गुरुवार, 2 अक्टूबर 2025

औरंगाबाद जिला के पौराणिक स्थलों ( पंचदेव धाम, महुआ धाम, गजना धाम एवं पुनपुन नदी का उद्गम स्थल कुंड) की रोमांचक और ज्ञानवर्धक यात्रा...


       दिनांक 2 अक्टूबर 2025, वह दिन जब विजयदशमी का पावन पर्व राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जन्मदिन के साथ एक अद्भुत संयोग बना रहा था। काम का बोझ कम था, और मन में था इस अनमोल समय का सदुपयोग करने का विचार। हमारे परिवार ने फैसला किया— क्यों न किसी पौराणिक स्थल का भ्रमण किया जाए, जहाँ मन को सच्चा सुकून और शांति मिले!

मेरी धर्मपत्नी अनीता  के सुझाव पर हमने एक शानदार यात्रा की योजना बनाई: पंचदेव महादेव धाम, महुआ धाम, गजनाथ धाम और अंत में पुनपुन नदी का उद्गम स्थल (कुंड पर)। इस रोमांचक यात्रा में हमारे पड़ोसी एवं बिहार ग्रामीण बैंक, खेराबिंद  के शाखा प्रबंधक ध्रुव कुमार जी, उनकी धर्मपत्नी  ऋतू कुमारी और उनकी प्यारी बेटी वर्णिका एवं मेरा दोनों बच्चे दुगू ,पुचु  खुशी-खुशी हमारे हमसफर बनने को तैयार हो गए।

ठीक 11:00 बजे, हमने औरंगाबाद से एक स्कार्पियो  किराए पर ली और प्रस्थान किया। गाड़ी में मैं, मेरी पत्नी, मेरे दोनों प्यारे बच्चे डुग्गू-पुचु, ध्रुव जी, उनकी पत्नी ऋतू जी और उनकी  बच्ची वर्णिका सवार थे। सबसे पहले हम लोगों ने कुटुंबा प्रखंड में स्थित पांच देव धाम पहुंचे। हमारी यात्रा का पहला पड़ाव कुटुंबा प्रखंड का पंचदेव धाम था। यह स्थान सचमुच बहुत खूबसूरत और शांत है, जो पाँच हिंदू देवी-देवताओं को समर्पित है— भगवान शंकर, बजरंगबली, राम-सीता, राधा-कृष्ण और माँ दुर्गा। हमने सभी मंदिरों के दर्शन किए और बच्चों ने मिलकर खूब मस्ती की। यह मंदिर परिसर इतना रमणीक है कि वहाँ पहुँचकर मन को तुरंत ही एक अनूठी शांति का अनुभव हुआ।

इसके बाद हम कुटुंबा से करीब 4 किलोमीटर दूर महुआ धाम की ओर बढ़े, जहाँ माँ दुर्गा का मंदिर स्थापित है। यह स्थल अपने वार्षिक "भूतों के मेले" के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ ऐसी मान्यता है कि मानसिक रूप से परेशान या जिन्हें भूत-प्रेत की बाधा होती है, वे यहाँ आकर माँ दुर्गा के सामने झूमते और प्रार्थना करते हैं, जिससे उन्हें मुक्ति मिलती है। सच्चाई यह है कि इस अद्भुत और कहीं-कहीं भयावह दृश्य को देखकर मेरी पत्नी और ध्रुव जी की पत्नी थोड़ी चिंतित थीं कि कहीं उन्हें भी कोई "भूत-विचार" न पकड़ ले! हमने उन्हें समझाया कि यह सब केवल मानसिक परेशानी या अंधविश्वास का परिणाम होता है, कोई वास्तविक भूत-प्रेत नहीं। इस विश्वास ने उन्हें हिम्मत दी और वे सब मंदिर में गए। बच्चों के लिए यह एक नया और रोमांचक दृश्य था, जिसे देखकर उन्होंने खूब मजे किए। यह यात्रा का एक ऐसा हिस्सा था जिसने आस्था और विज्ञान के बीच के द्वंद्व को करीब से दिखाया।

हमारी अगली मंजिल नवीनगर प्रखंड की थी, जो औरंगाबाद से लगभग 40 किलोमीटर दूर है। नवीनगर से हमें गजना धाम की ओर बढ़ना था। गजनाथ धाम: बिहार-झारखंड का प्रसिद्ध शक्तिपीठ हैं। नवीनगर से गजना धाम की दूरी लगभग 20 किलोमीटर है, लेकिन सड़कों की अत्यंत खराब स्थिति के कारण हमें यह दूरी तय करने में लगभग एक घंटा लग गया। रोड की खराब हालत ने हमें थोड़ा परेशान किया, लेकिन जैसे ही हम बिहार और झारखंड के बॉर्डर पर स्थित इस प्रसिद्ध धार्मिक पर्यटन स्थल पर पहुँचे, सारी थकान काफूर हो गई। गजना धाम की सबसे खास बात यह है कि यहाँ माँ दुर्गा की पूजा उनके निराकार रूप में की जाती है। मंदिर के गर्भगृह में कोई पिंड या मूर्ति स्थापित नहीं है। हमने मंदिर परिसर में जाकर पूजा-पाठ किया। इस धाम का एक और आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि यहाँ प्रसाद के रूप में घी के पुए मिट्टी की हांडी में पकाए जाते हैं, जहाँ मात्र 250 ग्राम घी में सैकड़ों पुए बन जाते हैं— एक अद्भुत और चमत्कारी अनुभव!

यह धाम न केवल औरंगाबाद बल्कि झारखंड के पलामू और जपला जिले में भी बहुत प्रसिद्ध है। यहाँ शादी-विवाह जैसे कार्यक्रम भी आयोजित होते रहते हैं। हमने यहाँ स्थानीय लोगों और दुकानदारों से बात करके इस जगह के महत्व और कार्यक्रमों के बारे में जानकारी ली। गजना धाम ने यहाँ के ग्रामीण क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को मजबूती दी है और सैकड़ों लोगों को रोजगार का माध्यम मिला है। बच्चों ने यहाँ चार्ट, समोसे खाए और धार्मिक चीजों को जानने-समझने का प्रयास किया। गजना धाम के आस-पास छोटा नागपुर पठार  दिखाई देते हैं, जो इस ग्रामीण परिवेश को और भी मनमोहक बना देते हैं।

गजना धाम से हम पुनपुन नदी के उद्गम स्थल की ओर चल पड़े, जिसे स्थानीय भाषा में 'कुंड पर' कहा जाता है। गजना धाम से कुंड पर की दूरी लगभग 10 किलोमीटर है। इस 10 किलोमीटर की यात्रा का 4 किलोमीटर का हिस्सा हमें झारखंड राज्य की सीमा में ले गया, और यहाँ भी रोड की स्थिति बहुत खराब थी, जिसके चलते हमें 10 किलोमीटर तय करने में करीब 40 मिनट लग गए। करीब 4:00 बजे हम इस प्रकृति के मनोरम स्थल पर पहुँचे। चारों ओर पहाड़ और हरियाली से घिरा यह स्थल मन को मोह लेने वाला था। यहाँ भगवान शिव का एक छोटा मंदिर भी है, जहाँ हमने पूजा की। पहाड़ों से उतरते हुए नदी के जल की कल-कल की आवाज ने हमें मंत्रमुग्ध कर दिया। बच्चों को बताया गया कि इसी स्थल से पुनपुन नदी का उद्गम होता है, जो सैकड़ों किलोमीटर का सफर तय करके पटना के फतुहा में गंगा नदी में मिल जाती है। इस नदी की सिंचाई में  और धार्मिक दोनों महत्व है, खासकर पिंडदान के लिए। समय की कमी के कारण हम यहाँ केवल 40 मिनट ही रुक पाए, पर यह समय प्रकृति की गोद में बिताया गया एक अमूल्य क्षण था। शाम करीब 4:40 बजे हम कुंड पर से औरंगाबाद के लिए रवाना हुए। नवीनगर और कुटुंबा होते हुए हम लगभग 6:00 बजे शाम को औरंगाबाद पहुँच गए।

यह यात्रा न केवल एक धार्मिक और पर्यटन का अनुभव था, बल्कि एक रोमांचक एडवेंचर भी था। हमने औरंगाबाद जिले के भीतर छिपे हुए कई दर्शनीय स्थलों का भ्रमण किया, जो मूड फ्रेश करने और पिकनिक मनाने के लिए शानदार जगहें हैं। इस यात्रा ने हमें मानसिक शांति दी, नई जगहों को जानने का अवसर दिया, और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के महत्व को भी समझा।

इस यादगार यात्रा को प्रवीण कुमार पाठक (मैं), ग्रामीण बैंक के प्रबंधक ध्रुव कुमार और उनके परिवार ने मिलकर खूब मस्ती और आनंद के साथ यादगार बनाया। हालाँकि, सड़कों की खराब स्थिति ने हमें सरकारी व्यवस्था की ओर सोचने पर मजबूर किया, कि अगर इन स्थलों तक संपर्क मार्ग बेहतर हो जाएं, तो न केवल पर्यटन बढ़ेगा बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी और रोजगार का सृजन होगा।

सवाल..

आपकी दृष्टि में, महुआ धाम जैसे स्थलों पर उमड़ने वाली भीड़ केवल अंधविश्वास का प्रतीक है, या क्या यह कहीं न कहीं उन लोगों के लिए एक प्रकार की 'मानसिक चिकित्सा' का काम करती है जिन्हें आधुनिक सुविधाओं तक पहुँच नहीं है?


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