मंगलवार, 21 अक्टूबर 2025

श्री राम की नगरी में दिवाली: अयोध्या धाम की भव्यता और भक्तिमय यात्रा...

     दिनांक 19 अक्टूबर 2025 की रात्रि में वाराणसी की आध्यात्मिक यात्रा के समापन के बाद, 20 अक्टूबर 2025 की सुबह हमने भगवान राम की पावन नगरी, अयोध्या धाम की ओर प्रस्थान किया। यह यात्रा केवल एक भौगोलिक बदलाव नहीं था, बल्कि एक ऐसा संक्रमण था जो हमें त्रेतायुग की पौराणिक भूमि और आधुनिक भारत के सबसे बड़े सांस्कृतिक पुनरुत्थान के केंद्र तक ले जा रहा था।

वाराणसी लखनऊ इंटरसिटी एक्सप्रेस से लगभग सुबह 10:00 बजे हम अयोध्या पहुँचे। अयोध्या धाम रेलवे स्टेशन की सुंदरता, स्वच्छता और आधुनिकता ने मन को पहली नज़र में ही मोह लिया। स्टेशन का भव्य और सुसज्जित रूप इस बात का प्रमाण था कि अयोध्या एक नए युग की दहलीज पर खड़ी है। स्टेशन के निकट ही एक सुविधाजनक धर्मशाला में हमने अपना ठिकाना बनाया।
सुबह की ताजगी और अयोध्या की हवा में घुली भक्ति की सुगंध ने हमें तुरंत तैयार होने के लिए प्रेरित किया। नाश्ते में धर्मशाला के पास ही इडली-डोसा का आनंद लिया, जो उत्तर और दक्षिण भारत के स्वाद का एक सुखद संगम था। फिर, पूरे परिवार ने रामलला के मंदिर की ओर 1 किलोमीटर की पैदल यात्रा शुरू की।

रामलला मंदिर परिसर की भव्यता अविश्वसनीय थी। सैकड़ों एकड़ में फैला यह क्षेत्र अभी भी निर्माण के अधीन है, और इसे पूरी तरह से तैयार होने में शायद एक या दो साल और लगेंगे। लेकिन इस निर्माणाधीन अवस्था में भी इसकी विशालता, इसका वास्तुशिल्प और इसकी योजनाबद्धता मन को अचंभित कर रही थी। मंदिर परिसर की दिव्यता, और रामलला का भव्य राम मंदिर, जो प्राचीनता और आधुनिकता का अद्भुत संगम है, सचमुच दर्शनीय था।
पत्थरों की नक्काशी, कला और वास्तुकला की बारीकियां, और निर्माण में उपयोग की गई उन्नत तकनीकें यह दर्शाती हैं कि यह मंदिर आने वाले समय में विश्व के सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक होगा। श्री राम प्रभु की सुंदर, आकर्षक और मनमोहक मूर्ति देखकर हृदय में एक अविस्मरणीय शांति और आनंद का संचार हुआ। इस स्थल पर आने के बाद मेरा मन पुलकित हो उठा।
सबसे बड़ी खुशी इस बात की थी कि जिस स्थल से दीपावली का वास्तविक आरंभ हुआ, जहाँ से श्री राम की गूंज और विजय की शुरुआत हुई, उसी स्थल पर दीपोत्सव के अवसर पर आने का यह मौका मिला। यह मेरे लिए एक रोचक और प्रेरणादायक अनुभव था, जिसने दिवाली के महत्व को एक नई परिभाषा दी।
दर्शन के उपरांत, हम धर्मशाला लौटे और बगल में स्थित बिरला धर्मशाला में मात्र \text{40} रुपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से स्वादिष्ट और सात्विक भोजन का आनंद लिया।

दोपहर के भोजन और कुछ देर विश्राम के पश्चात, लगभग \text{4:00} बजे हम सब परिवार राम की पैड़ी की ओर चल पड़े। यह सरयू नदी के तट पर स्थित वह पवित्र स्थल है, जहाँ प्रतिवर्ष दीपोत्सव का भव्य आयोजन किया जाता है। सरयू नदी का शांत प्रवाह, उसकी भव्यता और तट का सौंदर्य मन को मोह रहा था। हमने उस पवित्र नदी के दर्शन किए, जिसके किनारे बैठकर श्री राम ने अयोध्या का शासन किया।
यहाँ हमने गोलगप्पे खाए, जो न केवल स्वादिष्ट थे, बल्कि स्वच्छता के मानकों पर भी खरे उतरे। यह इस बात का संकेत था कि अयोध्या अब पर्यटकों की सुविधा और स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हो रहा है।

शाम 6:00 बजे सरयू आरती शुरू हुई। आरती की गूंज, घंटियों की ध्वनि और दीपों की जगमगाहट ने पूरे वातावरण को भक्तिमय बना दिया। दिवाली के अवसर पर तो पूरा शहर ही जगमग रोशनी में नहाया हुआ था। हर तरफ रोशनियां बिखर रही थीं, जो एक अत्यंत सुंदर और अलौकिक दृश्य प्रस्तुत कर रही थीं। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो पूरी अयोध्या नगरी श्री राम के आगमन के लिए दीपों की माला से सजी हो।
आरती के बाद उत्तर प्रदेश पर्यटन द्वारा आयोजित एक भव्य कार्यक्रम का अनुभव हुआ, जिसने पूरी यात्रा का सार बन गया।

लेजर लाइट शो और {ड्रोन} नवाचार: उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग के इस नवाचार ने सचमुच मेरा मन मंत्रमुग्ध कर दिया। लेजर लाइटर शो और हजारों {ड्रोन} के माध्यम से आकाश में प्रभु राम से संबंधित चित्रों का वर्णन किया जा रहा था। यह एक आधुनिक तकनीक और प्राचीन गाथा का अद्भुत मिश्रण था। आकाश में तैरती श्री राम, हनुमान, रामसेतु और अयोध्या के दृश्य मानो साक्षात उपस्थित थे। यह कार्यक्रम न केवल आकर्षक और नया था, बल्कि इसने दर्शकों को अयोध्या के बारे में और श्री राम प्रभु के बारे में ज्ञानवर्धक जानकारी भी दी। तकरीबन आधे घंटे तक चला यह शो मेरे और मेरे परिवार के लिए एक अविस्मरणीय अनुभव था। इसे देखकर मेरे परिवार का दिल गदगद हो गया, खासकर बच्चों (दिव्यांशु और प्रियांशु) ने इस तकनीकी चमत्कार का भरपूर आनंद लिया।
रात्रि का भ्रमण और लता मंगेशकर चौक: कार्यक्रम के समापन के पश्चात, हम पैदल ही अयोध्या की सजी-धजी सड़कों पर घूमने निकले। शहर को इस तरह से सजाया गया था, मानो हम सीधे त्रेतायुग की अयोध्या में आ गए हों, जब श्री राम वनवास से लौटकर आए थे और पहली दीपावली मनाई गई थी।
हम लता मंगेशकर चौक पहुँचे, जो अपनी सुंदरता और वीणा की कलाकृति के लिए जाना जाता है। चौक के पास एक होटल में हमने रात्रि का भोजन किया और पैदल ही अपने धर्मशाला तक पहुँचे। रात्रि {10:00} बजे हमने विश्राम किया।

अगले दिन सुबह {6:00} बजे हम उठकर तैयार हुए और अयोध्या के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत को देखने निकले। हमने राजा दशरथ महल, कनक भवन और हनुमानगढ़ी के दर्शन किए।
 * हनुमानगढ़ी: 76 सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपर स्थित यह मंदिर, जहाँ संकटमोचन हनुमान जी महाराज विराजमान हैं, एक शक्तिशाली आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र है।
 * कनक भवन: भगवान राम और माता सीता को कैकेयी द्वारा दिया गया यह महल अपनी सोने-जड़ित मूर्तियों और भव्यता के लिए जाना जाता है।
 * राजा दशरथ महल: यह महल अयोध्या के राजा दशरथ की पुरानी विरासत को दर्शाता है।
इन स्थानों पर जाकर हमने अयोध्या के पुराने मकानों को देखा और समझा कि प्राचीन काल में अयोध्या कैसी लगती होगी। यह यात्रा न केवल रमणीय थी, बल्कि ज्ञानवर्धक और एडवेंचर से भरी हुई भी थी।

चुनौतियाँ और सुधार की आवश्यकता:

इस पूरी यात्रा के दौरान मैंने कुछ ऐसी समस्याओं को भी महसूस किया, जिन पर स्थानीय प्रशासन और सरकार को तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।

 * भिखारियों की बढ़ती संख्या: हर मंदिर के पास दर्जनों भिखारियों का समूह एक गंभीर चुनौती है। यह शहर की सकारात्मक छवि को धूमिल करता है।
 * ऑटो चालकों का दुर्व्यवहार: ऑटो चालकों द्वारा यात्रियों से गलत तरीके से और अत्यधिक पैसे वसूलना एक आम शिकायत है।
 * स्वच्छता की समस्या: हनुमानगढ़ी, कनक भवन और राजा दशरथ महल के आसपास साफ-सफाई की व्यवस्था संतोषजनक नहीं थी, जो मन को दुखी करती है।
 * जबरन टीका-चंदन: कई स्थानों पर पुरुष और महिलाएँ जबरदस्ती श्री राम जी का टीका-चंदन लगाकर दक्षिणा के नाम पर पैसे ऐंठते हैं, यह स्थिति असहज पैदा करती है और इसे सुधारे जाने की आवश्यकता है।

अयोध्या में लाखों लोग प्रतिमाह दर्शन और भ्रमण के लिए आते हैं। यदि वे ऐसी नकारात्मक छवि लेकर जाएंगे, तो हमारे इस 'अयोध्या धाम' की बदनामी होगी। मेरा विनम्र निवेदन है कि स्थानीय प्रशासन, सरकार और मंदिर ट्रस्ट को इन समस्याओं पर ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि अयोध्या धाम की दिव्यता और पवित्रता अक्षुण्ण बनी रहे।

घर वापसी और मधुर स्मृतियाँ:
दर्शन और भ्रमण के उपरांत, दोपहर {2:00} बजे हम अयोध्या धाम स्टेशन पहुँचे। स्टेशन की सुंदरता और साफ-सफाई देखकर मन फिर से गदगद हो गया। यहाँ से हमने गंगा सतलज एक्सप्रेस ली, जो हमें अनुग्रह नारायण रोड, औरंगाबाद, बिहार तक ले आई। रात्रि {12:00} बजे हम घर पहुँचे।
यह यात्रा परिवार के लिए अत्यंत आनंददायक, मन को सुकून और शांति देने वाली रही। दिव्यांशु और प्रियांशु ने इस भ्रमण का खूब मजा लिया। हमने अयोध्या से पूजा प्रसाद, मूर्ति और विभिन्न प्रकार की सामग्री की खरीदारी भी की। यह दिवाली की यात्रा मेरे जीवन की सबसे यादगार और आध्यात्मिक रूप से समृद्ध यात्राओं में से एक बन गई।

 सवाल:
अयोध्या में रामलला का जो भव्य मंदिर बन रहा है, उसमें आधुनिक तकनीक और प्राचीन वास्तुकला का संगम दिखाया गया है। आपके अनुसार, इस मंदिर के निर्माण में 'प्राचीनता और आधुनिकता के संगम' को दर्शाने वाली सबसे अनूठी विशेषता क्या है?




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