10 अक्टूबर 2007 — यह वह दिन था जब मैंने जीविका (BRLPS) में शामिल होने के लिए आवेदन किया। उस समय मैं एक युवा था, जो रोजगार की तलाश में विभिन्न परीक्षाएं दे चुका था, लेकिन सफलता कहीं नहीं मिली थी। कई मित्र रेलवे, बैंक, सेना और अन्य विभागों में चयनित हो चुके थे, और मैं अपने भविष्य को लेकर असमंजस में था।
तभी जीविका का विज्ञापन आया। मन में उम्मीद की एक किरण जगी। आवेदन किया, और चयन भी हो गया। यह मेरे जीवन का पहला बड़ा मोड़ था। मुझे नहीं पता था कि यह सिर्फ एक नौकरी नहीं, बल्कि मेरे जीवन का सबसे बड़ा मिशन बनने वाला है।
चयन के बाद मुझे 45 दिनों के प्रशिक्षण के लिए आंध्र प्रदेश के कुरनूल, वारंगल और खम्मम जिलों में भेजा गया। वहां मैंने देखा कि किस तरह Community Based Organisations (CBO) के माध्यम से गरीबी उन्मूलन और महिला सशक्तिकरण का कार्य हो रहा है। गांवों में महिलाएं स्वयं सहायता समूह (SHG) चला रही थीं, निर्णय ले रही थीं, और अपने समुदाय को बदल रही थीं।
वहां का अनुभव मेरे लिए आंख खोल देने वाला था। मुझे महसूस हुआ कि बिहार में भी यही बदलाव लाना संभव है — बस जरूरत है सही दिशा, सामूहिक प्रयास और विश्वास की। उस समय सरकार की प्राथमिकता भी यही थी कि ग्रामीण गरीबों को सशक्त किया जाए और महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया जाए।
शुरुआती संघर्ष – गांव के सामुदायिक भवन में...
प्रशिक्षण के बाद मुझे तीन महीने तक गांव के सामुदायिक भवन में रहकर कार्य करना पड़ा। यह आसान नहीं था। गांव की परिस्थितियां, सीमित संसाधन, लोगों का प्रारंभिक संकोच — सब कुछ चुनौतीपूर्ण था। कई बार मन में भटकाव आता कि क्या मैं सही रास्ते पर हूँ?
इसी दौरान मेरे पिताजी की बातों ने मेरा हौसला बढ़ाया। उन्होंने कहा,
> "कोई भी कार्य मिले, तन-मन से करो। साथ ही, आगे बढ़ने के अवसरों के लिए भी प्रयास करते रहो।"
इन शब्दों ने मुझे जीविका में अपने काम को पूरी निष्ठा से करने के लिए प्रेरित किया।
12 मई 2008 को मैंने जीविका में औपचारिक रूप से योगदान दिया। यह केवल नौकरी का पहला दिन नहीं था, बल्कि एक आंदोलन का हिस्सा बनने का क्षण था।
पिछले 17 वर्षों में मैंने बिहार के कई जिलों में कार्य किया — गया (बोधगया, आमस, खिजरसराय), जहानाबाद (हुलासगंज), मुजफ्फरपुर और औरंगाबाद।
हर जिला, हर गांव ने मुझे नई सीख दी।
मेरे काम का केंद्र बिंदु था:
स्वयं सहायता समूह (SHG) का गठन और सुदृढ़ीकरण
महिलाओं का वित्तीय और सामाजिक सशक्तिकरण
सामुदायिक नेतृत्व का विकास
गांवों में मैंने देखा कि कैसे कठिन परिस्थितियों में भी लोग बदलाव के लिए तैयार रहते हैं, बस उन्हें सही मार्गदर्शन और भरोसा चाहिए।
2014 में मुझे मुजफ्फरपुर में प्रशिक्षण अधिकारी की जिम्मेदारी मिली। यह मेरे करियर का एक महत्वपूर्ण पड़ाव था।
अब मेरा काम सिर्फ स्वयं कार्य करना नहीं था, बल्कि हजारों दीदियों (SHG सदस्य) और फील्ड कर्मियों को प्रशिक्षित करना था, ताकि वे आगे और लोगों तक बदलाव की अलख पहुंचा सकें।
प्रशिक्षण केवल जानकारी देने का साधन नहीं था — यह सोच और दृष्टिकोण को बदलने का माध्यम था।
वर्तमान में मैं औरंगाबाद जिला में प्रशिक्षण अधिकारी के पद पर कार्यरत हूँ। मेरी कोशिश रहती है कि हर प्रशिक्षण केवल औपचारिकता न हो, बल्कि हर प्रतिभागी के जीवन में वास्तविक परिवर्तन का कारण बने।
जीविका सिर्फ एक योजना नहीं है, बल्कि यह एक जनांदोलन है। इसका उद्देश्य है —
ग्रामीण गरीबी को कम करना
महिलाओं को वित्तीय, सामाजिक और मानसिक रूप से सशक्त करना
लोगों को अपने जीवन के निर्णय खुद लेने में सक्षम बनाना
पिछले 17 वर्षों में जीविका द्वारा किए गए प्रमुख कार्य...
1. स्वयं सहायता समूह (SHG) गठन – लाखों महिलाओं को संगठित कर मजबूत सामुदायिक ढांचा बनाया।
2. वित्तीय समावेशन – बैंक लिंकेज, आंतरिक ऋण, और वित्तीय साक्षरता के माध्यम से आर्थिक स्वतंत्रता।
3. सामुदायिक संस्थाओं का निर्माण – गांव संगठन, क्लस्टर लेवल फेडरेशन (CLF), और उत्पादक समूह।
4. महिला सशक्तिकरण – निर्णय लेने की क्षमता, नेतृत्व और सामाजिक भागीदारी में वृद्धि।
5. आजिविका संवर्धन – खेती, पशुपालन, लघु व्यवसाय, किचन गार्डनिंग, और हस्तशिल्प को बढ़ावा।
6. सामाजिक विकास – स्वास्थ्य, पोषण, स्वच्छता और शिक्षा पर जागरूकता।
7. सामाजिक सुरक्षा योजनाएं – Health Risk Fund, FSF, SJY जैसी पहलों से आर्थिक सुरक्षा।
2018 में शुरू हुई सतत जीविकोपार्जन योजना (SJY) ने अत्यधिक गरीब परिवारों के जीवन में नई रोशनी डाली।
इस योजना के तहत:
महिलाओं को SHG में संगठित किया गया
उन्हें खेती, पशुपालन, किचन गार्डनिंग, और लघु उद्योग में प्रशिक्षित किया गया
उत्पादक समूह बनाकर उन्हें बाजार से जोड़ा गया
स्वास्थ्य और आर्थिक सुरक्षा की योजनाएं दी गईं
यह केवल आय बढ़ाने की योजना नहीं थी, बल्कि गरिमा और आत्मसम्मान के साथ जीवन जीने की दिशा थी।
इन 17 वर्षों में मैंने सीखा:
विश्वास सबसे बड़ा बदलाव लाता है — जब किसी को उसकी क्षमता पर भरोसा होता है, तो वह असंभव को भी संभव कर सकता है।
समुदाय की शक्ति अपार है — SHG की महिलाएं मिलकर समाज की सोच बदल सकती हैं।
प्रशिक्षण जीवन बदल सकता है — सही समय पर दी गई सही सीख पूरी जिंदगी का रास्ता बदल देती है।
जीविका में बिताए गए 17 साल मेरे लिए सिर्फ नौकरी नहीं थे — यह एक कर्मयोग था।
हर बार जब मैं किसी महिला को आत्मविश्वास से बोलते देखता हूँ, किसी किसान को अपने उत्पाद बाजार में बेचते देखता हूँ, या किसी नवयुवक को स्वरोजगार करते देखता हूँ — तो लगता है, "हाँ, मेरा जीवन सार्थक है।"
व्यक्तिगत संदेश
यदि आप भी मानते हैं कि —ग्रामीण भारत का विकास जरूरी है,हर हाथ में हुनर होना चाहिए,बदलाव केवल नीति में नहीं, व्यवहार में होना चाहिए तो जीविका आपके लिए केवल एक नौकरी नहीं, बल्कि एक मिशन है।
समापन
12 मई 2008 से आज तक की मेरी यात्रा एक विचार से शुरू हुई थी, जो अब मेरा जीवन बन चुकी है।
मेरा नाम किसी बड़ी किताब में न हो, कोई बात नहीं,
लेकिन अगर किसी ग्रामीण महिला की आत्मनिर्भरता में मेरा योगदान है —
तो यही मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि है।
"जीविका मेरे लिए केवल संस्था नहीं, बल्कि गांव-गांव में जाग रही उम्मीद की चेतना है।"