गुरुवार, 25 जुलाई 2024

माँ ताराचंडी धाम: शक्ति का प्रतीक, आस्था का केंद्र...

     माँ तारा विंध्य पर्वत श्रेणी की कैमूर पहाड़ी की प्राकृतिक गुफा में विराजमान हैं। देवी प्रतिमा के बगल में बारहवीं सदी के खरवार वंशी राजा महानायक प्रताप धवलदेव ने अपने पुत्र शत्रुधन द्वारा यहाँ एक बड़ा शिलालेख लिखवाया है। जैसा तंत्रशास्त्रों और प्रतिमा विज्ञान में माँ तारा का रूप वर्णित है वैसे ही माँ तारा की प्रतिमा में चार हाथ हैं। दाहिने हाथो में खड्ग और कैंची है जबकि बायें में मुंड और कमल है। शव पर बायाँ पैर आगे है। कद छोटा है , लम्बोदर और नील वर्ण है। कटी में ब्याघ्र चर्म लिपटा है। माँ तारा मंदिर परिसर में अवस्थित माँ तारा और सूर्य की प्रतिमायें तथा बाहर रखी अग्नि की खंडित प्रतिमा ये सभी गुप्त काल के अंत की या परवर्ती गुप्त कालीन हैं। यहाँ खरवार राजा द्वारा शिलालेख लिखवाने का अर्थ है कि ताराचंडी देवी की प्रसिद्धि उसी समय फैल चुकी थीमाँ तारा चंडी पीठ भारत के 52 पीठों में सबसे पुराना पीठ माना जाता है। पुराण के अनुसार भगवान शिव की पत्नी "सती" ने अपने पिता के घर अपने स्वामी का अपमान होने पर जब आत्मदाह किया, तब भगवान शिव क्रोध मे आकार सती के शव को उठाकर भयंकर तांडव नृत्य करने लगे। ऐसे मे विश्व द्वंश होने का संकट मंडराने लगा। भगवान विष्णु ने विश्व की रक्षा करने हेतु अपने सुदर्शन चक्र से सती के शव को खंड-खंड कर दिया। वो सभी खंड भारत उपमहाद्वीप के विभिन्न स्थानो पर गिरे। इन सभी स्थानों को " शक्ति पीठ" माना जाता है और हिंदुओं के लिए सभी पीठ बहुत महत्वपूर्ण है। माँ तारा-चण्डी पीठ पर सती का "दाहिना नेत्र" गिरा था। यहाँ एक अति प्राचीन मंदिर है, जिसे "माँ तारा-चण्डी मंदिर" कहा जाता है, उसे माँ तारा-चण्डी का आवास कहा जाता है।  । माना जाता है कि मां सती का दाहिना नेत्र यहां गिरा था, इसलिए इसका नाम ताराचंडी पड़ा। यह भी कहा जाता है कि जब गौतम बुद्ध ज्ञान प्राप्त करके यहां आए थे, तो मां ताराचंडी ने उन्हें एक बालिका के रूप में दर्शन दिए थे तथा उन्हें सारनाथ जाने का निर्देश दिया, जहां बुद्ध ने पहली बार उपदेश दिया था। मोक्ष देने के लिए जाना जाता है, पूजा की विधि सात्विक है। ऐसा कहा जाता है कि जो लोग यहां पूजा करते हैं, उन पर मां लक्ष्मी की वर्षा होती है। तारा चंडी मंदिर की अवस्थिति सासाराम से दक्षिण दिशा मे 5 किलोमीटर की दूरी पर है। यहाँ बहुत हिन्दू भक्तों का समागम होता है। धुआँ कुंड प्रपात भी यहाँ है जो पर्यटकों को आकर्षित करता है। 
माँ ताराचंडी धाम: शक्ति का प्रतीक, आस्था का केंद्र
कैमूर की पहाड़ियों में छिपा हुआ एक ऐसा धाम है, जो सदियों से श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र रहा है। यह है माँ ताराचंडी धाम। एक प्राकृतिक गुफा में विराजमान माँ तारा की प्रतिमा, अपनी अद्भुत शक्ति और आकर्षक इतिहास के कारण लाखों भक्तों को अपनी ओर खींचती है।

इतिहास की गहराइयों से जुड़ा धाम .
प्राचीन काल का साक्षी: माँ ताराचंडी पीठ, भारत के 52 शक्तिपीठों में से एक है और माना जाता है कि यह सबसे पुराना पीठ है।
सती के दाहिने नेत्र का निवास: पुराणों के अनुसार, सती के शरीर के खंड विभिन्न स्थानों पर गिरे थे और जहां-जहां उनका अंग गिरा, वहां शक्तिपीठ की स्थापना हुई। माँ ताराचंडी पीठ पर सती का दाहिना नेत्र गिरा था।
खरवार वंश का योगदान: बारहवीं सदी में खरवार वंशी राजा महानायक प्रताप धवलदेव ने यहां एक शिलालेख लिखवाया, जिससे पता चलता है कि उस समय से ही माँ तारा की पूजा-अर्चना की जा रही थी।
गुप्तकाल की कलाकृतियां: मंदिर परिसर में मिली गुप्तकालीन मूर्तियां इस धाम के प्राचीन इतिहास को और गहरा बनाती हैं।

माँ तारा का दिव्य स्वरूप
चार भुजाएं: माँ तारा की प्रतिमा में चार भुजाएं हैं, जिनमें खड्ग, कैंची, मुंड और कमल हैं।
नील वर्ण: माँ का वर्ण नीला है और वे शव पर बायां पैर आगे रखे हुए हैं।
शांत और उग्र रूप: माँ तारा का रूप शांत और उग्र दोनों है। वे अपने भक्तों को शरण देती हैं और दुष्टों का नाश करती हैं।

धार्मिक महत्व और आस्था
मोक्ष का मार्ग: माँ तारा को मोक्ष प्रदान करने वाली देवी माना जाता है।
लक्ष्मी की वर्षा: ऐसा माना जाता है कि जो लोग यहां पूजा करते हैं, उन पर माँ लक्ष्मी की कृपा होती है।
सात्विक पूजा: यहां सात्विक विधि से पूजा की जाती है।
श्रद्धालुओं का केंद्र: यह धाम श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है और यहां वर्ष भर मेले लगते रहते हैं।

यात्रा का अनुभव.
शांति का अनुभव: इस धाम में पहुंचते ही मन शांत हो जाता है और एक अद्भुत शांति का अनुभव होता है।
प्राकृतिक सौंदर्य: कैमूर की पहाड़ियों का प्राकृतिक सौंदर्य और धुआँ कुंड झरना इस यात्रा को और यादगार बनाते हैं।

आध्यात्मिक अनुभव: यहां पहुंचकर आध्यात्मिक अनुभव होता है और मन को शांति मिलती है।
माँ ताराचंडी धाम न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह इतिहास, संस्कृति और प्राकृतिक सौंदर्य का संगम भी है। यदि आप शांति और आध्यात्मिक अनुभव की तलाश में हैं, तो यह आपके लिए एक आदर्श स्थान है।

              


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