जुलाई 2024 की एक सुनहरी सुबह थी। मैं, अपने जीविका के साथी धर्मेंद्र जी और अनिल जी के साथ, सासाराम के ऐतिहासिक सफर पर था। मूल रूप से हम औरंगाबाद जिले से "जेंडर" विषय पर एक प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल होने आए थे, लेकिन इतिहास प्रेमी मन कहाँ चैन लेने वाला था! जैसे ही समय मिला, हमने तय किया कि शेर शाह सूरी के मकबरे को देखना ही है।
सुबह 6 बजे, हल्की ठंडी हवा और धूप की पहली किरणों के साथ, हम होटल से निकल पड़े। पैदल यात्रा का आनंद ही कुछ और है, और जब गंतव्य 2 किलोमीटर की दूरी पर हो, तो हर कदम रोमांचक लगने लगता है। रास्ते में लोग अपने-अपने काम में व्यस्त थे, लेकिन हम तीनों के मन में बस एक ही तस्वीर थी — लाल बलुआ पत्थरों से सजा, झील के बीच तैरता इतिहास का अनमोल रत्न।
पहली झलक — झील में तैरता सपना
करीब 20 मिनट के पैदल सफर के बाद, वह दृश्य सामने था। विशाल झील के बीच में खड़ा शेर शाह सूरी का मकबरा, मानो समय को चुनौती देता हुआ। प्रवेश के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के काउंटर से प्रति व्यक्ति ₹20 का टिकट लिया। झील के किनारे खड़े होकर मैंने देखा — मकबरे की ऊँचाई, लाल पत्थरों की गरिमा, और पानी में पड़ती उसकी परछाईं, सब मिलकर एक चित्रकला जैसी सुंदरता रच रहे थे।
इतिहास के पन्नों में
शेर शाह सूरी (1486-1545), अफगान मूल के वह शासक, जिन्होंने मुगल सम्राट हुमायूं को पराजित कर उत्तर भारत में अपना साम्राज्य स्थापित किया। उनका शासन काल छोटा था, लेकिन प्रशासनिक सुधारों और सड़क निर्माण (विशेषकर ग्रैंड ट्रंक रोड) के लिए वे आज भी याद किए जाते हैं। 1545 में कालिंजर किले की घेराबंदी के दौरान उनका निधन हुआ, और उनकी याद में यह भव्य मकबरा 16वीं सदी के मध्य में बनवाया गया।
वास्तुकला का चमत्कार
इंडो-इस्लामिक शैली का अद्भुत नमूना
यह मकबरा इंडो-इस्लामिक वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। 122 फीट ऊँचा, अष्टकोणीय आधार वाला यह स्मारक लाल बलुआ पत्थर से बना है। इसकी योजना, अनुपात और सजावट इस बात का प्रमाण हैं कि 16वीं सदी में वास्तुकार कितनी परिष्कृत समझ रखते थे।
अष्टकोणीय योजना और विशाल गुंबद
मुख्य संरचना अष्टकोणीय आधार पर निर्मित है, जिसके ऊपर एक विशाल, सफेद चमक लिए गुंबद है। यह गुंबद न केवल सुंदर है, बल्कि ध्वनि और वायु प्रवाह के लिहाज़ से भी अद्भुत है।
झील और पत्थर का चबूतरा
मकबरा एक विशाल पत्थर के चबूतरे पर स्थित है, जो चारों ओर से कृत्रिम झील से घिरा है। यह झील न केवल सुंदरता बढ़ाती है, बल्कि स्मारक को ठंडा और संरक्षित भी रखती है।
सजावटी गुंबददार खोखे
मुख्य गुंबद के चारों ओर छोटे-छोटे सजावटी गुंबददार खोखे हैं, जिनमें कभी रंगीन टाइलों का काम हुआ करता था। यद्यपि समय के साथ टाइलें फीकी पड़ गईं, लेकिन उनकी कलात्मक छाप अब भी दिखती है।
मकबरे का दूसरा नाम — भारत का दूसरा ताजमहल
ताजमहल जितना प्रसिद्ध तो नहीं, लेकिन कई इतिहासकार इसे "भारत का दूसरा ताजमहल" कहते हैं। कारण स्पष्ट है — इसका संतुलित डिज़ाइन, पानी के बीच स्थित होना, और प्रेम व सम्मान की भावना से प्रेरित निर्माण।
मेरा अनुभव — समय में पीछे की यात्रा
जब हमने प्रवेश द्वार पार किया, तो ऐसा लगा मानो 16वीं सदी में पहुँच गए हों। झील के बीच तक जाने के लिए बने पुल पर चलते हुए, हर कदम पर पानी में हिलती लहरें, आसमान का नीला रंग, और मकबरे की परछाईं एक जादुई अहसास देती थीं।
भीतर पहुँचकर मैंने देखा कि चारों तरफ नक्काशीदार मेहराबें और ऊँची खिड़कियाँ हैं। हल्की हवा गुंबद के भीतर गूंज पैदा कर रही थी — मानो दीवारें भी अपनी कहानी सुना रही हों। धर्मेंद्र जी और अनिल जी भी इतिहास में खोए हुए थे, हम सबकी बातचीत कम और कैमरे की क्लिक ज़्यादा हो रही थी।
वास्तुकला के पीछे की सोच
सूरी वंश की वास्तुकला में अफगान शैली का स्पष्ट प्रभाव दिखता है, लेकिन यहाँ भारतीय कारीगरी की नजाकत भी जुड़ी है। झील को स्मारक के चारों ओर बनाना सिर्फ सौंदर्य के लिए नहीं था, बल्कि यह सुरक्षा और जलवायु नियंत्रण का उपाय भी था।
कैसे पहुँचें — यात्रियों के लिए मार्गदर्शन
सड़क मार्ग: सासाराम शहर के किसी भी हिस्से से ऑटो, टैक्सी या पैदल यहाँ पहुँचना आसान है।
रेल मार्ग: सासाराम एक प्रमुख रेलवे स्टेशन है, जो दिल्ली, पटना, वाराणसी आदि से जुड़ा है।
वायु मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा गया और पटना में है। वहाँ से सड़क या रेल मार्ग से सासाराम पहुँचा जा सकता है।
आसपास के अन्य स्थल
अगर आप सासाराम में हैं, तो इन जगहों को भी देखना न भूलें:
1. रोहतासगढ़ किला — मध्यकालीन इतिहास का गढ़।
2. तारा चंद्र महल — सूरी वंश की एक और वास्तु धरोहर।
3. कुँवर सिंह स्मारक — 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की याद।
यात्रा सुझाव
सुबह या शाम का समय मकबरे के लिए सबसे अच्छा है, ताकि धूप ज्यादा तेज़ न हो और फोटोग्राफी शानदार हो।
बारिश के मौसम में झील और भी खूबसूरत लगती है, लेकिन फिसलन से सावधान रहें।
टिकट काउंटर से प्रवेश टिकट ज़रूर लें — ASI इसे संरक्षित करता है, और यह शुल्क संरक्षण कार्यों में मदद करता है।
निष्कर्ष — इतिहास, कला और शांति का संगम
शेर शाह सूरी का मकबरा सिर्फ एक ऐतिहासिक स्मारक नहीं, बल्कि यह एक समय कैप्सूल है — जो हमें उस दौर की राजनीति, कला और इंजीनियरिंग से परिचित कराता है। झील के बीच स्थित यह संरचना शांति का प्रतीक है, जो आगंतुक को भीतरी स्थिरता और बाहरी सौंदर्य दोनों का अनुभव कराती है।
जैसे ही हम तीनों होटल की ओर लौट रहे थे, पीछे मुड़कर एक आखिरी बार उस मकबरे को देखा। पानी में तैरती उसकी परछाईं, सुनहरी सुबह की रोशनी, और हवा में इतिहास की खुशबू — यह सब हमेशा मेरी स्मृतियों में अंकित रहेगा।
अगर आप बिहार की यात्रा पर हैं, तो सासाराम के इस रत्न को अपनी सूची में जरूर शामिल करें। यह आपको न सिर्फ इतिहास से जोड़ेगा, बल्कि आपको यह भी सिखाएगा कि सुंदरता और मजबूती का मेल कैसे सदियों तक कायम रह सकता है।