गुरुवार, 25 अक्टूबर 2012

देवप्रयाग - जहां मिलती हैं अलकनंदा और भागीरथी...

    देवप्रयाग, उत्तराखंड का वह पवित्र स्थल है, जहां अलकनंदा और भागीरथी नदियों का संगम होता है और गंगा नदी का जन्म होता है। इस यात्रा वृत्तांत में मैं, एक यात्री के रूप में, देवप्रयाग की अपनी यात्रा का अनुभव आपके साथ साझा करूंगा।

ऋषिकेश से देवप्रयाग की यात्रा शुरू करते ही, पहाड़ों की शांत सुंदरता ने मुझे मोहित कर लिया। रास्ते में हरे-भरे पेड़, झरने और छोटे-छोटे गांव मुझे प्रकृति की गोद में ले जाते हुए महसूस हो रहे थे।

देवप्रयाग पहुंचते ही, मुझे एक पवित्र वातावरण महसूस हुआ। अलकनंदा और भागीरथी नदियों का संगम देखकर मैं अचंभित रह गया। दोनों नदियों का मिलन इतना मनमोहक था कि मानो प्रकृति ने यहां एक अद्भुत कलाकृति रची हो। संगम के पास स्थित शिव मंदिर और रघुनाथ मंदिर ने इस स्थान की पवित्रता को और बढ़ा दिया।

शिव मंदिर और रघुनाथ मंदिर

शिव मंदिर में शिवलिंग की पूजा की जाती है और मान्यता है कि यहां शिव जी ने तपस्या की थी। रघुनाथ मंदिर की द्रविड़ शैली की वास्तुकला देखकर मैं मंत्रमुग्ध हो गया। मंदिर के अंदर भगवान राम की मूर्ति विराजमान है।

देवप्रयाग की प्राकृतिक सुंदरता

देवप्रयाग की प्राकृतिक सुंदरता देखकर मैं मंत्रमुग्ध हो गया। यहां के पहाड़, नदियां, झरने और घने जंगल मन को मोह लेते हैं। मैंने देवप्रयाग के आसपास कई छोटे-छोटे ट्रेकिंग रूट्स भी देखे, जिनके बारे में कहा जाता है कि ये बेहद खूबसूरत हैं।

देवशर्मा और देवप्रयाग

मान्यता है कि देवशर्मा नामक एक तपस्वी ने यहां कड़ी तपस्या की थी, जिनके नाम पर इस स्थान का नाम देवप्रयाग पड़ा। देवप्रयाग को सुदर्शन क्षेत्र भी कहा जाता है और यहां कौवे नहीं दिखाई देते, जो कि एक आश्चर्य की बात है।

नकषत्र वेधशाला

देवप्रयाग में स्थित नकषत्र वेधशाला एक और आकर्षण का केंद्र है। इस वेधशाला में खगोलशास्त्र संबंधी पुस्तकों का बड़ा भंडार है और यहां देश के विभिन्न भागों से 1677 ई. से अब तक की संग्रह की हुई 3000 विभिन्न संबंधित पांडुलिपियां सहेजी हुई हैं। आधुनिक उपकरणों के अलावा यहां अनेक प्राचीन उपकरण जैसे सूर्य घटी, जल घटी एवं ध्रुव घटी जैसे अनेक यंत्र व उपकरण हैं जो इस क्षेत्र में प्राचीन भारतीय प्रगति व ज्ञान की द्योतक हैं।  

देवप्रयाग के निकट ही सीता विदा नामक एक स्थान है, जहां लक्ष्मण जी ने सीता जी को वन में छोड़ दिया था। सीता जी ने यहां अपने आवास हेतु कुटिया बनायी थी, जिसे अब सीता कुटी या सीता सैंण भी कहा जाता है।

रामायण का संबंध देवप्रयाग से

रामायण में कई बार देवप्रयाग का उल्लेख मिलता है। रामचंद्र जी, सीता जी और लक्ष्मण जी ने यहां तपस्या की थी। देवप्रयाग के उस तीर्थ के समान न तो कोई तीर्थ हुआ और न होगा।

अलकनंदा नदी

अलकनंदा नदी उत्तराखंड के सतोपंथ और भागीरथ कारक हिमनदों से निकलकर इस प्रयाग को पहुंचती है। नदी का प्रमुख जलस्रोत गौमुख में गंगोत्री हिमनद के अंत से तथा कुछ अंश खाटलिंग हिमनद से निकलता है।  

निष्कर्ष

देवप्रयाग की यात्रा मेरे लिए एक अविस्मरणीय अनुभव रहा। इस यात्रा ने मुझे प्रकृति की गोद में ले जाकर शांति और सुकून दिया। देवप्रयाग की पवित्रता और प्राकृतिक सुंदरता ने मुझे मोहित कर लिया। यदि आप भी प्रकृति और धर्म से जुड़ना चाहते हैं, तो देवप्रयाग की यात्रा आपके लिए एक बेहतरीन विकल्प हो सकती है।

कुछ सुझाव

  • देवप्रयाग जाने का सबसे अच्छा समय मार्च से जून तक होता है।
  • देवप्रयाग में ठहरने के लिए कई होटल और गेस्ट हाउस उपलब्ध हैं।
  • देवप्रयाग के आसपास कई छोटे-छोटे ट्रेकिंग रूट्स हैं, जिनका आनंद आप ले सकते हैं।
  • देवप्रयाग में स्थानीय भोजन का स्वाद जरूर लें।
  • देवप्रयाग की यात्रा के दौरान पर्यावरण का ध्यान रखें और कूड़ा न फेंके।

                                                         प्रवीण जी / घुमन्‍तु बाबा



अलकनंदा तथा भागीरथी नदियों के संगम  


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