आज हम पहुंचे हैं बिहार के औरंगाबाद जिले में स्थित देवकुंड। यह स्थान सिर्फ एक गांव नहीं है, बल्कि भारतीय इतिहास और धर्म का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। यहां आकर लगता है जैसे समय थम गया हो और हम हजारों साल पीछे चले गए हों।
महर्षि च्यवन की तपोभूमि
देवकुंड को महर्षि च्यवन की तपोभूमि के रूप में जाना जाता है। मान्यता है कि भगवान श्री राम ने गया में अपने पितरों का पिंडदान करने से पहले यहां भगवान शिव की स्थापना की थी। बाद में महर्षि च्यवन ने इसी स्थल को अपनी तपोभूमि बनाया और वर्षों तक तपस्या की।
अग्निकुंड का रहस्य
यहां का सबसे आश्चर्यजनक हिस्सा है पांच सौ से अधिक वर्षों से जलता हुआ अग्निकुंड। यह कुंड बाबा बालपुरी द्वारा स्थापित किया गया था जिन्होंने च्यवन ऋषि के आश्रम में साधना की थी। आज भी, भले ही नियमित रूप से हवन न होता हो, कुंड की अग्नि कभी बुझती नहीं है।
राख के नीचे की अग्नि
ऊपर से देखने पर कुंड राख का ढेर लगता है, लेकिन जैसे ही आप थोड़ा सा हाथ डालते हैं, आपको अग्नि का एहसास होता है। कुंड में धूप डालकर राख को हटाने पर अग्नि धूप को पकड़ लेती है और धुआं निकलना शुरू हो जाता है।
महर्षि च्यवन और सुकन्या की कहानी
यहां महर्षि च्यवन की प्रतिमा और बाबा बालदेव का आसन भी है। कुंड के सामने बाबा बालपुरी की समाधि स्थल पर दस छोटे-छोटे शिवलिंग स्थापित हैं।
कुंड से कुछ दूरी पर सहस्त्रधारा के किनारे भगवान दुधेश्वरनाथ का मंदिर है, जहां पहले भगवान श्री राम और बाद में च्यवन ऋषि ने पूजा अर्चना की थी। यहां की मान्यता है कि महर्षि च्यवन जब तपस्या में लीन थे, तब राजा शरमाती की पुत्री सुकन्या ने गलती से उनकी आंखें फोड़ दी थीं। इसके बाद महर्षि च्यवन और सुकन्या का विवाह हुआ और अश्विनी कुमारों ने यज्ञ करके महर्षि च्यवन को युवा बना दिया था।
आज भी जीवंत है धर्म
आज भी सावन के महीने में लोग दूर-दूर से भगवान शिव के दर्शन करने आते हैं और हवन कुंड में धूप अर्पित करते हैं। सहस्त्रधारा में बड़े पैमाने पर छठ पर्व मनाया जाता है।
एक अद्भुत अनुभव
देवकुंड की यात्रा एक अद्भुत अनुभव है। यहां आकर आपको इतिहास, धर्म और प्रकृति का संगम देखने को मिलता है। यह एक ऐसा स्थान है जहां आप शांति और आध्यात्मिकता का अनुभव कर सकते हैं।
यहां आने के लिए क्यों:
- महर्षि च्यवन की तपोभूमि
- पांच सौ वर्ष पुराना अग्निकुंड
- भगवान दुधेश्वरनाथ का मंदिर
- सहस्त्रधारा
- शांति और आध्यात्मिक अनुभव
कैसे पहुंचें:
आप पटना,अरवल ,जहनाबाद ,गोह ,रफीगंज ,औरंगाबाद या गया से बस द्वारा देवकुंड पहुंच सकते हैं।
कब जाएं:
सावन का महीना यहां आने का सबसे अच्छा समय है।
यह यात्रा वृत्तांत उन लोगों के लिए उपयोगी होगा जो:
- इतिहास और धर्म में रुचि रखते हैं
- शांति और आध्यात्मिकता की तलाश में हैं
- एक अनोखे स्थान की यात्रा करना चाहते हैं
अंत में:
देवकुंड की यात्रा एक ऐसा अनुभव है जिसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। इसे महसूस किया जाना चाहिए। यदि आप कभी बिहार आते हैं, तो देवकुंड को अपनी यात्रा सूची में जरूर शामिल करें।
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