सोमवार, 11 अगस्त 2025

उदयगिरि की गुफाएँ: ओडिशा का प्राचीन कला ...

जून 2012 की उमस भरी सुबह थी, जब मैंने और मेरे उड़ीसा के मित्र प्रियवत दास ने एक लंबे समय से पाले गए सपने को साकार करने का फैसला किया—उड़ीसा भ्रमण। हम दोनों ने तय किया कि इस बार सिर्फ घुमक्कड़ी नहीं, बल्कि इतिहास, संस्कृति और कला के मेल का अनुभव करेंगे।

हमने भुवनेश्वर के पास स्थित उदयगिरि की गुफाओं को अपनी यात्रा का मुख्य पड़ाव चुना, जो भारतीय इतिहास और कला का एक जीवंत प्रमाण हैं। लेकिन यात्रा की शुरुआत इससे पहले एक आत्मीय ग्रामीण आतिथ्य से हुई।

यात्रा की शुरुआत: कटक में ग्रामीण मेहमाननवाज़ी

भुवनेश्वर पहुंचने के बाद हम प्रियवत के गाँव, कटक जिले में उनके घर गए। यह गाँव अपने शांत वातावरण और मिट्टी की महक के लिए जाना जाता है। रात्रि विश्राम के लिए हम एक रिश्तेदार के घर ठहरे।

शाम को हमें गाँव के पारंपरिक भोजन का स्वाद मिला—दालमा, गरमागरम चावल और घर की बनी रोटी। दालमा में दाल और सब्जियों का ऐसा मिश्रण था, जिसकी खुशबू और स्वाद आज भी याद है। भोजन के बाद अगले दिन की योजना बनी—प्रियवत अपनी मोटरसाइकिल से हमें उदयगिरि ले जाएंगे।

उदयगिरि का परिचय

भुवनेश्वर से मात्र 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित उदयगिरि की गुफाएँ न केवल पर्यटन का, बल्कि पुरातत्व और इतिहास का भी खजाना हैं। प्राचीन काल में यह स्थान धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का एक प्रमुख केंद्र रहा है।

इन गुफाओं की खूबसूरती और कलात्मक महत्व हमें न सिर्फ उस युग में ले जाते हैं, बल्कि यह भी बताते हैं कि हमारे पूर्वज कला, धर्म और वास्तुकला में कितने निपुण थे।

इतिहास की पगडंडियों पर

उदयगिरि को पहले नीचैगिरि कहा जाता था। प्रसिद्ध संस्कृत कवि कालिदास ने भी अपने ग्रंथों में इसका उल्लेख इसी नाम से किया है। 10वीं शताब्दी में, जब यह स्थान परमार वंश के अधीन आया, तो राजा भोज के पौत्र उदयादित्य ने अपने नाम पर इसका नाम "उदयगिरि" रखा।

यहाँ कुल 20 गुफाएँ हैं, जिनमें से कुछ का निर्माण 4वीं-5वीं सदी में हुआ था। गुफा संख्या 1 और 20 को जैन गुफाएँ माना जाता है, जो यहाँ के धार्मिक विविधता के प्रमाण हैं।

वास्तुकला की अद्भुत कारीगरी

उदयगिरि की गुफाएँ पत्थर को काटकर बनाई गई हैं, और इन्हें छोटे-छोटे कमरों का आकार दिया गया है। दीवारों और छतों पर उकेरी गई मूर्तियाँ इतनी बारीकी से बनाई गई हैं कि लगता है जैसे पत्थर में जान डाल दी गई हो।

इन मूर्तियों में विष्णु, शिव, दुर्गा, गणेश के साथ-साथ यक्ष, किन्नर और अप्सराओं के चित्रण भी देखने को मिलते हैं। यह उस समय की धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक समृद्धि का प्रमाण है।

गुफाओं की यात्रा – एक-एक कर अनोखे अनुभव

गुफा संख्या 1 – सूरज गुफा

यह गुफा सूर्य देव को समर्पित है। यहाँ की नक्काशी में सूर्य देव का रथ और उनके सात घोड़े स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं। सुबह की पहली किरणें जब इस गुफा की दीवारों पर पड़ती हैं, तो दृश्य मनमोहक हो जाता है।

गुफा संख्या 4 – वीणा गुफा

यहाँ एक शिवलिंग और वीणा बजाते हुए एक किन्नर की मूर्ति है। संगीत और आध्यात्म का यह संगम अद्वितीय है।

गुफा संख्या 5 – वाराह गुफा

इस गुफा में विष्णु के वाराह अवतार की भव्य मूर्ति है, जिसमें वे धरती (भूदेवी) को समुद्र से उठाते हुए दिखाए गए हैं। मूर्ति के आकार और बारीकी से बनी आकृतियाँ देखते ही बनती हैं।

गुफा संख्या 6

यह गुफा विभिन्न देवताओं—विष्णु, दुर्गा, गणेश—की मूर्तियों से सजी है। द्वारपालों की मूर्तियाँ इसकी शोभा को और बढ़ा देती हैं।

गुफा संख्या 13

यहाँ शेषशायी विष्णु की मूर्ति है, जिसमें वे अनंत नाग की शैय्या पर विराजमान हैं।

गुफा संख्या 19

यह सबसे बड़ी गुफा है। इसमें शिवलिंग और समुद्र मंथन का दृश्य उकेरा गया है, जो पौराणिक कथाओं की याद दिलाता है।

सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व

उदयगिरि की गुफाएँ सिर्फ पत्थर की कारीगरी नहीं हैं; ये गुप्त काल की कला, धर्म और समाज का दर्पण हैं। यहाँ मिले शिलालेख उस समय की भाषा, प्रशासन और धार्मिक गतिविधियों की जानकारी देते हैं।

इन गुफाओं का जैन, हिंदू और बौद्ध धर्म से जुड़ाव इसे एक सांस्कृतिक संगम स्थल बनाता है।

हमारा अनुभव – इतिहास के बीच एक दिन

प्रियवत की मोटरसाइकिल से भुवनेश्वर से उदयगिरि तक का रास्ता हरे-भरे पेड़ों, खुले खेतों और छोटे-छोटे गाँवों से होकर गुज़रा। सुबह की ठंडी हवा और रास्ते के दृश्य ने यात्रा को और सुखद बना दिया।

गुफाओं के प्रवेश द्वार पर खड़े होकर ऐसा लगा जैसे हम समय के दरवाज़े से इतिहास की ओर जा रहे हों। हर गुफा में एक नई कहानी, एक नया अनुभव छिपा था।

गुफाओं के बीच चलते हुए ऐसा लगा जैसे यहाँ की हर दीवार, हर मूर्ति हमें कुछ कहना चाहती हो—कभी धार्मिक आस्था की कथा, तो कभी प्राचीन कलाकारों की मेहनत की दास्तान।

यात्रा की योजना और उपयोगी सुझाव

सर्वश्रेष्ठ समय: अक्टूबर से मार्च

कैसे पहुँचे:

सड़क मार्ग – भुवनेश्वर से बस, ऑटो या टैक्सी से आसानी से पहुँचा जा सकता है।

रेल मार्ग – भुवनेश्वर रेलवे स्टेशन से मात्र कुछ किलोमीटर।

वायु मार्ग – निकटतम हवाई अड्डा भुवनेश्वर एयरपोर्ट।


क्या साथ रखें: कैमरा, पानी की बोतल, टोपी, सनस्क्रीन।

कहाँ ठहरें: भुवनेश्वर में सभी बजट के होटल और गेस्ट हाउस उपलब्ध।

निष्कर्ष

उदयगिरि की यह यात्रा सिर्फ एक पर्यटन अनुभव नहीं, बल्कि भारतीय इतिहास की गहराइयों में उतरने जैसा था। यहाँ की गुफाएँ हमें गर्व दिलाती हैं कि हमारे देश की कला, संस्कृति और आस्था कितनी समृद्ध रही है।

मेरे और प्रियवत के लिए यह यात्रा दोस्ताना रोमांच और सांस्कृतिक खोज का अद्भुत मेल थी। ग्रामीण भोजन की सादगी, मोटरसाइकिल यात्रा का आनंद, और प्राचीन गुफाओं की अद्भुत कहानियाँ—सबने मिलकर इस सफ़र को अविस्मरणीय बना दिया।

यदि आप इतिहास, कला और संस्कृति में थोड़ी भी रुचि रखते हैं, तो उदयगिरि की गुफाओं को अपनी यात्रा सूची में ज़रूर शामिल करें।


उदयगिरी के गुफाओं के पास धुमन्‍तु बाबा 


उदयगिरी के गुफाओं के पास बैठ के सोचते धुमन्‍तु बाबा की इन पत्‍थरो को काट कर कैसे बनाया होगा इन गुफाओं को 


रत्‍नागिरी के पहाडो से खिचा गया एक फोटु 


इस इतिहासिक जगह को देख कर मन प्रसन्‍न हो गया 

बोड पर लिखा गया उदयगिरी के बारे में पढ कर जानकारी लेते धुमनतु बाबा 

उदयगिरी में 5 से 7 रू प्रति पिस नारियल का पानी मिलता है आप जब भी उदयगिरी आए तो नारियल पानी का मजा जरूर ले 


शेर शाह सूरी का मकबरा: भारत का दूसरा ताजमहल एक ऐतिहासिक धरोहर का सफर....

जुलाई 2024 की एक सुनहरी सुबह थी। मैं, अपने जीविका के साथी धर्मेंद्र जी और अनिल जी के साथ, सासाराम के ऐतिहासिक सफर पर था। मूल रूप से हम औरंगाबाद जिले से "जेंडर" विषय पर एक प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल होने आए थे, लेकिन इतिहास प्रेमी मन कहाँ चैन लेने वाला था! जैसे ही समय मिला, हमने तय किया कि शेर शाह सूरी के मकबरे को देखना ही है।

सुबह 6 बजे, हल्की ठंडी हवा और धूप की पहली किरणों के साथ, हम होटल से निकल पड़े। पैदल यात्रा का आनंद ही कुछ और है, और जब गंतव्य 2 किलोमीटर की दूरी पर हो, तो हर कदम रोमांचक लगने लगता है। रास्ते में लोग अपने-अपने काम में व्यस्त थे, लेकिन हम तीनों के मन में बस एक ही तस्वीर थी — लाल बलुआ पत्थरों से सजा, झील के बीच तैरता इतिहास का अनमोल रत्न।

पहली झलक — झील में तैरता सपना

करीब 20 मिनट के पैदल सफर के बाद, वह दृश्य सामने था। विशाल झील के बीच में खड़ा शेर शाह सूरी का मकबरा, मानो समय को चुनौती देता हुआ। प्रवेश के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के काउंटर से प्रति व्यक्ति ₹20 का टिकट लिया। झील के किनारे खड़े होकर मैंने देखा — मकबरे की ऊँचाई, लाल पत्थरों की गरिमा, और पानी में पड़ती उसकी परछाईं, सब मिलकर एक चित्रकला जैसी सुंदरता रच रहे थे।

इतिहास के पन्नों में

शेर शाह सूरी (1486-1545), अफगान मूल के वह शासक, जिन्होंने मुगल सम्राट हुमायूं को पराजित कर उत्तर भारत में अपना साम्राज्य स्थापित किया। उनका शासन काल छोटा था, लेकिन प्रशासनिक सुधारों और सड़क निर्माण (विशेषकर ग्रैंड ट्रंक रोड) के लिए वे आज भी याद किए जाते हैं। 1545 में कालिंजर किले की घेराबंदी के दौरान उनका निधन हुआ, और उनकी याद में यह भव्य मकबरा 16वीं सदी के मध्य में बनवाया गया।

वास्तुकला का चमत्कार

इंडो-इस्लामिक शैली का अद्भुत नमूना

यह मकबरा इंडो-इस्लामिक वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। 122 फीट ऊँचा, अष्टकोणीय आधार वाला यह स्मारक लाल बलुआ पत्थर से बना है। इसकी योजना, अनुपात और सजावट इस बात का प्रमाण हैं कि 16वीं सदी में वास्तुकार कितनी परिष्कृत समझ रखते थे।

अष्टकोणीय योजना और विशाल गुंबद

मुख्य संरचना अष्टकोणीय आधार पर निर्मित है, जिसके ऊपर एक विशाल, सफेद चमक लिए गुंबद है। यह गुंबद न केवल सुंदर है, बल्कि ध्वनि और वायु प्रवाह के लिहाज़ से भी अद्भुत है।

झील और पत्थर का चबूतरा

मकबरा एक विशाल पत्थर के चबूतरे पर स्थित है, जो चारों ओर से कृत्रिम झील से घिरा है। यह झील न केवल सुंदरता बढ़ाती है, बल्कि स्मारक को ठंडा और संरक्षित भी रखती है।

सजावटी गुंबददार खोखे

मुख्य गुंबद के चारों ओर छोटे-छोटे सजावटी गुंबददार खोखे हैं, जिनमें कभी रंगीन टाइलों का काम हुआ करता था। यद्यपि समय के साथ टाइलें फीकी पड़ गईं, लेकिन उनकी कलात्मक छाप अब भी दिखती है।

मकबरे का दूसरा नाम — भारत का दूसरा ताजमहल

ताजमहल जितना प्रसिद्ध तो नहीं, लेकिन कई इतिहासकार इसे "भारत का दूसरा ताजमहल" कहते हैं। कारण स्पष्ट है — इसका संतुलित डिज़ाइन, पानी के बीच स्थित होना, और प्रेम व सम्मान की भावना से प्रेरित निर्माण।

मेरा अनुभव — समय में पीछे की यात्रा

जब हमने प्रवेश द्वार पार किया, तो ऐसा लगा मानो 16वीं सदी में पहुँच गए हों। झील के बीच तक जाने के लिए बने पुल पर चलते हुए, हर कदम पर पानी में हिलती लहरें, आसमान का नीला रंग, और मकबरे की परछाईं एक जादुई अहसास देती थीं।

भीतर पहुँचकर मैंने देखा कि चारों तरफ नक्काशीदार मेहराबें और ऊँची खिड़कियाँ हैं। हल्की हवा गुंबद के भीतर गूंज पैदा कर रही थी — मानो दीवारें भी अपनी कहानी सुना रही हों। धर्मेंद्र जी और अनिल जी भी इतिहास में खोए हुए थे, हम सबकी बातचीत कम और कैमरे की क्लिक ज़्यादा हो रही थी।

वास्तुकला के पीछे की सोच

सूरी वंश की वास्तुकला में अफगान शैली का स्पष्ट प्रभाव दिखता है, लेकिन यहाँ भारतीय कारीगरी की नजाकत भी जुड़ी है। झील को स्मारक के चारों ओर बनाना सिर्फ सौंदर्य के लिए नहीं था, बल्कि यह सुरक्षा और जलवायु नियंत्रण का उपाय भी था।


कैसे पहुँचें — यात्रियों के लिए मार्गदर्शन

सड़क मार्ग: सासाराम शहर के किसी भी हिस्से से ऑटो, टैक्सी या पैदल यहाँ पहुँचना आसान है।

रेल मार्ग: सासाराम एक प्रमुख रेलवे स्टेशन है, जो दिल्ली, पटना, वाराणसी आदि से जुड़ा है।

वायु मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा गया और पटना में है। वहाँ से सड़क या रेल मार्ग से सासाराम पहुँचा जा सकता है।

आसपास के अन्य स्थल

अगर आप सासाराम में हैं, तो इन जगहों को भी देखना न भूलें:

1. रोहतासगढ़ किला — मध्यकालीन इतिहास का गढ़।

2. तारा चंद्र महल — सूरी वंश की एक और वास्तु धरोहर।

3. कुँवर सिंह स्मारक — 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की याद।

यात्रा सुझाव

सुबह या शाम का समय मकबरे के लिए सबसे अच्छा है, ताकि धूप ज्यादा तेज़ न हो और फोटोग्राफी शानदार हो।

बारिश के मौसम में झील और भी खूबसूरत लगती है, लेकिन फिसलन से सावधान रहें।

टिकट काउंटर से प्रवेश टिकट ज़रूर लें — ASI इसे संरक्षित करता है, और यह शुल्क संरक्षण कार्यों में मदद करता है।

निष्कर्ष — इतिहास, कला और शांति का संगम

शेर शाह सूरी का मकबरा सिर्फ एक ऐतिहासिक स्मारक नहीं, बल्कि यह एक समय कैप्सूल है — जो हमें उस दौर की राजनीति, कला और इंजीनियरिंग से परिचित कराता है। झील के बीच स्थित यह संरचना शांति का प्रतीक है, जो आगंतुक को भीतरी स्थिरता और बाहरी सौंदर्य दोनों का अनुभव कराती है।

जैसे ही हम तीनों होटल की ओर लौट रहे थे, पीछे मुड़कर एक आखिरी बार उस मकबरे को देखा। पानी में तैरती उसकी परछाईं, सुनहरी सुबह की रोशनी, और हवा में इतिहास की खुशबू — यह सब हमेशा मेरी स्मृतियों में अंकित रहेगा।

अगर आप बिहार की यात्रा पर हैं, तो सासाराम के इस रत्न को अपनी सूची में जरूर शामिल करें। यह आपको न सिर्फ इतिहास से जोड़ेगा, बल्कि आपको यह भी सिखाएगा कि सुंदरता और मजबूती का मेल कैसे सदियों तक कायम रह सकता है।
















हिमालय की गोद में: बद्रीनाथ, माणा और आध्यात्मिक यात्रा ...

  दशहरे की छुट्टियाँ आते ही मन में एक ही ख्याल था — हिमालय की वादियों में खो जाने का। बद्रीनाथ, केदारनाथ और हेमकुंड साहिब जैसे पवित्र स्थलों का दर्शन करना मेरा वर्षों पुराना सपना था। यह सिर्फ एक यात्रा नहीं, बल्कि आत्मा को शांति देने वाली एक आध्यात्मिक खोज थी। 15 सितंबर को ही मैंने 5 अक्तूबर की कुंभ एक्सप्रेस में रिज़र्वेशन करवा लिया और 7 अक्तूबर को ऑफिस से छुट्टी लेकर हिमालय की ओर निकल पड़ा।

पटना से यात्रा का आरंभ

पटना जंक्शन पर कुंभ एक्सप्रेस में सवार होते ही यात्रा का उत्साह और भी बढ़ गया। ट्रेन की खिड़की से बाहर दिखते बदलते नज़ारे — खेत, गाँव, नदियाँ — जैसे मुझे संकेत दे रहे थे कि मैं एक अनोखे अनुभव की ओर बढ़ रहा हूँ। लखनऊ होते हुए ट्रेन हरिद्वार पहुँची, और यहीं से इस यात्रा में आस्था और आध्यात्मिकता का गहरा रंग चढ़ना शुरू हुआ।

हरिद्वार में गंगा आरती का अद्भुत अनुभव

हरिद्वार में शाम का समय था। हर की पौड़ी पर हजारों दीपों की रोशनी, मंत्रोच्चार और घंटियों की गूंज ने वातावरण को अलौकिक बना दिया। गंगा आरती का वह नजारा मेरे जीवन का एक यादगार क्षण बन गया। ऐसा लग रहा था मानो पूरी धरती और आकाश भक्ति में डूब गए हों। यहाँ से आगे का सफर जैसे गंगा माता के आशीर्वाद के साथ शुरू हुआ।

जोशीमठ की ओर — नदियों और पहाड़ों का संगम

हरिद्वार से जोशीमठ तक का रास्ता प्रकृति की अनुपम सुंदरता से भरा हुआ है। पहाड़ों के बीच से गुजरती सड़क, गहरी घाटियाँ और किनारे-किनारे बहती अलकनंदा और भागीरथी नदियाँ — ये सब मिलकर मानो एक जीवंत चित्र बना रही थीं। देवप्रयाग में इन दोनों नदियों का संगम देखकर मैं मंत्रमुग्ध रह गया। यह संगम न केवल भौगोलिक दृष्टि से अद्वितीय है, बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से भी अत्यंत पवित्र माना जाता है।

जोशीमठ पहुँचकर मैंने बद्रीनाथ के शीतकालीन मंदिर के दर्शन किए। यहाँ का शांत वातावरण और पहाड़ों की गोद में बसा यह छोटा-सा नगर यात्रियों को रुककर कुछ पल बिताने के लिए आमंत्रित करता है।

बद्रीनाथ धाम — आस्था का केंद्र

जोशीमठ से बद्रीनाथ तक का रास्ता रोमांच से भरपूर था। ऊँचे-ऊँचे पहाड़, झरने और मोड़ों पर अचानक खुलते दृश्य, मानो हर क्षण एक नया पोस्टकार्ड सामने ला रहे हों। बद्रीनाथ पहुँचते ही मेरा मन उल्लास से भर गया।

श्री बद्रीनाथ मंदिर की भव्यता और उसकी पवित्रता शब्दों में बयान करना कठिन है। अलकनंदा नदी के किनारे स्थित यह मंदिर हिमालय की ऊँचाइयों में आस्था का दीपक है। मंदिर में दर्शन के बाद मैंने तप्त कुंड में स्नान किया, जहाँ का गर्म पानी ठंडी पहाड़ी हवा में अद्भुत सुकून देता है।

माणा गाँव — भारत का अंतिम गाँव

बद्रीनाथ से मात्र 3 किलोमीटर की दूरी पर माणा गाँव स्थित है, जिसे "भारत का अंतिम गाँव" कहा जाता है। यहाँ पहुँचकर लगा मानो मैं देश की अंतिम सीमा को छू रहा हूँ। गाँव के पत्थर के घर, ऊन बुनती महिलाएँ और हिमालय की चोटियों का नज़दीकी दृश्य — सबकुछ मंत्रमुग्ध करने वाला था।

यहाँ स्थित भीम पुल और सरस्वती नदी का दृश्य अद्भुत है। माना जाता है कि भीम ने अपनी गदा से यहाँ पत्थर का पुल बनाया था। सरस्वती नदी का प्रचंड प्रवाह देखने लायक है — एक छोटी-सी नदी लेकिन ऊर्जा और गति में अप्रतिम।

यात्रा के अनुभव और सीख

1. प्रकृति का सानिध्य
हिमालय की गोद में रहकर प्रकृति की शक्ति और सुंदरता का गहरा अनुभव हुआ। पहाड़, नदियाँ, बर्फ से ढकी चोटियाँ — ये सब मन को शांति और ऊर्जा देते हैं।

2. आध्यात्मिक संतोष
बद्रीनाथ जैसे पवित्र धाम का दर्शन एक आध्यात्मिक पूर्णता का एहसास कराता है। मंदिर में बैठकर कुछ क्षण ध्यान करने से भीतर का सारा तनाव मानो बह जाता है।

3. स्थानीय संस्कृति का परिचय
माणा गाँव और जोशीमठ में स्थानीय लोगों से बातचीत ने मुझे उनकी संस्कृति, रीति-रिवाज और कठिन लेकिन संतुष्ट जीवनशैली से परिचित कराया।

4. अकेले यात्रा का आनंद
अकेले यात्रा करने का सबसे बड़ा लाभ यह है कि आप अपने हिसाब से रुक सकते हैं, देख सकते हैं और अनुभव को गहराई से महसूस कर सकते हैं।

यात्रियों के लिए उपयोगी सुझाव

सबसे अच्छा समय: मई से जून और सितंबर से अक्टूबर का समय यहाँ आने के लिए उपयुक्त है। सर्दियों में भारी बर्फबारी के कारण मार्ग बंद हो सकता है।

कैसे पहुँचें:

रेल द्वारा: हरिद्वार या ऋषिकेश तक ट्रेन, फिर बस/टैक्सी।

हवाई मार्ग: देहरादून का जॉली ग्रांट एयरपोर्ट निकटतम हवाई अड्डा है।


रुकने की व्यवस्था: बद्रीनाथ, जोशीमठ और हरिद्वार में हर बजट के होटल और धर्मशालाएँ उपलब्ध हैं।

स्वास्थ्य सावधानी: पहाड़ी क्षेत्रों में ऑक्सीजन की कमी हो सकती है, इसलिए धीरे-धीरे चढ़ाई करें और पर्याप्त पानी पिएँ।

अवश्य देखने योग्य स्थल:

बद्रीनाथ मंदिर

माणा गाँव

देवप्रयाग संगम

तप्त कुंड

भीम पुल और सरस्वती नदी

निष्कर्ष — जीवन बदल देने वाला अनुभव

यह हिमालय यात्रा मेरे जीवन की अविस्मरणीय स्मृतियों में दर्ज हो गई है। यहाँ की वादियाँ, नदियाँ, मंदिर और गाँव — सबने मेरे मन पर अमिट छाप छोड़ी है। इस यात्रा ने न केवल मेरे शरीर और मन को तरोताज़ा किया, बल्कि मुझे यह एहसास भी कराया कि प्रकृति और आस्था का मेल जीवन को कितनी गहराई से छू सकता है।

अगर आप भी जीवन में कभी आध्यात्मिक ऊर्जा, रोमांच और प्रकृति की गोद में सुकून ढूँढना चाहते हैं, तो हिमालय की यह यात्रा आपके लिए एक अनमोल अनुभव साबित होगी।

 




ब्रदीनाथ जाने के लिए पहाडो में बना नया राश्‍ता 

पचास रू का जोशी मठ का खाना 

जोशीमठ 

जोशीमठ का बस अडडा यही से ब्रदीनाथ एंव नीती दर्रा तथा औली के लिए गाडीयां जाती है 



 

जे पी का 500 मेगावाट का पावर प्रोजेक्‍अ जो बुरी तरह समाप्‍त हो गया है



तप्‍तकुण्‍ड इसी कुण्‍ड में स्‍नान कर के बद्रीविशाल का दर्शन किया जाता है इस कुण्‍ड में पानी बेहद ही गर्म है जो चर्म रोगो से छुटकारा के लिए बेहद ही अच्‍छा है 

बद्रीनाथ का मन्दिर 









भारत का अन्तिम ग्राम माणा ग्राम 




भिम पुल इसी के राश्‍ते स्‍वगोरोहनी एवं सतोपंथ जाया जाता है 


माणा गांव में सब्‍जी की खेती करता एक किसान 


बद्रीनाथ के समिप बैठे एक बाबा


ब्रदीनाथ का बस अडडा जो पुरी तरह से खोली पडा है  नही आवे मई जुन में पैर रखने के लिए भी जगह नही मिलेगी 


हनुमानचटी यहां पर हनुमान जी ने तपस्‍या किया था 


बद्रीनाथ में बहता अलकनन्‍दा नदी 

बद्रीनाथ में एक दुकान