रविवार, 10 अगस्त 2025

तुंगनाथ: बादलों के बीच शिव का धाम और हिमालय की अनमोल धरोहर...


उत्तराखंड के गढ़वाल हिमालय की बर्फीली चोटियों के बीच, जहाँ बादलों का डेरा रहता है, वहाँ स्थित है तुंगनाथ धाम। यह सिर्फ एक पवित्र तीर्थस्थल नहीं, बल्कि प्रकृति प्रेमियों और रोमांच के शौकीनों के लिए एक स्वर्ग है। 3,680 मीटर (लगभग 12,073 फीट) की ऊँचाई पर स्थित यह मंदिर, पंच केदारों में सबसे ऊँचा है। यहाँ आकर ऐसा लगता है मानो हम सीधे स्वर्ग के द्वार पर खड़े हों। भगवान शिव को समर्पित यह प्राचीन मंदिर, प्रकृति की मनमोहक छटा और धार्मिक आस्था का एक ऐसा अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है, जिसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है।

सफर का रोमांच: हिमालय की गोद में एक नई शुरुआत
मेरी यात्रा की शुरुआत उत्तराखंड के ऋषिकेश से हुई, जो कि गंगा के किनारे बसा एक शांत शहर है। ऋषिकेश से गोपेश्वर होते हुए चोपता तक का रास्ता ही अपने आप में एक रोमांचक अनुभव था। अलकनंदा नदी हमारे साथ-साथ चलती रही, उसकी बहती धारा की मधुर ध्वनि ने सफर को और भी खुशनुमा बना दिया। रुद्रप्रयाग से ऊखीमठ की ओर बढ़ते हुए, हम मंदाकिनी घाटी के शानदार नजारों से रूबरू हुए। रास्ता भले ही संकरा था, लेकिन चारों ओर बिखरी प्राकृतिक सुंदरता हर डर को भुला देती थी। हिमालय की गोद में यह सफर, किसी सपने के सच होने जैसा था।

चोपता: बुग्यालों का स्वर्ग
चोपता पहुँचना मानो एक अलग ही दुनिया में प्रवेश करना था। इसे "भारत का स्विट्जरलैंड" कहा जाता है, और यह नाम इसकी खूबसूरती को पूरी तरह से दर्शाता है। मीलों तक फैले मखमली घास के मैदान, जिन्हें बुग्याल कहते हैं, और उन पर खिले हुए रंग-बिरंगे फूल देखकर मन खुशी से झूम उठा। यहाँ की हवा में एक अजीब सी ताजगी और शांति थी, जो दिल को छू जाती है।
चोपता से तुंगनाथ तक का तीन किलोमीटर का पैदल मार्ग ही इस यात्रा का सबसे खास हिस्सा है। यह रास्ता भले ही चढ़ाई वाला था, लेकिन हर कदम पर दिखने वाले मनमोहक दृश्य सारी थकान दूर कर देते थे। रास्ते में हिमालय की बर्फीली चोटियाँ हमें लगातार अपनी ओर खींच रही थीं, और ऐसा लग रहा था मानो वे हमें स्वागत कर रही हों।

तुंगनाथ मंदिर: आस्था और शांति का शिखर
जैसे ही मैं तुंगनाथ मंदिर पहुँचा, मुझे एक अद्भुत और अलौकिक शांति का अनुभव हुआ। प्राचीन शिव मंदिर की भव्यता और चारों ओर फैला पवित्र वातावरण मन को प्रसन्नता से भर देता है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण पांडवों ने महाभारत के युद्ध के बाद किया था। यहाँ आकर न केवल भगवान शिव के दर्शन होते हैं, बल्कि यहाँ की ऊर्जा भी मन को शांत और सकारात्मक बना देती है।
मंदिर से थोड़ी ही दूरी पर चंद्रशिला चोटी है। यहाँ से हिमालय का विराट रूप साफ दिखाई देता है। चौखंभा, नंदा देवी, त्रिशूल जैसी विशाल चोटियों का अद्भुत दृश्य यहाँ से साफ-साफ दिखाई देता है, जो जीवन में एक बार जरूर देखना चाहिए। चंद्रशिला पर पहुँचकर मैंने खुद को प्रकृति के बहुत करीब पाया।

देवहरिया ताल: प्रकृति का प्रतिबिंब
चोपता के पास स्थित देवहरिया ताल भी एक ऐसा स्थान है, जिसे देखे बिना यात्रा अधूरी है। यह एक खूबसूरत झील है, जिसकी शांत सतह पर चौखंभा और नीलकंठ जैसी बर्फीली चोटियों के प्रतिबिंब साफ दिखाई देते हैं। यह दृश्य इतना मनमोहक था कि मैं बस उसे निहारता ही रह गया। ताल के चारों ओर बाँस और बुरांश के घने जंगल हैं, जो यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता को और भी बढ़ा देते हैं।

निष्कर्ष और यात्रा के लिए सुझाव
तुंगनाथ की यात्रा मेरे लिए एक यादगार अनुभव रही। हिमालय की गोद में, प्रकृति और आध्यात्मिकता के बीच शांति और सुकून का अनुभव करना, जीवन का एक अनमोल पल था। यह यात्रा सिर्फ एक धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि एक आत्म-खोज का सफर भी है।
अगर आप भी तुंगनाथ जाने की योजना बना रहे हैं, तो कुछ बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है:
 * सर्वश्रेष्ठ समय: तुंगनाथ जाने का सबसे अच्छा समय मई से नवंबर तक का है। इस दौरान मौसम सुहावना रहता है और बर्फबारी नहीं होती।
 * कैसे पहुँचें: आप ऋषिकेश से गोपेश्वर या ऊखीमठ तक बस या टैक्सी से पहुँच सकते हैं। उसके बाद, चोपता से तुंगनाथ तक का मार्ग पैदल ही तय करना पड़ता है।
 * ठहरने की सुविधा: चोपता, ऊखीमठ और गोपेश्वर में आपको रहने के लिए होटल और गेस्ट हाउस आसानी से मिल जाएँगे।
 * क्या लाएँ: चूँकि मौसम कभी भी बदल सकता है, इसलिए अपने साथ गर्म कपड़े, अच्छी क्वालिटी के ट्रेकिंग शूज़, एक पानी की बोतल, और एक कैमरा जरूर रखें।
तुंगनाथ की यात्रा प्रकृति प्रेमियों और धार्मिक आस्था रखने वालों, दोनों के लिए एक अनूठा अनुभव है। यदि आप जीवन की भागदौड़ से दूर, शांति और सुकून की तलाश में हैं, तो तुंगनाथ आपके लिए एक आदर्श स्थान है।











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