यात्राएं हमेशा नई कहानियां, नए दृश्य और अनगिनत यादें छोड़ जाती हैं। लेकिन जब कोई यात्रा “पहली बार किसी विदेशी धरती पर कदम रखने” का अनुभव हो, तो उसका महत्व और भी बढ़ जाता है।
मेरे लिए 11 अगस्त 2019 का दिन कुछ ऐसा ही था। यह वह दिन था जब मैंने अपने पिताजी, सत्येंद्र कुमार पाठक के साथ नेपाल की राजधानी काठमांडू की ओर रुख किया। यह न केवल मेरा पहला विदेशी सफर था, बल्कि एक ऐसे शहर की ओर यात्रा थी, जो संस्कृति, इतिहास और प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत संगम है।
सुबह की शुरुआत: मुजफ्फरपुर से रक्सौल तक
सुबह का समय था, जब हम मिथिला एक्सप्रेस में बैठकर मुजफ्फरपुर से रक्सौल की ओर रवाना हुए। ट्रेन की खिड़की से बाहर फैले खेत, छोटे-छोटे गांव और रेल के साथ-साथ चलती ठंडी हवा—यात्रा की शुरुआत को और भी ताजगीभरा बना रहे थे।
रक्सौल पहुंचते ही हमें एहसास हुआ कि हम सीमा के बेहद करीब हैं। यहां का माहौल बिल्कुल अलग था—सीमा पार करने वाले लोगों की भीड़, ट्रकों की लंबी कतारें, और चारों ओर अलग-अलग भाषाओं की गूंज।
रक्सौल से बिरगंज: सीमा का अनुभव
रक्सौल से हमने एक टमटम (घोड़ागाड़ी) लिया और कुछ ही देर में भारत-नेपाल सीमा पार कर बिरगंज पहुंच गए। यह मेरे जीवन का पहला मौका था जब मैंने एक देश से दूसरे देश में बिना वीज़ा और पासपोर्ट की औपचारिकताओं के सिर्फ एक पहचान पत्र के सहारे प्रवेश किया।
बिरगंज की गलियां हलचल से भरी थीं—दुकानें, होटलों के बोर्ड, और स्थानीय लोगों की चहल-पहल। यहां आकर महसूस हुआ कि नेपाल का जीवन भारत के कई छोटे शहरों जैसा ही है, लेकिन इसमें अपनी अलग सांस्कृतिक छाप है।
काठमांडू का चुनाव: छोटी गाड़ी से सफर
बिरगंज से काठमांडू जाने के कई विकल्प थे—बड़ी बसें, जीपें और छोटी गाड़ियां। बड़ी बसें आमतौर पर रात में चलती हैं और उनका मार्ग थोड़ा लंबा होता है।
मैंने छोटी गाड़ी का चुनाव किया, क्योंकि यह शॉर्टकट मार्ग से कम समय में काठमांडू पहुंचा देती है।
मैंने आगे की सीट 350 रुपये में बुक की। यह सीट न केवल आरामदायक थी, बल्कि सफर के दौरान नज़ारे देखने के लिए भी आदर्श स्थान था।
मुद्रा विनिमय: रुपये से नेपाली रुपये
गाड़ी में बैठने से पहले मैंने भारतीय रुपये को नेपाली रुपये में बदलवा लिया। नेपाल में भारतीय रुपये भी चलते हैं, लेकिन छोटे नोट और सिक्के वहां स्वीकार्य नहीं होते।
बॉर्डर के पास कई लोग मुद्रा बदलने का काम करते हैं। मैंने 1000 भारतीय रुपये के बदले 1600 नेपाली रुपये लिए। यह सौदा जल्दी और आसानी से हो गया, और अब मैं नेपाली मुद्रा के साथ आगे की यात्रा के लिए तैयार था।
रास्ते की खूबसूरती: पहाड़, नदियां और ठंडी हवाएं
दोपहर 1 बजे गाड़ी बिरगंज से काठमांडू के लिए रवाना हुई। शुरुआत में रास्ता सीधा और सपाट था, लेकिन जैसे-जैसे हम आगे बढ़े, पहाड़ियां सामने आने लगीं।
हवा में ताजगी, चारों ओर फैली हरियाली और बीच-बीच में बहती नदियां—ये सब मन को मोहित कर रहे थे।
रास्ते में छोटे-छोटे गांव और ढाबे दिखते रहे, जहां स्थानीय लोग चाय पीते और यात्री विश्राम करते नजर आते।
जैसे-जैसे हम ऊंचाई की ओर बढ़ते गए, सड़कें घुमावदार होती गईं। पहाड़ों के बीच बहते झरनों की कल-कल आवाज और उनसे उठती ठंडी फुहारें चेहरे को ताज़गी से भर रही थीं। यह नज़ारा इतना सुंदर था कि समय का एहसास ही नहीं हो रहा था।
काठमांडू में पहला कदम
करीब रात 8 बजे, गाड़ी पशुपतिनाथ मंदिर के पास गौशाला मोड़ पर रुकी। यहां का माहौल जीवंत था—रात का अंधेरा उतर चुका था, लेकिन सड़कें रोशनी और आवाज़ों से जगमगा रही थीं।
मैंने 1000 नेपाली रुपये में एक होटल का कमरा लिया। लंबे सफर के बाद बिस्तर पर लेटते ही थकान उतरने लगी, और मन अगले दिन के दर्शनों के लिए उत्साह से भर गया।
पशुपतिनाथ मंदिर: आस्था और भव्यता का संगम
अगली सुबह सबसे पहले मैं पशुपतिनाथ मंदिर गया। यह मंदिर नेपाल का सबसे पवित्र और प्रसिद्ध शिव मंदिर है, जो बागमती नदी के किनारे स्थित है।
मंदिर का विशाल परिसर, नक्काशीदार शिखर, और यहां की आध्यात्मिक ऊर्जा अद्भुत है। नदी किनारे साधु-संत, धूप-धूनी की महक, और मंत्रोच्चारण का वातावरण मन को गहराई तक छू जाता है।
भक्तपुर दरबार स्क्वायर: इतिहास की गलियों में
पशुपतिनाथ से आगे मेरी यात्रा मुझे भक्तपुर दरबार स्क्वायर ले गई। यह स्थान नेपाल के समृद्ध इतिहास और शिल्पकला का जीता-जागता उदाहरण है।
यहां की ईंटों से बनी सड़कें, लकड़ी पर की गई नक्काशी, और प्राचीन मंदिरों की कतारें ऐसा महसूस कराती हैं मानो आप सैकड़ों साल पीछे चले गए हों।
यहां मैंने स्थानीय ज्यूजू धौ (भक्तपुर की खास दही) का स्वाद लिया—गाढ़ी, मीठी और बेहद स्वादिष्ट।
स्वयम्भूनाथ स्तूप: बंदरों का मंदिर
काठमांडू के ऊंचे पहाड़ पर स्थित स्वयम्भूनाथ स्तूप को स्थानीय लोग "बंदरों का मंदिर" भी कहते हैं, क्योंकि यहां बंदरों की संख्या काफी है।
स्तूप के चारों ओर रंग-बिरंगे प्रार्थना-पताकाएं लहराती रहती हैं। ऊपर से पूरे काठमांडू शहर का नजारा दिखता है, और यह दृश्य वाकई मंत्रमुग्ध कर देने वाला है।
नेपाल की संस्कृति और मेहमाननवाज़ी
काठमांडू में मुझे नेपाल की संस्कृति का एक सुंदर पहलू देखने को मिला—यहां के लोग बेहद विनम्र और मेहमाननवाज़ हैं।
छोटे-छोटे चाय के स्टॉल पर बैठकर मैंने स्थानीय लोगों से बातें कीं। उनकी कहानियां, त्योहारों का वर्णन, और अपने देश के प्रति गर्व सुनकर अच्छा लगा।
यात्रा के टिप्स
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मुद्रा – नेपाल में भारतीय रुपये के साथ-साथ नेपाली रुपये भी चलते हैं, लेकिन छोटे भारतीय सिक्के और ₹2000 के नोट स्वीकार नहीं होते।
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पहनावा – मौसम ठंडा रहता है, इसलिए हल्के और आरामदायक कपड़े व जूते पहनें।
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खाना – मोमो, थुकपा और स्थानीय दही का स्वाद जरूर लें।
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सुरक्षा – भीड़भाड़ वाले स्थानों पर अपनी कीमती चीजें संभालकर रखें।
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वीज़ा – भारत के नागरिकों को नेपाल जाने के लिए वीजा की आवश्यकता नहीं होती। केवल एक मान्य पहचान पत्र (आधार, वोटर आईडी) पर्याप्त है।
यात्रा का निष्कर्ष
यह यात्रा मेरे लिए केवल एक विदेशी दौरा नहीं, बल्कि एक ऐसा अनुभव थी जिसने मुझे प्रकृति, संस्कृति और अध्यात्म के अद्भुत मेल से परिचित कराया।
काठमांडू के पहाड़, मंदिर, बाजार, और वहां के लोग—सबने मेरे दिल में एक खास जगह बना ली।
आज भी जब मैं उस सफर को याद करता हूं, तो पहाड़ों की ठंडी हवा, पशुपतिनाथ की घंटियां, और भक्तपुर की गलियों की खुशबू मेरे मन में ताज़ा हो जाती है।