शनिवार, 10 अक्टूबर 2015

नेपाल बंद के बीच जनकपुर की यात्रा: एक अनोखा अनुभव...

      25 सितंबर, 2015 को एक अद्भुत यात्रा की शुरुआत हुई। बकरीद की छुट्टी का लाभ उठाते हुए मैंने मुजफ्फरपुर से जनकपुर जाने का फैसला किया। यह यात्रा मेरे लिए एक यादगार अनुभव बन गई, क्योंकि नेपाल में नए संविधान के विरोध में चल रहे आंदोलन के कारण पूरा देश बंद था।

सुबह 6 बजे मुजफ्फरपुर से बस पकड़कर मैं सीतामढ़ी पहुंचा। वहां से जनकपुर के लिए कोई बस नहीं मिल रही थी। कारण था नेपाल में मध्यशी लोगों द्वारा लगाया गया 42 दिनों का बंद। इस स्थिति में गुरु नानक जी की वाणी याद आई, "तुम वहां तक जाओ जहां तक तुम्हें दिखाई देता है..." इसी प्रेरणा से मैंने भिठामोर जाने का फैसला किया, जो भारत-नेपाल सीमा पर स्थित है।

भिठामोर और सीमा पार:

भिठामोर पहुंचकर मैंने देखा कि जनकपुर केवल 25 किलोमीटर दूर है, लेकिन सीमा पार करने के लिए पैदल जाना पड़ता है। एक मोटरसाइकिल वाले ने मुझे 400 रुपये में जनकपुर छोड़ने का ऑफर दिया। पहले तो यह कीमत बहुत ज्यादा लगी, लेकिन नेपाल में पेट्रोल की कीमत और रुपये के मूल्य में अंतर को देखते हुए मैंने यह सौदा कर लिया।

जनकपुर की यात्रा:

रास्ते में हर जगह काले झंडे लगे हुए थे और दुकानें बंद थीं। नेपाली पुलिस हर जगह तैनात थी। 40 मिनट की यात्रा के बाद मैं जनकपुर पहुंचा। मंदिर परिसर शांत था और भीड़भाड़ कम थी। मंदिर बहुत सुंदर था और राम-सीता का विवाह मंडप भी देखने लायक था। मंदिर के पास दो खूबसूरत तालाब थे।

नेपाल बंद का प्रभाव:

नेपाल बंद के कारण जनकपुर की सुंदरता थोड़ी फीकी पड़ गई थी। दुकानें बंद थीं और लोगों में असंतोष का माहौल था। मुझे पता चला कि मध्यशी लोगों ने नए संविधान में दिए गए अधिकारों से वंचित होने के कारण यह आंदोलन शुरू किया था।

यात्रा का अंत:

शाम 5 बजे मैं वापस भिठामोर लौट आया और वहां से मुजफ्फरपुर के लिए बस पकड़ी। रात 10 बजे मैं मुजफ्फरपुर पहुंचा।

निष्कर्ष:

यह यात्रा मेरे लिए एक अनोखा अनुभव था। मैंने नेपाल के लोगों की समस्याओं को करीब से देखा और समझा। इस यात्रा ने मुझे और अधिक सहनशील और अनुकूल बनाया।      




विवाह मंडप जहा पर राम सीता का विवाह हुआ था 

राम जानकी मंदिर 



राम जानकी मंदिर पिछु मे 

मंगलवार, 3 फ़रवरी 2015

केसरिया का स्तूप: बौद्ध धर्म का गौरवशाली इतिहास...

  मुजफ्फरपुर के साहेबगंज प्रखंड में एक परियोजना के तहत बने भवनों का निरीक्षण करते हुए, मुझे केसरिया की यात्रा करने का मौका मिला। यह यात्रा मेरे लिए एक यादगार अनुभव बन गई, क्योंकि मुझे बौद्ध धर्म के एक महत्वपूर्ण स्थल के बारे में जानने का अवसर मिला।

साहेबगंज प्रखंड के बैधनाथपुर गांव में स्थित एक भवन का निरीक्षण करने के बाद, मैंने सुना कि केसरिया मात्र 6 किलोमीटर दूर है। यह सुनकर मैं उत्साहित हो गया और केसरिया जाने का फैसला किया।

केसरिया का स्तूप: एक ऐतिहासिक स्थल

केसरिया, चंपारण से 35 किलोमीटर दूर स्थित है। यह एक प्राचीन ऐतिहासिक स्थल है, जहां एक विशाल बौद्ध स्तूप स्थित है। कहा जाता है कि भगवान बुद्ध ने वैशाली से कुशीनगर जाते हुए एक रात केसरिया में बिताई थी। उन्होंने लिच्छवियों को अपना भिक्षा-पात्र प्रदान किया था।

सम्राट अशोक का योगदान:

सम्राट अशोक ने यहां एक स्तूप का निर्माण करवाया था। यह स्तूप विश्व का सबसे बड़ा स्तूप माना जाता है। वर्तमान में, यह स्तूप 1400 फीट के क्षेत्र में फैला हुआ है और इसकी ऊंचाई 51 फीट है। अलेक्जेंडर कनिंघम के अनुसार, मूल स्तूप 70 फीट ऊंचा था।

केसरिया का महत्व:

केसरिया बौद्ध धर्म के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है। यहां आकर हमें भगवान बुद्ध के जीवन और उनके उपदेशों के बारे में अधिक जानने का अवसर मिलता है। यह स्थान हमें बौद्ध धर्म की समृद्ध संस्कृति और इतिहास से रूबरू कराता है।

यात्रा का अनुभव:

केसरिया पहुंचकर मैं स्तूप के सामने खड़ा हो गया। स्तूप की विशालता और भव्यता देखकर मैं अचंभित रह गया। मैंने स्तूप के चारों ओर घूमते हुए इसका निरीक्षण किया। मुझे यहां शांति और आत्मविश्वास का अनुभव हुआ।

निष्कर्ष:

केसरिया की यात्रा मेरे लिए एक अविस्मरणीय अनुभव रहा। इस यात्रा ने मुझे बौद्ध धर्म के प्रति और अधिक गहरा सम्मान दिया। मैं सभी को केसरिया की यात्रा करने का सुझाव दूंगा।

यात्रा की जानकारी:

  • कैसे पहुंचें: केसरिया जाने के लिए मोतिहारी नजदीकी रेलवे स्टेशन है। यहां से सड़क मार्ग से भी आया जा सकता है।
  • कहां ठहरें: रहने-ठहरने की व्यवस्था मोतिहारी में उपलब्ध है।
  • यात्रा का सबसे अच्छा समय: अक्टूबर से मार्च तक का समय यात्रा करने के लिए सबसे अच्छा होता है







स्‍तूप को साफ सफाई का काम चल रहा है 1993 से यहां पर खुदाई चल रही हे 

स्‍तूप का कुछ हिस्‍सा साफ हो चुका है आधा हिस्‍सा बाकी है 

स्‍तूप के नजदीक एक रोचक वूक्ष 

सफाई करते कर्मी 






इसी भवन को देखने के लिए गया था जिसमें ग्राम संगठन संगठन की कार्यालय खोने को प्रस्‍ताव है 









मंगलवार, 20 जनवरी 2015

गणतंत्र का उद्गम और बौद्ध धर्म का केंद्र - वैशाली...

   वर्ष 2014, एक ऐसा साल था जब जीवन की व्यस्तता और कुछ आर्थिक चुनौतियों ने यात्रा के मेरे सपनों को थोड़ा धुंधला कर दिया था। घर बनाने की जिम्मेदारी ने मेरे कदमों को बांध रखा था। परंतु, नए साल की शुरुआत के साथ ही मेरे मन में एक नई उम्मीद जग गई। राजस्थान आजीविका विकास परिषद से जुड़ी 47 महिलाओं के साथ मुजफ्फरपुर में आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम ने मुझे एक अनोखा अवसर दिया। ग्राम संगठन के शैक्षणिक भ्रमण के लिए वैशाली के समीप सरैया प्रखंड के रूपौली गांव में जयहिंद ग्राम संगठन का दौरा किया गया। इस यात्रा ने न केवल मुझे बल्कि राजस्थान से आई महिलाओं को भी भारतीय इतिहास के एक महत्वपूर्ण अध्याय से रूबरू कराया।

वैशाली: विश्व का पहला गणतंत्र

रूपौली गांव से मात्र 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित वैशाली, विश्व का पहला गणतंत्र था। भगवान महावीर का जन्मस्थान होने के कारण यह जैन धर्म के लिए भी एक पवित्र स्थल है। इसके अलावा, भगवान बुद्ध का भी इस धरती पर तीन बार आगमन हुआ था। वैशाली में स्थित बौद्ध स्तूप और अशोक स्तंभ इस बात के साक्षी हैं।

यात्रा का आरंभ

ग्राम संगठन की बैठक के बाद हम वैशाली की ओर रवाना हुए। यहां पर कई अच्छी होटल और एक बौद्ध स्तूप भी है। हमने तलाब में नाव की सवारी का भी आनंद लिया। इसके बाद हम कोल्हुआ गए जहां अशोक स्तंभ स्थित है। यह स्थल मुजफ्फरपुर से 35 किलोमीटर और पटना से 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। चारों ओर आम और लीची के पेड़ों से घिरा यह स्थल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है।

वैशाली का इतिहास

वैशाली का नामकरण महाभारत काल के एक राजा विशाल के नाम पर हुआ था। ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार वैशाली में ही विश्व का सबसे पहला गणतंत्र यानि "रिपब्लिक" कायम किया गया था। भगवान महावीर की जन्म स्थली होने के कारण जैन धर्म के मतावलंबियों के लिए वैशाली एक पवित्र स्थल है। भगवान बुद्ध का इस धरती पर तीन बार आगमन हुआ, यह उनकी कर्म भूमि भी थी। महात्मा बुद्ध के समय सोलह महाजनपदों में वैशाली का स्थान मगध के समान महत्वपूर्ण था।

  • अभिषेक पुष्करणी: प्राचीन वैशाली गणराज्य द्वारा ढाई हजार वर्ष पूर्व बनवाया गया पवित्र सरोवर है।
  • विश्व शांति स्तूप: जापान के निप्पोनजी बौद्ध समुदाय द्वारा बनवाया गया यह स्तूप शांति का प्रतीक है।
  • बावन पोखर मंदिर: पालकालीन यह मंदिर हिंदू देवी-देवताओं को समर्पित है।
  • राजा विशाल का गढ़: यह प्राचीनतम संसद माना जाता है।
  • कुण्‍डलपुर: भगवान महावीर का जन्मस्थान।

यात्रा का अनुभव

वैशाली की यात्रा ने मुझे इतिहास के उस सुनहरे अध्याय से रूबरू कराया जब भारत लोकतंत्र का गढ़ था। यहां की प्राकृतिक सुंदरता और ऐतिहासिक महत्व ने मुझे अत्यंत प्रभावित किया। राजस्थान से आई महिलाओं के लिए भी यह यात्रा एक यादगार अनुभव रही। हमने न केवल इतिहास के बारे में जाना बल्कि एक-दूसरे के साथ भी घनिष्ठ संबंध स्थापित किए।

निष्कर्ष

वैशाली की यात्रा ने मुझे यह समझाया कि हमारा देश कितना समृद्ध इतिहास और संस्कृति का धरोहर है। हमें अपने अतीत को समझना चाहिए और उससे प्रेरणा लेनी चाहिए। इस यात्रा ने मुझे एक नई ऊर्जा दी है और मुझे और भी यात्राएं करने के लिए प्रेरित किया है।


वैशाली में बना विश्‍व शांति स्‍तुप

कोल्‍हूआ का बोध स्‍तूप एवं अशोक स्‍तम्‍भ 






कोल्‍हूआ बौध स्‍तूप जाने का मुख्‍य द्वार


कोल्‍हूआ बौध स्‍तूप के अन्‍दर का फोटु 

कोल्‍हूआ का स्‍तुप

स्‍तुप गेट के बाहर का चित्र

भगवान महावीर का जन्‍म स्‍थल कुण्‍उलग्राम 

भगवान महावीर का मन्दिर कहा जाता है की यहां पर ही महावीर का जनम हुआ था 




यहां पर खाने पिने का व्‍यवस्‍था है कुण्‍डलग्राम में 

कोल्‍हूआ में बौध स्‍तूप के साथ अशोक कालिन स्‍तम्‍भ 

पोखर जो बौध स्‍तुप के पास है 

कुण्‍डलग्राम में बना मुख्‍य मन्दिर के पास का होटल यहां पर रात्री विश्राम किया जा सकता है