कुंड भी हैं।

    पंचकेदार

    केदारनाथ के आसपास पांच अन्य स्थानों को पंचकेदार के नाम से जाना जाता है। इनमें तुंगनाथ, रुद्रनाथ, मदमेश्वर और कल्पेश्वर शामिल हैं। इन स्थानों पर भी भगवान शिव के अलग-अलग रूपों की पूजा होती है।

    यात्रा के अनुभव

    केदारनाथ की यात्रा ने मुझे आध्यात्मिक शांति प्रदान की। यहां का वातावरण बहुत ही शांत और पवित्र है। मंदिर में दर्शन करने के बाद मन में एक अजीब सी शांति का अनुभव होता है।

    यात्रा के दौरान सावधानियां

    • केदारनाथ की यात्रा के लिए शारीरिक रूप से स्वस्थ होना जरूरी है।
    • यात्रा के दौरान गर्म कपड़े, टॉर्च, पानी की बोतल और पहचान पत्र जरूर साथ रखें।
    • यात्रा के दौरान स्थानीय लोगों की सलाह का पालन करें।

    निष्कर्ष

    केदारनाथ की यात्रा एक अविस्मरणीय अनुभव है। यदि आप आध्यात्मिक शांति और प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेना चाहते हैं, तो केदारनाथ की यात्रा अवश्य करें।
    • केदारनाथ जी का मन्दिर आम दर्शनार्थियों के लिए प्रात: 7:00 बजे खुलता है।
    • दोपहर एक से दो बजे तक विशेष पूजा होती है और उसके बाद विश्राम के लिए मन्दिर बन्द कर दिया जाता है।
    • पुन: शाम 5 बजे जनता के दर्शन हेतु मन्दिर खोला जाता है।
    • पाँच मुख वाली भगवान शिव की प्रतिमा का विधिवत श्रृंगार करके 7:30 बजे से 8:30 बजे तक नियमित आरती होती है।
    • रात्रि 8:30 बजे केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग का मन्दिर बन्द कर दिया जाता है।
    • शीतकाल में केदारघाटी बर्फ़ से ढँक जाती है। यद्यपि केदारनाथ-मन्दिर के खोलने और बन्द करने का मुहूर्त निकाला जाता है, किन्तु यह सामान्यत: नवम्बर माह की 15 तारीख से पूर्व (वृश्चिक संक्रान्ति से दो दिन पूर्व) बन्द हो जाता है और छ: माह *बाद अर्थात वैशाखी (13-14 अप्रैल) के बाद कपाट खुलता है।
    • ऐसी स्थिति में केदारनाथ की पंचमुखी प्रतिमा को ‘उखीमठ’ में लाया जाता हैं। इसी प्रतिमा की पूजा यहाँ भी रावल जी करते हैं।
    • केदारनाथ में जनता शुल्क जमा कराकर रसीद प्राप्त करती है और उसके अनुसार ही वह मन्दिर की पूजा-आरती कराती है अथवा भोग-प्रसाद ग्रहण करती है







उतराखण्‍ड के गुप्‍त काशी से दिखाता चौखम्‍भा चोटी 





केदारनाथ से 6 कि मी पहले रामबाडा 

रामबाडा से दिखता गरूडचटी एंव हिमालय पर्वत शिखर 

केदारधाटी 

केदारधाटी में बहता मनमोहक झरना 


गुरुवार, 25 अक्टूबर 2012

देवप्रयाग - जहां मिलती हैं अलकनंदा और भागीरथी...

    देवप्रयाग, उत्तराखंड का वह पवित्र स्थल है, जहां अलकनंदा और भागीरथी नदियों का संगम होता है और गंगा नदी का जन्म होता है। इस यात्रा वृत्तांत में मैं, एक यात्री के रूप में, देवप्रयाग की अपनी यात्रा का अनुभव आपके साथ साझा करूंगा।

ऋषिकेश से देवप्रयाग की यात्रा शुरू करते ही, पहाड़ों की शांत सुंदरता ने मुझे मोहित कर लिया। रास्ते में हरे-भरे पेड़, झरने और छोटे-छोटे गांव मुझे प्रकृति की गोद में ले जाते हुए महसूस हो रहे थे।

देवप्रयाग पहुंचते ही, मुझे एक पवित्र वातावरण महसूस हुआ। अलकनंदा और भागीरथी नदियों का संगम देखकर मैं अचंभित रह गया। दोनों नदियों का मिलन इतना मनमोहक था कि मानो प्रकृति ने यहां एक अद्भुत कलाकृति रची हो। संगम के पास स्थित शिव मंदिर और रघुनाथ मंदिर ने इस स्थान की पवित्रता को और बढ़ा दिया।

शिव मंदिर और रघुनाथ मंदिर

शिव मंदिर में शिवलिंग की पूजा की जाती है और मान्यता है कि यहां शिव जी ने तपस्या की थी। रघुनाथ मंदिर की द्रविड़ शैली की वास्तुकला देखकर मैं मंत्रमुग्ध हो गया। मंदिर के अंदर भगवान राम की मूर्ति विराजमान है।

देवप्रयाग की प्राकृतिक सुंदरता

देवप्रयाग की प्राकृतिक सुंदरता देखकर मैं मंत्रमुग्ध हो गया। यहां के पहाड़, नदियां, झरने और घने जंगल मन को मोह लेते हैं। मैंने देवप्रयाग के आसपास कई छोटे-छोटे ट्रेकिंग रूट्स भी देखे, जिनके बारे में कहा जाता है कि ये बेहद खूबसूरत हैं।

देवशर्मा और देवप्रयाग

मान्यता है कि देवशर्मा नामक एक तपस्वी ने यहां कड़ी तपस्या की थी, जिनके नाम पर इस स्थान का नाम देवप्रयाग पड़ा। देवप्रयाग को सुदर्शन क्षेत्र भी कहा जाता है और यहां कौवे नहीं दिखाई देते, जो कि एक आश्चर्य की बात है।

नकषत्र वेधशाला

देवप्रयाग में स्थित नकषत्र वेधशाला एक और आकर्षण का केंद्र है। इस वेधशाला में खगोलशास्त्र संबंधी पुस्तकों का बड़ा भंडार है और यहां देश के विभिन्न भागों से 1677 ई. से अब तक की संग्रह की हुई 3000 विभिन्न संबंधित पांडुलिपियां सहेजी हुई हैं। आधुनिक उपकरणों के अलावा यहां अनेक प्राचीन उपकरण जैसे सूर्य घटी, जल घटी एवं ध्रुव घटी जैसे अनेक यंत्र व उपकरण हैं जो इस क्षेत्र में प्राचीन भारतीय प्रगति व ज्ञान की द्योतक हैं।  

देवप्रयाग के निकट ही सीता विदा नामक एक स्थान है, जहां लक्ष्मण जी ने सीता जी को वन में छोड़ दिया था। सीता जी ने यहां अपने आवास हेतु कुटिया बनायी थी, जिसे अब सीता कुटी या सीता सैंण भी कहा जाता है।

रामायण का संबंध देवप्रयाग से

रामायण में कई बार देवप्रयाग का उल्लेख मिलता है। रामचंद्र जी, सीता जी और लक्ष्मण जी ने यहां तपस्या की थी। देवप्रयाग के उस तीर्थ के समान न तो कोई तीर्थ हुआ और न होगा।

अलकनंदा नदी

अलकनंदा नदी उत्तराखंड के सतोपंथ और भागीरथ कारक हिमनदों से निकलकर इस प्रयाग को पहुंचती है। नदी का प्रमुख जलस्रोत गौमुख में गंगोत्री हिमनद के अंत से तथा कुछ अंश खाटलिंग हिमनद से निकलता है।  

निष्कर्ष

देवप्रयाग की यात्रा मेरे लिए एक अविस्मरणीय अनुभव रहा। इस यात्रा ने मुझे प्रकृति की गोद में ले जाकर शांति और सुकून दिया। देवप्रयाग की पवित्रता और प्राकृतिक सुंदरता ने मुझे मोहित कर लिया। यदि आप भी प्रकृति और धर्म से जुड़ना चाहते हैं, तो देवप्रयाग की यात्रा आपके लिए एक बेहतरीन विकल्प हो सकती है।

कुछ सुझाव

  • देवप्रयाग जाने का सबसे अच्छा समय मार्च से जून तक होता है।
  • देवप्रयाग में ठहरने के लिए कई होटल और गेस्ट हाउस उपलब्ध हैं।
  • देवप्रयाग के आसपास कई छोटे-छोटे ट्रेकिंग रूट्स हैं, जिनका आनंद आप ले सकते हैं।
  • देवप्रयाग में स्थानीय भोजन का स्वाद जरूर लें।
  • देवप्रयाग की यात्रा के दौरान पर्यावरण का ध्यान रखें और कूड़ा न फेंके।

                                                         प्रवीण जी / घुमन्‍तु बाबा



अलकनंदा तथा भागीरथी नदियों के संगम  


बुधवार, 10 अक्टूबर 2012

मंदार पर्वत: पौराणिक गाथाओं और प्राकृतिक सौंदर्य का संगम - एक यात्रा वृत्तांत...

     बिहार के भागलपुर मंडल के बाँका जिले में स्थित मंदार पर्वत, धार्मिक आस्था और प्राकृतिक सौंदर्य का एक अद्भुत संगम है। यह लगभग 700 फीट ऊँचा पहाड़, भागलपुर शहर से करीब 45 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है।

पौराणिक महत्व:

हिंदू धर्मग्रंथों में इस पर्वत का उल्लेख "मंदराचल पर्वत" के नाम से मिलता है। पुराणों और महाभारत में वर्णित कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन के समय इसी पहाड़ का उपयोग मंथन दंड के रूप में किया गया था, जिससे अमृत (अमरत्व) को प्राप्त किया गया था। यह पर्वत भगवान विष्णु का पवित्र आश्रय स्थल भी माना जाता है। जैन धर्म को मानने वाले लोग प्रसिद्ध तीर्थंकर भगवान वासुपूज्य से इसे जुड़ा मानते हैं।

धार्मिक महत्व:

पहाड़ी की चोटी पर हिंदू और जैन धर्म के अनुयायियों के दो मंदिर एक दूसरे के बगल में स्थित हैं। मंदार पर्वत के पास ही "पापहरनी" नामक एक तालाब भी है, जो कि काफी पवित्र माना जाता है। कहा जाता है कि इसमें स्नान करने से मानसिक और शारीरिक रूप से स्फूर्ति मिलती है। तालाब के बीचों बीच भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का मंदिर भी स्थित है।

आदिवासी संस्कृति का केंद्र:

आदिवासी मूल के लोग इस क्षेत्र को सिद्धि क्षेत्र मानते हैं और मकरसक्रांति से एक दिन पूर्व यहाँ वो पूरी रात सिद्धि पूजा करते हैं। यहाँ मकरसक्रांति के अवसर पर सबसे बड़ा संताली मेला का आयोजन होता है जिसमें लाखों की संख्या में लोग आते हैं।

प्राकृतिक सौंदर्य:

मंदार पर्वत की प्राकृतिक सुंदरता और पर्वत के पास का तालाब यहाँ के वातावरण को और भी मनोहारी बनाते हैं। पर्वत की चट्टानों पर उत्कीर्ण सैकड़ों प्राचीन मूर्तियां, गुफाएं, ध्वस्त चैत्य और मंदिर धार्मिक और सांस्कृतिक गौरव के मूक साक्षी हैं।

यात्रा का अनुभव:

मंदार पर्वत की यात्रा एक अद्वितीय अनुभव है। यहाँ आकर आप प्राचीन काल की यादों में खो सकते हैं और धर्म और प्रकृति के संगम का आनंद ले सकते हैं। शांत वातावरण और मनोरम दृश्य आपको शांति और सुकून प्रदान करेंगे।

निष्कर्ष:

मंदार पर्वत धार्मिक आस्था और प्राकृतिक सौंदर्य का एक अनूठा संगम है। यह स्थान इतिहास, संस्कृति और धर्म से जुड़े लोगों के लिए एक आकर्षण का केंद्र है। यदि आप शांति और सुकून की तलाश में हैं, तो मंदार पर्वत आपके लिए एक आदर्श स्थान है।

यात्रा टिप्स:

  • कब जाएं: मकरसक्रांति के समय यहाँ मेला लगता है, आप उस समय जा सकते हैं।
  • क्या लाएं: पानी की बोतल, टोपी, सनस्क्रीन, और कैमरा।
  • कहाँ ठहरें: यहाँ कई छोटे होटल और गेस्ट हाउस उपलब्ध हैं।
  • क्या खाएं: स्थानीय व्यंजन का स्वाद जरूर लें।

पापहरनी तालाब: यह मंदार पर्वत के निकट स्थित है और इसे विशेष धार्मिक महत्व दिया जाता है।

मंगलवार, 9 अक्टूबर 2012

ओरछा: मध्यकालीन भारत की एक झलक...

ओरछा, मध्य प्रदेश का एक ऐतिहासिक नगर है, जो बुंदेला शासकों की समृद्ध विरासत को समेटे हुए है। 16वीं शताब्दी में स्थापित, यह नगर अपनी भव्य वास्तुकला, रंगीन इतिहास और धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है।

ओरछा का इतिहास और स्थापना

ओरछा की स्थापना बुंदेला राजवंश के संस्थापक रुद्र प्रताप सिंह ने की थी। इस नगर को बुंदेलखंड क्षेत्र का राजनीतिक और सांस्कृतिक केंद्र बनाया गया था। ओरछा का स्वर्णकाल बुंदेला शासकों के शासनकाल में देखा गया था, जब इस नगर ने कला, संस्कृति और वास्तुकला के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की। मुगल सम्राट अकबर और जहांगीर के साथ बुंदेला शासकों के मधुर संबंधों ने भी ओरछा के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना

ओरछा की वास्तुकला बुंदेला और मुगल शैलियों का एक अनूठा संगम है। यहां के महल, मंदिर और अन्य इमारतें अपनी भव्यता और जटिल नक्काशी के लिए जानी जाती हैं। राम राजा मंदिर, जहां भगवान राम को राजा के रूप में पूजा जाता है, ओरछा का सबसे प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर की वास्तुकला में हिंदू और मुस्लिम शैलियों का सम्मिश्रण देखने को मिलता है। जहांगीर महल, राज महल और शीश महल ओरछा के अन्य प्रमुख आकर्षण हैं।

ओरछा की किंवदंतियां और कहानियां

ओरछा से जुड़ी कई रोचक किंवदंतियां और कहानियां प्रचलित हैं। हरदौल की कहानी, जो जुझार सिंह के शासनकाल की है, ओरछा की सबसे प्रसिद्ध कहानियों में से एक है। इस कहानी में एक भाई की अपनी रानी के प्रति निष्ठा और त्याग को दर्शाया गया है।

ओरछा का सांस्कृतिक महत्व

ओरछा न केवल एक ऐतिहासिक स्थल है, बल्कि यह एक धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र भी है। यहां कई त्योहार और उत्सव मनाए जाते हैं, जिनमें राम नवमी सबसे महत्वपूर्ण है। राम नवमी के अवसर पर यहां लाखों श्रद्धालु आते हैं।

पर्यटन के लिए एक आकर्षक स्थल

ओरछा पर्यटकों के लिए एक आकर्षक स्थल है। यहां के शांत वातावरण, प्राचीन इमारतें और प्राकृतिक सौंदर्य पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। ओरछा में आप न केवल ऐतिहासिक स्थलों का भ्रमण कर सकते हैं, बल्कि स्थानीय संस्कृति और रीति-रिवाजों का भी अनुभव कर सकते हैं।

ओरछा की यात्रा क्यों करें?

  • मध्यकालीन भारत की झलक पाने के लिए
  • भव्य वास्तुकला का अनुभव करने के लिए
  • रोचक किंवदंतियों और कहानियों का आनंद लेने के लिए
  • शांत वातावरण में कुछ समय बिताने के लिए
  • स्थानीय संस्कृति और रीति-रिवाजों का अनुभव करने के लिए

ओरछा एक ऐसा स्थान है जहां इतिहास, संस्कृति और प्राकृतिक सौंदर्य एक साथ मिलते हैं। यदि आप भारत के इतिहास और संस्कृति में रुचि रखते हैं, तो ओरछा आपके लिए एक आदर्श यात्रा स्थल है।


Temple in orcha


Ghajir Mahal in Orcha

praveej ji orcha may Dabang style may 




खजुराहो यात्रा वृत्तांत: मध्यकालीन कला का अद्भुत नजारा

      मैंने जब खजुराहो जाने का निश्चय किया, तो मन में एक उत्सुकता सी थी। इस प्राचीन शहर के बारे में मैंने बहुत सुना था, खासकर इसके मंदिरों के बारे में। इतिहास के पन्नों में खोए हुए इन मंदिरों को अपनी आंखों से देखने का अनुभव वाकई अविस्मरणीय रहा।

खजुराहो पहुंचते ही मुझे लगा कि मैं समय के किसी और दौर में आ गया हूं। चारों ओर फैले हुए मंदिरों की नक्काशी और उनकी भव्यता देखकर मैं दंग रह गया। इन मंदिरों की कला इतनी बारीक और इतनी खूबसूरत थी कि मानो ये पत्थरों पर उकेरी गईं कोई जीवंत कहानियां हों।

मंदिरों का अनोखा संग्रह

खजुराहो के मंदिरों में हिंदू और जैन दोनों धर्मों के मंदिर शामिल हैं। इन मंदिरों की सबसे खास बात यह है कि इनमें मूर्तियों के माध्यम से जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाया गया है। प्रेम, रति, जन्म, मृत्यु, मोक्ष, ये सब कुछ इन मूर्तियों में बड़ी ही सहजता से दिखाई देता है।

कंदरिया महादेव मंदिर

खजुराहो के सभी मंदिरों में कंदरिया महादेव मंदिर सबसे प्रसिद्ध है। यह मंदिर अपनी भव्यता और नक्काशी के लिए जाना जाता है। इस मंदिर की दीवारों पर बनी मूर्तियां देखकर लगता है कि कलाकार ने पत्थर को जीवंत कर दिया हो।

लाइट एंड साउंड शो

शाम को मैंने लाइट एंड साउंड शो देखा। यह शो खजुराहो के इतिहास को जीवंत कर देता है। मंदिरों की दीवारों पर रंग-बिरंगे प्रकाश और संगीत के माध्यम से खजुराहो के राजाओं और रानियों की कहानियां सुनाई जाती हैं।

यात्रा का अनुभव

खजुराहो की यात्रा मेरे लिए एक यादगार अनुभव रहा। मैंने यहां इतिहास, कला और संस्कृति का एक अद्भुत संगम देखा। खजुराहो के मंदिर सिर्फ पत्थर की इमारतें नहीं हैं, बल्कि ये हमारे देश की समृद्ध विरासत का प्रतीक हैं।

निष्कर्ष

यदि आप इतिहास और कला से प्रेम करते हैं, तो खजुराहो आपके लिए एकदम सही जगह है। यहां आकर आप न केवल प्राचीन भारत की कला और संस्कृति का अनुभव कर सकते हैं, बल्कि अपने मन को शांति और सुकून भी दे सकते हैं।

सुझाव

  • खजुराहो जाने का सबसे अच्छा समय सर्दियों का मौसम होता है।
  • खजुराहो पहुंचने के लिए आप हवाई जहाज, ट्रेन या बस का उपयोग कर सकते हैं।
  • खजुराहो में रहने के लिए कई होटल और गेस्ट हाउस उपलब्ध हैं।
  • खजुराहो के आसपास घूमने के लिए आप टैक्सी या ऑटो रिक्शा का उपयोग कर सकते हैं।
         





nice temple looking 


praveen kumar pathak in khagaraho temple campus 

pathak with beautiful temple 


















सोमवार, 4 जून 2012

पुरी -: समुद्र, धर्म और आध्यात्म का संगम...

पुरी, भारत के पूर्वी तट पर स्थित एक प्राचीन शहर है, जो अपनी धार्मिक महत्ता और प्राकृतिक सुंदरता के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। मैंने हाल ही में पुरी की यात्रा की और यह एक अविस्मरणीय अनुभव रहा।

पुरी का समुद्र तट बेहद खूबसूरत है। सूर्योदय और सूर्यास्त के समय यहां का दृश्य मन मोह लेने वाला होता है। समुद्र की लहरें मन को शांत करती हैं और प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने का एक अद्भुत अवसर प्रदान करती हैं। हालांकि, यहां तैराकी के लिए सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि समुद्र की लहरें काफी तेज होती हैं।

पुरी, हिंदुओं के चार धामों में से एक है। यहां स्थित जगन्नाथ मंदिर विश्व प्रसिद्ध है। इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां विराजमान हैं। मंदिर का वास्तुशिल्प अद्भुत है और यहां का वातावरण बेहद पवित्र है। मैंने मंदिर में दर्शन किए और मन को शांति मिली।

रथयात्रा का उत्सव

मैंने पुरी में रथयात्रा का उत्सव भी देखा। यह एक बहुत ही भव्य और रंगीन उत्सव है। लाखों श्रद्धालु दूर-दूर से इस उत्सव में शामिल होने के लिए आते हैं। रथयात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों को रथ पर सवार करके शहर के चारों ओर घुमाया जाता है।

पुरी में और क्या देखें

  • गुंडिचा मंदिर: यह मंदिर जगन्नाथ मंदिर के पास स्थित है। यहां भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां रथयात्रा के दौरान कुछ दिनों के लिए विराजमान रहती हैं।
  • पुरी बीच: यह समुद्र तट सूर्यास्त देखने के लिए एक आदर्श स्थान है। यहां आप समुद्र में नहा सकते हैं, रेत पर खेल सकते हैं और स्थानीय व्यंजन का स्वाद ले सकते हैं।
  • आनंद बाजार: यह बाजार स्थानीय हस्तशिल्प और खाद्य पदार्थों के लिए प्रसिद्ध है। यहां आपको कई तरह के स्थानीय व्यंजन मिलेंगे।

यात्रा की योजना कैसे बनाएं

आप पुरी रेल, बस या हवाई जहाज से पहुंच सकते हैं। यहां आने का सबसे अच्छा समय सर्दियों का मौसम होता है। पुरी में ठहरने के लिए कई होटल और गेस्ट हाउस उपलब्ध हैं।

निष्कर्ष

पुरी एक ऐसा शहर है जहां आप धर्म, संस्कृति और प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद ले सकते हैं। अगर आप एक शांत और आध्यात्मिक यात्रा की योजना बना रहे हैं, तो पुरी आपके लिए एक आदर्श स्थान है।



पूरी का समुन्‍द्र तट पे नहाने का मजा ही कुछ और है 


पुरी में नारियल 5 रू में मिलता है इसका मजा जरूर ले 

प्रवीण जी भागों वरना समुन्‍द्र आप को अपने पास बुला लेगा 

प्रवीण जी समुनद्र को निहारते हुए 

मजा आ गया इसे देख कर 



कोणार्क का सूर्य मंदिर: विश्व धरोहर और कला का उत्कृष्ट नमूना...

मैंने जब कोणार्क सूर्य मंदिर जाने का फैसला किया, तो मन में एक अलग सी उत्सुकता थी। यह मंदिर सिर्फ एक इमारत नहीं है, बल्कि भारतीय इतिहास और कला का एक जीवंत उदाहरण है। जैसे ही मैं मंदिर के करीब पहुंचा, मेरी आंखें चकित रह गईं। विशाल सूर्य देव का रथ, जो पत्थर से बना था, इतना भव्य और जटिल था कि मैं दंग रह गया।

मंदिर का इतिहास:

कोणार्क सूर्य मंदिर 13वीं शताब्दी में गंग वंश के राजा नृसिंहदेव द्वारा बनवाया गया था। यह मंदिर सूर्य देव को समर्पित है और इसे सूर्य देव के रथ के रूप में बनाया गया है। मंदिर की वास्तुकला कलिंग शैली की है, जिसमें पत्थर पर की गई नक्काशी बेहद ही खूबसूरत है।

मंदिर की खूबियां:

  • सूर्य देव का रथ: मंदिर की सबसे खास बात है इसका रथ जैसा आकार। इस रथ को सात घोड़ों द्वारा खींचा जा रहा है और इसमें बारह पहिए हैं। प्रत्येक पहिए में आठ अर हैं जो दिन के आठ पहरों को दर्शाते हैं।
  • नक्काशी: मंदिर की दीवारों पर की गई नक्काशी बेहद ही जटिल और विस्तृत है। यहां आपको देवी-देवताओं, नर्तकियों, जानवरों और पौधों की अद्भुत नक्काशी देखने को मिलेगी।
  • कामसूत्र की मूर्तियां: मंदिर में कामसूत्र की मूर्तियां भी देखने को मिलती हैं। इन मूर्तियों को देखकर आप भारतीय संस्कृति की खुली सोच का अंदाजा लगा सकते हैं।
  • सूर्य देव की मूर्तियां: मंदिर में सूर्य देव की तीन अलग-अलग अवस्थाओं की मूर्तियां हैं - बाल्यावस्था, युवावस्था और प्रौढ़ावस्था।
  • नट मंदिर: मंदिर में एक नट मंदिर भी है जहां नर्तकियां सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए नृत्य करती थीं।

मंदिर का महत्व:

कोणार्क सूर्य मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल ही नहीं बल्कि एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर भी है। यह मंदिर भारतीय कला और स्थापत्य का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया है।

यात्रा का अनुभव:

जब मैं मंदिर के अंदर गया, तो मुझे लगा कि मैं समय में पीछे चला गया हूं। मंदिर की शांति और भव्यता ने मुझे मंत्रमुग्ध कर दिया। मैंने मंदिर की हर एक नक्काशी को ध्यान से देखा और उसकी खूबसूरती का आनंद लिया।

यात्रियों के लिए सुझाव:

  • मंदिर देखने के लिए सबसे अच्छा समय सुबह या शाम का होता है।
  • मंदिर के अंदर फोटोग्राफी करने की अनुमति नहीं है।
  • मंदिर के आसपास कई छोटे-छोटे दुकानें हैं जहां से आप स्मारक खरीद सकते हैं।
  • मंदिर के पास ही कई होटल और रेस्तरां हैं जहां आप ठहर सकते हैं और खाना खा सकते हैं।

निष्कर्ष:

कोणार्क सूर्य मंदिर एक ऐसा स्थान है जिसे हर भारतीय को कम से कम एक बार जरूर देखना चाहिए। यह मंदिर हमें हमारी समृद्ध संस्कृति और इतिहास के बारे में बताता है। अगर आप कभी उड़ीसा जाते हैं, तो कोणार्क सूर्य मंदिर जरूर देखें।







बराबर गुफाएँ: बिहार में स्थित चट्टानों को काटकर बनाई गई प्राचीन गुफाएँ...

          मैंने जब बराबर गुफाओं के बारे में सुना तो उत्सुकतावश मैं उनको देखने के लिए निकल पड़ा। ये गुफाएं भारत के प्राचीन इतिहास का एक जीवंत उदाहरण हैं और इनकी खूबसूरती और शांति ने मुझे मंत्रमुग्ध कर दिया। यह यात्रा वृत्तांत मेरी उस यात्रा का एक विस्तृत विवरण है, जिसमें मैंने गुफाओं के इतिहास, वास्तुकला और महत्व के बारे में जानने की कोशिश की है।

यात्रा का आरंभ

मैं पटना से जहानाबाद के लिए ट्रेन से रवाना हुआ। जहानाबाद से आगे मखदुमपुर तक बस द्वारा यात्रा की। मखदुमपुर से बराबर की पहाड़ियां लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर हैं। रास्ते में हरी-भरी वादियां और खेत देखकर मन प्रफुल्लित हो उठा।

बराबर की पहाड़ियां

जब मैं बराबर की पहाड़ियों पर पहुंचा तो मैं दंग रह गया। ये पहाड़ियां प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण थीं। पहाड़ियों के बीच बनी गुफाएं देखकर मेरी उत्सुकता और बढ़ गई।

गुफाओं का इतिहास

मैंने स्थानीय लोगों से बातचीत की और गुफाओं के बारे में जानकारी ली। उन्होंने बताया कि ये गुफाएं मौर्य काल की हैं और इनका निर्माण तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में हुआ था। इन गुफाओं का उपयोग आजीविका संप्रदाय के संन्यासियों द्वारा किया जाता था।

गुफाओं की वास्तुकला

गुफाओं की वास्तुकला अद्भुत है। इन गुफाओं को ग्रेनाइट पत्थर को तराशकर बनाया गया है। गुफाओं की दीवारें चिकनी और चमकदार हैं। गुफाओं के अंदर एक शांति और शांति का माहौल है।

गुफाओं का महत्व

बराबर की गुफाएं भारत के प्राचीन इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ये गुफाएं हमें उस समय के लोगों के जीवन और संस्कृति के बारे में जानकारी देती हैं। ये गुफाएं भारत की सांस्कृतिक विरासत का एक अनमोल खजाना हैं।

मेरा अनुभव

मैं जब गुफाओं के अंदर गया तो मुझे ऐसा लगा जैसे मैं समय में पीछे चला गया हूं। मैंने गुफाओं के अंदर ध्यान लगाया और शांति का अनुभव किया। यह मेरी जिंदगी का सबसे यादगार अनुभव था।

निष्कर्ष

बराबर की गुफाएं एक ऐसी जगह हैं जिसे हर किसी को एक बार जरूर देखना चाहिए। ये गुफाएं हमें इतिहास, संस्कृति और प्रकृति के बारे में बहुत कुछ सिखाती हैं। मैं सभी को बराबर की गुफाओं की यात्रा करने के लिए प्रेरित करता हूं।

यात्रा टिप्स

  • कब जाएं: साल भर किसी भी समय जाया जा सकता है, लेकिन सर्दियों का मौसम सबसे अच्छा होता है।
  • कैसे पहुंचें: पटना से जहानाबाद के लिए ट्रेन से और जहानाबाद से मखदुमपुर के लिए बस से जा सकते हैं।
  • क्या लाएं: पानी की बोतल, कैमरा, टोपी, सनस्क्रीन और आरामदायक कपड़े।
  • कहां ठहरें: मखदुमपुर में कई होटल और गेस्ट हाउस उपलब्ध हैं।
  • क्या खाएं: स्थानीय व्यंजन का स्वाद जरूर लें।

अन्य जानकारी

  • बराबर की गुफाओं के बारे में अधिक जानकारी के लिए आप स्थानीय पुस्तकालय या इंटरनेट पर जा सकते हैं।
  • आप स्थानीय टूर ऑपरेटर से भी संपर्क कर सकते हैं।

धन्यवाद

मुझे उम्मीद है कि यह यात्रा वृत्तांत आपको बराबर की गुफाओं के बारे में जानने में मदद करेगा।




















बराबर के लोमस ऋषि गुफा में ध्यान वर्ष 2005