शनिवार, 17 अगस्त 2024

मांझर कुंड और धुआँ कुंड: कैमूर की गोद में छुपा प्राकृतिक स्वर्ग ...

 

जब भी मन शहर की भागदौड़, कोलाहल और धूल-धक्कड़ से थकने लगे, तब आत्मा किसी शांत, निर्मल और सुकून देने वाली जगह की तलाश करती है। मेरे लिए यह तलाश कैमूर की पहाड़ियों में बसे मांझर कुंड और धुआँ कुंड पर आकर पूरी हुई। यह केवल एक यात्रा नहीं थी, बल्कि प्रकृति के करीब जाने और अपने भीतर की शांति को फिर से खोजने का अवसर था।


प्रकृति की गोद में पहला कदम

जैसे ही मैं कैमूर की हरियाली से भरपूर वादियों में पहुंचा, ऐसा लगा मानो किसी नए संसार में प्रवेश कर गया हूं। चारों तरफ फैले घने जंगल, पहाड़ियों से उतरते बादल, और दूर से आती झरने की गूंज—ये सब मिलकर एक ऐसा संगीत रच रहे थे, जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है, शब्दों में नहीं बाँधा जा सकता।
ताजी हवा में मिट्टी और गीले पत्तों की सुगंध थी, जो हर सांस के साथ मन को ताजगी दे रही थी।


मांझर कुंड: धार्मिक आस्था का केंद्र

मांझर कुंड सिर्फ प्राकृतिक सौंदर्य के लिए ही नहीं, बल्कि अपने पौराणिक और धार्मिक महत्व के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां गुरु ग्रंथ साहिब को लाने की सदियों पुरानी परंपरा है। सिख समुदाय के लोग यहां आते हैं और तीन दिन तक निवास करते हुए प्रार्थना और सेवा में लीन रहते हैं।
कुंड का पानी प्राकृतिक खनिजों से भरपूर माना जाता है, और स्थानीय लोगों का मानना है कि यह पाचन और स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी है। श्रद्धा और प्रकृति का यह संगम इस स्थान को और भी खास बना देता है।


धुआँ कुंड का रहस्य और आकर्षण

मांझर कुंड से ज्यादा दूर नहीं, धुआँ कुंड अपनी रहस्यमय सुंदरता के लिए जाना जाता है। इसका नाम सुनते ही मन में जिज्ञासा जगती है—क्या सच में यहां से धुआं निकलता है? बरसात के मौसम में जब झरने का पानी ऊंचाई से गिरता है, तो पानी की बौछार और धुंध का संगम ऐसा दृश्य रचता है, जैसे कुंड से सफेद धुआं निकल रहा हो।
यह दृश्य इतना अद्भुत होता है कि इसे देखने के बाद आंखें वहीं ठहर जाती हैं।


प्रकृति का अनुपम नजारा

मांझर कुंड का झरना भारत के सबसे खूबसूरत झरनों में गिना जा सकता है। पानी इतना साफ और पारदर्शी है कि नीचे तक साफ दिखाई देता है। जब सूरज की किरणें पानी की धार से टकराकर इंद्रधनुष का आभास कराती हैं, तो लगता है मानो स्वर्ग धरती पर उतर आया हो।
सावन के महीने में तो यहां का नजारा और भी अद्भुत हो जाता है—चारों तरफ हरियाली, झरने की गूंज, और भीगी हवा का स्पर्श… यह सब मिलकर एक स्वप्निल वातावरण बना देते हैं।


मेला और सांस्कृतिक रंग

रक्षाबंधन के बाद पहले रविवार को यहां एक विशाल मेला लगता है। दूर-दूर से लोग इस मेले में भाग लेने आते हैं। यह सिर्फ खरीदारी का नहीं, बल्कि लोक-संस्कृति, मेल-जोल और उत्सव का अवसर होता है। ढोल-नगाड़ों की थाप, हंसी-खुशी से भरे चेहरे, और ग्रामीण जीवन की सादगी—ये सब इस अनुभव को और खास बना देते हैं।


यात्रा का मेरा अनुभव

झरने के पास बैठकर मैंने लंबे समय तक बहते पानी को निहारा। पानी की ठंडी छींटें चेहरे को छूती रहीं और मन को एक अनकहा सुकून देती रहीं। यह वह पल था, जब समय जैसे ठहर गया हो। शहर की भीड़-भाड़, मोबाइल की घंटियां और दफ्तर की फाइलें—सब भूलकर मैं सिर्फ प्रकृति के साथ था।


सावधानियां और सुझाव

हालांकि यह जगह बेहद खूबसूरत है, लेकिन यहां आने वाले पर्यटकों को कुछ सावधानियां जरूर बरतनी चाहिए:

  1. बच्चों पर नजर रखें – झरने के आसपास फिसलन ज्यादा होती है।

  2. बरसात में सतर्क रहें – पानी का बहाव अचानक तेज हो सकता है।

  3. सुरक्षित दूरी बनाए रखें – सेल्फी या फोटो लेते समय खतरे के करीब न जाएं।

  4. सफाई का ध्यान रखें – प्लास्टिक या कचरा न फैलाएं।


यात्रा को सुखद बनाने के लिए सुझाव

  • अपने साथ हल्का भोजन और पीने का पानी जरूर रखें।

  • शाम 5 बजे से पहले वापस लौटें, क्योंकि पहाड़ी रास्तों पर अंधेरा जल्दी हो जाता है।

  • स्थानीय लोगों के निर्देशों का पालन करें—वे इस जगह को बेहतर जानते हैं।

  • बारिश के मौसम में ट्रेकिंग जूते या ग्रिप वाले सैंडल पहनें।


निष्कर्ष: प्रकृति प्रेमियों का स्वर्ग

मांझर कुंड और धुआँ कुंड सिर्फ पर्यटक स्थल नहीं हैं, बल्कि यह जीवन की भागदौड़ से दूर एक ऐसा ठिकाना हैं, जहां आप खुद से मिल सकते हैं। यहां की हरियाली, पानी की मधुर ध्वनि और ताजी हवा आपको यह एहसास दिलाती है कि असली विलासिता पांच सितारा होटलों में नहीं, बल्कि प्रकृति की गोद में है।

मेरे लिए यह यात्रा एक अविस्मरणीय अनुभव रही—एक ऐसा अनुभव जिसे मैं बार-बार जीना चाहूंगा। अगर आप भी जीवन में कुछ पल शांति और सुकून के बिताना चाहते हैं, तो कैमूर की पहाड़ियों में बसे मांझर कुंड और धुआँ कुंड जरूर आएं। यहां प्रकृति आपको बाहें फैलाकर स्वागत करेगी, और आप लौटते समय अपने साथ सिर्फ यादें ही नहीं, बल्कि जीवन भर का सुकून भी ले जाएंगे।


               

  

Dhua Kund 





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Manjhar Kund 
   
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🌿 "गुप्तेश्वर धाम की रहस्यमयी यात्रा: प्रकृति, अध्यात्म और रोमांच का संगम" 🌿

 7 जुलाई 2023 की वह सुबह कुछ खास थी। जब मैं औरंगाबाद की शांत गलियों को पीछे छोड़ते हुए रोहतास जिले के गुप्तेश्वरनाथ धाम की ओर बढ़ा, तब मुझे यह अहसास नहीं था कि यह सफर मेरी आत्मा को गहराई से छू जाने वाला है। यह यात्रा सिर्फ एक धार्मिक स्थल तक पहुँचने की नहीं थी, बल्कि प्रकृति और अध्यात्म की अद्भुत संगति को अनुभव करने की थी, जिसने मेरे जीवन में एक नई चेतना भर दी।


🚘 यात्रा की शुरुआत: औरंगाबाद से गुप्ताधाम

औरंगाबाद की सुबह कुछ ठंडी थी। हरियाली से ढंके खेत और कोहरे में लिपटी सड़कें, मन को सुकून देने वाला दृश्य प्रस्तुत कर रही थीं। मैं चार पहिया वाहन से अनुग्रह नारायण रोड रेलवे स्टेशन पहुँचा, जहाँ से ट्रेन पकड़कर डिहरी, सासाराम होते हुए कुदरा स्टेशन पहुँचा। यह लंबा सफर थोड़ा थकाऊ ज़रूर था, लेकिन मन में गुप्तेश्वरनाथ धाम के दर्शन की उत्सुकता ने थकान को बेअसर कर दिया।

कुदरा स्टेशन से आगे की यात्रा के लिए मैंने टेम्पो (टिनपहिया वाहन) लिया और चनेरी गाँव पहुँचा। वहां जीविका के औरंगाबाद जिला के ट्रेनिंग ऑफिसर श्री चंदन कुमार और उनके परिवार ने मेरा गर्मजोशी से स्वागत किया। इसके बाद, हमारी बाइक यात्रा की शुरुआत हुई – एक नए रोमांच की ओर।

💧 दुर्गावती डैम: प्रकृति की गोद में

हमने दुर्गावती डैम की ओर रुख किया, जो विंध्य पर्वतमाला की कैमूर पहाड़ियों के बीच स्थित है। जैसे ही डैम के किनारे पहुँचे, मन मंत्रमुग्ध हो गया। सामने फैली झील, पीछे ऊँचे-ऊँचे पहाड़ और हरियाली से ढके जंगल – यह दृश्य जैसे किसी पेंटिंग से बाहर निकल आया हो।

यह डैम दुर्गावती नदी पर बना है, जिसका निर्माण 1976 में शुरू होकर 2014 में पूरा हुआ। इसकी लंबाई 637.75 मीटर और ऊँचाई 46.33 मीटर है। यहाँ का शांत वातावरण और ताजगी से भरी हवा मेरे भीतर तक उतर गई।

🛣️ रोमांचक सफर: डैम से गुफा तक

डैम से गुप्ताधाम तक की यात्रा बाइक से शुरू हुई। घुमावदार पहाड़ी रास्तों पर बहती हवा, झरनों की आवाज़ और जंगलों की हरियाली इस सफर को यादगार बना रही थी। रास्ते में कई छोटे-छोटे झरने मिले, जहाँ हमने स्नान किया और ताज़गी महसूस की। साथ ही, स्थानीय व्यंजनों का स्वाद भी लिया – जैसे सत्तू, चूड़ा-दही और जलेबी, जो वहाँ की मिट्टी की खुशबू के साथ मिलकर अलग स्वाद दे रहे थे।

रास्ते में कई प्राचीन मंदिर भी दिखे, जो पत्थरों से तराशे हुए, इतिहास के गवाह थे।

🕉️ गुप्तेश्वरनाथ की गुफा: रहस्य और भक्ति का संगम

करीब दो घंटे की रोमांचक यात्रा के बाद हम गुप्तेश्वरनाथ गुफा के द्वार पर पहुँचे। चारों ओर फैली चुप्पी, अंदर से आती ठंडी हवा और गुफा का रहस्यमयी द्वार एक अद्भुत अनुभव दे रहा था। गुफा के अंदर घुसते ही अंधेरा और नमी का अहसास हुआ, लेकिन साथ ही एक आध्यात्मिक ऊर्जा भी महसूस हुई।

गुफा में प्राकृतिक शिवलिंग विराजमान है, जिस पर ऊपर से जल की बूंदें निरंतर टपकती रहती हैं। यह दृश्य अत्यंत दिव्य प्रतीत होता है – मानो प्रकृति स्वयं भगवान शिव का अभिषेक कर रही हो।

📜 गुप्तेश्वर धाम की पौराणिक गाथा

गुप्ताधाम की गुफा को लेकर अनेक किंवदंतियाँ प्रचलित हैं। कहा जाता है कि यह गुफा पूरी तरह प्राकृतिक है और इसका निर्माण किसी मानव ने नहीं किया। पौराणिक कथा के अनुसार, भस्मासुर ने भगवान शिव से वरदान प्राप्त किया था कि वह जिसके सिर पर हाथ रखेगा, वह भस्म हो जाएगा। जब भस्मासुर ने भगवान शिव पर ही यह आज़माने की कोशिश की, तब भगवान शिव इस गुफा में छिप गए थे।

गुफा की बनावट प्राकृतिक चट्टानों से बनी हुई है और इसके अंदर की दीवारों पर अद्भुत आकृतियाँ देखने को मिलती हैं। यह गुफा आध्यात्मिकता और प्रकृति की रहस्यमयी शक्ति का एक सुंदर उदाहरण है।

🌿 शांति और आत्मिक संतुलन की अनुभूति

गुफा के अंदर कुछ समय बिताकर, जब मैं बाहर निकला, तो मुझे अंदर से एक गहरी शांति का अनुभव हुआ। यह स्थान केवल एक तीर्थ नहीं, बल्कि एक साधना-स्थल जैसा लगा। पक्षियों की चहचहाहट, ताज़ी हवा और चारों ओर फैली हरियाली, आत्मा को सुकून देती है।

🗺️ यात्रा मार्गदर्शिका: अगर आप भी जाना चाहें

1. कब जाएं:
गुप्तेश्वर धाम की यात्रा मानसून (जुलाई–सितंबर) और सर्दियों (नवंबर–फरवरी) में करना सबसे उपयुक्त होता है। मानसून में झरनों का सौंदर्य चरम पर होता है।

2. कैसे पहुंचे:
निकटतम रेलवे स्टेशन – कुदरा, जो सासाराम के पास है। वहां से चनेरी तक स्थानीय वाहन उपलब्ध हैं। चनेरी से दुर्गावती डैम और फिर बाइक या पैदल यात्रा द्वारा गुप्तेश्वर गुफा तक पहुँचा जा सकता है।

3. क्या करें:

गुफा में शिवलिंग के दर्शन

झरनों में स्नान

प्राकृतिक दृश्यावली का आनंद

स्थानीय भोजन का स्वाद


4. क्या ले जाएं:
आरामदायक कपड़े, मजबूत जूते, पानी की बोतल, टॉर्च, हल्का भोजन और मोबाइल के लिए पॉवर बैंक साथ रखें।

🧘 निष्कर्ष: एक यात्रा, जो जीवन बदल दे

गुप्तेश्वर धाम की यह यात्रा मेरे लिए केवल एक पर्यटन अनुभव नहीं था, बल्कि यह एक आत्मिक यात्रा थी। इस यात्रा ने मुझे सिखाया कि प्रकृति और अध्यात्म जब साथ आते हैं, तो जीवन को नई दिशा मिलती है। यह स्थल हर उस व्यक्ति के लिए है जो भागती-दौड़ती ज़िंदगी से कुछ पल चुराकर शांति, ऊर्जा और आत्मिक संतुलन की तलाश में है।

यदि आप भी जीवन के शोरगुल से दूर, एक रहस्यमयी और शांत जगह की तलाश में हैं – तो गुप्तेश्वर धाम आपकी अगली मंज़िल हो सकती है।
🧳 चलिए, एक बार वहाँ जरूर चलते हैं — जहाँ पहाड़, नदी, झरने और शिव की गुफा आपका इंतज़ार कर रहे हैं। 🙏
                                     
                         


Durgwati Dam 

sugwa River 





Gupta dham Temple

raste me bikta khowa

       Gupta dham cave


gupta dham shivling 


Gupta dham Cave dwar 








Durgati dam

water fall 



gupta dham gufa 



















🌄 स्वतंत्रता दिवस पर कैमूर की गोद में: एक रोमांचक यात्रा वृतांत 🌄

  15 अगस्त 2024—भारत का 78वां स्वतंत्रता दिवस, देशभर में देशभक्ति का जश्न और तिरंगे की शान हर दिल में बस रही थी। लेकिन मेरे और मेरे साथियों के लिए यह दिन और भी खास बन गया, क्योंकि हमने इस दिन को केवल ध्वजारोहण तक सीमित न रखते हुए, प्रकृति की गोद में बिताने का निर्णय लिया। इस रोमांचकारी यात्रा में मेरे साथ थे जीविका के कर्मठ साथी पंचम दंगी, श्रवण कुमार, मधुरंद कुमार, दिलीप कुमार, शशि कुमार, और मेरा छोटा साला सौरव कुमार, जिसे हम सब प्यार से "अंकु" कहते हैं।

हमारी मंज़िल थी सासाराम और आसपास के प्राकृतिक और धार्मिक स्थल—इंद्रपुरी बांध, तुतला भवानी मंदिर और जलप्रपात, मंझर कुंड, धुआ कुंड, सीता कुंड, और अंत में ताराचंडी मंदिर। इस यात्रा का उद्देश्य सिर्फ घूमना नहीं था, बल्कि अपने व्यस्त जीवन से कुछ क्षण चुराकर प्राकृतिक शांति में खुद को फिर से तलाशना था।

🏞️ पहला पड़ाव: इंद्रपुरी बांध की भव्यता

सुबह के 11 बजे हम सभी औरंगाबाद से रवाना हुए और बरुण ब्लॉक होते हुए सबसे पहले पहुंचे इंद्रपुरी बांध। सोन नदी पर बना यह विशाल बांध हमें दूर से ही अपनी भव्यता से आकर्षित कर रहा था। जब हम उसके करीब पहुंचे, तो उसकी विशाल दीवारें, बहता पानी और ठंडी हवा ने मन को सुकून से भर दिया।

यह सिर्फ एक बांध नहीं था, बल्कि एक जीवनदायिनी धरोहर। हमें जानकारी मिली कि यह बांध अरवल, औरंगाबाद, सासाराम, आरा, बक्सर, पटना और भभुआ जिलों के हजारों किसानों के खेतों को सिंचाई के लिए जल प्रदान करता है। बांध की तकनीकी संरचना और इसके सामाजिक महत्व को समझना हमारे लिए एक शैक्षिक अनुभव था। यह एक ऐसा स्थान था जहां आधुनिकता और प्रकृति का सुंदर संगम देखने को मिला।

🌿 तुतला भवानी मंदिर और जलप्रपात: आस्था और प्राकृतिक सौंदर्य

इंद्रपुरी बांध से निकलकर हमारा अगला पड़ाव था तुतला भवानी मंदिर और जलप्रपात। यह स्थान लगभग 20 किलोमीटर दूर था, लेकिन रास्ते में कैमूर की हरी-भरी पहाड़ियों ने यात्रा को मनोहारी बना दिया। जैसे ही हमने मंदिर के प्रांगण में प्रवेश किया, एक आध्यात्मिक शांति का अनुभव हुआ।


तुतला भवानी मंदिर के दर्शन के बाद हम पहुंचे जलप्रपात के पास। 155 फीट ऊंचाई से गिरता हुआ जल, उसकी गर्जना, और आसपास फैली हरियाली किसी स्वर्गिक दृश्य से कम नहीं था। जल की ठंडी बौछार और उसकी धुंध ने मन और तन दोनों को ठंडक दी।


हमने वहीं बैठकर लिट्टी-चोखा का स्वाद लिया—बिहार की इस पारंपरिक डिश ने इस पावन स्थल पर भोजन को भी एक पवित्र अनुभव बना दिया। यह एक ऐसा क्षण था जहां भोजन, दृश्य और भावनाएं एक साथ मिलकर आत्मा को तृप्त कर रही थीं।

💧 मंझर कुंड: प्रकृति का अजूबा

तुतला भवानी से हमारी यात्रा आगे बढ़ी मंझर कुंड की ओर, जो लगभग 26 किलोमीटर दूर था। रास्ते में हमने NH 2 पर स्थित प्रसिद्ध ताराचंडी मंदिर के दर्शन भी किए और मां से सुखद यात्रा के लिए आशीर्वाद लिया।

मंझर कुंड पहुंचते ही एक अलग ही दुनिया में प्रवेश का अनुभव हुआ। वहां की हरियाली, ठंडा और साफ पानी, और चारों ओर फैली शांति ने हमें पूरी तरह मोहित कर लिया। हमने वहां स्नान किया, खूब फोटोग्राफी की, और प्रकृति से जुड़ाव को महसूस किया।

वहां का पानी इतना साफ और ताजा था कि हमने कुछ पानी पी भी लिया—यह एक साहसिक और ताजगी से भरा अनुभव था। यहां हमने बच्चों जैसी मस्ती की, पत्थरों पर बैठकर बातें कीं, और पहाड़ियों की गोद में कुछ पल के लिए खो गए।

🙏 ताराचंडी मंदिर और सरल सुख

शाम करीब 4 बजे हम पहाड़ी से नीचे उतरे और ताराचंडी मंदिर में पहुंचे। मां ताराचंडी के इस मंदिर में एक विशेष आध्यात्मिक ऊर्जा थी। मां के दर्शन के बाद हम NH 2 पर कुछ समय रुके और वहां से भूटा (भुना हुआ मक्का) खरीदा। उसे वहीं पकाया और गर्मागर्म खाया—यह एक छोटा सा लेकिन बेहद आनंददायक अनुभव था। उस भूटे में जैसे प्रकृति की मिठास और ग्रामीण जीवन की सरलता छुपी थी।

🏠 वापसी और आत्मा को मिली शांति

शाम 6 बजे हम औरंगाबाद वापस लौटे। हमारी यात्रा पूरी हो चुकी थी, लेकिन मन अब भी उन झरनों की आवाज, पहाड़ियों की हरियाली और मंदिरों की शांति में रमा हुआ था। यह यात्रा हमारे लिए सिर्फ एक घूमने का कार्यक्रम नहीं थी, बल्कि जीवन को समझने और प्रकृति के करीब जाने का एक अवसर थी।

✨ निष्कर्ष: प्रकृति और जीवन से जुड़ाव

15 अगस्त 2024 की यह यात्रा हमारे जीवन की अमूल्य स्मृतियों में शामिल हो गई। हमने इस दिन देश की स्वतंत्रता का जश्न केवल झंडा फहराकर नहीं, बल्कि प्रकृति के अद्भुत सौंदर्य और हमारी सांस्कृतिक विरासत को महसूस कर मनाया।

इस यात्रा ने हमें सिखाया कि—

प्रकृति का सम्मान करना कितना जरूरी है।

सादगी में ही असली खुशी छुपी होती है।

साथी अच्छे हों तो हर यात्रा विशेष बन जाती है।

बिना बड़ी तैयारियों के भी छोटी यात्राएं जीवन को नया रंग दे सकती हैं।

कुल मिलाकर, यह एक ऐसी यात्रा थी जिसने हमारे मन को शांति, जीवन को अर्थ और रिश्तों को गहराई दी। हम सभी ने तय किया कि ऐसी यात्राएं हमें समय-समय पर करनी चाहिए, ताकि हम भागदौड़ भरे जीवन में खुद को खोने न दें।


🌿 "कभी-कभी ज़रूरी होता है पहाड़ों की चुप्पी में अपनी आवाज़ ढूंढना और झरनों की धारा में बह कर खुद को दोबारा पाना।" 🌿

 




इन्द्रपुरी बराज 













                                                                 तुतला भवानी जलप्रपात